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वरना, रहने दे लिखने को

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रचनाकार : कुलवंत हैप्पी तुम्हें बिकना है, यहाँ टिकना है, तो दर्द से दिल लगा ले दर्द की ज्योत जगा ले लिख डाल दुनिया का दर्द, बढ़ा चढ़ाकर रख दे हर हँसती आँख रुलाकर हर तमाशबीन, दर्द देखने को उतावला है बात खुशी की करता तू, तू तो बावला है मुकेश, शिव, राजकपूर हैं देन दर्द की दर्द है दवा असफलता जैसे मर्ज की साहित्य भरा दर्द से, यहाँ मकबूल है बाकी सब तो बस धूल ही धूल है, संवेदना के समुद्र में डूबना होगा, गम का माथा तुम्हें चूमना होगा, बिकेगा तू भी गली बाजार दर्द है सफलता का हथियार सच कह रहा हूँ हैप्पी यार माँ की आँख से आँसू टपका, शब्दों में बेबस का दर्द दिखा रक्तरंजित कोई मंजर दिखा खून से सना खंजर दिखा दफन है तो उखाड़, आज कोई पंजर दिखा प्रेयसी का बिरह दिखा, होती घरों में पति पत्नि की जिरह दिखा हँसी का मोल सिर्फ दो आने, दर्द के लिए मिलेंगे बारह आने फिर क्यूं करे बहाने, लिखना है तो लिख दर्द जमाने का वरना, रहने दे लिखने को