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बदनाम हुए तो क्या हुआ

'बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ' ये पंक्ति बहुत बार सुनी होगी जिन्दगी में, लेकिन मैंने तो इसको कुछ समय से सत्य होते हुए भी देख लिया। इस बात को सत्य किसी और ने नहीं बल्कि हिंदुस्तानी मनोरंजक चैनलों ने कर दिखाया है। राखी सावंत से लेकर विश्व प्रसिद्धी हासिल शिल्पा शेट्टी तक आते आते कई ऐसे नाम मिल जाएंगे, जो इस बात की गवाही भरते हैं कि बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ। कल तक अनुराधा बाली को कोई नहीं जानता था, लेकिन जैसे ही वो फिजा के नाम से बदनाम हुई तो रियालिटी शो बनाने वालों की निगाह सबसे पहले उस पर पड़ी, बेशक रियालिटी शो बनाने वाले शो का फोर्मेट तक चुराते हैं। इमरान हाशमी के नाम एक खुला पत्र फिजा को इस जंगल से मुझे बचाओ में ब्रेक देकर सोनी टेलीविजन वालों ने उस कड़ी को आगे बढ़ाया, जिसको क्लर्स ने मोनिका बेदी, शिल्पा शेट्टी एवं महरूम जेड गुडी को ब्रेक देकर शुरू किया था। मोनिका अबू स्लेम के कारण बदनाम हुई, तो शिल्पा शेट्टी पहले जेड गुडी के कारण और फिर रिचर्ड गेयर के कारण बदनाम हुई, क्लर्स टीवी ने बदनाम महिलाओं को ही नहीं बल्कि राहुल महाजन एवं राजा चौधरी को भी जगह दी, जिन्होंने

एक ऐसा रियालिटी शो, जो बयाँ करता रियालिटी

रियालिटी शो में होती नहीं रियालिटी...इस धारणा को मानकर नहीं देखता था रियालिटी शो...लेकिन एक रियालिटी शो ऐसा, जिसने बदल डाली मेरी धारणा...जी हां..सच है दूध सा सफेद...खरा नहीं क्योंकि दूध में मिलावट चल रही है। शायद मेरी तरह आपकी इस रिलायिटी शो के दीवाने हों...पक्का नहीं कहता। बात को लम्बी नहीं खींचते हुए बताता हूं कि मैं कलर्स पर प्रसारित होने वाले रियालिटी शो.. इंडियाज गोट टेलेंट की बात कर रहा हूं। छोटे पर्दे पर रियालिटी शो तो और भी हैं, लेकिन इस रियालिटी शो की बात ही कुछ और है.. यहां पर जज आपस में टकराते नहीं बात बात पर..मीडिया की सुर्खियां भी नहीं बटोरते...बस ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। सच में ही इंडियाज़ गोट टेलेंट ने मेरी तो रियालिटी शो के प्रति नकारात्मक सोच को बदल कर रख दिया। इस शो को देखने के बाद लगता है कि हिंदुस्तान में हुनर की कोई कमी नहीं..और इस रियालिटी शो की टेग लाईन भी बड़ी दमदार है 'हुनर ही विनर है'। सचमुच इस शो को देखते हुए लगता है कि भारत में हुनर की कोई कमी नहीं..बस देखने वाली आँख भगवान ने हर किसी को नहीं दी। 15 अगस्त को जब ये शो देख रहा था तो आँख

इमरान हाशमी के नाम एक खुला पत्र

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तुमने तो यू-टर्न ले लिया, लेकिन आज के बाद अगर किसी अन्य व्यक्ति ने आवाज उठाई तो उसका क्या होगा? इमरान हाश्मी। क्या तुम्हारे पास कोई जवाब है? तुम तो मिस-कम्यूनिकेशन की बात कहकर निकल गए, अगर तुम्हारे बयान के बाद शहर की स्थिति तनावपूर्ण हो जाती तो फिर कोई क्या करता। तुमको तो मशहूरी मिल गई, चर्चा मिल गई। तुमने तो सच के खिलाफ उठने वाली आवाजों को भी दबने के लिए मजबूर कर दिया। अगर आज के बाद कोई सच के खिलाफ भी आवाज उठाएगा तो लोग उसको झूठ-मशहूरी का फंडा कहकर नकार देंगे। इमरान हाश्मी तुम तो इस फिल्म जगत में नए हो, लेकिन यहां तो सालों से मुस्लिम भाईचारे के लोग बसे हुए हैं एवं फिल्म जगत पर राज कर रहे हैं। उनके मुम्बई में बड़े बड़े आलीशान महल हैं, यहां तक कि शाहरुख खान के बंगले मन्नत को देखने के लिए सैंकड़ों लोग हर रोज मुम्बई तक आते हैं। वो भी तो मुस्लिम भाईचारे से है, उनको तो किसी ने बाजू पकड़कर बाहर नहीं निकाला। समस्या वो नहीं थी, जो तुमने बताई, मीडिया में जिसका चर्चा किया। समस्या तो ये है कि तुम अभी स्टार बने ही नहीं, तुम तो एक सीरियल किसर हो, जिसको बस वो युवा देखते हैं, जिनको स्क्रीन पर आंखें गर

बदनाम हुए तो क्या हुआ

'बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ' ये पंक्ति बहुत बार सुनी होगी जिन्दगी में, लेकिन मैंने तो इसको कुछ समय से सत्य होते हुए भी देख लिया। इस बात को सत्य किसी और ने नहीं बल्कि हिंदुस्तानी मनोरंजक चैनलों ने कर दिखाया है। राखी सावंत से लेकर विश्व प्रसिद्धी हासिल शिल्पा शेट्टी तक आते आते कई ऐसे नाम मिल जाएंगे, जो इस बात की गवाही भरते हैं कि बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ। कल तक अनुराधा बाली को कोई नहीं जानता था, लेकिन जैसे ही वो फिजा के नाम से बदनाम हुई तो रियालिटी शो बनाने वालों की निगाह सबसे पहले उस पर पड़ी, बेशक रियालिटी शो बनाने वाले शो का फोर्मेट तक चुराते हैं। फिजा को इस जंगल से मुझे बचाओ में ब्रेक देकर सोनी टेलीविजन वालों ने उस कड़ी को आगे बढ़ाया, जिसको क्लर्स ने मोनिका बेदी, शिल्पा शेट्टी एवं महरूम जेड गुडी को ब्रेक देकर शुरू किया था। मोनिका अबू स्लेम के कारण बदनाम हुई, तो शिल्पा शेट्टी पहले जेड गुडी के कारण और फिर रिचर्ड गेयर के कारण बदनाम हुई, क्लर्स टीवी ने बदनाम महिलाओं को ही नहीं बल्कि राहुल महाजन एवं राजा चौधरी को भी जगह दी, जिन्होंने असल जिन्दगी में अपना घर उजाड़ने के बा

रण को लेकर नया विवाद

जब मैं ब्लॉग लि ख रहा था तो एक बात और सामने आई कि रण फिल्म की कहानी के गुजराती युवक द्वारा लिखी गई है, परंतु संबंधी खुलासा तो अभी नहीं हुआ, मगर युवक का दावा है कि रण की कहानी उसकी है, जिसको उसने रामगोपाल वर्मा को भेजा था, लेकिन उसका क्रैडिट उसको नहीं दिया जा रहा है. हो सकता है कि एक विवाद और राम का इंतजार कर रहा हो.. 'रण' का अर्थ युद्ध होता है और रामगोपाल वर्मा की अगली फिल्म 'रण' है. जिसके शीर्षक गीत ने वाकयुद्ध सा छेड़ दिया है. टैलीविजन की स्क्रीन से नजर हटाते हुए अखबारों की सुर्खियों से गुजरने के बाद जब ब्लॉग जगत में पहुंचा तो एक ही चीज़ पाई, वो 'जन गण मन..रण' गीत...जिसने रामगोपाल वर्मा को एक बार फिर विवादों के कटहरे में खड़ कर दिया. 'आग' का झुलसा रामू अभी ठीक नहीं हुआ था कि उसकी फिल्म कंट्रेक्ट के एक दृश्य और अहमदाबाद बंब धमाकों की समानता ने उसको फिर से आलोचनाओं का शिकार बना दिया. 'सरकार राज' एवं 'फूंक' की सफलता ने रामू के भीतर जान फूंकी थी, जो आग में झुलसने के कारण खत्म सी हो गई थी. मुम्बई आतंकवादी हमले के बाद जब पूरा देश आतंकवादियों को

....जब स्लमडॉग ने लपका ऑस्कर

आखिर भारतीय एक स्लमडॉग की पीठ पर सवार होकर ऑस्कर की शिखर पर पहुंच ही गए. चल ये तो खुशी की बात है कि हिन्दी जगत की कुछ हस्तियों की ऑस्कर पुरस्कार पाने की तमन्ना पूरी हुई, बेशक विदेश फिल्म निर्देशक के सहारे ही सही. सच बोलने को मन चाहता है कि जो काम हिन्दुस्तानी फिल्म निर्माता निर्देशक नहीं कर पाए वो काम डैनी बोएले के एक स्लमडॉग ने कर दिया. बेचारे एआर रहमान ने बॉलीवुड के कई फिल्मों को एक से बढ़कर एक संगीत दिया, लेकिन अफसोस की बात है कि करोड़ों भारतीयों के प्यार के सिवाय रहमान को कुछ नहीं मिला. हो सकता है कि ये करोड़ों प्रेमियों की दुआओं का असर हो, जो एक विदेशी निर्माता निर्देशक की फिल्म की बदौलत उनको ऑस्कर में सम्मान मिल गया. बेशक फिल्म विदेशी निर्देशक की उपज थी, लेकिन उसमें कलाकार तो भारतीय थे, उसकी पृष्ठभूमि तो मुम्बई की झुग्गियां झोपड़ियां थी, चलो कुछ भी हो, एक स्लमडॉग ने हिन्दुस्तान के कलाकारों को जगत के महान हस्तियों से रूबरू तो करवा दिया. इसके अलावा अनिल कपूर ने तो वहां पर जय जय के नारे भी बुलंद किए, अनिल कपूर की खुशी देखने लायक थी, अनिल कपूर के चेहरे वाली खुशी आज से पहले किसी भी फिल्म

बचो! बचो! 'स्लमडॉग..' से

बड़े दिनों से दिल कर रहा था कि 'गंदी गली का करोड़पति कुत्ता' फिल्म देखूं बोले तो 'स्लमडॉग मिलीयनेयर', जिसने विदेशों में खूब पुरस्कार बटोरे और हिन्दुस्तान में एक बहस को जन्म दे दिया. जहां एक तबका इस फिल्म की बुराई कर रहा था, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा तबका भी जो बाहर के जोगी को सिद्ध कहकर उसकी तारीफों के पुल बांध रहा था. ऐसे में इस फिल्म को देखने के उत्सुकता तो बढ़ जाती है और उस उत्सुकता को मारने के लिए फिल्म देखना तो जरूरी था, वैसे ही मैंने किया. एक दो बार तो मैं सीडी वाले की दुकान से इस लिए खाली लौट आया कि फिल्म का हिन्दी वर्जन नहीं आया था, लेकिन तीसरी दफा मैंने फिल्म का इंग्लिश वर्जन लेना बेहतर समझा, बेरंग लौटने से. फिल्म के कुछ सीन तो बहुत अच्छे थे, लेकिन फिल्म में जो सबसे बुरी बात लगी वो थी, निर्देशक जब चाहे अपने किरदारों से हिन्दी में बात करवाता है और जब उसका मन करता है तो वो इंग्लिश में उन किरदारों को बुलवाना शुरू कर देता है. फिल्म का सबसे कमजोर ये हिस्सा है.             अगर फिल्म निर्देशक विदेशी है तो भाषा भी विदेशी इस्तेमाल करता, बीच बीच में हिन्दी क्यों ठूंस दी

एकता को जमीं पर लाया कलर्स

टेलीविजन जगत की क्वीन मानी जाने वाली एकता कपूर के पांव आज से कुछ पहले जमीं पर नहीं थे, सफलता की हवा में एकता ऐसी उड़ी कि वो भूल गई थी, आखिर आना तो जमीं पर ही पड़ेगा. एक समय था जब सारे धारावाहिक एक तरफ और एकता कपूर के रोने धोने वाले सीरियल एक तरफ, एकता के 'के' शब्द ने अच्छे अच्छे टेलीविजन सीरियल वालों को सोचने पर मजबूर कर दिया था. इसमें कोई शक नहीं कि जितेंद्र की बेटी एकता कपूर ने स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले अपने सीरियलों के जरिए हर घर में काफी लम्बे समय तक राज किया. मगर अदभुत है समय का चक्कर, किसी को राजा तो किसी को फक्कर (कंगाल) बना देता है. एकता कपूर के सीरियलों ने इतनी लोकप्रियता हासिल की कि एकता को टेलीविजन जगत की क्वीन कहा जाने लगा, मगर कभी कभी सफलता भी इंसान की बुद्धि भ्रष्ट कर देती है, और इंसान को लगता है कि उसका गलत भी सही हो जाएगा, किंतु ऐसा केवल दिमाग का फातूर होता है और कुछ नहीं. दुनिया में हर चीज का तोड़ है, हर सवाल का मोड़ है. सफलता के नशे में धूत मनचहे सीरियल लोगों पर थोपने वाली एकता कपूर को जब होश आया तब तक तो उसकी दुनिया लूट चुकी थी. एकता को सफलता की माउंट एवरे

संघर्ष का दूसरा नाम 'अक्षय'

'कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो' यह पंक्ति उस वक्त बिल्कुल हकीकत नजर आती है, जब हम पिछले साल चार हिट फिल्में देकर सफलता की शिख़र पर बैठने वाले अक्षय कुमार की जिन्दगी में झाँकते हैं. आज अक्षय कुमार का नाम सफलतम सितारों में शुमार हो गया, हर किसी को उसका हर लुक भा रहा है, चाहे वो एक्शन हो, चाहे रोमांटिक या चाहे कामेडी. आज दर्शक उसकी सफलता देखकर वाह अक्षय वाह कह रहे हैं, मगर ज्यादातर दर्शकों को अक्षय के संघर्षशील दौर के बारे में पता नहीं, हां मगर, जिनको पता है वो अक्षय को संघर्ष का दूसरा नाम मानते हैं. गौरतलब है कि होटलों, ट्रेवल एजेंसी व आभूषण बेचने जैसे धंधों में किस्मत आजमाने वाले राजीव भाटिया ने बच्चों को मार्शल आर्ट भी सिखाया. इसी संघर्ष के दौर में उनको मॉडलिंग करने का ऑफर मिला. जिसके बाद दिल्ली के चांदनी चौक में रहने वाला राजीव भाटिया अक्षय कुमार के रूप में ढल गया और बड़े पर्दे पर अपनी अदाकारी के जलवे दिखाने लगा. अक्षय कुमार ने फिल्म 'सौगंध' के मार्फत बालीवुड में कदम रखा, उसके बाद खिलाड़ी, सैनिक, मोहरा, हम हैं बेमिसाल, वक्त हमारा ह

ऐश्वर्या के आगे चुनौती

जब पिछले दिनों अमिताभ बच्चन अस्पताल में दाखिल हुए तो ना जाने कितने लोगों ने उनके स्वास्थ्य होने की दुआ की होगी, इन दुआ करने वालों में कुछ ऐसे लोग भी थे, जो खुद शायद पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे, लेकिन फिर भी उन्होंने बॉलीवुड के इस महानायक की सलामती के लिए दुआ की. वहीं अमिताभ बच्चन को स्वास्थ्य करने के लिए घरवालों ने पैसे भी पानी की भांति बहाए होंगे, इस में कोई दो राय नहीं. अमिताभ का तंदरुस्त होकर घर आना एक खुशी का लम्हा है, घरवालों और प्रशंसकों के लिए. लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि अब अमिताभ साठ के पार पहुंच चुके हैं, इस पड़ाव के बाद आदमी सोचता है कि उसके बच्चे खुश रहें और उसके घर में उसके पोते पोतियां खेलें. इसमें कोई शक नहीं होगा कि अब अमिताभ का भी ये सपना होगा, अमिताभ का ही क्यों, जया बच्चन का भी तो वो घर है, क्या होगा वो टेलीविजन पर ऐश, अभि और अमित जी की तरह हर रोज दिखाई नहीं देती, किंतु हैं तो बिग बी की पत्नी, वे भी इस सपने से अछूती न होंगी. आज अमिताभ के पास दौलत है, शोहरत है, लेकिन जब उसके मन में उक्त ख्याल उमड़ता होगा, कहीं न कहीं वो खुद को बेबस लाचार पाते होंगे, क्योंकि इसको पूर

बाक्स आफिस पर अपनों से टक्कर

बालीवुड के लिए पिछले छ: महीने कैसे भी गुजरें हो, मगर इस साल के आने वाले छ: महीने दर्शकों एवं कलाकारों के लिए बहुत ही रोमांच भरे हैं। अगर हम फिल्म निर्माता एवं निर्देशकों द्वारा फिल्म रिलीज करने की तारीखों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस साल बाक्स आफिस पर प्रेमी प्रेमिका को, मामा भांजे को, बाप बेटे को टक्कर देगा। इसमें कोई शक नहीं की बाक्स आफिस पर अब मुकाबलेबाजी बढ़ने लगी है, यह बात तो 'सांवरिया' एवं 'ओम शांति ओम' के एक साथ रिलीज होने पर ही साबित हो गई थी. उसके बाद 'तारे जमीं पर' एवं 'वैकलम' एक साथ रिलीज हुई, बेशक यहां पर त्रिकोणी टक्कर होने वाली थी, मगर उस दिन अजय देवगन की फिल्म 'हल्ला बोल' को रिलीज नहीं किया गया था. बाक्स आफिस पर टक्कर होने से फिल्मी सितारों का मनोबल भी बढ़ता है और उनको भी खूब मजा आता है, जब सामने वाले किसी सितारे की फिल्म पिटती है। जुलाई महीने में भी दो नए सितारे बाक्स आफिस पर टकराने वाले हैं, हरमन बावेजा और इमरान खान. वैसे तो यह टक्कर कोई खास न होती, मगर यह टक्कर खास इस लिए हो गई क्योंकि दोनों के पीछे बड़े बैनर हैं. हरमन बाव

बालीवुड को जोरदार झट्के

चमक दमक भरी मायानगरी यानी बालीवुड में कुछ पता नहीं चलता, कब किसको आसमां मिल जाए और न जाने कब किसको जमीन पर आना पड़ जाए। जब बालीवुड की बात चल रही हो तो यशराज फिल्मस बैनर का नाम तो लेना स्वाभिक बात है क्योंकि इस बैनर का नाम तो बच्चा बच्चा जानता है। सफलता की सिख़र पर पहुंचे इस बैनर को लोगों की नजर लग गई और अब यह बैनर फलक से जमीं तलक आ गया। पिछले साल यशराज ने पांच फिल्में रिलीज की, मगर सफलता का परचम केवल एक लहरा पाई, वो फिल्म थी किंग खान की 'चक दे! इंडिया. यह फिल्म सफलता की सीढ़ियां चढ़ पाएगी यशराज बैनर को उम्मीद नहीं थी, जिसके चलते उन्होंने फिल्म को सस्ते दामों में बेचा, मगर जो फिल्में यशराज बैनर ने महंगे दामों पर बेची थी वो सब सुपर फ्लाप साबित हुई, जिसके चलते सिनेमा मालिकों को घाटा झेलना पड़ा. यशराज ने इस साल की शुरूआत 25 अप्रैल को 'टशन' से की, उन्होंने इस फिल्मों को भी महंगे दामों पर बेचना चाहा, मगर पहले ही नुकसान झेल चुके सिनेमा मालिकों ने इस बार यशराज फिल्मस की फिल्म को अहमियत नहीं दी, जिसके चलते यह फिल्म कुछ सिनेमा घरों में रिलीज नहीं हुई. फिल्म रिलीज होने के एक दो दिन बाद ही

'सरकार राज' ठाकरे को नसीहत

फिल्म निर्देशक राम गोपाल वर्मा की उम्दा पेशकारी 'सरकार राज' देखते हुए दर्शकों को पिछले दिनों महाराष्ट्र में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना की ओर से उत्तर भारतीयों को निशान बनाने की घटनाओं की याद आई होगी। राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में खुद को स्थापित करने लिए उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया था, विशेषकर अमिताभ बच्चन को, जहां बड़े पर्दे के मैगास्टार अमिताभ बच्चन ने पर्दे के पीछे राज ठाकरे के शब्दी निशानों का खूब जोरदार जवाब दिया, वहीं पर अमिताभ बच्चन एवं उनके बेटे अभिषेक बच्चन ने 'सरकार राज' में महाराष्ट्र का नेतृत्व कर बड़े पर्दे पर खूब वाह वाह बटोरी है। उल्लेखनीय है कि इस फिल्म को आईफा अवार्ड समारोह में दिखाया गया था, फिल्म को इतना बड़ा समर्थन मिला कि पुलिस को भी भीड़ के साथ दो चार होना पड़ा. मेरे ख्याल से महाराष्ट्र को राम गोपाल वर्मा का आभार प्रकट करना चाहिए जिन्होंने महाराष्ट्र की एकता को पर्दे पर दर्शाया एवं महाराष्ट्र की एकता के नाम पर लोगों को तालियां बजाने लिए मजबूर कर दिया. वैसे तो सुनने आया है कि राज ठाकरे एवं राम गोपाल वर्मा में बहुत गहरी दोस्ती है एवं राज राम की फिल्म को

लाजवाब है 'सरकार राज'

निर्देशकः राम गोपाल वर्मा कलाकारः अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, ऐश्वर्य राय बच्चन, गोविन्द रामदेव, सुप्रिया पाठक, राजेश श्रृगांरपुरी, रवि काले, उपेन्द्र लिमाए। पिछले साल फ्लाप हैट्रिक मारने वाले राम गोपाल वर्मा ने इस साल की शुरूआत 'सरकार राज' से की. इसमें कोई शक नहीं कि इस फिल्म में रामगोपाल वर्मा ने अपने आपको फिर से साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. वर्मा ने इस फिल्म को बहुत बढ़िया ढंग से बनाया है ताकि दर्शक उनकी पुरानी फिल्म 'सरकार' से भी तुलना करना चाहें तो बढ़े शौक से करें क्योंकि यह फिल्म पुरानी सरकार से काफी ज्यादा अच्छी है. इतना ही नहीं रामू गोपाल वर्मा ने फिल्म को इस ढंग से तैयार किया कि दर्शक एक बार भी नजर इधर उधर चुरा नहीं पाते. फिल्म ‘सरकार राज’ को देखकर कहा जा सकता है, कि राम गोपाल वर्मा ने बॉलीवुड के सफल निर्देशकों के कतार में धमाकेदार वापसी की है. उनके द्वारा बनाई गई ‘सत्या’ और ‘कंपनी’ जैसी फिल्मों की तुलना में कई गुणा बेहतरीन फिल्म है ‘सरकार राज’. फिल्म के सभी पहलू उसे बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट बनाने में मददगार तो होंगे ही, साथ ही इसके तमाम कलाकार

छोटे आसमां पर बड़े सितारे

शाहरुख खान छोटे पर्दे से बड़े पर्दे पर जाकर बालीवुड का किंग बन गया एवं राजीव खंडेलवाल आपनी अगली फिल्म 'आमिर' से बड़े पर्दे पर कदम रखने जा रहा है, मगर वहीं लगता है कि बड़े पर्दे के सफल सितारे अब छोटे पर्दे पर धाक जमाने की ठान चुके हैं। इस बात का अंदाजा तो शाहरुख खान की छोटे पर्दे पर वापसी से ही लगाया जा सकता था, मगर अब तो सलमान खान एवं ऋतिक रोशन भी छोटे पर्दे पर दस्तक देने जा रहे हैं. इतना ही नहीं पुराने समय के भी हिट स्टार छोटे पर्दे पर जलवे दिखा रहे हैं, जिनमें शत्रुघन सिन्हा एवं विनोद खन्ना प्रमुख है. बालीवुड के सितारों का छोटे पर्दे की तरफ रुख करने के दो बड़े कारण हैं, एक तो मोटी राशी एवं दूसरा अधिक दर्शक मिल रहे हैं. इन सितारों के अलावा अक्षय कुमार, अजय देवगन, गोविंदा भी छोटे पर्दे के मोह से बच नहीं सके. अभिनेताओं की छोड़े अभिनेत्रियां भी कहां कम हैं उर्मिला मातोंडकर एवं काजोल भी छोटे पर्दे पर नजर आ रही हैं. छोटे पर्दे पर भी आना बुरी बात नहीं लेकिन जब आप बड़े पर्दे पर सफलता की शिखर पर बैठे हों तो छोटे पर्दे की तरफ रुख करना ठीक नहीं, इस सबूत तो शाहरुख खान को मिल गया, उसके नए टी