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नरेंद्र मोदी, मीडिया और अरविंद केजरीवाल

गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी से अधिक मीडिया पीड़ित कोई नहीं होगा। मोदी जितना तो बॉलीवुड में भी आपको मीडिया पीड़ित नहीं मिलेगा। ग्‍यारह साल तक निरंतर मीडिया के निशाने पर रहे। मीडिया का विरोधी सुर इतना कि उनको पांच इंटरव्‍यूओं को छोड़कर भागना पड़ा। 2012 ढलते वर्ष के साथ एक नए नरेंद्र मोदी का जन्‍म हुआ। यह ग्‍यारह साल पुराना नरेंद्र मोदी नहीं था। इस समय नए नरेंद्र मोदी का उदय हो रहा था। गुजरात की सत्‍ता चौथी वार संभालने की तरफ कदम बढ़ रहे थे। गुजरात की जीत उतनी बड़ी नहीं थी, जितना बड़ा उसको दिखाया गया। इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ एपको वर्ल्‍ड, पीआर एजेंसी का, जिसने अपने हाथ में मीडिया रिमोट ले लिया था। 2012 की जीत बड़ी नहीं थी। इसका तथ्‍य देता हूं, जब नरेंद्र मोदी पहली बार गुजरात में मुख्‍यमंत्री बने तो उनकी सीटें 127 थी, दूसरी बात सत्‍ता में आए तो उनकी सीटें 117 तक घिसककर आ गई थी। अंत 2012 में यह आंकड़ा महज 116 तक आकर रुक गया। मगर मोदी का कद विराट हो गया, क्‍यूंकि मीडियाई आलोचनाओं के बाद भी नरेंद्र मोदी निरंतर गुजरात की सत्‍ता पर काबिज होने में सफल हुए। ग्‍यारह सा

बैंड—बाजा, बारात और 'आप' की टोपी

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वाराणसी में निकली आप की टोपी पहने बारात की ख़बर। हिसार (हरियाणा) चुनाव की खुमारी अब सिर चढ़कर बोलने लगी है। राजनीतिक पार्टियों के समर्थक अपने-अपने दल के लिए प्रचार का कोई तरीका नहीं छोड़ रहे हैं। इसी कड़ी में हरियाणा में जिला सिरसा के गांव सलारपुर के एक युवक ने भी आम आदमी पार्टी के प्रचार-प्रसार के लिए अनोखा तरीका अपनाया। आम आदमी पार्टी के इस पक्के समर्थक मुकेश धंजु ने अपनी शादी में सेहरा तो पहना, मगर उस पर टोपी पहनी 'आप' की। उसने बारात में शामिल होने वाले दोस्तों-रिश्तेदारों को भी 'आप' की टोपी पहनने का आग्रह किया। दूल्हे के आग्रह को कोई ठुकरा नहीं पाया। दूल्हे की बहनों और महिला बारातियों ने भी सिर पर टोपी पहनकर बारात में शिरकत की। गांव सलारपुर से 'आप' की टोपी पहने मुकेश धंजू की बारात ऐलनाबाद पहुंची। दुल्हे मुकेश ने बताया कि मैं हमेशा से ही भ्रष्टाचार विरोधी विचारधारा का रहा हूं। मैं 'आप' के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की नीतियों से प्रभावित रहा हूं। इसी से प्रभावित होकर और प्रेरणा लेकर मैं शुरू से ही केजरीवाल के साथ जुड़ा हुआ हूं और उनके आंदोलन

अरविंद केजरीवाल से नाराज श्री श्री! क्यूं ?

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फेसबुक पर आजकल एक ख़बर को बड़े जोर शोर से शेयर किया जा रहा है, जिसमें अरविंद केजरीवाल की बुराई करते हुए नजर आते हैं पूजनीय श्री श्री रविशंकर जी। अब नाराजगी का कारण बता देता हूं। मैं लम्बे समय से इस संस्थान के टच में हूं, अपरोक्ष रूप से। नरेंद्र मोदी व श्री श्री में बहुत निकटता है, जो 2012 के विधान सभा चुनावों से निरंतर जारी है। पिछले महीने मोदी की किताब 'साक्षी भाव' को रिलीज भी श्री श्री ने किया। उसी शाम को अहमदाबाद में भोज भी रखा गया, जहां अपने भक्तों से कहा गया, लक्ष्मी कमल पर वास करती है, ध्यान रहे। बात यहां कहां खत्म होती है, मथुरा से चुनाव मैदान में हेमा मालिनी हैं, जो गुरू की अनुयायी हैं, उनके घर अ​द्वितीय का उद्घाटन भी श्री श्री ने अपने कर कमलों से किया। दिल्ली पूर्व चुनाव लड़ने वाले बीजेपी के उम्मीदवार महेश गिरि कौन हैं ? बता देता हूं, 16 साल की उम्र में घर छोड़कर हिमालय निकल गए। कुछ समय बाद गीर में आकर रहने लगे एवं गुरु दत्तात्रेय पीठ ​गीर के पीठ प्रमुख बने। यहां 2002 में वो श्री श्री के सन्निध्य में पहुंच गए। अध्यात्म से दिल भर गया तो राजनीति की तरफ चहल कद

केजरीवाल से इ​सलिए नाराज!

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एक थका मंदा आदमी नौकरी से घर पहुंचा। पत्नि ने ठंडे पानी का गिलास मुस्कराते हुए दिया। पति ने गिलास को पकड़ा, जैसे थका मंदा आदमी पकड़ता है। थोड़ी देर बाद पत्नि चाय लेकर आई और बोली। बड़े दिनों से मेरा मन कर रहा है कि आप एक दिन के लिए नौकरी से छुट्टी ले लेते, तो हम यहां आस पास किसी पि​कनिक वाली जगह पर घूम आते। पति ने कहा, बॉस छुट्टी नहीं देगा। तुम को पता है कि इन दिनों मुझे ​आफिस में बहुत अधिक काम रहता है। पत्नि बोली, 365 दिनों में से सिर्फ इन्हीं दिनों काम रहता है, तो दूसरे दिन तुम क्या करते हो, अगर मुझे पहले बताया होता तो वो दिन चुन लेती, नहीं नहीं ऐसा नहीं, काम तो हर रोज रहता है। पत्नि तपाक से बोली, यही तो मैं भी कहना चाहती हूं, काम तो हर रोज रहता है, लेकिन छुट्टी तो कभी कभार ली जाती है। नहीं, छुट्टी नहीं मिलेगी। बॉस मुझे आफिस से निकाल देगा। बाद में इतनी अच्छी जॉब भी नहीं मिलेगी। अच्छा तो यह बात है, हम से ज्यादा नौकरी प्यारी है। जब तुम दोस्त की पंचायत बिठाते हो, और अरविंद केजरीवाल को भगोड़ा कहते हो तो तब तुम को समझ नहीं आती कि उसने तो आपसे भी बड़ी कर्सी छोड़ी केवल देश में

मोदी काठमांडू सीट से लड़ेंगे !

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पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री पद के लिए उम्मीदवार चुने गए। इस बात से देश को खुशी होनी चाहिए थी, लेकिन अफसोस के देश के भीतर राजनीतिक पार्टियां उनको रोकने के लिए चुनाव मैदान में उतर गई। बड़ी हैरानीजनक बात है, भला कोई इस तरह करता है। माना कि देश में लोकतंत्र है, लेकिन किसी की भावनायों को भी समझना लोकतंत्र का फर्ज है कि नहीं। बेचारे मोदी कहते हैं कि भ्रष्टाचार रोको। तो विरोधी कहते हैं मोदी रोको। मोदी कहते हैं कि गरीबी रोको तो विरोधी कहते हैं मोदी रोको। कितनी नइंसाफी है। वाराणसी से चुनाव लड़ने का मन बनाया था लेकिन मुरली मनोहर जोशी कहने लगे पाप कर बैठे जो वाराणसी से लड़ बैठे।​ स्थिति ऐसी हो चुकी है कि भाजप से न तो मुरली मनोहर जोशी को पाप मुक्त करते बनता है न ही पाप का भागीदार बनाते बनता है। राजनाथ सिंह : आप बनरास से लड़े नरेंद्र मोदी : जीतने की क्या गारंटी है ? राजनाथ सिंह : गारंटी चाहिए तो arise इनवेटर ले आएं। भाई गारंटी तो चाहिए क्यूंकि मुरली मनोहर जोशी के दीवाने भी अड़चन पैदा कर सकते हैं। अंत नरेंद्र मोदी ने फैसला किया है कि वो काठमांडू से चुना

परिवर्तन किसे चाहिए.... सत्ता की भूख

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देश को बदलने की बात करने वाले। देश को सोने की चि​ड़िया बनाने का दावा करने वाले बड़ी हैरत में डाल देते हैं, जब वह सामा​जिक मुद्दों को लेकर सत्ता में आई पार्टी पर सवाल​ उठाते हैं। उसका स्वागत करने की बजाय, उसको गिराने की साजिश रचते हैं, गिराने की हथकंडे अपनाते हैं। देश को बदलने की बात करने वाली भाजपा के नेता अरविंद केजरीवाल की टोपी को लेकर सवाल उठा रहे हैं। अगर भाजपा देश का भला चाहती है तो उसको हर समाज सुधारक में मोदी नजर आना चाहिए न कोई दूसरा। मगर सत्ता पाने की चेष्ठा। आगे आने की अभिलाषा ऐसा होने नहीं देती। यह हालत वैसी है जैसे मरुथल में कोई भटक जाए। उसको प्यास लगे व मृग मरीचिका को झील समझने लगे। ​जिसके पास पानी की बोतल होगी, जिसको प्यास न होगी, उसको मृग मरीचिका लुभा न सकेगी। मगर राजनेतायों को पद प्रतिष्ठा से प्रेम है। देश की जनता पहाड़ में जाए। नेता को ढोंग रचता है। जनता का मिजाज देखकर बाहर के कपड़े बदल लेता है। उसको समाज सुधार से थोड़ी न कुछ लेना है। एक दिन गधे पर सवार होकर मुल्ला नसीरुद्दीन बाजार से निकल रहा था, किसी ने पूछा किस तरफ जा रहे हो, मुल्ला ने कहा, गधे से

अरविंद केजरीवाल कुछ तो लोग कहेंगे

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बड़ी हैरानी होती है। कोई कुछ लेता नहीं तो भी देश के कुछ बुद्धिजीवी सवाल उठा देते हैं, अगर कोई लेता है तो भी। अब आम आदमी मुख्यमंत्री बन गया। वो आम आदमी सुरक्षा लेना नहीं चाहता, लेकिन मीडिया अब उसको दूसरे तरीके से पेश कर रहा है। सुनने में आया है, अरविंद केजरीवाल ने सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया। सुरक्षा के रूप में उसको दस बारह पुलिस कर्मचारी मिलते, लेकिन अब उसकी सुरक्षा के​ लिए सौ पुलिस कर्मचारी लगाने पड़ रहे हैं। अब भी सवालिया निशान में केजरीवाल हैं ? शायद बुद्धिजीवी लोग घर से बाहर नहीं निकलते या घर नहीं आते। शायद रास्तों से इनका राब्ता नहीं, संबंध नहीं, कोई सारोकार नहीं। वरना,उनको अर​विंद केजरीवाल के शपथग्रहण कार्यक्रम की याद न आती, जहां पर सौ पुलिस कर्मचारियों को तैनात किया गया था। कहते हैं आठ दस से काम चल जाता है, अगर अरविंद सुरक्षा के लिए हां कह देते तो। सच में कुछ ऐसा हो सकता है, अगर हो सकता है तो नरेंद्र मोदी की राजधानी, मेरे घर के पास आकर देख लें। मोदी गोवा से, दिल्ली, यूपी, बिहार से निकलता है, लेकिन मेरे शहर की सड़कों पर सैंकड़े से अधिक पुलिस कर्मचारी ठिठुरते

लोकपाल बिल तो वॉट्सएप पर पास हो गया था

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अन्ना हजारे। आज के गांधी हो गए। ठोको ताली। कांग्रेस व भाजपा समेत अन्य पार्टियों ने लोक पाल बिल पास कर दिया। कहीं, आज फिर एक बार अंग्रेजों की नीति को तो नहीं दोहरा दिया गया। गांधी को महान बनाकर सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह जैसे किरदारों को दबा दिया गया। सत्ता पाने की चाह में पागल पार्टियां ​दिल्ली में बहुमत न मिलने की कहानी गढ़ते हुए सरकार बनाने से टल रही हैं। आज भी राजनीतिक पार्टियां भीतर से एकजुट नजर आ रही हैं। शायद वह आम आदमी के हौंसले को रौंदा चाहती हैं, जो आप बनकर सामने आया है। वह चाहती हैं कि आप गिरे। डगमगाए ताकि आने वाले कई सालों में कोई दूसरा आम आदमी राजनेता को नीचा​ दिखाने की जरूरत न करे। आठ साल से लटक रहा बिल एकदम से पास हो जाता है। अन्ना राहुल गांधी को सलाम भेजता है। उस पार्टी का भी लोक पाल को समर्थन मिलता है, जिसका प्रधानमंत्री उम्मीदवार, बतौर मुख्यमंत्री अब तक अपने राज्य में लोकायुक्त को लाने में असफल रहा है। मुझे लगता है कि शायद अन्ना ने राहुल गांधी को भेजे पत्र के साथ एक पर्ची भी अलग से भेजी होगी। जिस पर लिखा होगा। क्या एक और अरविंद केजरीवाल चाहिए? र

एक ख़त आम आदमी पार्टी के नाम

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नमस्कार। सबसे पहले आप को बधाई शानदार शुरूआत के लिए। कल जब रविवार को न्यूज चैनलों की स्क्रीनें, क्रिकेट मैच के लाइव स्कोर बोर्ड जैसी थी, तो मजा आ रहा था, खासकर दिल्ली को लेकर, दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो रहा था, तो भाजपा के साथ आप आगे बढ़ रहे थे, लेकिन दिलचस्प बात तो यह थी कि चुनावों से कुछ दिन पहले राजनीति में सक्रिय हुई पार्टी बाजी मारने में सफल रही,हालांकि आंकड़ों की बात करें तो भाजपा शीर्ष है, मगर बात आप के बिना बनने वाली नहीं है। यह बात तो आपको भी पता थी कि कुछ समीकरण तो बिगड़ने वाला है, मगर आप ने इतने बड़े फेरबदल की उम्मीद नहीं की थी। अगर आपको थोड़ी सी भी भनक होती तो यकीनन सूरत ए हाल कुछ और होता। आप प्रेस के सामने आए, बहुत भावुक थे, होना भी चाहिए, ऐसा क्षण तो बहुत कम बार नसीब होता है। अब आप को अपने कार्यालय के बाहर एक शेयर लिखकर रखना चाहिए, मशहूर हो गया हूं तो जाहिर है दोस्तो, अब कुछ इलजाम मेरे स​र भी आएंगे जो गुरबत में अक्सर नजर चुराते थे, अब देने बधाई मेरे घर भी आएंगे मगर अब आप विपक्ष में बैठने की बात कर रही है, जो सही नहीं। नतीजे आप ने बदले हैं, मुख्यमंत्री को

Aseem Trivedi का पत्र संतोष कोली की मृत्‍यु के बाद

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साथियों, बहुत दुखद खबर है कि आज संतोष कोली जी हमेशा के लिए हम सब से दूर चली गयीं. अब उनकी वो निर्भीक और निश्चिंत मुस्कराहट हमें कभी देखने को नहीं मिलेगी. अन्ना आंदोलन के सभी मित्रों में संतोष जी मेरी फेवरिट थीं. उनसे मिलकर आपके भीतर भी साहस और सकारात्मकता बढ़ जाती थी. मैं दावे से कह सकता हूँ कि समाज के लिए उनके जैसे निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग आपको बहुत मुश्किल से देखने को मिलेंगे. दामिन ी आन्दोलन के दौरान एक दिन वो बता रही थीं कि अब वो एक गैंग बनाएंगी और ऐसी हरकतें करने वालों से अच्छी तरह निपटेंगी. बाद में उनके फेसबुक पेज पर नाम के साथ दामिनी गैंग लिखा देखा. खास बात ये है कि उनके साहस और आक्रोश में बहुत सहजता थी. ये वीर रस कवियों की तरह आपको परेशान करने वाला नहीं बल्कि आपको बुरे से बुरे क्षणों में भी उम्मीद और सुकून भरी शान्ति देने वाला था. समय समय पर उनके परिवार के सदस्यों से भी मिलने को मिला जो संतोष जी के साथ उनके संघर्ष में कंधे से कंधे मिलाकर साथ दे रहे थे. आज के फाइव स्टार एक्टिविज्म के दौर में एक बेहद साधारण परिवार से आयी संतोष जी का जीवन अपने आप में एक

अरविंद केजरीवाल के बहाने स्‍विस यात्रा

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आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने अंबानी भाइयों के स्विस बैंक में खाते होने का दावा करते हुए दो बैंक ख़ातों को उजागर किया है, जिनको केजरीवाल अम्‍बानी बंधूओं का बता रहे हैं। अरविंद केजरीवाल के खुलासों की चर्चा से बॉलीवुड भी अछूत नहीं, हालिया रिलीज हुई फिल्‍म 'खिलाड़ी 786' में पुलिस कर्मचारी का किरदार निभा रहे जोनी लीवर मिथुन चक्रवर्ती को धमकी देते हैं कि वो 'केजरीवाल' को बता देगा। केजरीवाल खुलासे पर खुलासा किए जा रहे हैं, लेकिन सरकार इस मामले में कोई सख्‍़त कदम उठाती नजर नहीं आ रही, जो बेहद हैरानीजनक बात है, उक्‍त खाते अम्‍बानी बंधुओं कि हैं या नहीं, इस बात की पुष्‍टि तो स्‍विस बैंक कर सकती है, मगर निजता नियमों की पक्‍की स्‍विस बैंक ऐसा कभी नहीं करेगी, क्‍यूंकि उसने खाताधारक को एक गुप्‍त कोड दिया होता है, जिसका पता खाताधारक के अलावा किसी को नहीं होता, और तो और स्‍विस बैंक, हर दो साल बाद खाता धारकों के खाते बदल देती है, आप एक ख़ाते को आजीवन नहीं रख सकते। स्‍विस को हम कितना जानते हैं, बस इतना कि वहां पर हमारा काला धन पड़ हुआ है। मगर स्‍विस एक ऐसा देश है, जहा

आम आदमी का खुलासा ; अदानी के हाथों में खेलता है मोदी

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नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (एएपी) के राष्‍ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल मंगलवार को एक और खुलासा करने के दावे के साथ मीडिया से रूबरू हुए। इस बार अरविंद केजरीवाल ने गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने बनाते हुए कहा कि निजी कंपनियों के हाथों में खेल रहे हैं। इससे पूर्व अरविंद केजरीवाल भाजपा अध्‍यक्ष नितिन गड़करी को निशाना बना चुके हैं, जिसको लेकर भाजपा अभी तक दुविधा में है। गुजरात चुनावों की तरफ ध्‍यान दिलाते हुए केजरीवाल ने कहा कि चुनावों में एक तरफ मोदी हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस। हमारे पास कागजात हैं जो ये साबित करते हैं कि दोनों मिलकर निजी कंपनियों का फायदा करवाते हैं। हमारे कागजात के मुताबिक अगर कांग्रेस मुकेश अंबानी की दुकान है तो क्या मोदी सरकार अदानी की दुकान है। उन्‍होंने नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार आरोप लगाते हुए कहा कि 14306 एकड़ जमीन मात्र 1 रुपये से 32 रुपये प्रति यूनिट के भाव से क्यों दे दी जबकि एयरफोर्स को 8800 रुपये प्रति यूनिट के भाव से। ये सरकार देश के लिए काम कर रही है या प्राइवेट कंपनियों के लिए। उन्‍होंने कहा कि भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी ख

'आम आदमी' की दस्‍तक, मीडिया को दस्‍त

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अन्‍ना हजारे के साथ लोकपाल बिल पारित करवाने के लिए संघर्षरत रहे अरविंद केजरीवाल ने जैसे 'आम आदमी' से राजनीति में दस्‍तक दी, तो मीडिया को दस्‍त लग गए। कल तक अरविंद केजरीवाल को जननेता बताने वाला मीडिया नकारात्‍मक उल्‍टियां करने लगा। उसको अरविंद केजरीवाल से दुर्गंध आने लगी। अब उसके लिए अरविंद केजरीवाल नकारात्‍मक ख़बर बन चुका है। कल जब अरविंद केजरीवाल ने औपचारिक रूप में आम आदमी को जनता में उतारा तो, मीडिया का रवैया, अरविंद केजरीवाल के प्रति पहले सा न था, जो आज से साल पूर्व था। राजनीति में आने की घोषणा करने के बाद अरविंद ने कांग्रेस एवं भाजपा पर खुलकर हमला बोला। मीडिया ने उनके खुलासों को एटम बम्‍ब की तरह फोड़ा। मगर बाद में अटम बम्‍बों का असर उतना नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था, और अरविंद केजरीवाल को मीडिया ने हिट एंड रन जैसी नीति के जन्मदाता बना दिया, जो धमाके करने के बाद भाग जाता है। मुझे पिछले दिनों रिलीज हुई ओह माय गॉड तो शायद मीडिया के ज्‍यादातर लोगों ने देखी होगी, जिन्‍होंने नहीं देखी, वो फिर कभी जरूर देखें, उस में एक संवाद है, जो अक्षय कुमार बोलते हैं, जो इस फिल्‍म

आम आदमी का तोड़

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यह तो बहुत ही न इंसाफी है। ब्रांड हम ने बनाया, और कब्‍जा केजरीवाल एंड पार्टी करके बैठ गई। आम आदमी की बात कर रहा हूं, जिस पर केजरीवाल एंड पार्टी अपना कब्‍जा करने जा रहे हैं। गुजरात में चुनाव सिर पर हैं, कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में चीख चीख कर कह रही थी, कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ। मगर आम आदमी तो केजरीवाल एंड पार्टी निकली, जिसकी कांग्रेस के साथ कहां बनती है, सार्वजनिक रूप में, अंदर की बात नहीं कह रहा। अटकलें हैं कि कांग्रेस बहुत शीघ्र अपने प्रचार स्‍लोगन को बदलेगी। मगर आम आदमी का तोड़ क्‍या है? वैसे क्रिएटिव लोगों के पास दिमाग बहुत होता है, और नेताओं के पास पैसा। यह दोनों मिलकर कोई तोड़ निकालेंगे, कि आखिर आम आदमी को दूसरे किस नाम से पुकार जाए। वैसे आज से कुछ साल पूर्व रिलीज हुई लव आजकल में एक नाम सुनने को मिला था, मैंगो पीप्‍पल। अगर आम आदमी मैंगो पीप्‍पल बन भी जाता है तो क्‍या फर्क पड़ता है। पिछले दिनों एक टीवी चैनल का नाम बदल गया था। हुआ क्‍या, हर जगह एक ही बात लिखी मिली, सिर्फ नाम बदला है। वैसा ही सरकार का रवैया रहने वाला है आम आदमी के प्रति। आम आदमी की बात सब करते हैं

जी हां, सठिया गए केजरीवाल

@अरविंद केजरीवाल ने संसद को लिखे जवाबी पत्र में कहा, मैं संसद की इज्‍जत करता हूं, लेकिन दागी सांसदों की नहीं, उनका यह जवाब सुनने के बाद बिहार को कई साल पिछले धकेल देने वाले लालू प्रसाद यादव कहते हैं, केजरीवाल सठिया गए हैं। मुझे नहीं लगता कि लालू मियां कुछ गलत कह रहे हैं, क्‍योंकि जब तक कोई हिन्‍दुस्‍तानी सठिएगा नहीं तो परिवर्तन आएगा नहीं, जब सिंहम में बाजीरॉव सिंहम सठियाता है तो जयकंद शिकरे के पसीने छूटते हैं। वहीं फिल्‍म ए वेडनेसडे में जब आदमी की सटकती है तो पुलिस कमिश्‍नर से लेकर पुलिस मंत्रालय तक पसीने से तर ब तर होता है। पता नहीं, पिछले दिनों किसकी सटकी कि पूरे देश के मंत्रियों को बौखलाहट के दौरे पड़ने शुरू हो गए, अभी तक पसीने छूट रहे हैं, अंदर खाते एक दूसरे को बचाने के लिए सुरक्षा कवच तैयार किए जा रहे हैं। कितनी हैरानी की बात है कि उंगली सरकार पर उठी, लेकिन सेनाध्‍यक्ष के खिलाफ आवाजें बाहर से बुलंद हुई, क्‍यों कि नेताओं को पता है कि अगर आग पड़ोस में लगती है तो आंच उनके घर तक भी आएगी। @लालू प्रसाद यादव, अभी तक तो कुठ पढ़े लिखे व्‍यक्‍ितयों की सटकी है, और नेताओं के पसीने छूटने श