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कुलवंत हैप्‍पी लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रेप रेप रेप, अब ब्रेक

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दिल्‍ली से केरल तक रेप की ख़बरें। भारतीय संस्‍कृति ऐसी तो नहीं। फिर क्‍यूं अपने घर में, देश की राजधानी में सेव नहीं गर्ल। लड़कियां कल का भविष्‍य हैं, कहकर कन्‍या भ्रूण हत्‍या पर तो रोक लगाने की हम सब जंग लड़ रहे हैं, लेकिन जिंदा लड़कियों को जिन्‍दा लाश में तब्‍दील करने के खिलाफ कब लड़ना शुरू करेंगे हम। कभी दिल्‍ली की चलती बस में लड़की के साथ रेप होता है, तो कभी घर में उसके अपने ही उसके बदन के कपड़े तार तार कर देते हैं। कभी केरल से ख़बर आती है बाप ने अपनी बेटी से कई सालों तक किया रेप। रेप रेप रेप सुनकर तंग आ चुके हैं, अब ब्रेक लगना चाहिए। गैंग रेप की घटना होने के बाद सारा कसूर पुलिस प्रशासन पर डाल देते हैं। हजारों मामलों की पैरवी कर रही पुलिस इस को भी एक मामला समझ कार्रवाई शुरू कर देती है। कई सालों बाद कोर्ट आरोपियों को कुछ साल की सजा सुना देती है, मगर रेप एक लड़की को कई सालों तक की सजा सुना देता है। उसके भीतर एक अनजाने से डर को ताउम्र भर के लिए भर देता है। सिने जगत  से लेकर मीडिया पर कसनी होगी नकेल हर तरफ सेक्‍स सेक्‍स, अश्‍लीलता अश्‍लीलता। जो दिमाग को पूरी तरह काम वासना से भ

कहीं छीन न जाए आजादी का मंच

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हर देश आजाद हो गया। मगर आजाद देश के बशिंदों द्वारा चुने गए शासक एक बार फिर तानाशाह का रवैया अपनाने लगे हैं, जो शुभ संकेत नहीं। एक पल में हमारी डाक पहुंचाने वाले गूगल ने समर्थन मांगा है, आजादी के लिए। गूगल ने अपने होमपेज पर ''मुक्त और खुला इंटरनेट पसंद है ? विश्व सरकार को उस तरह रखने के लिए कहें'' और  Love the free and open Internet? Tell the world's governments to keep it that way. लिखकर आपका समर्थन मांगा है। गूगल को संदेह है कि कुछ देशों की सरकारें बंद कमरों में बैठ कर इंटरनेट को सेंसर की जंजीरों से जकड़ने का प्रयास कर रही है। अगर अब आवाज न उठी तो हो सकता है कि हमारी आवाज को बुलंद करने वाला मंच हम से छीन जाए। आओ मिलकर आवाज उठाएं। निम्‍न लिंक पर क्‍लिक करें। और समर्थन दें।    Love the free and open Internet? Tell the world's governments to keep it that way.

मच्‍छर की मौत लाइव रिपोर्टिंग

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होटल का दरवाजा पूरी तरह सुरक्षित हैं, क्‍यूंकि होटल प्रबंधन को पहले ही सीआईडी टीम के आने की सूचना मिल गई थी, और बताया जा रहा है कि पिछले 15 सालों में बेगिनत दरवाजे तोड़ चुके दया से होटल प्रबंधन पूरी तरह से अवगत है, क्‍यूंकि होटल में इस शो देखने वालों की संख्‍या बहुत है। मच्‍छर की बॉडी को अभी अभी पोस्‍टमार्टम के लिए लैब में भेज दिया गया है। सी आई डी अपने काम में जुट चुकी हैं, उम्‍मीद है कि बहुत जल्‍द मच्‍छर की मौत के पीछे का रहस्‍य खुलकर हमारे सामने आएगा। पुलिस अधिकारियों को एक वंछित मच्‍छर की तलाश थी, लेकिन वो यह मच्‍छर है या कोई दूसरा। इस मामले में भी तहकीकात चल रही है। ऐसे में कुछ भी कहना मुश्‍किल है। आसपास के क्षेत्र में काफी तनाव महसूस किया जा रहा है। यहां यह होटल है, ये एक पॉश इलाका है। इस जगह पर मच्‍छर की उपस्‍थिति सुरक्षा व्‍यवस्‍था पर काफी सारे सवाल खड़े रही है। अभी अभी जुड़े हमारे दर्शकों को बता देना चाहते हैं कि आज सुबह एक होटल में मच्‍छर के मृत पाए जाने की ख़बर मिली थी। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि इस मच्‍छर को पाकिस्‍तान स्‍थित आतंकवादी संगठनों द्वारा प्रशिक्षित कर

'आम आदमी' की दस्‍तक, मीडिया को दस्‍त

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अन्‍ना हजारे के साथ लोकपाल बिल पारित करवाने के लिए संघर्षरत रहे अरविंद केजरीवाल ने जैसे 'आम आदमी' से राजनीति में दस्‍तक दी, तो मीडिया को दस्‍त लग गए। कल तक अरविंद केजरीवाल को जननेता बताने वाला मीडिया नकारात्‍मक उल्‍टियां करने लगा। उसको अरविंद केजरीवाल से दुर्गंध आने लगी। अब उसके लिए अरविंद केजरीवाल नकारात्‍मक ख़बर बन चुका है। कल जब अरविंद केजरीवाल ने औपचारिक रूप में आम आदमी को जनता में उतारा तो, मीडिया का रवैया, अरविंद केजरीवाल के प्रति पहले सा न था, जो आज से साल पूर्व था। राजनीति में आने की घोषणा करने के बाद अरविंद ने कांग्रेस एवं भाजपा पर खुलकर हमला बोला। मीडिया ने उनके खुलासों को एटम बम्‍ब की तरह फोड़ा। मगर बाद में अटम बम्‍बों का असर उतना नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था, और अरविंद केजरीवाल को मीडिया ने हिट एंड रन जैसी नीति के जन्मदाता बना दिया, जो धमाके करने के बाद भाग जाता है। मुझे पिछले दिनों रिलीज हुई ओह माय गॉड तो शायद मीडिया के ज्‍यादातर लोगों ने देखी होगी, जिन्‍होंने नहीं देखी, वो फिर कभी जरूर देखें, उस में एक संवाद है, जो अक्षय कुमार बोलते हैं, जो इस फिल्‍म

पहले मां बनो, फिर बनो पत्‍नी

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टोटोपाडा के जंगल से बॉलीवुड तक | हम नया कुछ नहीं करते, हम पुराने को तरीकों फिर से दोहराते हैं, लेकिन ख़बरों में आने के बाद वो नया सा लगने लगता है चाहे वो योग या फिर लिव इन रिलेशन का कनेक्‍शन। भारत भूटान सीमा पर एक टोटोपाडा नामक ऐसी जगह है, जहां आज भी शादी से पहले लड़की को गर्भवती होना पड़ता है। कहते हैं कि टोटो जनजाति समुदाय के लड़के को जो लड़की पसंद आती है, वो उसके साथ फरार होता है एवं लड़का लड़की एक साथ रहते हैं, कुछ महीनों बाद जब लड़की गर्भधारण कर लेती है तो लड़की को शादी के काबिल माना जाता है। भले ही हम हिन्‍दी फिल्‍मों में कुछ महिलाओं को त्रासदी झेलते देखते हैं, जब वो अपने प्रेमी से कहती हैं, जोकि फिल्‍म में विलेन है, लेकिन लड़की के लिए प्रेमी, मैं तुम्‍हारे बच्‍चे की मां बनने वाली हूं। मगर बॉलीवुड की कहानी भी रुपहले पर्दे से बेहद अलग है, जहां बहुत सी अभिनेत्री हैं, जो टोटोपाडा की प्रथा को बॉलीवुड में स्‍थापित कर चुकी हैं। ख़बरों की मानें तो बॉलीवुड की सदाबाहर अभिनेत्री श्रीदेवी ने बोनी कपूर से उस समय शादी की थी, जब वह करीबन सात माह की गर्भवती थी। परदेस से बॉलीवुड में प

प्‍यार की कोई उम्र नहीं होती 'शिरीं फरहाद'

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बड़ी स्‍क्रीन पर अब तक हम युवा दिलों का मिलन देखते आए हैं, मगर पहली बार निर्देशिका बेला सहगल ने शिरीं फरहाद की तो निकली पड़ी के जरिए चालीस के प्‍यार की लव स्‍टोरी को बिग स्‍क्रीन पर उतारा है। इस फिल्‍म को लेकर फिल्‍म समीक्षकों में विरोधाभास नजर आता है, आप खुद नीचे देख सकते हैं, फिल्‍म एक मगर प्रतिक्रियाओं अनेक, और प्रतिक्रियाओं में जमीं आसमान का फर्क। इस फिल्‍म के बारे में समीक्षा करते हुए मेरी ख़बर डॉट कॉम पर अमित सेन भोपाल से लिखते हैं कि एक अरसे बाद बॉलीवुड में चल रही द्विअर्थी संवाद के दौर में बेहतर कॉमेडी वाली फिल्म आई है, अगर आप अच्छी हल्की-फुल्की हेल्दी कॉमेडी फिल्म देखना चाह रहे हों तो यह फिल्म आपके लिए है। वहीं दूसरी तरफ समय ताम्रकर इंदौर से हिन्‍दी वेबदुनिया डॉट कॉम फिल्‍म की समीक्षा करते हुए लिखते हैं कि निर्देशक के रूप में बेला सहगल का पहला प्रयास अच्छा है, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के चलते वे चाहकर भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाईं। कई जगह हंसाने की असफल कोशिश साफ नजर आती है। बोमन ईरानी ने फरहाद के किरदार को विश्वसनीय तरीके से पेश किया है। फराह खान कुछ दृश्यों में असहज लग

कौन छीनता है हमारी आजादी ?

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हम आजाद हैं, हम आजाद थे और आजाद रहेंगे। 18 साल के बाद वोट करने का अधिकार आपके हाथ में है, जिससे आप सत्ता पलटने ताकत रखते हैं। भगवान आपकी तरफ तलवार फेंकता है, यह निर्भर आप पर करता है कि आप उसको धार से पकड़ना चाहेंगे या हत्‍थे से। वोट का अधिकार सरकार द्वारा फेंकी तलवार है, अब निर्भर आप पर करता है कि आप लहू लहान होते हैं या फिर उसका औजार की तरह इस्‍तेमाल करते हैं। देश की सत्ता पर बैठे हुए लोग हमारे द्वारा चुने गए हैं। उनको देश पर शासन करने का अधिकार हमने दिया है। वो वोट खरीदते हैं। वो हेरफेर कर चुनावों में जीतते हैं। ऐसा हम कहते हैं और सिस्‍टम को कोसते हैं। मगर एक बार नजर डालो अपने आस पास फैले समाज पर और पूछो खुद से। वोट बेचने वाले कौन हैं? सिस्‍टम में गड़बड़ी करने वाले कौन हैं? अगर आप अपनी तलवार दुश्‍मन के हाथों में देकर सोचते हो कि भगवान ने आपके साथ अन्‍याय किया है तो यह आपकी गलती है, भगवान की नहीं। जब भी 15 अगस्‍त की तारीख पास आने वाली होती है तो हर जगह लिखा मिलता है 'भ्रष्‍टाचार, रिश्वतखोरी, बेरोज़गारी, भुखमरी के ''गुलाम देश'' के नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस

क्‍यूंकि कभी पकड़ नहीं गया

@ईमानदारी - एक कंपनी ने अपने आवेदन पत्र में लिखा क्‍या कभी आपको गिरफ्तार किया गया है? आवेदक ने उत्तर दिया नहीं, दूसरा सवाल था, अगर नहीं तो क्‍यूं, आवेदक ने बड़ी मासूमियत से उत्तर दिया, क्‍यूंकि कभी पकड़ नहीं गया। @सोच -  याद रहे कि हम किसी को हराने की तैयारी नहीं कर रहे, क्‍यूंकि हमारा लक्ष्‍य इतना छोटा नहीं। @भरोसा- मुझे पता है, जो हम करने जा रहे हैं वो आसान नहीं, लेकिन असंभव भी तो नहीं। @निर्णय - ओ जे सिम्‍पसन ने कहा था, जिस दिन आप अपने बारे में पूरी जिम्‍मेदारी ले लेते हैं। जिस दिन आप बहाने बनाना बंद कर देते हैं, उसी दिन आप चोटी की ओर की यात्रा शुरू करते हैं। @यादों के झारोखों से -  मुझे लेकर अफवाहों का बाजार हमेशा गर्म रहा, मेरा कार्य क्षेत्र भले कोई भी रहा हो। मैं जिस क्षेत्र में गया, वहां अफवाहें भी मेरे पीछे पीछे चली आई। कभी कभी सोचता हूं, कि कहीं बॉलीवुड जाने का सपना पूरा हो जाता तो यह अफवाहें मुझे हर रोज अख़बारों में स्‍पेस दिलाती। फिर सोचता हूं कि लोग कितने फुर्सत में रहते हैं, जो दूसरों पर निगाह रखकर उनकी बात दूसरों तक पहुंचाते हैं, अफवाहों में पुष्‍टि नामक शब्‍द न

मेंढ़क से मच्‍छलियों तक वाया कुछेक बुद्धजीवि

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अमेरिका और भारत के बीच एक डील होती है। अमेरिका को कुछ भारतीय मेंढ़क चाहिए। भारत देने के लिए तैयार है, क्‍यूंकि यहां हर बरसाती मौसम में बहुत सारे मेंढ़क पैदा हो जाते हैं। भारत एक टब को पानी से भरता है, और उसमें उतने ही मेंढ़क डालता है, जितने अमेरिका ने ऑर्डर किए होते हैं। भारतीय अधिकारी टब को उपर से कवर नहीं करते। जब वो टब अमेरिका पहुंचता है तो अमेरिका के अधिकारियों को फोन आता है, आपके द्वारा भेजा गया टब अनकवरेड था, ऐसे में अगर कुछ मेंढ़क कम पाएगे तो जिम्‍मेदारी आपकी होगी। इधर, भारतीय अधिकारी पूरे विश्‍वास के साथ कहता है, आप निश्‍िचंत होकर गिने, पूरे मिलेंगे, क्‍यूंकि यह भारतीय मेंढ़क हैं। एक दूसरे की टांग खींचने में बेहद माहिर हैं, ऐसे में किस की हिम्‍मत कि वो टब से बाहर निकले। आप बेफ्रिक रहें, यह पूरे होंगे। एक भी कम हुआ तो हम देनदार। जनाब यहां के मेंढ़क ही नहीं, कुछ बुद्धिजीवी प्राणी भी ऐसे हैं, जो किसी को आगे बढ़ते देखते ही उनकी टांग खींचना शुरू कर देते हैं। आज सुबह एक लेख पढ़ा, जो सत्‍यमेव जयते को ध्‍यान में रखकर लिखा गया। फेसबुक पर भी आमिर खान के एंटी मिशन चल रहा है। कभी उसकी

बोफोर्स घोटाला, अमिताभ का बयान और मेरी प्रतिक्रिया

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बोफोर्स घोटाला, कब सामने आया, यकीनन जब मैं तीसरा बसंत देख रहा था, यानि 1987, इस घोटाले का पर्दाफाश अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र द हिंदु की संवाददाता चित्रा सुब्रह्मण्‍यम ने किया, मगर सीबीआई ने इस मामले में चार्जशीट उस समय दाखिल की, जब मैं पांच साल पूरे कर छठे की तरफ बढ़ रहा था। इसके बाद सरकारें बदली, स्‍थितियां परिस्‍थितियां बदली, मैं भी समय के साथ साथ बड़ा होता चला गया। लेकिन मुझे इस घोटाले की जानकारी उस समय मिली जब इस घोटाले के कथित दलाल ओत्तावियो क्‍वोत्रिकी की हिरासत के लिए सीबीआई जद्दोजहद कर रही थी, और मैं एक न्‍यूज वेबसाइट के लिए कीबोर्ड पर उंगलियां चला रहा था, तकरीबन तब मैं पच्‍चीस साल का हो चुका था, और यह घोटाला करीबन 22 साल का। आप सोच रहे होंगे कि घोटाले और मेरी उम्र में क्‍या तालुक है, तालुक है पाठक साहिब, क्‍यूंकि जब यह घोटाला हुआ तो राजीव गांधी का नाम उछलकर सामने आया, चूंकि वह उस समय प्रधानमंत्री बने थे, और राजीव गांधी प्रधानमंत्री कब बने, जब इंदिरा गांधी का मौत हुई, और जब इंदिरा की मौत हुई, तब मैं पांच दिन का था, एक वो ही ऐसी घटना है, जिसने मेरे जन्‍मदिन की पुष्‍टि

बेटियों की परवाह करते हैं या चुनने का अधिकार छीनते हैं ?

बेटियों की परवाह करते हैं या चुनने का अधिकार छीनते हैं? यह प्रश्‍न मुझे कई दिनों से तंग परेशान कर रहा है। सोचा आज अपनी बात रखते हुए क्‍यूं न दुनिया से पूछ लिया जाए। कुछ दिन पहले मेरी शॉप पर एक महिला ग्राहक अपने परिवार समेत आई, वो भी मेरी तरह कई दिनों से तंग परेशान थी, एक सवाल को लेकर, मैं हिन्‍दी और मेरी पत्‍नी अच्‍छी गुजराती कैसे बोलती है? आखिर उसने भी मेरी तरह हिम्‍मत करके सवाल पूछ ही लिया, उत्तर तो शायद वह पहले से ही जानती थी लव मैरिज। मगर पूछकर उस ने अपने संदेह को सत्‍य में तब्‍दील कर दिया। फिर वह झट से बोली, मैंने भी अपने बेटे को कह रखा है, जो लड़की पसंद हो मुझे बता देना, मैं शादी करवा दूंगी। चलो अच्‍छी बात है कि दुनिया अब ऐसा सोचने लगी है, लव मैरिज को अहमियत देने लगी है। मगर कुछ देर बाद वो महिला बोली, अगर तुम्‍हारे ध्‍यान में हमारी बिरादरी का लड़का हो तो बताना, मेरी बेटी के लिए। मुझे यह बात खटक गई, मैंने पूछा, बेटा जो भी लाए चलेगा, लेकिन लड़की के लिए आप ही ढूंढेंगे ? क्‍या बात है! उसने कहा, ऐसा नहीं, बच्‍ची की जिन्‍दगी का सवाल है, फिर मैंने पूछा क्‍या जो आपका लड़का लड़क

हैप्‍पी अभिनंदन में रविश कुमार

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हैप्‍पी अभिनंदन   में इस बार आपको एनडीटीवी के रिपोर्टर से एंकर तक हर किरदार में ढल जाने वाले गम्‍भीर व मजाकिया मिजाज के  रवीश कुमार  से मिलवाने की कोशिश कर रहा हूं, इस बार हैप्‍पी अभिनंदन में सवाल जवाब नहीं होंगे, केवल विशलेषण आधारित है, क्‍योंकि एक साल से ऊपर का समय हो चला है, अभी तक रवीश कुमार, जो नई सड़क पर कस्‍बा बनाकर बैठें हैं, की ओर से मेरे सवालों का जवाब नहीं आया, शायद वहां व्‍यस्‍तता होगी। हो सकता है कि उनके कस्‍बे तक मेरे सवाल न पहुंच पाए हों, या फिर उनके द्वारा भेजा जवाबी पत्र मुझ तक न आ पाया हो। फिर मन ने कहा, क्‍या हुआ अगर जवाबी पत्र नहीं मिला, क्‍यूं न रवीश कुमार से पाठकों व ब्‍लॉगर साथियों की मुलाकात एक विशलेषण द्वारा करवाई जाए। रविश कुमार, ब्‍लॉग सेलीब्रिटी नहीं बल्‍कि एक सेलीब्रिटी ब्‍लॉगर हैं, जिनके ब्‍लॉग पर लोग आते हैं, क्‍यूंकि सेलीब्रिटियों से संबंध बनाने का अपना ही मजा है। मगर रवीश कुमार ने साबित किया है कि वह केवल सेलीब्रिटी ब्‍लॉगर नहीं हैं, बल्‍कि एक सार्थक ब्‍लॉगिंग भी करते हैं। मैं पहली बार उनके ब्‍लॉग पर एक साथी के कहने पर पहुंचा था, जो उम्र में

आज चौथी तारीख है, कुछ जल्‍द हो जाए

सर जी, आज चौथी तारीख है, कुछ जल्‍द हो जाए। क्‍यूं जी? क्‍या आज पत्‍नि को डिनर पर लेकर जाना है? नहीं तो, क्‍या बच्‍चों को इम्‍िहतानों की तैयारी करवानी है? नहीं तो, क्‍या आज मां या बाप को डॉक्‍टर के यहां चेकअप के लिए लेकर जाना है? नहीं जी, तो आखिर फिर आज ऐसा क्‍या करना है, जिसके लिए जल्‍दी छूटी चाहिए, जी आज आइपीएल शुरू होने वाला है, बहुत अच्‍छा, आइपीएल देखने के लिए जल्‍दी जाना है, खूब मियां, आज से देश व्‍यस्‍त हो जाएगा, और भूल जाएगा, काले धन के मुद़दे को, भूल जाएगा सेनाध्‍यक्ष की चिट़ठी से हुए खुलासे को, भूल जाएगा देश में बढ़ती कीमतों को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों को। चलो ठीक है, जल्‍दी चले जाओ। इस ट्रैफिक को भी आज ही रास्‍ता रोकना था, इतने में साथ खड़ा व्‍यक्‍ित कहता है, यार यह तो रोज की समस्‍या है, शायद आज तुम ही पहले आ गए, यहां तो ट्रैफिक की यही स्‍थिति है, वैसे घर जाने से पहले ही आइपीएल शुरू हो जाएगा, क्‍या तुम भी आइपीएल देखोगे, क्‍या मजाक करते हो, हिन्‍दुस्‍तान में रहते हो, और क्रिकेट नहीं देखते तो क्‍या जीना है, यही तो एक काम है, जो सब चीजों को भुला देता है पत्‍िन के पीठ दर

क्‍या मैं अपने प्रति ईमानदार हूं?

'जॉन सी मैक्‍सवेल' की किताब 'डेवल्‍पिंग द लीडर विदिन यू' के हिन्‍दी संस्‍करण 'अपने भीतर छुपे लीडर को कैसे जगाएं' में प्रकाशित एडगर गेस्‍ट की कविता 'क्‍या मैं अपने प्रति ईमानदार हूं?' बहुत कुछ कहती है, मेरे हिसाब से अगर इस कविता का अनुसरण किया जाए तो जीवन स्‍वर्ग से कम तो नहीं होगा, और अंतिम समय जीवन छोड़ते वक्‍त किसी बात का अफसोस भी नहीं होगा, जबकि ज्‍यादातर लोग अंतिम सांस अफसोस के साथ लेते हुए दुनिया को अलविदा कहते हैं। क्‍या मैं अपने प्रति ईमानदार हूं ? मुझे अपने साथ रहना है, और इसलिए मैं इस लायक बनना चाहता हूं कि खुद को जानूं गुजरते वक्‍त के साथ मैं चाहता हूं हमेशा अपनी आंखों में आंखें डालकर देखना मैं नहीं चाहता डूबते सूरज के साथ खड़े रहना और अपने किए कामों के लिए खुद से नफरत करना मैं अपनी अलमारी में रखना नहीं चाहता अपने बारे में बहुत से रहस्‍य और आते जाते यह सोचने की मूर्खता नहीं करना चाहता कि मैं सचमुच किस तरह का आदमी हूं मैं छल की पोशाक नहीं पहनना चाहता मैं सिर उठाकर बाहर जाना चाहता हूं परंतु दौलत और शोहरत के इस संघर्ष में मैं चा

वो बोझ नहीं ढोते, जेब का बोझ हलका करते हैं

जी हां, वो बोझ नहीं ढोते, जेब का बोझ हलका करते हैं। आप सोच रहे होंगे मैं किन की बात कर रहा है, तो सुनिए भारतीय रेलवे स्‍टेशन पर लाल कोट में कुछ लोग घूमते हैं, जो यात्रियों के सामान को इधर से उधर पहुंचाने का काम करते हैं, जिनको हम कुली कहकर पुकारते हैं, मगर सुरत के रेलवे स्‍टेशन पर लाल कोट पहनकर घूमने वाले कुली लोगों का बोझ ढोने की बजाय उनकी जेबों को हलका करने में ज्‍यादा दिलचस्‍पी लेते हैं। हम को सूरत से इटारसी तक जाने के लिए तपती गंगा पकड़नी थी, जिसके लिए हम रेलगाड़ी आने से कुछ समय पहले रेलवे स्‍टेशन पहुंचे, जैसे ही हम प्‍लेटफार्म तक जाने सीढ़ियों के रास्‍ते ऊपर पहुंचे, वैसे ही लाल कोट वाले भाई साहेब हमारे पास आए और बोले चलत टिकट है, पहले तो समझ नहीं आया, लेकिन उसने जब दूसरी बार बात दोहराई तो हम बोले नहीं भाई रिजर्वेशन है, लेकिन वेटिंग, क्‍या बात है साहेब बनारस तक कंफर्म करवा देते हैं, इतने में मेरे साथ खड़े ईश्‍वर सिंह ने कहा, नहीं भई जब जाना तो इटारसी तक है, बनारस का टिकट क्‍या करेंगे, हम उसको वहीं छोड़ आगे बढ़ गए, इतने में हमारी निगाह वहां लगी लम्‍बी लाइन पर पड़ी, जहां पर कुछ यात्

सावधान! देश उबल रहा है

मेरे घर गुजराती समाचार पत्र आता है, जिसके पहले पन्‍ने पर समाचार था कि देश की सुरक्षा को खतरा, इस समाचार को पढ़ने के बाद पहले पहल तो लगा कि देश का मीडिया देश हित की सोचता है या चीन जैसे दुश्‍मन की, जो ऐसी जानकारियां खुफिया तरीकों से जुटाने के लिए लाखों रुपए खर्च करता है। फिर एकांक विज्ञापन की एक पंक्‍ित 'देश उबल रहा है' याद आ गई, जो कई दिनों से मेरे दिमाग में बार बार बज रही है। जो कई दशकों से नहीं हुआ, और अब हो रहा है यह उबलते हुए देश की निशानी नहीं तो क्‍या है? इस समाचार को पढ़ने के बाद मैं काम को निकल गया, हुआ वही जो मेरे दिमाग में समाचार पढ़ने के बाद आया, कि अब राजनेता सेनाध्‍यक्ष की कुर्सी को निशाना बनाएंगे, सभी नेताओं ने प्रतिक्रिया देना शुरू कर दी, जो मुंह में आया बोल दिया, जानकारियां लीक करने वाले मीडिया के लिए जश्‍न का दिन बन गया, क्‍योंकि पूरा दिन पंचायत बिठाने का अवसर जो मिल गया था। मीडिया ने एक की सवाल पूछा क्‍या सेनाध्‍यक्ष को बर्खास्‍त किया जाना चाहिए, किसी ने यह नहीं कहा कि जो सेनाध्‍यक्ष ने पत्र में लिखा, उस पर जांच बिठाई जानी चाहिए, आखिर कहां कमियां रह गई के दे

बिहार से लौटकर; बदल रहा है बिहार

जब बिहार अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा था, उन्‍हीं दिनों हमारा कंपनी के काम को लेकर बिहार जाना हुआ है, बिहार को लेकर कई प्रकार की धारणाएं समाज फैली हुई हैं, जैसे कि यह लोग मजदूरी के लायक हैं, यह लोग बेहद गरीब हैं, बिहार में गुंडागर्दी एवं लूटमार बहुत होती हैं, यह लोग विनम्र नहीं, पता नहीं क्‍या क्‍या, मगर जैसे ही असनसोल एक्‍सप्रेस ने बिहार में एंट्री मारी, वैसे ही मेरी निगाह हरे भरे खेतों की तरफ गई, जहां किसान काम कर रहे थे, कुछ लोग भैंसों खाली स्‍थानों पर चरा रहे थे, कुछ कुछ किलोमीटर पर पानी के चश्‍मे थे, जो किसी भी राज्‍य के लिए गर्व की बात होती है, मैं यह सब देखते हुए रेलगाड़ी के साथ आगे बढ़ रहा था, खुशी थी कि कंपनी के काम के कारण ही बिहार की एक झलक देखने को तो मिली, बिहार के उपरोक्‍त दृश्‍य मुझे अनिल पुस्‍दकर के ब्‍लॉग अमीर देश गरीब लोग की याद दिला रहे थे कि इनका राज्‍य कितना अमीर है, यह कोई नहीं जानता, बस अगर कोई जानता है तो इतना के बिहारी दूसरे राज्‍यों में जाकर कार्य करते हैं। जैसे ही पटना पहुंचा तो सबसे पहले वहां की स्‍िथति को जानने के लिए मैंने वहां बिक रहा अखबार ख

माहौल बदलो, जीवन बदलेगा

मेरा बेटा, गोल्‍ड मेडलिस्‍ट है, देखना उसको कहीं न कहीं बहुत अच्‍छी नौकरी मिल जाएगी। शाम ढले बेटा घर लौटता है और कहता है कि पापा आपका ओवर कोंफीडेंस मत खा गया, मतलब जॉब नहीं मिली। इंटरव्‍यूर, उसका शानदार रिज्‍यूम देखकर कहता है, कुनाल चोपड़ा, तुम्‍हारा रिज्‍यूम इतना शानदार है कि इससे पहले मैंने कभी ऐसा रिज्‍यूम नहीं देखा, लेकिन अफसोस की बात है कि तुमने पिछले कई सालों से कोई केस नहीं लड़ा। यह अंश क्‍लर्स टीवी पर आने वाले एक सीरियल परिचय के हैं, जो मुझे बेहद पसंद है, खासकर सीरियल के नायक कुनाल चोपड़ा के बिंदास रेवैया के कारण। कितनी हैरानी की बात है कि एक पिता अपने इतने काबिल बेटे को दूसरों के लिए कुछ पैसों खातिर कार्य करते हुए देखना चाहता है। इसमें दोष उसके पिता का नहीं बल्‍कि उस समाज, माहौल का है, जिस माहौल समाज में वह रहते हैं, कुणाल चोपड़ा गोल्‍ड मैडलिस्‍ट ही नहीं बल्‍कि एक बेहतरीन वकील है, मगर उसका परिवार तब बेहद खुद होता है, जब उसकी प्रतिभा को वही फार्म कुछ पैसों में खरीद लेती है, जिसके इंटरव्‍यूर ने कुणाल चोपड़ा को रिजेक्‍ट कर दिया था। ऐसी कई कंपनियां हैं, जहां पर एक से एक प्रतिभावान

आपकी सफलता, आपकी क्षमता पर निर्भर है

उस कड़क की दोपहर में, गेहूं की कटाई के वक्‍त मेरे पिता ने मेरे एक सवाल पर, एक बात कही थी, जो मुझे आज बहुत ज्‍यादा प्रेरित करती है, और जिस बिजनस में मैं हूं उसको आगे बढ़ाने के लिए अहम योगदान अदा करती है। मैंने गेंहूं काटते हुए ऐसे पूछ लिया था, यह कितने समय में कट जाएगी, तो उन्‍होंने एक कहानी सुनाई। एक किसान था, कड़कती दोपहर में सड़क किनारे खेतों में काम कर रहा था, एक राह चलते राहगीर ने उससे पूछा कि फलां गांव कितनी दूर है, तो उसने जवाब दिया 25 मील। जवाब मिलते ही राहगीर ने दूसरा जवाब दाग दिया, मुझे पैदल चलते हुए वहां पहुंचने में कितना वक्‍त लगेगा ? राहगीर के इस सवाल पर किसान ने कोई उत्‍तर न दिया, और अपने काम में पूर्ण रूप से मस्‍त हो गया। राहीगर ने तीन दफा किसान से वही सवाल पूछा, मगर किसान ने कोई जवाब नहीं दिया। गुस्‍से में आगबगुला होकर राहगीर चल दिया, राहगीर कुछ दूर ही गया था, कि पीछे से आवाज आई कि बस इतना समय लगेगा। राहगीर मुड़कर बोला, पहले नहीं बोल सकते थे, तो किसान ने उत्‍तर दिया मुझे तुम्‍हारी रफतार का पता नहीं था। सच में जब तक आप अपनी प्रतिभा उजागर नहीं करोगे, तब तक कोई भला कैसे बता

दशा बदलने के लिए दिशा बदलें

अगर जीवन में लाख कोशिश करने के बाद भी कोई खास सुधार नजर न आए तो दिशा बदल लेनी चाहिए, तभी दशा बदल सकती है, अगर लकीर के फकीर ही बने रहे तो स्‍िथति बदलने की कोई संभावना नहीं। हिन्‍दुस्‍तान में अमीर अमीर और गरीब होते जा रहे हैं, इसका कारण आम आदमी का जीवन व उसकी सीमाएं हैं। जैसे के जन्‍म, साधारण शिक्षा, नौकरी, शादी, खर्च/थोड़ी बचत, इस तरह से आम आदमी का जीवन चल रहा है, अगर आम आदमी ने इसमें सुधार नहीं किया तो जीवन स्‍तर में सुधार की कोई गुजाइंश नहीं। इस व्‍यवस्‍था को सुधारने की जरूरत है, जन्‍म के बाद अच्‍छी शिक्षा,  शिक्षा के बाद बेहतरीन जॉब, और खर्च/थोड़ी बचत, जो बचत है उसको निवेश में बदलना। मगर आम आदमी जितनी उम्र भर में बचत करता है, उसको सुख सुविधाओं के लिए खर्च कर देता है या फिर अंतिम समय से पहले अपने स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च कर देता है। निवेश होना चाहिए भले ही छोटा हो, क्‍योंकि निवेश पैसे की संतान को पैदा करना है, सुख सुविधा के लिए खर्च किया पैसा पैसे की संतान को मार देता है। जैसे दंपति के बच्‍चे होते हैं, वह उनके युवा होने पर उनकी शादी कर देता है, और फिर वह बच्‍चे नए बच्‍चों को जन्‍म देते