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अपराधग्रस्‍त जीवन या सम्‍मानजनक जीवन

जिन्‍दगी में ज्‍यादा लोग अपराधबोध के कारण आगे नहीं बढ़ पाते, जाने आने में उनसे कोई गलती हो जाती है, और ताउम्र उसका पल्‍लू न छोड़ते हुए खुद को कोसते रहते हैं, जो उनके अतीत को ही नहीं वर्तमान व भविष्‍य को भी बिगाड़कर रख देता है, क्‍योंकि जो वर्तमान है, वह अगले पल में अतीत में विलीन हो जाएगा, और भविष्‍य जो एक पल आगे था, वह वर्तमान में विलीन हो जाएगा। जिन्‍दगी को खूबसूरत बनाने के लिए चाणक्‍य कहते हैं, 'तुमसे कोई गलत कार्य हो गया, उसकी चिंता छोड़ो, सीख लेकर वर्तमान को सही तरीके से जिओ, और भविष्‍य संवारो।' ऐसा करने से केवल वर्तमान ही नहीं, आपका भविष्‍य और अतीत दोनों संवरते चले जाएंगे। किसी ने कहा है कि गलतियों के बारे में सोच सोचकर खुद को खत्‍म कर लेना बहुत बड़ी भूल है, और गलतियों से सीखकर भविष्‍य को संवार लेना, बहुत बड़ी समझदारी। मगर हम जिस समाज में पले बढ़े हैं, वहां पर किताबी पढ़ाई हम को जीवन जीने के तरीके सिखाने में बेहद निकम्‍मी पड़ जाती है, हम किताबें सिर्फ इसलिए पढ़ते हैं, ताकि अच्‍छे अंकों से पास हो जाएं एवं एक अच्‍छी नौकरी कर सकें। मैं पूछता हूं क्‍या मानव जीवन केवल आ

बिहार से लौटकर; बदल रहा है बिहार

जब बिहार अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा था, उन्‍हीं दिनों हमारा कंपनी के काम को लेकर बिहार जाना हुआ है, बिहार को लेकर कई प्रकार की धारणाएं समाज फैली हुई हैं, जैसे कि यह लोग मजदूरी के लायक हैं, यह लोग बेहद गरीब हैं, बिहार में गुंडागर्दी एवं लूटमार बहुत होती हैं, यह लोग विनम्र नहीं, पता नहीं क्‍या क्‍या, मगर जैसे ही असनसोल एक्‍सप्रेस ने बिहार में एंट्री मारी, वैसे ही मेरी निगाह हरे भरे खेतों की तरफ गई, जहां किसान काम कर रहे थे, कुछ लोग भैंसों खाली स्‍थानों पर चरा रहे थे, कुछ कुछ किलोमीटर पर पानी के चश्‍मे थे, जो किसी भी राज्‍य के लिए गर्व की बात होती है, मैं यह सब देखते हुए रेलगाड़ी के साथ आगे बढ़ रहा था, खुशी थी कि कंपनी के काम के कारण ही बिहार की एक झलक देखने को तो मिली, बिहार के उपरोक्‍त दृश्‍य मुझे अनिल पुस्‍दकर के ब्‍लॉग अमीर देश गरीब लोग की याद दिला रहे थे कि इनका राज्‍य कितना अमीर है, यह कोई नहीं जानता, बस अगर कोई जानता है तो इतना के बिहारी दूसरे राज्‍यों में जाकर कार्य करते हैं। जैसे ही पटना पहुंचा तो सबसे पहले वहां की स्‍िथति को जानने के लिए मैंने वहां बिक रहा अखबार ख

अब उंगली का ट्रेंड

कोई गाली बोलता था तो सेंसर बोर्ड बीप मारकर उसको दबा देता था, लेकिन अब जो पश्‍िचम से नया ट्रेंड आया है, उसका तोड़ कहां से लाएगा सेंसर। मूक रहकर हाव भाव व इशारों से गाली देने का ट्रेंड, जहां रॉक स्‍टार में रणवीर कपूर पश्‍िचम की भांति उंगली उठाकर गाली देते हुए नजर आए, वहीं प्‍लेयर्स में रणबीर कपूर के साथ अभिनय पारी शुरू करने वाली सोहम कपूर उसी इशारे का इस्‍तेमाल करते हुए नजर आई। जो उंगलियां कल तक किसी ओर इशारा करने के, माथे पर तिलक करने के, किसी को दोषी ठहरने के, शू शू करने की अनुमति मांगने के काम आती थी, अब उन्‍हीं में से एक  उंगली  गाली देने के काम भी आने लगी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सिनेमा समय के साथ साथ अपना प्रभाव छोड़ता है, और उंगली दिखाकर गाली देने का प्रचार बहुत जल्‍द हिन्‍दुस्‍तानी युवाओं के सिर चढ़कर बोलने लग सकता है। इतना ही नहीं, बहुत चीजें भाषा में शामिल होने लगी है, जैसे कि डरे हुए को देखकर लड़की हो या लड़का बेबाक ही कह देते हैं, तेरी तो बहुत फटती है, क्‍या यह शब्‍द हमारी भाषा का हिस्‍सा थे, आखिर यह शब्‍द कहां से आ टपके, हमारी बोल चाल में। यह शब्‍द सिनेमा से, सिनेमा

पंजाबी भाषा और कुछ बातें

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अपने ही राज्य में बेगानी सी होती जा रही है पंजाबी भाषा, केवल बोलचाल की भाषा बनकर रह गई पंजाबी, कुछ ऐसा ही महसूस होता है, जब सरकारी स्कूलों के बाहर लिखे 'पंजाबी पढ़ो, पंजाबी लिखो, पंजाबी बोलो' संदेश को देखता हूँ। आजकल पंजाब के ज्यादातर सरकारी स्कूलों के बाहर दीवार पर उक्त संदेश लिखा आम मिल जाएगा, जो अपने ही राज्य में कम होती पंजाबी की लोकप्रियता को उजागर कर रहा है, वरना किसी को प्रेरित करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। पंजाबी भाषा केवल बोलचाल की भाषा बनती जा रही है, हो सकता है कि कुछ लोगों को मेरे तर्क पर विश्वास न हो, लेकिन सत्य तो आखिर सत्य है, जिस से मुँह फेर कर खड़े हो जाना मूर्खता होगी, या फिर निरी मूढ़ता होगी। पिछले दिनों पटिआला के बस स्टॉप पर बस का इंतजार करते हुए मेरी निगाह वहाँ लगे कुछ बोर्डों पर पड़ी, जो पंजाबी भाषा की धज्जियाँ उड़ा रहे थे, उनको पढ़ने के बाद लग रहा था कि पंजाबी को धक्के से लागू करने से बेहतर है कि न किया जाए, जो चल रहा है उसको चलने दिया जाए। अभी पिछले दिनों की ही तो बात है, जब एक समारोह में संबोधित कर रहे राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को अचा

ओबामा को प्राईज नहीं, जिम्मा मिला

अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा उस समय हैरत में पड़ गए, जब नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनका नाम घोषित कर दिया गया। ज्यादातर लोग खुश होते हैं, जब उनको सम्मानित किया जाता है, लेकिन ओबामा परेशान थे। शायद उन्होंने सोचा नहीं था कि उनकी राह और मुश्किल हो जाएगी, उनके कंधों पर अमेरिका के अलावा विश्व में शांति कायम करने का जिम्मा भी आ जाएगा। अगर ओबामा को पहले पता चल जाता कि नोबेल शांति पुरस्कार देने के लिए उनके नाम पर विचार किया जा रहा है तो शायद विचार को वो उसी वक्त ही खत्म कर देते, और ये पुरस्कार हर बार की तरह किसी ऐसे व्यक्ति के हाथों में चला जाता, जो काम कर थक चुका था, जो आगे करने की इच्छा नहीं रखता। बस वो थका हुआ, इस पुरस्कार को लेकर खुशी खुशी इस दुनिया से चल बसता। मगर अबकी बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला, क्योंकि कमेटी ने पासा ही कुछ ऐसा फेंका है कि अब पुरस्कार की कीमत चुकानी होगी। अब वो करना होगा जो पुरस्कार की कसौटी पर खरा उतरता है। जब ओबामा को पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो हर जगह खलबली सी मच गई, इसको पुरस्कार क्यों दिया जा रहा है। आखिर इसने क्या किया है? ये कैसी पागलभांति है? लेकिन लोग क्यों

पंजाब में छिड़ने वाला है धर्म युद्ध !

जहां एक तरफ चुनाव नजदीक आते राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं, वहीं दूसरी तरफ पंजाब को दंगों की आग में झुलसाने की तैयारियां भी पर चल रही हैं। आज रोजाना अजीत में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक सिख समुदाय डेरा प्रेमियों के विरुद्ध एक अभियान चलाने वाला है, जिसका नाम 'धर्म युद्ध' है. इस अभियान में करीबन 11 सदस्यीय 13 दल हैं, जिनको 'शहीदी जत्थों' का नाम दिया गया है. अभियान के नाम से और जत्थों के नाम से एक बात तो सिद्ध हो गई कि इस बार सिख समुदाय के लोग करो या मरो की नीति अपना चुके हैं. युद्ध शब्द शांति एवं अमन का प्रतीक नहीं, जब युद्ध लगता है तो करोड़ों हँसते खेलते लोग शवों में तब्दील हो जाते हैं. घरों में मातम छा जाते हैं, हँसी चीखों में बदल जाती है, चेहरे की मुस्कराहट खामोशी में बदल जाती है. जिस तरह की रणनीति कल तख्त श्री दमदमा साहिब में जत्थेदार बलवंत सिन्ह नंदगढ़ के अध्यक्षता में तैयार की गई है, उससे तो लगता है कि पंजाब एक बार फिर से दंगों की आग में झुलसने वाला है. पिछले साल सिखों एवं डेरा प्रेमियों के बीच हुए खूनी संघर्ष को भूल लोग फिर से अपनी आम जिन्दगी में लौट आए थे, लेकिन जि