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अगर नहीं देखी तो 'बोल' देखिए

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कुछ दिन पहले पाकिस्‍तानी फिल्‍म बोल देखने को मिली, जो वर्ष 2011 में रिलीज हूई थी, जिसका निर्देशन शोएब मंसूर ने किया था। एक शानदार फिल्‍म, जो कई विषयों को एक साथ उजागर करती है, और हर कड़ी एक दूसरे से बेहतरीन तरीके से जोड़ी है। कहानी एक लड़की की है, जो अपने पिता के कत्‍ल केस में फांसी के तख्‍ते पर लटकने वाली है। एक लड़के के कहने पर लड़की फांसी का फंदा चूमने से पहले अपनी कहानी कहने के लिए राष्‍ट्रपति से निवेदन करती है। राष्‍ट्रपति उस लड़की के निवेदन को स्‍वीकार करते हैं और वे लड़की अपनी मीडिया से कहानी कहती है। लड़की के पिता हकीम हैं, जिनका धंधा दिन प्रति दिन डूब रहा है, और हकीम साहेब बेटे की चाह में बेटियां ही बेटियां पैदा किए जा रहे हैं। अंत उनके घर एक बच्‍चे का जन्‍म होता है, जो लड़की है न लड़का। किन्‍नर संतान से हकीम नफरत करने लगते हैं। लेकिन परिवार के अन्‍य सदस्‍य किन्‍नर को आम बच्‍चों की तरह पालने कोशिश में लग जाते हैं। सालों से घर की चारदीवारी में बंद किन्‍नर बाहरी दुनिया से अवगत हो, खुशी से जीवन जीए, यह सोचकर उसको बाहर भेजा जाता है, मगर, कुछ हवस के भूखे लोगों की निगाह में