tag:blogger.com,1999:blog-1365580856473373452024-03-19T09:42:40.157+05:30युवा सोच युवा खयालातकुछ विचार जो दूसरों के साथ साझा करने का मन चाहता हैKulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.comBlogger664125tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-81258629480333068672023-09-24T22:40:00.000+05:302023-09-24T22:40:59.260+05:30 सदन में जो हुआ, उसे रमेश बिधूड़ी के बिगड़े बोल तक सीमित न करें<p>सांसद रमेश बिधूड़ी के बोल बिगड़े कहकर मामले में इतना सतही मत कीजिये। सांसद रमेश बिधूड़ी ने सांसद दानिश अली को संबोधित करते हुए सदन के भीतर जो कुछ भी कहा, सबसे पहले तो उसको संसदीय रिकॉर्ड से हटाया नहीं जाना चाहिए। साथ ही, उसे जस का तस स्वीकार किया जाना चाहिए।</p><p>तैश हो या नशा दोनों एक समान है। दोनों ही व्यक्ति के असली चरित्र को बाहर लाते हैं। वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि रमेश बिधूड़ी दोनों ही अवस्थाओं में हैं – एक तैश और दूसरा सत्ता का नशा। </p><p>मैं तो कहूंगा कि सांसद रमेश बिधूड़ी का स्वागत करना चाहिए। सांसद रमेश बिधूड़ी को जस का तस स्वीकार किया जाना चाहिए क्योंकि हम तो रोजमर्रा की जिंदगी कहते हैं कि, मैं जैसा व्यक्ति हूं वैसा ही मुझे स्वीकार करो। मुझे फेक लोगों से नफरत है। अब जब सदन में रमेश बिधूड़ी ने फेक लिबास उतार फेंका तो आपको बुरा लग रहा है। सांसद रमेश बिधूड़ी से मुंह फेरना सत्य की ओर पीठ करने के समान होगा क्योंकि आप सत्य से मुंह फेर रहे हैं, जो रमेश बिधूड़ी ने बोला वो सत्य है या नहीं जांच का विषय है, पर, जो रमेश बिधूड़ी नजर आ रहे हैं, वो सोलह आने खरा सत्य है, उसको झूठलाया नहीं जा सकता।</p><p>यकीनन, आप कहेंगे कि सदन में खड़े होकर ऐसी अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। मैं आप से झटपट सहमत हो सकता हूं। इसमें मुझे कोई अड़चन नहीं होगी। पर, इसके बावजूद भी मैं सांसद रमेश बिधूड़ी को स्वीकार करूंगा और उन्हें स्वीकार किया जाए, इसकी वकालत भी करूंगा। कम से कम रमेश बिधूड़ी ने उस बात को सदन में कहने की हिम्मत तो दिखाई, जो गोदी मीडियाई एंकर रोज मन में दबाकर घर ले जाते हैं या बड़े बड़े नेता मन में बुड़बड़ाते रहते हैं। </p><p>कमान से निकला तीर और जुबां से निकला शब्द कभी वापिस नहीं लिया जा सकता, उस पर केवल लीपापोती हो सकती है। जो हो चुका है, उस पर लीपापोती क्यों की जाए। सांप के निकल जाने पर लीक पीटने से क्या होगा।</p><p>आप कहेंगे कि सदन में ऐसी भाषा का अगली बार प्रयोग न हो, इसलिए कड़ी कार्रवाई करना तो बनता है। मैं आपकी इस बात से भी सहमत हो सकता हूं। मैं सवाल पूछता हूं कि क्या सदन के भीतर ही जुबां को संभालना जरूरी है और उसके बाहर आपको कुछ भी कहने की स्वतंत्रता है?</p><p>यह तो ऐसा ही हुआ कि घर के लीविंग रूम में पड़े टेलीविजन पर आने वाली हर फिल्म पूरी तरह से संस्कारी हो, पर, कमरे के अंदर दूधिया स्क्रीन पर ओटीटी पर प्रसारित फिल्म वेब सीरीज में कुछ भी चल सकता है, क्योंकि अकेले में देखना और आनंद लेना सहज है।</p><p>रमेश बिधूड़ी ने उन शब्दों को सदन में तैश में आकर बोल दिया, जो शब्द वो सामान्यत: अपने आस पास के लोगों के बीच कहते या सुनते होंगे। रमेश बिधूड़ी ने जो शब्द कहे, वो उसके आस पास के परिवेश को अभिव्यक्त करते हैं और उनके व्यक्तित्व को भी।</p><p>रमेश बिधूड़ी ने तो सदन में खड़े होकर सांसद दानिश अली के संबोधित करते हुए अपने व्यक्तित्व का परिचय दे दिया। अब सवाल यह है कि आपको ऐसे व्यक्तित्व वाले जनप्रतिनिधि चाहिए या अन्य प्रकार के, इस पर चर्चा होनी चाहिए। रमेश बिधूड़ी ने साफ कर दिया कि मुस्लिम उनकी नजर में असल में क्या है? दानिश की जगह नकवी भी होते, तो भी उनका नजरिया और लहजा नहीं बदलने वाला था। हालांकि, यह दृष्टि रमेश बिधूड़ी की खुद की है, या केवल विचारधारा प्रभाव से दृष्टिदोष हुआ है, इस बारे में अलग से बहस की जा सकती है।</p><p>रमेश बिधूड़ी ने जाने अनजाने या राजनीतिक ध्रुवीकरण प्रयोग के रूप में सदन में जो कुछ भी कहा, वो मुंह में राम बगले में छुरी तो नहीं कहा जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो रमेश बिधूड़ी ने अपनी सोच आपके सामने रख दी है, अब चयन करना आपके हाथ में है।</p><p>मुझे लगता है कि प्रत्येक संसद को रमेश बिधूड़ी की तरह बनावटी चोला उतारकर फेंक देना चाहिए, जैसे हो वैसे नजर आना चाहिए। क्यों सदन के भीतर आप से सभ्य होने की शर्त रखी जाए? मैं तो चाहता हूं कि आप चरित्र को पूर्ण रूप से खोलकर रख दीजिए। चल बताइए, आप अपने चरित्र का दमन करके दूसरों को दमन से मुक्त कैसे कर पाएंगे ? हां, वो बात अलग है कि आपके चरित्र को जनता स्वीकार न करे, लेकिन, यह तो जनता पर छोड़ दीजिए, आप तो अपने चरित्र में रहें।</p><p>सांसद रमेश बिधूड़ी ने जब सांसद दानिश अली को सदन में अपशब्द कहे, तो सोशल मीडिया पर उन न्यूज एंकरों ने भी सांसद रमेश बिधूड़ी की जमकर आलोचना की। पर, मुझे उस आलोचना से एक अलग सी बदबू आई। मुझे लगा कि एंकरों को रमेश बिधूड़ी से जलन है। जलन होनी भी चाहिए क्योंकि बंदा कुछ शब्द बोलकर हर जगह वायरल हो गया। और गोदी मीडियाई एंकर पिछले नौ साल से हिंदू मुस्लिम नफरत फैलाने का काम ठेके पर कर रहे हैं, तो भी रमेश बिधूड़ी वाली बात न बन सकी। असल में, ऐसा हुआ कि एआई बनाने वाला उतना प्रसिद्ध नहीं हुआ, जितना कि उस एआई का प्रयोग करके दूसरे लोग पैसा और नाम कमा गए।</p><p>दूसरा ओर भले ही रमेश बिधूड़ी ने सोच समझकर सदन में न बोला हो, पर, राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए तरुप का पत्ता साबित होगा। कुछ लोग रमेश बिधूड़ी की बुराई करेंगे, कुछ लोग रमेश बिधूड़ी की पीठ थपथपाएंगे। आप ने भी देखा होगा कि डॉ. हर्षवर्धन रमेश बिधूड़ी के ठीक बगल में बैठकर मुस्करा रहे थे, और रमेश बिधूड़ी, दानिश अली को अनाप शनाप बोल रहे थे। डॉ. हर्षवर्धन ने एक बार भी ऐसा संकेत नहीं दिया, जो रमेश बिधूड़ी को ऐसे व्यवहार से बचने का संकेत देता।</p><p>जब कुछ लोग रमेश बिधूड़ी की आलोचना कर रहे होंगे और कुछ लोग रमेश बिधूड़ी की सराहना कर रहे होंगे। वहीं, कुछ लोग इस पूरे घटनाक्रम पर लोगों के रूझान को समझने की कोशिश कर रहे होंगे, ताकि अगले लोक सभा चुनावों के लिए सटीक रणनीति बनाई जा सके। वैसे तो लोकतंत्र में चुनावी कार्यनीति बनानी चाहिए, रणनीति तो युद्ध के दौरान बनाई जाती है। </p><p>भारत में राजनीति को शासन नीति के रूप में न तो कभी समझा गया है और नाहीं कभी पारिभाषित किया गया है। राजनीति शब्द को भारत में हमेशा नकारात्मक दृष्टि से देखा गया है क्योंकि भारत में राजनीति को किताबों से नहीं, बल्कि चरित्र से पारिभाषित किया गया है। और सांसद रमेश बिधूड़ी का जो चरित्र सामने आया है, उसको आपका खारिज कर सकते हैं, पर बदल नहीं सकते।</p><p>यदि चरित्र को सामने लाना चाहते हैं, यदि मखौटा पसंद नहीं करते हैं, तो संसदीय भाषा जैसी बंदिश लगाना बेवकूफी होगी। चरित्र प्रदर्शन के लिए मुक्त मंच प्रदान करो, खुलकर सामने आने दो, तभी तो अगली बार इस सदन में कौन सा चेहरा दिखना चाहिए और कौन सा नहीं के बारे में सही फैसला ले पाएंगे।</p>Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-71904775754501805292017-12-01T20:38:00.001+05:302017-12-01T20:42:29.267+05:30यदि ऐसा है तो गुजरात में अब की बार भी कमल ही खिलेगा!गुजरात विधान
चुनाव के पहले चरण के मतदान में गिनती के 9 दिन बचे हैं। दूसरे चरण के
मतदान के लिए 14 दिन, भले ही 3 साल बीतने के बाद भी देश के प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी विकास की मुंह दिखाई न कर सके हों, लेकिन, 18 दिसंबर 2017 को
'गुजरात का किंग कौन' के रहस्य से पर्दा उठ जाएगा, जिसको लेकर इस समय
गुजरात में राजनीतिक पारा अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है।<br />
<br />
हाल ही
में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में संबोधित करते हुए कहा था कि
151 गिन लो। यह वो ही आंकड़ा है, जो सोमनाथ में इस साल के आरंभ में आयोजित
भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में तय हुआ था, बस फर्क इतना है कि उस
समय केवल 150 से अधिक सीटों का संकल्प कहा गया था।<br />
<br />
लेकिन, आज से कुछ
महीने पहले, जब जीएसटी लागू नहीं हुआ था, तब एक बड़े पद की जिम्मेदारी
संभाल रहे भाजपा नेता से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर बात की थी, और पूछा था कि
इस बार गुजरात चुनाव में जनता का रूझान क्या है? उनका कहना था कि 80 सीट
तो हाथ में हैं। उनका मतलब साफ था कि 119 सीटों के साथ सत्ता में बैठी
भाजपा के लिए डगर आसान नहीं है।<br />
<br />
<h3>
<b><a href="http://www.filmikafe.com/2017/12/padmavati-issue-anurag-thakur-grilled-sanjay-leela-bhansali/" title="संसदीय समिति के सामने पेश हुए संजय लीला भंसाली, अनुराग ठाकुर बरसे, तो एलके आडवाणी बचाव में उतरे!">संसदीय समिति के सामने पेश हुए संजय लीला भंसाली, अनुराग ठाकुर बरसे, तो एलके आडवाणी बचाव में उतरे!</a></b> </h3>
<br />
जीएसटी लागू होने के बाद सरकार के
खुफिया तंत्र की सर्वे रिपोर्ट का कांटा भी इसी आंकड़े के आस पास आकर ठहर
सा गया। हालांकि, उसी समय में भाजपा की स्थिति पहले से भी अधिक कमजोर हो
चली थी क्योंकि कार्यकर्ता 80 सीटों की जगह अब केवल 60 से 75 तक के आंकड़े
को देख रहे थे। इसका मुख्य कारण नोटबंदी के बाद जीएसटी को लेकर नरेंद्र
मोदी की अगुवाई वाली सरकार की हर तरफ आलोचना, गुजरात के व्यापारियों का
विरोध, अल्पेश ठाकोर की अगुवाई वाला फ्रंट और पाटीदार पटेल आंदोलन का
समाधान न होना आदि था।<br />
<br />
नवंबर महीने में कारडिया राजपूत समाज ने
गुजरात भाजपा अध्यक्ष जीतू वाघाणी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। ऐसे में भाजपा
की मुश्किल और बढ़ गई हैं। हालांकि, भाजपा की ओर से दावा किया जा चुका है
कि मामले को सुलझा लिया गया है। घबराहट की कोई बात नहीं है।<br />
<br />
मगर, इस
बात को खारिज करना भी मुश्किल है कि अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेघाणी और
हार्दिक पटेल की तिक्कड़ी के बल पर मृत कांग्रेस एक बार फिर से दम भरने लगी
है। डूबते को तिनके का सहारा — दिल्ली से विकास पागल हो गया जैसा नुकीला
नारा लेकर निकले राहुल गांधी को गुजरात में अमित शाह के बेटे जय शाह का
मामला बैठे बिठाए मिल गया।<br />
<h3>
<a href="http://www.filmikafe.com/2017/11/hu-narendra-modi-banva-mangu-chu-director-anil-narayani/" title="नरेंद्र मोदी के जीवन को पर्दे पर उतारेगी फिल्म हु नरेंद्र, मोदी बनवा मांगु छु, फिक्शन के साथ!">नरेंद्र मोदी के जीवन को पर्दे पर उतारेगी फिल्म हु नरेंद्र, मोदी बनवा मांगु छु, फिक्शन के साथ!</a> </h3>
<br />
भले ही माहौल कांग्रेस की तरफ बन चुका
हो। लेकिन, भाजपा कार्यकर्ता अभी भी नरेंद्र मोदी की तरह 151 गिन लो पर
अटके हुए हैं और अब कार्यकर्ता भी इस जादूई आंकड़े को बड़ी आसानी से हासिल
करते हुए दिख रहे हैं।<br />
<br />
यदि उनके तर्कों को मान लिया जाए, तो भारतीय
जनता पार्टी गुजरात में सरकार बनाने जा रही है, और वो भी 136 से लेकर 151
सीटों के बीच में किसी भी आंकड़े पर।<br />
<br />
<h3>
<a href="http://www.filmikafe.com/2017/12/unhappy-with-bajirao-mastani-nana-patekar-reaction-on-padmavati/" title="बाजीराव मस्तानी से नाखुश नाना पाटेकर पद्मावती विवाद पर बोले, और कहा मुझे लगता है…!">बाजीराव मस्तानी से नाखुश नाना पाटेकर पद्मावती विवाद पर बोले, और कहा मुझे लगता है…!</a> </h3>
<br />
जमीनी स्तर पर जीत के लिए दिन रात लड़ाई रह रहे भाजपा के एक युवा पद अधिकारी ने जो तर्क दिए, वो कुछ इस तरह हैं :<br />
<br />
हार्दिक
पटेल की सीडी देखने के बाद पटेलों का एक बड़ा तबका भाजपा के साथ आ चुका
है। जो व्यापारी भाजपा से नाराज हुए थे, जीएसटी में फेरबदल करने से खुश हो
चुके हैं। पद्मावती पर प्रतिबंध लगाने से राजपूत समाज भी भारतीय जनता
पार्टी के साथ आ चुका है। अल्पेश ठाकोर ने राजनीति में न जाने की बात कही
थी, उसने कांग्रेस में शामिल होकर समाज को धोखा दिया, और उससे नाराज समाज
भाजपा के खेमे में आकर खड़ा हो चुका है।<br />
<br />
<i><b>यदि ऐसा है तो गुजरात में अब की बार भी कमल ही खिलेगा!</b></i><br />
<br />
हां,
यदि उपरोक्त तर्कों को खारिज कर दिया जाए, तो उपरोक्त पद अधिकारी भी
स्वीकार करता है कि पार्टी की हालत खस्ता है, और पार्टी 70 से 80 सीटों के
आंकड़े के बीच में झूल रही है।<br />
<br />
लेकिन... जब हर बार भारतीय जनता
पार्टी को वोट देकर कमल खिलाने वाले एक परिचित से मैंने उसी शाम कहा, 'शेयर
बाजार काफी उुपर जा चुका है। यदि शेयर बेचने है, तो बेच दीजिये। अगर
गुजरात में भारतीय जनता पार्टी हारी तो शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है।'<br />
<i><b><br />उनका जवाब हैरान करने वाला था, 'इस बार भाजपा नहीं आएगी।'</b></i><br />
<br />
कार्यकर्ताओं
के अपने तर्क हैं। जनता का अपना अनुभव है। जमीनी हकीकत कहती है कि इस बार
भारतीय जनता पार्टी के लिए सिंहासन तक जाना काफी कठिन है। इसलिए भारतीय
जनता पार्टी के संकट मोचन कहे जाने वाले अमित शाह ने देश के प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी को गुजरात में बड़े स्तर पर रैलियां करने के लिए कथित तौर पर
अनुरोध किया।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-39989046718551210752017-10-10T23:15:00.000+05:302017-10-10T23:15:55.766+05:30जय शाह के कारोबार पर द वायर की रिपोर्ट से केंद्र सरकार को क्यों लगा करंट?हाल ही में द वायर ने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय अमितभाई शाह की कंपनी के टर्नओवर को लेकर सनसनीखेज खुलासा किया।<br />
<br />
पत्रकार रोहिणी सिंह ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के दस्तावेजों का हवाला देते हुए द वायर के लिए सनसनीखेज स्टोरी करते हुए लिखा कि मोदी सरकार आने के बाद 16000 गुना बढ़ा अमित शाह के बेटे की कंपनी का टर्नओवर।<br />
<br />
रोहिणी सिंह ने ही 2011 में इकनॉमिक टाइम्स में रॉबर्ट वाड्रा के कारोबार का सनसनीखेज खुलासा किया था। इस खुलासे ने कांग्रेस की नोका डुबाने में अहम भूमिका निभायी थी।<br />
<br />
याद ही होगा कि 2014 में लोक सभा चुनावों का प्रचार करते हुए नरेंद्र मोदी ने रॉबर्ट वाड्रा का हवाला देते हुए कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा था।<br />
<br />
उस समय रोहिणी सिंह की स्टोरी भाजपा को बड़ी स्वादिष्ट लग रही थी और बीजेपी की तरह कांग्रेस भी रॉबर्ट वाड्रा के बचाव में उतरी थी।<br />
<br />
और भाजपा सरकार ने अपने रेल मंत्री पीयूष गोयल को जय शाह के बचाव में उतारकर कांग्रेस की बराबरी करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।<br />
<br />
इस मामले में हैरानीजनक बात तो यह है कि जय शाह मानहानि का केस अहमदाबाद में ठोकते हैं, और उसकी आधिकारिक जानकारी देश के रेल मंत्री दिल्ली से देते हैं। इतनी तेज तर्रारी तो कोई पेशेवर प्रवक्ता भी नहीं दिखाता, जितनी केंद्र सरकार ने जय शाह के बचाव में अपने मंत्री उतारकर दिखाई।<br />
<br />
जय शाह कौन है? एक कारोबारी और अमित शाह का पुत्र। अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और राज्य सभा सांसद हैं।<br />
<br />
अगर इस मामले में राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए किसी को पक्ष रखना भी था तो भारतीय जनता पार्टी को, ना कि केंद्र सरकार को और भारतीय जनता पार्टी की ओर से अमित शाह को क्योंकि एक तो पार्टी अध्यक्ष हैं, और दूसरा जय शाह के पिता।<br />
<br />
असल में केंद्र सरकार और भाजपा को अमित शाह के बेटे से पहले इसलिए मैदान में कूदना पड़ा क्योंकि गुजरात विधान सभा के चुनाव सिर पर हैं।<br />
<br />
नोटबंदी और जीएसटी से परेशान लोगों पर जय शाह की कंपनी का जादूई टर्नओवर नकारात्मक असर डाल सकता है। सच तो यह है कि यह जलती आग में घी के सामने है। हालांकि, द वायर की रिपोर्ट में जय शाह की कंपनी पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए गए।<br />
<br />
लेकिन, रिपोर्ट में इशारा जरूर किया गया है कि अमित शाह के बेटे की कंपनी टेंपल इंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड की टर्नओवर उस समय करोड़ों का आंकड़ा छू गई, जब देश की सत्ता नरेंद्र मोदी और भाजपा की कमान अमित शाह के हाथों में आई।<br />
<br />
इस रिपोर्ट से विरोधी पार्टी कांग्रेस को बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया। कांग्रेस ने पत्रकार रोहिणी सिंह की रॉबर्ट वाड्रा वाली रिपोर्ट के दर्द को भुलाते हुए वर्तमान रिपोर्ट का हवाला देते हुए भाजपा पर तीखा हमला बोला।<br />
<br />
इस मामले में एक और चौंकाने वाली बात यह है कि द वायर की रिपोर्ट ने आंकड़ों के साथ बात कही है।<br />
<br />
लेकिन, केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल और जय शाह की ओर से मीडिया को प्रेस रिलीज के साथ रिपोर्ट को खारिज करने वाले दस्तावेज नहीं दिए गए।<br />
<br />
इस मामले में मीडिया की भूमिका भी काफी शर्मजनक रही है जबकि रॉबर्ट वाड्रा कांड के सामने आने पर इसी मीडिया ने खंडन को दोयम स्थान पर रखा था और ख़बर को प्रथम स्थान पर।<br />
<br />
इधर, जय शाह ने द वायर के पत्रकार रोहिणी सिंह और संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ 100 करोड़ की मानहानि का दावा ठोका और साथ ही चेतावनी देते हुए कहा, 'अगर कोई भी इस बताये गये लेख में लगाये गए इल्ज़ामों को दोबारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाशित/प्रसारित करता है तो वह व्यक्ति/संस्थान भी इसी अपराध/ सिविल लायबिलिटी का दोषी होगा।'<br />
<br />
उधर, द वायर संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने बीबीसी से विशेष बातचीत के दौरान कहा, 'हमारे पास मानहानि के कोई औपचारिक नोटिस या काग़ज़ नहीं आए हैं, लेकिन सोशल मीडिया के ज़रिए हमने देखा है। सरकार के रुख से साफ है कि वो 'द वायर' को परेशान करना चाहती है। यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है। हम सरकार के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ेंगे।'Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-17196602681460638472017-09-23T21:33:00.000+05:302017-09-23T21:39:26.789+05:30गुजरात में भाजपा की स्थिति ख़राब, मीडिया को भी बदलने पड़ रहे हैं तेवरशुक्रवार को एनडीटीवी सोशल मीडिया नेटवर्क वेबसाइटों पर तैरने लगा। ख़बर आई कि एनडीटीवी की 40 फीसद हिस्सेदारी नरेंद्र मोदी के करीबी कारोबारी और स्पाइस जेट के संस्थापक अजय सिंह ने खरीद ली, जिनकी बदौलत भारत को अबकी बार मोदी सरकार जैसा नारा मिला था। हालांकि, शाम होते होते एनडीटीवी ने बीएसई को पत्र लिखकर मामले में अपना पक्ष रखते हुए सभी ख़बरों की हवा निकाल दी।<br />
<br />
मगर, अभी भी टेलीविजन से जुड़े कुछ सूत्रों का कहना है कि एनडीटीवी के कार्यालय में परिवर्तन होना शुरू हो चुका है। वैसे आग के बिना धुंआं होता नहीं, लेकिन, जब महिला ही गर्भवती न होने की पुष्टि कर दे, तो दूसरे लोगों के शोर मचाने से क्या होगा? अब तो बस इंतजार करना होगा, गर्भवती महिला की तरह एनडीटीवी के पेट बाहर आने का।<br />
<br />
शुक्रवार से ठीक एक दिन पहले सोशल मीडिया पर ऐसी भी चर्चा थी कि एनडीटीवी गुजरात में प्रतिबंधित कर दिया गया है। हालांकि, ऐसा भी कुछ देखने में नहीं मिला। दिलचस्प बात तो यह है कि इस पूरे घटनाक्रम में जी मीडिया के शेयरों को झटका लगा और एनडीटीवी के शेयर बाजार में खूब उछले।<br />
<br />
मीडिया जगत से एक और ख़बर सामने आ रही है, जो गुजरात से जुड़ी है। गुजरात का मीडिया सरकार विरोधी रुख बहुत कम अवसरों में अपनाता है। लेकिन, सुनने में आया है कि एक बड़े क्षेत्रीय न्यूज चैनल ने अपनी गिरती टीआरपी को देखते हुए निष्पक्ष होकर ख़बरें दिखाने की ठान ली है और सरकार की घटिया कार्यगुजारी पर जमकर भड़ास निकाल रहा है क्योंकि घोड़ा घास से दोस्ती करके खाएगा क्या?<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-OjmFObbu7jzgBAKk08b8NMUhyl9RZMY9O3bCd3_Qq9c2qBiApy-2jcJkpgHrPYuKRquvqSCicJF1J4tdo1TsJyv8qHsqT00iwphh1AGUeemeteR_ZG9rUIw2GphcW-8a-ECr8yGihXE/s1600/Jotish.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="424" data-original-width="432" height="626" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-OjmFObbu7jzgBAKk08b8NMUhyl9RZMY9O3bCd3_Qq9c2qBiApy-2jcJkpgHrPYuKRquvqSCicJF1J4tdo1TsJyv8qHsqT00iwphh1AGUeemeteR_ZG9rUIw2GphcW-8a-ECr8yGihXE/s640/Jotish.jpg" width="640" /></a></div>
<br />
इस दौरान एक और दिलचस्प घटना सामने आई है। गुजरात के एक प्रमुख अख़बार गुजरात समाचार ने 17 सितंबर 2017 को पहले पृष्ठ पर एक विज्ञापन प्रकाशित किया, जिसमें लिखा हुआ था कि विजय रूपाणी दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बनेंगे।<br />
<br />
लेकिन, दैनिक गुजरात समाचार ने 23 तारीख 2017 को पहले पृष्ठ पर उस भविष्यवाणी का खंडन करते हुए लिखा कि गलत कुंडली के विश्लेषण के कारण ऐसा हुआ। हालांकि, इस खंडन में ऐसा नहीं लिखा गया कि मुख्यमंत्री के बारे में दूसरी बार भविष्यवाणी की जाएगी या नहीं? जो संदेह पैदा करता है।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgidAU1E3GadkS9MWSsqAu2gNM0sJJjluNqhCNjk4obSaxyiXx2gnqpwCE4Jw8IMDpuILfLAJO9det90dTTVZbS5fv1jdL42c-u04eQr3UJhazOHpglDULJyFCijQ3Kq51YhfDD6psN0WU/s1600/Jotish-001.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="199" data-original-width="222" height="573" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgidAU1E3GadkS9MWSsqAu2gNM0sJJjluNqhCNjk4obSaxyiXx2gnqpwCE4Jw8IMDpuILfLAJO9det90dTTVZbS5fv1jdL42c-u04eQr3UJhazOHpglDULJyFCijQ3Kq51YhfDD6psN0WU/s640/Jotish-001.jpg" width="640" /></a></div>
इस भविष्यवाणी को पीछे लेने के राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं और ज्योतिषी से हुई भूल भी हो सकती है। यदि ज्योतिष से गलती हुई, तो उनको विश्वसनीय कुंडली से दोबारा विश्लेषण करके भविष्यवाणी करनी चाहिये।<br />
<br />
लगता है कि गुजरात सरकार और भाजपा के लिए गुजरात विधान सभा 2017 को जीतना मुश्किल होता जा रहा है। जनता में सरकार के प्रति रोष बढ़ता जा रहा है।<br />
<br />
दरअसल, केंद्र में भी बीजेपी की सरकार और गुजरात में भी बीजेपी की सरकार। इसके बावजूद लोगों को राहत नहीं मिल रही। हाल ही में जब उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल से पेट्रोल और डीजल के दाम कम करने की बात कही गई तो उनका कहना था कि राज्य को आमदनी इसी कर से होती है, क्योंकि शराबबंदी के कारण उनको काफी आर्थिक नुकसान हो रहा है और ऐसे में पेट्रोल डीजल की कीमत कम करना मुश्किल है।<br />
<br />
जनता में भाजपा को लेकर रोष तो सोशल मीडिया पर आए दिन दिखाई पड़ता है। यह कांग्रेस प्रायोजित भी हो सकता है और नहीं भी। हाल ही में विकास गांडो थायो छे के बाद मारा हाला छेत्री गया जैसे हैशटैग सोशल मीडिया पर देखने को मिले, और इन हैशटैग की संख्या हजारों में थी, जो कहीं न कहीं सरकार के प्रति जनता के मूड को दर्शा रहे हैं।<br />
<br />
नोटबंदी के बाद भाजपा के एक उच्च पदाधिकारी से ऐसे ही बात हुई तो उनका भी कहना था कि इस बार बीजेपी 80 सीटों तक सिमट सकती है। लेकिन, उसके बाद जीएसटी ने गुजरात में भाजपा की स्थिति और पतली कर दी है क्योंकि यह एक व्यापारी राज्य है।<br />
<br />
हालांकि, भाजपा गुजरात जीतने के लिए हरसंभव दांव पेंच खेल रही है। जन विकल्प के नाम से उभरा नया राजनीतिक फ्रंट भी कथित तौर पर भाजपा का फेंका हुआ पत्ता है। इसके अलावा श्रवण तीर्थ यात्रा से लेकर सिनेमा घरों में शू ख़बर छे गुजरात नी जैसे विज्ञापनों से जन को साधने की पुरजोर कोशिश चल रही है।<br />
<br />
हाल ही में जापानी प्रधान मंत्री के दौरे के गुजरात दौरे को भुनाने के लिए भी विज्ञापनों द्वारा सरकार एड़ी चोटी का जोर लगा रही है।<br />
<br />
जमीन स्तर पर होने वाली हलचलें बता रही हैं कि इस बार भाजपा को गुजरात जीतने के लिए पूरा दमखम लगाना होगा क्योंकि गुजरात विधान सभा चुनाव हारना नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-67840696066752204722017-09-21T21:29:00.002+05:302017-09-21T21:29:42.466+05:30महात्मा गांधी के एक श्लोक ''अहिंसा परमो धर्म'' ने देश नपुंसक बना दिया!<i>जब खुद में लड़ने का दम नहीं था तो गीता के श्लोक को आधा करके लोगों को नपुंसक बना दिया। भारत में अहिंसा के पुजारी का ढोंग करने वाले महात्मा गाँधी ने हिन्दुओं की सभा में हमेशा यही श्लोक पढ़ते थे लेकिन हिन्दुओं को कायर रखने के लिए गांधी इस श्लोक को अधूरा ही पढ़ता था।</i><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhc9D22zY3c_XDbKkwg0Nd0C5feCR5xDs_OCsy_KcJDNTYiD-2kj8yMlk8WiZS1LezQCIAApPmhhSPOsLt6QNyQNRg0aFwI42FhNQHDc8SnLiiXoAaP3GFjCsaJzlb-2Dhg0r4mmOuJT9g/s1600/MK-Gandhi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="350" data-original-width="620" height="360" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhc9D22zY3c_XDbKkwg0Nd0C5feCR5xDs_OCsy_KcJDNTYiD-2kj8yMlk8WiZS1LezQCIAApPmhhSPOsLt6QNyQNRg0aFwI42FhNQHDc8SnLiiXoAaP3GFjCsaJzlb-2Dhg0r4mmOuJT9g/s640/MK-Gandhi.jpg" width="640" /></a></div>
<br />
ऐसी सैंकड़ों बातें आपको इंटरनेट पर तैरती हुई मिल जाएंगी, जब आप ''अहिंसा परमो धर्म:'' श्लोक को कॉपी पेस्ट करके गूगल सर्च में खोजने निकलेंगे। इस साहित्य को लिखने वाले आपको बताएंगे कि ''अहिंसा परमो धर्म'' अधूरा श्लोक है जबकि पूरा श्लोक तो 'अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च:' है, जिसका अर्थ है कि अहिंसा परम् धर्म है, तो धर्म के लिए हिंसा भी परम् धर्म है।<br />
<br />
महात्मा गांधी का शरीर तो नत्थू राम गोडसे ने गोलियों से मार डाला। अब गोडसे के अनुयायी की ओर से महात्मा गांधी के विचारों को मारने की कोशिश पुरजोर चल रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया पर कॉपी पेस्ट चलन के कारण उनके सफल होने की संभावनाएं ज्यादा हैं।<br />
<br />
दिलचस्प बात तो यह है कि नरफत की आबोहवा पैदा करने के लिए लिखने वाले बेहतर जानते हैं कि भारत में कितने लोग ग्रंथों को पढ़ते हैं। इसलिए वह नफरत का जहर पिलाने के लिए ग्रंथों के श्लोक का शहद सा इस्तेमाल करते हैं। धर्म से जुड़े हुए लोग गटकने में देर भी नहीं करते।<br />
<br />
गुरूवार को मेरा माथा ठनक गया, जब मैंने एक फेसबुक पोस्ट पर प्रतिक्रिया के रूप में, <b><i>'आधी-अधूरी कहावत के कारण... 1948 में जिसका "वध" किया, उसने केवल इतना ही सिखाया... "अहिंसा परमोधर्मः", लेकिन बचा हुआ खा गया... "धर्महिंसा तथैव च".... ठीक से पूरा नहीं पढ़ने का नतीजा बुरा ही होता है... :D, </i></b>पढ़ा।<br />
<br />
धार्मिक साहित्य में मेरी अधिक रुचि नहीं है। हालांकि, मैं अपने और दूसरे धर्मों का बराबर सम्मान करता हूं। मैंने भी इस बात को ठीक से समझने का प्रयास किया। हो सकता है कि महात्मा गांधी ने ऐसी चतुराई की हो, क्योंकि आखिर महात्मा गांधी चतुर बनिया थे, जैसा हाल ही में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था।<br />
<br />
मगर, जब मैं खोजने निकला, तो सबसे पहले इंटरनेट पर मुझे वो साहित्य मिला, जो उपरोक्त प्रतिक्रिया का समर्थन कर रहा था। मुझे भी पहली दफा लगा कि महात्मा गांधी ने तो सच में देश को नपुंसक बना दिया।<br />
<br />
लेकिन, यह अर्ध सत्य था। मुझे लगता है कि अर्ध सत्य भी कहना उचित न होगा। यह तो मनगढ़त नफरत फैलाने वाला साहित्य था। मैंने खोज अभियान जारी रखा, तो मुझे एक धार्मिक वेबसाइट <a href="http://www.vidyasagar.net/ahinsa-parmodharm/" target="_blank">विद्यासागर डॉट नेट</a> मिली, जो जैन समाज की थी।<br />
<br />
जैसे ही मैंने वेबसाइट खोली, तो दिमाग के कपाट खुले रह गए। मैं दंग रह गया, वेबसाइट तो कुछ और ही कह रही थी। दरअसल, आम तौर पर कहा जाता है कि अहिंसा परमो धर्मः भगवान महावीर की देन है।<br />
<br />
मगर, वेबसाइट का कहना है, विश्वास कीजिए अहिंसा परमो धर्मः का सर्वप्रथम उल्लेख जैन धर्म के शास्त्रों में नहीं अपितु महाभारत के अनुशासन पर्व की गाथा ११५-२३ में मिलता है।<br />
<br />
और उसके नीचे अहिंसा परमो धर्म: का पूरा श्लोक दिया गया है, जो कुछ निम्न प्रकार है।<br />
<br />
<div style="text-align: center;">
<b>अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसा परमो तपः।</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>अहिंसा परमो सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते।</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसा परमो दमः</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>अहिंसा परम दानं, अहिंसा परम तपः</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>अहिंसा परम यज्ञः अहिंसा परमो फलम्।</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>अहिंसा परमं मित्रः अहिंसा परमं सुखम्॥</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>महाभारत/अनुशासन पर्व (११५-२३/११६-२८-२९)</b></div>
<br />
अब तो आप भी समझ गए होंगे कि किस तरह एक विचारधारा भारत के धार्मिक सौंदर्य को खत्म करने पर उतारू है। पहले पहल तो मैं इस पर कुछ लिखना ही नहीं चाहता था। लेकिन, फिर याद आया कि ईच्छाई से बुराई इसलिए जीत जाती है कि ईच्छाई चुप चाप और शांत रहना पसंद करती है।<br />
<br />
हालांकि, मैं यह नहीं कहता कि धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाना बुरा है। जब मुगलों के अत्याचार बढ़ने लगे तो सिख पंथ की स्थापना करने वाले दशम गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह जी ने भी हथियार उठाया। लेकिन, स्वयं की रक्षा के लिए हथियार उठाना, और किसी पर हमला करने के लिए हथियार उठाने में अंतर होता है।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-14260245327565218532017-09-19T19:03:00.000+05:302017-09-19T19:03:05.987+05:30शिव सेना की हालत ऐसी — न तलाक लेते बनता है, न साथ रहते बनता हैवो समय कुछ और था। जब भाजपा के बड़े बड़े नेता बाला साहेब ठाकरे के सामने जाकर सजदे में खड़े होते थे। अब समय बदल चुका है। अब भारतीय जनता पार्टी खुद नरेंद्र मोदी के गगनचुंबी कद के सामने सिर झुकाए खड़ी हो चुकी है।<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6u-1pfmBWvuNSjyq_iDUSPNUAimX3YiKScCqbOJHWGCHKYsEYDp6K7_T4BiRBEB42C_WS6Ou3inLH69hECaemcT9JB_UbjFpfyJfqbMQRM3rtZ29SHl12jRjGx5Gcmb3KheWj6UsiFyQ/s1600/Udhav-Thakrey.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="350" data-original-width="620" height="360" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6u-1pfmBWvuNSjyq_iDUSPNUAimX3YiKScCqbOJHWGCHKYsEYDp6K7_T4BiRBEB42C_WS6Ou3inLH69hECaemcT9JB_UbjFpfyJfqbMQRM3rtZ29SHl12jRjGx5Gcmb3KheWj6UsiFyQ/s640/Udhav-Thakrey.jpg" width="640" /></a></div>
<br />
अगर ऐसे में भी शिव सेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे वाला अदब चाहते हैं, तो उनको बिस्तर पर आराम करना चाहिये, अच्छी नींद लेनी चाहिये और नींद में खूबसूरत ख्वाब देखना चाहिये, क्योंकि हकीकत में ऐसा होना संभव नहीं है।<br />
<br />
वैसे भी शिव सेना का शुरू से झुकाव नरेंद्र मोदी की ओर कम वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी की ओर से अधिक रहा है। शिव सेना के शुरूआती तेवरों से नरेंद्र मोदी समझ गए थे कि उनको अगली पारी कैसे खेलनी है क्योंकि नरेंद्र मोदी और चीजों को भले ही याद न रखें, लेकिन, अपने विरोधियों के साथ निबटना अच्छे से जानते हैं।<br />
<br />
कभी कभी तो लगता है कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही मन की दीवार पर वॉट पुट्टी लगा ली थी, ताकि शिव सेना जैसी विरोधी सहयोगी पार्टी की बारिश का उन पर कोई असर न हो।<br />
<br />
पिछले तीन साल से शिव सेना और नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाला सरकार के बीच पति पत्नी वाली कहा सुनी चलती आ रही है। उधर, अपनी धुन में रहने वाले पति की तरह नरेंद्र मोदी हैं कि सुनते नहीं, और इधर, दुखी पत्नि की तरह शिव सेना है कि चुप नहीं होती।<br />
<br />
अमूमन ऐसा होता है कि अंत शिव सेना थक हारकर अपने घरेलू अख़बार सामना में अपने मन की भड़ास निकालकर अपने मन को सांत्वना देती है, जो गुस्सैल पत्नि का बर्तनों पर गुस्सा उतारने जैसा प्रतीत होता है।<br />
<br />
मगर, अब लगता है कि पानी सिर से गुजर चुका है। शिव सेना तलाक लेने की कगार पर पहूुंच चुकी है। मगर, नरेंद्र मोदी राजनीति के बड़े मंझे हुए खिलाड़ी हैं, ऐसा दांव चलते हैं कि अपने और विरोधियों के चारे खाने चित्त कर देते हैं।<br />
<br />
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के पास 122 सीटें हैं और शिव सेना के पास 63 सीटें। अगर शिव सेना महाराष्ट्र सरकार से तलाक लेती भी है, तो भी महाराष्ट्र सरकार को कुछ नहीं होगा क्योंकि उसके पास एनसीपी का समर्थन है, जिसके पास 62 सीटें हैं।<br />
<br />
ऐसे ही तो नरेंद्र मोदी ने शरद पावर के साथ नजदीकी संबंध रखे हुए। ऐसे ही तो नहीं, सुप्रिया सुले को कैबिनेट में शामिल करने का प्रस्ताव दिया था।<br />
<br />
वरिष्ठ नेता शरद पावर खुद पुष्टि कर चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बैठक में सुप्रिया सुले को केंद्रीय मंत्री मंडल का हिस्सा बनने का प्रस्ताव दिया था, जो सुप्रिया सुले ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि भाजपा में शामिल होने वाली वो अंतिम एनसीपी सदस्य होंगी।<br />
<br />
पिछली मीटिंग में कुछ भी हुआ हो, अगर, नरेंद्र मोदी को महाराष्ट्र सरकार बचाने के लिए एनसीपी का हाथ मांगना पड़ा तो नरेंद्र मोदी पीछे नहीं हटेंगे, और शरद पावर इस रिश्ते से इंकार भी नहीं करेंगे। हालांकि, दहेज की मांग बढ़ सकती है। बता दूं कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 145 सीटों की जरूरत है जबकि खुद भाजपा के पास 122 सीटें हैं।<br />
<br />
यदि इस समय महाराष्ट्र में चुनाव होते हैं तो एनसीपी और कांग्रेस को फायदा होने की संभावना है। शिव सेना की हालत पतली है, यदि मीडिया रिपोर्टों पर विश्वास करें। उद्धव ठाकरे की ओर से शिव सेना विधायकों की मीटिंग का आयोजन किया गया। इस मीटिंग में मौजूद कथित 25 विधायकों ने कहा, 'उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है जबकि भाजपा की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है।'<br />
<br />
लगता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निशाना सही जगह लगा है। शायद, यह भी एक कारण है कि शिव सेना निरंतर नोटबंदी को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साध रही है।<br />
<br />
दरअसल, नोटबंदी नरेंद्र मोदी का मोदी स्ट्रोक था, जिसका उद्देश्य विरोधी पार्टियों को आर्थिक तौर पर कंगाल करना ही था। जिस आर्थिक तंगी का रोना शिव सेना के विधायक रो रहे हैं। उसका रोना यूपी बिहार में भी रोया चुका है।<br />
<br />
वैसे कहा जा रहा है कि शिव सेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे इस मामले में दश्हरे तक कोई ठोस निर्णय लेंगे। लेकिन, सच तो यह है कि शिव सेना की हालत ऐसी है..... न तलाक लेते बनता है, न साथ रहते बनता है।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-45279199628415137262017-09-18T14:56:00.000+05:302017-09-18T14:56:23.930+05:30मृणाल पांडे : जुमला जयंती पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaH4DGVm-aJMJmIvCSiDtp2R5MA_MZeZVyYQXcSjKq_UL7IGCNu8aa088e864p5mxZnyAoCW7Xv1pb16aA44ZSU4uUS_He9ZLVB_LBAe-DQUEziRNQv8HzIjSB8HqIOwjIMJky-M8Pms8/s1600/VaishakhNandan.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="350" data-original-width="620" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaH4DGVm-aJMJmIvCSiDtp2R5MA_MZeZVyYQXcSjKq_UL7IGCNu8aa088e864p5mxZnyAoCW7Xv1pb16aA44ZSU4uUS_He9ZLVB_LBAe-DQUEziRNQv8HzIjSB8HqIOwjIMJky-M8Pms8/s320/VaishakhNandan.jpg" width="320" /></a></div>
लेखिका और पत्रकार मृणाल पांडे ने ऐसी कोई सी आतिशबाजी छोड़ दी कि मीडिया में कार्यरत लोग, जो कभी उनको पढ़ते रहे हैं या कभी उनके साथ काम करते रहे हैं, तिलमिला उठे हैं और लंबी लंबी पोस्टें लिखने लगे।<br />
<br />
मृणाल पांडे ने एक ट्विटर पोस्ट ही तो की है। और दिलचस्प बात तो यह है कि इस पोस्ट में किसी का नाम भी नहीं लिया। इस पोस्ट में मृणाल पांडे लिखती हैं, ''जुमला जयंती पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन'', और साथ ही एक गधे की फोटो लगाती हैं।<br />
<br />
<blockquote class="twitter-tweet" data-lang="en">
<div dir="ltr" lang="hi">
<a href="https://twitter.com/hashtag/JumlaJayanti?src=hash">#JumlaJayanti</a> पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन । <a href="https://t.co/eSpNI4dZbx">pic.twitter.com/eSpNI4dZbx</a></div>
— Mrinal Pande (@MrinalPande1) <a href="https://twitter.com/MrinalPande1/status/909275359903809536">September 17, 2017</a></blockquote>
<script async="" charset="utf-8" src="//platform.twitter.com/widgets.js"></script>
असल में गधे को वैशाखनंदन भी कहा जाता है और गदर्भ भी।<br />
<br />
जो अति गौर करने वाली बात है, वो यह है कि यह ट्वीट प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर किया गया है। सवाल है कि क्या उस दिन केवल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिवस ही होता है? हां, कहना शायद मूर्खता होगी।<br />
<br />
लेकिन, कुछ पढ़े लिखे बुद्धिजीवी मृणाल पांडे के इस ट्वीट पर लंबे लंबे चिट्ठे लिख रहे हैं। उनके व्यक्तित्व और उनकी गरिमा पर उंगली उठा रहे हैं। बड़ी हैरानी की बात है कि एक ही पोस्ट से उनकी गरिमा जमीं पर आ गई।<br />
<br />
गधे की फोटो शेयर करना, और उसके साथ किसी का नाम भी न लिखना। आखिर किसी की भावना को चोट पहुंचा सकता है। हां, इससे उनकी भावना को चोट जरूर पहुंचेगी, जो जुमला जयंती को नरेंद्र मोदी का जन्मदिवस मानते हैं और इस पर खुश होने वाले को वैशाखनंदन, जो वह स्वयं या उनके हिसाब से प्रधानमंत्री भी हैं।<br />
<br />
मगर, वैशाखनंदन एक कर्मठ जानवर है। जो कार्य करता रहता है, लेकिन, उसकी गनना कभी अच्छों में नहीं होती। जैसे बच्चा पढ़ाई में नालायक हो तो माता पिता ऐसे ही कह देते हैं, पढ़ेगा तो आॅफिसर बनेगा, नहीं तो गधों की जिंदगी जीनी होगी। देश के कितने नागरिक आॅफिसर बनते हैं, सोचने वाली बात है। अगर, माता पिता की बात को सही ठहराया जाए तो हम में ज्यादातर गधे ही तो हैं।<br />
<br />
जो रोज सुबह गधे की तरह काम पर निकलते हैं, और शाम ढले थके हारे घर लौटते हैं।<br />
<br />
ऐसा पहली बार हुआ कि गधे को गधा न कहते हुए वैशाखनंदन कहा गया, और कथित गधा बुरा मान गया। अमूमन भारत में अंधे को अंधा, और काने को काना नहीं कहा जाता, क्योंकि उसके अपमानित होने का संदेह बना रहता है। मगर, मृणाल पांडे की पोस्ट में गधे को वैशाखनंदन कहा गया, जो बहुत लोगों को बात लग गई।<br />
<br />
प्रधानमंत्री या उनके दीवानों की इज्जत उतनी मृणाल पांडे ने नहीं उतारी, जितनी उसकी निंदा करने वालों ने वाल की खाल उतारने में कर दी।<br />
<br />
लोग कुत्ते, बिल्लियों और अन्य जानवरों की तस्वीरें लगाते हैं। मृणाल पांडे ने वैशाखानंदन की तस्वीर लगाई तो हल्ला हो गया। लेकिन, दिक्कत यह है कि आईना बड़ा कठोर होता है, वो आपको आप से रूबरू करवाता है।<br />
<br />
इतना ही नहीं, लेखक और पत्रकार मृणाल पांडे प्रियदर्शन का एक ट्वीट रिट्वीट करती हैं, जिसमें लिखा है कि किसी ने चर्चिल को मूर्ख कहा, गिरफ्तार हो गया। ब्रिटिश संसद में हंगामा हुआ। चर्चिल बोले, मूर्ख कहना नहीं, एक गोपनीय राज उजागर करना जुर्म है।<br />
<blockquote class="twitter-tweet" data-lang="en">
<div dir="ltr" lang="hi">
किसी ने चर्चिल को मूर्ख कहा, गिरफ़्तार हो गया। ब्रिटिश संसद में हंगामा हुआ। चर्चिल बोले, मूर्ख कहना नहीं, एक गोपनीय राज उजागर करना जुर्म है।</div>
— priyadarshan (@priyadarshanp) <a href="https://twitter.com/priyadarshanp/status/909627036519370752">September 18, 2017</a></blockquote>
<script async="" charset="utf-8" src="//platform.twitter.com/widgets.js"></script>
क्या मृणाल पांडे ने किसी की गोपनीयता उजागर कर दी है? खैर यह बात तो मृणाल पांडे की निंदा करने वाले ही जानें, लेकिन, मैं इतना दावे के साथ कहता हूं कि मृणाल पांडे के ट्वीट को डिकोड किए बिना इसको गलत सिद्ध नहीं किया जा सकता।<br />
<br />
और डिकोड करने का अर्थ होगा कि आप जिस व्यक्ति से इसको जोड़ रहे हैं, निश्चित रूप से वो इस ट्वीट का हकदार होगा।<br />
<br />Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-58967709277896231152017-09-14T12:06:00.000+05:302017-09-14T12:15:26.639+05:30क्या सच में पाकिस्तान में पेट्रोल की कीमत 44 रुपये प्रति लीटर है?भारत के कुछ हिस्सों में पेट्रोल की कीमत 80 रुपये के आंकड़े को पार कर गई। पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है। लेकिन, सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब सामने नहीं आ रहा है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सरकार बढ़ती वाहन तेल कीमतों को एक झटके बदल नहीं सकते।<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfHIBzbfTq0KmEVTpIvfygJ8ttQKilyDEQcrokPy2zKONWncamJKfDd1Ieo6RG13JG4Dox5VUBfC9xXigeo8wgDlGn1Cjp1wjhIOQE9hPFY0FFxcufbGuL80KI1EKQtKIFsPTzkgneWNs/s1600/Petrol-Diesel.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="350" data-original-width="620" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfHIBzbfTq0KmEVTpIvfygJ8ttQKilyDEQcrokPy2zKONWncamJKfDd1Ieo6RG13JG4Dox5VUBfC9xXigeo8wgDlGn1Cjp1wjhIOQE9hPFY0FFxcufbGuL80KI1EKQtKIFsPTzkgneWNs/s320/Petrol-Diesel.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
इस बीच सोशल मीडिया पर कुछ संदेश वायरल हो रहे हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि अगर आपको भारत में बढ़ती पेट्रोल और डीजल कीमतों से दिक्कत है, तो पाकिस्तान चले जाओ, पाकिस्तान में तेल की कीमत 44 रुपये प्रति लीटर है। हालांकि, हर किसी की कीमत अलग अलग हैं। कोई 404 रुपये, तो कोई 26 रुपये तक पेट्रोल की कीमत बता रहा है।<br />
<br />
लेकिन, क्या सच में पाकिस्तान में पेट्रोल की कीमत 40 रुपये प्रति लीटर है? यदि देश के हिसाब से बात करूं तो बिलकुल ऐसा नहीं है। पाकिस्तान में भी पेट्रोल डीजल के भाव 70 रुपये की सीमा के पार चल रहे हैं। 30 अगस्त 2017 को द आॅयल एंड गैस रेगुलेटरी अथाॅरिटी ने पाकिस्तानी पेट्रोलियम मंत्रालय को डीजल पेट्रोल के भाव बढ़ाने की सिफारिश की है।<br />
<br />
इस सिफारिश पत्र में कहा गया है कि डीजल में 0.7 रुपये और पैट्रोल में 2.24 रुपये लीटर की वृद्धि की जाए। यदि यह वृद्धि लागू होती है तो पाकिस्तान में डीजल का भाव 78.1 और पैट्रोल का भाव 71.8 रुपये हो जाएगा। एक बात तो साफ हो गई है कि पाकिस्तान में डीजल पेट्रोल के दाम उस कीमत पर नहीं है, जिस बात को वायरल किया जा रहा है।<br />
<br />
हां, यदि आप पाकिस्तानी नागरिक नहीं हैं और आप भारत में रहते हैं। यहां से धन कमाकर पाकिस्तान में खर्च करते हैं, तो पाकिस्तान में आपके लिए डीजल पैट्रोल की कीमत ज्यादा मायने नहीं रखेगी क्योंकि भारतीय 1 रुपये पाकिस्तान में 1.60/64 पैसे हो जाएगा। ऐसे में आपको पेट्रोल और डीजल की कीमत चुकाने पर लगभग क्रमशः 45 और 50 रुपये का फायदा हो सकता है।<br />
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जैसे ही आप यह मुनाफा पाकिस्तान में डीजल और पेट्रोल की वर्तमान कीमतों से कम करेंगे तो आपको वहां पर डीजल और पेट्रोल क्रमशः 28 रुपये और 26 रुपये पर मिल सकता है।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-7870336655373584342017-09-13T17:59:00.001+05:302017-09-14T08:52:09.430+05:30गुजरात बुलेट ट्रेन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्रप्रिय नरेंद्रभाई दमोदरदास मोदी,<br />
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मीडिया से दूर, समाचारों से दूर, शांतिमय अच्छे मूड में बैठा था। अपना काम के साथ साथ फेसबुक पर बीच बीच में एकआध स्टेट्स अपडेट चल रहा था। अचानक पत्नी का काॅल आया कि सभी चैनलों पर आपकी शाही सवारी का खूबसूरत नजारा चल रहा है। मैंने आॅन किया, तो देखा कि आप और जापान के प्रधान मंत्री अबे शिन्जो खुली जीप में सवार होकर रिवरफ्रंट के किनारे टहल रहे हैं।<br />
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टेलीविजन की स्क्रीन पर जापान प्रधानमंत्री अबे शिन्जो के साथ आपका रौब देखते ही बन रहा था। एक चाय वाले का ठाठ, वाह वाह, क्या कहने, जो इस समय देश का प्रधान सेवक है। आपकी आपकी बोली में कहूं तो चैंकीदार।<br />
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आपके आगमन पर शहर की टूटी फूटी सड़कों को एकदम चकाचक कर दिया है, मझाल है कि पानी के गिलास से एक बूंद पानी छलककर नीचे गिर जाए। लेकिन, यह उतने क्षेत्र में ही हुआ, जहां जहां से आपकी राजशाही सवारी को गुजरना था।<br />
<br />
बाकी शहर के लिए तो भाजपा के संकट मोचन अमित शाह कह कर गए हैं कि बारिश के कारण सड़कों की मुरम्मत करना मुश्किल होता है। इसलिए बारिश का मौसम गुजर जाए तो काम चालू हो जाएंगे।<br />
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जैसे ही आपके आने का समाचार तंत्र को मिला। अहमदाबाद म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के अधिकारी बरसात को भूल गए। शाबाशी देनी चाहिये ऐसे तंत्र को, जिसने रात दिन एक कर दिया, केवल सड़कों को साफ सुथरी, गड्डे रहित बनाने के लिए। हमको को अच्छी सड़कों के लिए बरसात के जाने का इंतजार करना होगा, आप जैसा नसीब थोड़ी है।<br />
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कल बच्ची को स्कूल लेने गया। यकीन मानना सात किलोमीटर लंबे रोड़ पर केवल डेढ़ किलोमीटर का पट्टा थोड़ा सा अच्छा मिला, वो भी हाल ही में बना था।<br />
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चलो छोड़ो। आप अब बड़े आदमी हो गए हैं। दिल्ली रहने लगे हैं। फिर भी हम नसीब वाले हैं कि आप जैसा प्रधानमंत्री नसीब हुआ, जो देश की भलाई के लिए उम्रभर अविवाहित रहा और अपनी आमदनी से भी पैसा निकालकर समाज कल्याण पर खर्च कर देता है, जैसा भक्तजन कहते हैं।<br />
<br />
मुझे तो पता है कि 2000 हजार देकर 200000 सरकारी खाते से उड़ाना आपके लिए तो तली पर रखे फालतू तंबाकू को उड़ाने जैसा है। पूरे देश में गुनगान होगा, आप बुलेट ट्रेन का नींव पत्थर रखने आएं, पर सच तो यह है कि आप तो शक्ति प्रदर्शन करने आए हैं, वो भी सरकारी पैसे पर। बुलेट ट्रेन की आड़ में पूरा प्रोग्राम सरकारी खर्च पर हो जाएगा।<br />
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ऐसी ड्रामेबाजी के लिए खूब पैसा है। मगर, सरकारी बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए काम आने वाली आॅक्सीजन के 63 लाख तक के बिल भरने आपके बस की बात नहीं है। पिछले छह सात साल से गुजरात में मैट्रो बन रही है। कुछ लोग तो यह सोचने लगे हैं कि नरेंद्र मोदी जी की मैट्रो पर अब वह नहीं बल्कि उनके पोते पाती सवार होंगे।<br />
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कांग्रेस की बिछाई हुई पटरियों पर ट्रेनें चल नहीं पा रही। उनके भाड़े आसमान को छूते जा रहे हैं। पैट्रोल की कीमतों पर आपकी सरकार मुंह पर ताले लगाकर बैठी है। बीएसएनएल दुनिया का सबसे घटिया नेटवर्क बनाकर रख दिया, जिसका विज्ञापनों में पहाड़ पर नेटवर्क आता है, बस घरों में। ऐसे में आपकी फोकी थोथी चौधर, सरदारी, शान देखकर एक आम भारतीय कैसे खुश हो सकता है? वो भी जब उस पर लगने पर नाजायज टैक्सों से होने वाली आमदनी से आप ऐसे मजे कर रहे हों।<br />
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हो सकता है कि कुछ लोगों को आपकी थोथी और फोकी टौहर अच्छी लग रही हो। मेरा तो दिमाग खराब कर दिया, तुम्हारे चेहरे की फर्जी मुस्कान ने, जो अबे शिन्जो के साथ खुली जीप में सवार होकर दिए जा रहे थे।<br />
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मुस्कान और आंखों का तालमेल हो नहीं रहा था, होगा भी कैसे? आंखों और होंठों में संतुलन के लिए मन में अच्छे कर्म की छाप होनी चाहिये? क्या आप एक साधे और सरल समारोह से एक बुलेट ट्रेन का नींव पत्थर नहीं रख सकते थे? बच्चा पैदा से पहले ही इतना खर्च कर दिया, सोचो जब बच्चा पैदा होगा, तो कितना खर्च होगा।<br />
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शुक्र है कि चीन और जापान के पास आप जैसे महानुभवी नेता नहीं थे। वरना, वहां तो हर नयी चलने वाली ट्रेन पर ऐसे ही पैसे की बर्बादी हो जाती।<br />
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आपको पता है कि आपके आगमन पर 12000 के करीब पुलिस कर्मचारी अहमदाबाद और गांधीनगर में तैनात किए गए हैं, जो दो दिन तक ऐसे ही टंगे रहेंगे। सुनने में आया है कि कुछ बसों के रूट भी बंद कर दिए गए हैं। ऐसे में नौकरी पर जाने वाले लोग, जो बसों का इस्तेमाल करते हैं, वह क्या करेंगे? कैसे अपने आॅफिस तक पहुंचेंगे?<br />
<br />
खैर छोड़िये, आप कहां किसी की सुनते हैं। तीन साल में एक भी आधिकारिक प्रेस कांफ्रेंस आप से न हो सकी। इतने खौफजदा क्यों हैं? यदि आप अच्छा कार्य कर रहे हैं। नहीं, नहीं, आप कार्य कम, कार्य का ड्रामा ज्यादा रच रहे हैं।<br />
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जय राम जी<br />
क्षुब्ध भारतीयKulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-77986637540096046512017-09-09T00:02:00.000+05:302017-09-09T00:12:04.145+05:30अगर रवीश कुमार ने पीएम को गुंडा नहीं कहा तो सवाल है कि....? <div style="text-align: right;">
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बड़े दिनों से ब्लॉग जगत से दूर हूं। आज एक बार फिर से ब्लॉग जगत की दुनिया में लौटने का मन हुआ। ख़बर आयी कि एनडीटीवी के वरिष्ठ संवाददाता और न्यूज एंकर रवीश कुमार ने देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को गुंडा शब्द से संबोधन किया।<br />
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मैंने भी रवीश कुमार के बयान 'मुझे दुख है कि मोदी जैसा गुंडा मेरा पीएम है : रवीश कुमार' के बयान की फेसबुक पर निंदा की। होनी भी चाहिये, क्योंकि यह पत्रकारिता की शालीनता नहीं है और ऐसे बयान पत्रकारिता की गरिमा को चोट पहुंचते हैं।<br />
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मगर, बाद में पता चला है कि ऐसा कोई भी बयान संवाददाता रवीश कुमार ने नहीं दिया। जो बयान सोशल मीडिया और मीडिया जगत में वायरल हो रहा है, दरअसल वो बयान फर्जी है।<br />
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इससे भी मजेदार सवाल तो यह है कि यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रवीश कुमार ने गुंडा नहीं कहा, तो कौन है वह जो रवीश कुमार के कंधे पर बंदूक रखकर नरेंद्र मोदी पर निशाना साध रहा है।<br />
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अपने मन की भड़ास निकाल रहा है और उसके समर्थन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक की खड़े हुए जा रहे हैं। रवीश कुमार के मुंह से क्यों? यदि कुछ कहना ही है तो अपने मुंह से कहिये।<br />
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दरअसल, इस फेक ख़बर को रवीश कुमार के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए चलाया गया, ताकि एनडीटीवी के रवीश कुमार को नरेंद्र मोदी का कट्टर विरोधी घोषित कर दिया जाए, और उसकी हर तरफ से आलोचना हो।<br />
<br />
ऐसा क्यों? दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से संवाददाता रवीश कुमार की लोकप्रियता तेजी के साथ बढ़ी है। नतीजन, एनडीटीवी रवीश कुमार हो गया, जैसे भाजपा नरेंद्र मोदी। हालांकि, कांग्रेस के समय से ही रवीश कुमार न्यूज एंकर के साथ साथ ब्लॉगर के रूप में भी स्थापित हुए। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि रवीश कुमार शुरू से ही नरेंद्र मोदी के विरोध में रहे हैं, विशेषकर गुजरात दंगों के समय से।<br />
<br />
उधर, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक के श्रृंगेरी से भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री जीवराज ने चिकमंगलुरु में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ''अगर गौरी लंकेश ने आरएसएस के ख़िलाफ़ नहीं लिखा होता तो आज वह ज़िंदा होती।''<br />
<br />
क्या गौरी लंकेश की तरह रवीश कुमार को भी खुद खुद लिखकर आरएसएस या भाजपा विरोधी बनाकर मौत के घाट उतार दिया जाएगा? सवाल इसलिए जो बयान रवीश कुमार के नाम पर जारी किया गया। असल में वो बयान तो रवीश कुमार का है ही नहीं, क्या जो बयान गौरी लंकेश के नाम से वायरल किए जाते रहे होंगे या किए जा रहे हैं, वह बयान गौरी लंकेश के ही होंगे? कौन करेगा इस की पुष्टि?<br />
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उसी सवाल पर छोड़कर जा रहा हूं, यदि ख़बरनवीश रवीश कुमार ने देश के प्रधान मंत्री को गुंडा नहीं कहा, तो कौन है, जो रवीश कुमार के कंधे पर रखकर देश के प्रधानमंत्री को गाली दे रहा है और कौन लोग हैं, जो इसको वायरल कर रहे हैं? क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिये?Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-54774263513303416892016-12-16T06:30:00.000+05:302016-12-16T15:00:54.090+05:3070 साल की लूट, गलती से ही सही, कहीं सच तो नहीं बोल रहे नरेंद्र मोदी आप कैशलेस को पूरे देश पर थोपना चाहते हैं। आप कैशलेस का आह्वान करते तो समझ में आता। प्रेम में प्रस्ताव रखे जाते हैं, और जबरी संबंधों में सबकुछ थोपा जाता है। आप कह रहे हैं कि तकनीक का जमाना है, सब कुछ ऑनलाइन हो सकता है, अब लेन देन भी ऑनलाइन करो।<br />
<br />
मैं सहमत हूँ, लेकिन <b>एक फोकट का सवाल है</b>, जब तकनीक का जमाना है, जब हम सब कुछ ऑनलाइन कर सकते हैं तो आपकी रैली ऑफलाइन क्यों?<br />
<br />
<b>मेरे झोले में फोकट की सलाह भी है -</b> क्यों ना आप भी रैली भाषण का वीडियो रिकॉर्ड करके यूट्यूब पर डालें, और महसूस करें कि पूरा इंडिया इसको सुन रहा है, देख रहा है, और गर्व महसूस कर रहा है। इससे कथित 4 करोड़ प्रति रैली खर्च बच सकता है, आपकी जान को भी कोई खतरा नहीं होगा, आपकी रक्षा के लिए रैली के बाहर खड़ी होने वाली पुलिस अपने रोजमर्रा के काम निबटा पाएगी।<br />
<br />
<b>कड़वी दवा तो नहीं कड़वा सच</b> - जो आप जानते हैं। आपके पीआर जानते हैं कि मोबाइल अभी घर घर की जरूरत है लेकिन इंटरनेट नहीं। आपको पता है कि जो भीड़ रैली में होती है, वो वंचित है उन सुविधाओं से जिसने आपके समर्थक लैस हैं। उस भीड़ में किसी के पास डेटा पैक के पैसे नहीं, तो किसी के पास नेटवर्क नहीं। आपके समर्थक सोशल मीडिया से पढ़े लिखे और इंटरनेट यूजर्स को ख्वाब दिखाने का प्रयास करते हैं, और रैलियों से आप उनको जिन तक आपका सोशल मीडिया अभी पहुंचा नहीं। देश आज भी दो हिस्सा में बांटा हुआ भारत और इंडिया में, हालांकि, लीक बहुत ही महीन है।<br />
<br />
<b>समस्या यह है कि</b> यूट्यूब पर आपके एक ही तरह के भाषण सुनने क्यों जायेगा? और आपका हर नया भाषण पुराने का विस्तार या विरोधाभासी होता है।<br />
<br />
हाल के बयान को ही ले लो जो काले धन, भ्रष्टाचार और नकली करंसी के खिलाफ आया था और अंत कैशलेस और लेस कैश की ओर मुड़ गया। जैसे आपके विरोधियों के कहने अनुसार हर हर मोदी, घर घर मोदी अंत थर थर मोदी हो गया।<br />
<br />
आप संसद में जाने को तैयार नहीं, रैली में आप लंबी लंबी हांकते हैं और नतीजन आपको बहराईच की रैली कम भीड़ के कारण रदद् करनी पड़ी, भले ही मीडिया के एक बड़े तबके ने मौसम खराब का रोना रोया हो।<br />
<br />
भाजपा के सीनियर नेता एलके आडवाणी जो कथित तौर पर आपके मार्गदर्शक हैं, वो आज सिर्फ दर्शक हैं, बोलते हैं तो आप गौर नहीं करते, तभी तो इस्तीफा देने तक का मन बना लेते हैं। मनमोहन सिंह की चुप ने नरेंद्र मोदी का उदय किया और आज नरेंद्र मोदी की चुप्पी राहुल गांधी को बोलने का मौका दे रही है। एक हारे हुए नेता व वित्त मंत्री अरुण जेटली की अपनी मजबूरियां हैं, लेकिन सुना है कि अमित शाह ने बैठक में जमकर गुस्सा निकाल लिया, उसकी कोई मजबूरी नहीं, क्योंकि बीजेपी के एक बड़े तबके को सम्भल रहे हैं। गुजरात की गद्दी से आनंदीबेन का जाना, अमित की जिद्द थी और आनंदीबेन को लाना आपकी।<br />
<br />
सवाल यह नहीं कि आपकी कुर्सी रहे या जाये, सवाल है कि आपके एक फैसले ने देश को जिस तरफ मुड़ गया है उसका क्या? आज एक बड़ा वर्ग लाइन में खड़ा है, जिसको कभी आप अपने साथ बताते हैं तो कभी काले धन वाले लाइन में हैं कहकर अपमानित करते हैं।<br />
<br />
<b>अगर इसने आपकी उम्मीद के उल्ट जाकर बीजेपी को अगले कुछ सालों के लिए फिर से लाइन में लगा दिया तो सोचो कि आप ने देश को क्या दिया? गलती से ही सही, लेकिन जब आप कहते हैं देश 70 साल से लूट रहा है तो उन 70 सालों में बीजेपी की सरकारों के साल भी शामिल हो जाते हैं, और आपकी मौजूदा सरकार के 3 साल भी, जिसमें से 2.5 तो हो गये, क्योंकि अगस्त 2017 में आजाद भारत अपने 70 बसन्त पूरे करेगा।</b><br />
<br />
<b>बस ध्यान रखें कि जितना 67 साल में नहीं लूटा, उतना 3 में ना लूट जाए। हम भारतीय हैं, हम तो ऐसे तैसे कर उठ जाएंगे, लेकिन आप झोला लेकर किधर जाएंगे।</b><br />
<br />
जय राम जी की इसके भी दो अर्थ हैं, किसी समझदार से पूछना लेना।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-91364869180932156742016-12-02T14:27:00.003+05:302016-12-02T18:12:42.655+05:30कहो..... भीड़ नहीं हम.....आस पास के लोगों से..... सतर्क हो जाइए..... क्योंकि पता नहीं कौन सा नकाबपोश..... काले धन का मालिक हो..... मखौटों के इस दौर में सब फर्जी हैं..... हां..... मैं..... आप..... हम सब फर्जी हैं।<br />
<br />
चौंकिए मत..... सच है.....। कबूतर की तरह आंखें भींचने से क्या होगा?.....। याद कीजिए..... 35 लाख का घर..... और 22 लाख के दस्तावेज..... आखिर किसने बनवाये। बेरोजगार बेटे बेटी को 3 से 5 लाख रिश्वत देकर..... सरकारी नौकरी किसी ने दिलवाई.....। आखिर कौन पूछता है..... दामाद ऊपर से कितना कमा लेता है.....।<br />
<br />
ऐसे ही तो..... जमा होता है काला धन..... काले धन वाले भी..... तो शामिल हैं ईमानदारों में..... और नोटबंदी का करते हैं जमकर समर्थन..... कहते हैं..... मिट जाएगा काला धन..... और खत्म होगी रिश्वतखोरी..... हां..... स्लीपर सैल की तरह..... हम में भी..... कहीं न कहीं..... छुपे बैठे हैं चोर.....<br />
<br />
दम है तो पकड़िये..... रिश्वत लेते..... जो पकड़ा गया..... रिश्वत देकर छूट जाएगा..... सड़क पर ट्रैफिक वाला रसीद काटता है..... तो आप बड़े आदमी को फोन लगा लेते हैं..... ईमानदार कर्मचारी की बैंड खूब बजती है..... और तमाश देखते हैं हम सब.....<br />
<br />
ट्रैफिक सिग्नल पर खड़ा शहरी 60 सैकेंड इंतजार नहीं कर सकता..... लेकिन..... गरीबों को लाइन में लगने पर खूब ज्ञान उड़ेल रहा है.....<br />
<br />
युवान बेटा पिता के कहने पर बिजली का बिल भरने नहीं जाता..... कहीं..... लाइन बड़ी हुई तो डार्लिंग बुरा मान जाएगी..... फेसबुक पर उस गरीब को ज्ञान बांटता है..... जो 14 घंटे मजदूरी करता है..... और मिलता है बाबा जी ठुल्लू.....<br />
<br />
बुरा तो लगता है..... कड़वी बात का..... जो कल तक..... मोदी की नोटबंदी का..... सबसे बड़ा समर्थक था..... पकड़ा गया बड़े नोटों के साथ.....<br />
<br />
सब चुप रहेंगे..... कोई नहीं बोलेगा..... क्योंकि..... सच बोलने के लिए..... नकाब हटाने होंगें..... अपने स्वार्थों की बलि..... देनी होगी.....। इसलिए..... जो चल रहा..... चलने दें..... तमाशा देखें..... क्योंकि..... तमाशबीन हैं हम.....<br />
<br />
125 करोड़ जनता..... 11 क्रिकेटर..... जमकर देखते हैं..... गाली निकालते हैं..... जीते तो जश्न मनाते हैं..... पर्दे पर अजय मेहरा देखकर..... खून खौलने लगता है..... घर आते आते..... थका हरा घसीट पीटा आम आदमी..... भीतर से निकलता है..... जैसे अदालीन के चिराग से जिन्न.....<br />
<br />
हम को अचानक..... बोलने वाला प्रधानमंत्री मिलता है..... हम खुशी के मारे झूम उठते हैं..... क्योंकि..... हम बोल नहीं सकते..... कोई तो आया बोलने वाला.....<br />
<br />
फिर अचानक..... बोलना भी..... सिरदर्द करने लगता है.....<br />
<br />
फिर..... आशावाद..... फिर..... चलो देखते हैं..... और फिर..... मैं..... आप..... सब..... तमाशबीन हो जाते हैं.....<br />
<br />
तमाशबीन होने का भी..... अपना ही एक मजा है.....<br />
<br />
टीवी के सामने बैठकर..... सचिन को शॉट मारना सिखाते हैं..... फिल्म निर्देशक को..... निर्देशन के गुर..... किसी लड़ने वाले को..... नायक से खलनायक..... खलनायक से नायक बनाते हैं.....<br />
<br />
कोई चौपालों में..... कोई ड्राइंग रूम में..... कोई चाय के गल्ले पर बैठकर..... देश बदल रहा है..... पान मसाले का पीक..... मुंह से थू थू हुए..... स्वच्छता का ज्ञान झाड़ा जा रहा है..... सुन रहे हैं हम..... क्योंकि..... तमाशबीन हैं हम<br />
<br />
असल जीवन में..... काले को सफेद करने की दौड़..... सोशल मीडिया पर..... ज्ञान खूब बघारा जा रहा है..... किसका दामन..... कितना मैला..... हर कोई..... लिए प्रमाण पत्र..... घूम रहा है.....<br />
<br />
कांग्रेस के दौर में..... शहीद हुए तो एक के बदले दस..... भाजपा के दौर में शहीद हुए..... तो सवाल मत पूछिए..... रैलियों में सुर ऊंचा है..... संसद में सिर नीचा है.....<br />
<br />
क्यों नहीं..... हम नेता चुनते..... क्यों..... हर बार हम..... कांग्रेस..... बीजेपी..... चुनें..... क्यों नहीं..... हम सरकार से..... तीखे सवाल करते..... चाहे कांग्रेस की हो..... चाहे बीजेपी की हो.....<br />
<br />
क्यों नहीं..... हर सवाल हमारा मौलिक होता..... क्यों..... हम पढ़े लिखे होने के बाद भी..... कॉपी पेस्ट..... नकल करते हैं..... सभ्य समाज हैं..... फिर भी..... चर्चा नहीं..... बहस करते हैं..... तर्क नहीं दे पाते..... तो गाली गालौच करते हैं.....<br />
<br />
भीड़ नहीं तो..... क्या हैं हम..... एक ने लिखा..... चोर..... तो हम भी..... लिखते हैं..... चोर..... इंटरनेट है..... पर तथ्य..... क्यों नहीं खोजते हम..... पढ़े लिखे हैं हम..... यह क्यों नहीं सोचते..... एक ही वीडियो..... कभी कांग्रेस का हो जाता है..... कभी भाजपा का..... और अंधे हम..... करते हैं..... फॉरवर्ड..... फॉरवर्ड..... फॉरवर्ड.....<br />
<br />
कहो..... भीड़ नहीं हैं हम..... बताओ..... भेड़ नहीं हम..... युवा हैं हम..... किसी के गुलाम नहीं हम..... बीरबलता नहीं..... नचिकेतता चाहिये हमें..... बुरे हैं तो बुरा कहो..... सच्चे हैं तो सच्चे कहो..... झूठ के लिबास में..... तारीफ नहीं चाहिये.....<br />
<br />
कहो..... भीड़ नहीं हम.....Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-34424315482315517192016-11-28T20:58:00.001+05:302016-11-28T21:00:53.596+05:30और तो कुछ पता नहीं, लेकिन लोकतंत्र ख़तरे में है<b><i>जहां लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष रेल की पटरी सा होता है। तो वहीं, लोकतांत्रिक व्यवस्था एक रेल सी होती है। यदि दोनों पटरियों में असंतुलन आ जाए तो पटना इंदौर एक्सप्रेस सा हादसा होते देर नहीं लगती, सैंकड़ों जिंदगियां पल भर में खत्म हो जाती हैं। और पीछे छोड़ जाती हैं अफसोस कि काश! संकेतों पर गौर कर लिया होता। वक्त रहते कदम उठा लिये गए होते।</i></b><br />
<br />
ये संकेत नहीं तो क्या हैं कि देश सिर्फ एक व्यक्ति पर निर्भर होता जा रहा है। देश में विपक्ष की कोई अहमियत नहीं रह गई। सत्ता पक्ष के खिलाफ बोलना अब देशद्रोह माना जाने लगा है। किसी सरकारी नीति की आलोचना करने का साहस करने पर आपको बुरा भला कहा जाता है।<br />
<br />
दिलचस्थ तथ्य तो देखो कि भारत बंद की घोषणा होने के साथ ही सत्ता पक्ष की तरफ से कुछ दुकानों पर एक सरीखे नारे लिखे बोर्ड या बैनर टांग दिये जाते हैं। हर आदमी के गले में कड़वी बात को उतारने के लिए सेना और देशभक्ति का शहद की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि कड़वाहट महसूस न हो।<br />
<br />
पहले तो ऐसा नहीं होता था, सरकार के खिलाफ भारत बंद भी होते थे। जो लोग आज सत्ता में हैं, वो ही लोग लठ लेकर निकला करते थे। कोई प्यार से बंद करे तो ठीक, नहीं तो लठवाद जिन्दाबाद। सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करने पर कोई किसी को देशद्रोही की संज्ञा तो नहीं देता था।<br />
<br />
याद ही होगा, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ से पहले संसद की चौखट पर शीश रखते हुए पूरे देश को भावुक कर दिया था। दरअसल, राजनीति में ऐसा ड्रामा आज तक किसी ने देखा नहीं था। ड्रामा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पिछले कई दिनों से उसी मंदिर से आवाज आ रही है कि आओ प्रधान सेवक आओ, जवाब दो हमारे सवालों के, चर्चा करो हमसे, हम भी जन-प्रतिनिधि हैं। लेकिन, प्रधान सेवक रॉक कंसर्ट को संबोधित करने में व्यस्त हैं, रैलियों में विपक्ष को काले धन का मालक बताने में व्यस्त हैं।<br />
<br />
जो कड़वी दवा जल्दबाजी में दे बैठें हैं, कहीं जनता बाहर न निकाल दे, इसलिए आंसुओं व देशभक्ति का शहद मिलाकर निगल जाने के लिए प्रेरित करने में व्यस्त हैं। बड़ी अजीब बात है कि रैलियों से बैंक की कतारों में खड़े लोगों की तुलना सैनिक से तो कर रहे हैं, लेकिन, मन की बात प्रोग्राम में एक भी बैंक की कतार में शहादत पाए गए व्यक्ति को याद नहीं किया, और दो आंसू तक आंख से नहीं टपकाए।<br />
<br />
आंसू टपके तो इस बात पर वो लोग मुझे नहीं छोड़ेंगें, मुझे मार देंगें। मगर, देश के प्रधान सेवक ने सदन में जाकर उन धमकाने वालों का नाम नहीं बताया, जो उनको नहीं छोड़ेंगें, जो उनको मार देंगें। विपक्ष पूछता रहा, यदि ऐसा है तो पूरा भारत आपके साथ है। लेकिन, अफसोस कि सदन में मौन है, देश का पहला बोलने वाला प्रधान मंत्री।<br />
<br />
<b><i>बहुत कम लोगों को याद होगा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी मार्च 2016 में सदन के अंदर जबरदस्त वक्तव्य में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के बयान (देश में सरकारें तो आती जाती रहती हैं, लेकिन देश चलना चाहिए) की नकल करते हुए विपक्ष को महानुभवियों की संज्ञा दी थी। मगर, अफसोस कि नवंबर 2016 आते आते प्रधान मंत्री अपने ही बयान को भूल गये और उसी विपक्ष को काले धन के मालिक करार दे दिया।</i></b><br />
<br />
अब स्थिति ऐसी हो चली है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कार्य पर उंगुली उठाना भी देशद्रोह है। हाल में ही, जब देश की सर्वोच्च अदालत ने सरकार से पूछा कि यदि आप भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने को तैयार हो तो अभी तक लोकपाल की नियुक्ति क्यों नहीं की? तो नरेंद्र मोदी समर्थक न्यायपालिका पर टूट पड़े और पूछा डाला कि अभी तक जो इतने केस लंबित पड़े हैं, उनका क्या? अजीब लोकतंत्र है कि अदालतों में जजों की नियुक्ति को लेकर भी सरकार और न्यायपालिका में ठनी हुई है।<br />
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देश में स्थिति ऐसी हो चुकी है कि जो नरेंद्र मोदी कहें वो ही सही है। कोई किंतु परंतु करने की जरूरत नहीं। हर बात को सेना से जोड़ा दिया जाता है क्योंकि पीआर जो नरेंद्र मोदी को कथित तौर पर संचालित करते हैं, वे अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी देश का नागरिक अपनी सेना का अपमान नहीं करेगा। भले ही, भारतीय जनता पार्टी के नेता भारतीय करंसी पर पैर रखकर काले धन की स्वच्छता का अभियान चलाएं, इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।<br />
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लोकतंत्र में एक व्यक्ति पर केंद्रित होना और देश के हर मामले में सेना के कंधे का इस्तेमाल ख़तरे की घंटियां हैं। इतना ही नहीं, आज विपक्ष बोल नहीं सकता, आज न्याय पालिका बोल नहीं सकती, आज मीडिया का एक तबका सरकार के खिलाफ एक शब्द लिख नहीं सकता।<br />
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<b><i>चुटकला - </i></b><br />
<b><i>मैं ट्रेन में सफर कर रहा था। </i></b><br />
<b><i>मैंने बगल में बैठे व्यक्ति से कहा, 'यार कितनी ठंड पड़ रही है ना।'</i></b><br />
<b><i>तो अगले डिब्बे से आवाज आती है, 'क्या कांग्रेस के समय से ठंड नहीं होती थी?'</i></b><br />
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जब देश में ऐसे चुटकले प्रचलन में आ जाए तो एक बात अच्छे से समझ लेनी चाहिये कि लोकतांत्रिक देश यकीनन एक गलत दिशा में अग्रसर हो रहा है।<br />
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पहले देश हिन्दु मुस्लिम के आधार पर दो हिस्सों में बंट रहा था। अब देश देशभक्त और देशद्रोही के रूप में बंट रहा है। जो कल तक भारत बंद पर लाठियां लेकर निकलते थे, तोड़ फोड़ करते थे, आज उनके हाथों में मिठाईयां थीं। चलो मान लिया हमने कि देश बदल रहा है। जाने अनजाने में ही सही, लेकिन लोकतंत्र की पटरी से उतर रहा है।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0United States37.09024 -95.712891000000013-36.4162205 99.052733999999987 90 69.521483999999987tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-56138003668118066862016-09-03T07:30:00.002+05:302016-09-03T07:30:50.949+05:30'अकीरा' फिल्म नहीं, कहानी है एक 'लड़की' के साहस की<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><b>अकीरा</b></span> फिल्म नहीं, एक कहानी है, एक दस्तां है, एक लड़की के साहस की, जोश की, हिम्मत की, संघर्ष की और बलिदान की, जो हमको सिल्वर स्क्रीन पर सुनाई जाती है। अकीरा सी लड़की पैदा करना हर मां बाप के बस की बात नहीं, ऐसी लड़की को ईश्वर किसी किसी को वरदान स्वरूप देता है।<br />
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<blockquote class="tr_bq">
<b><i>अकीरा खूबसूरत है। अकीरा भी आम लड़कियों जैसी है। मगर, एक बात उसको अलग बनाती है, उसके भीतर की हिम्मत। फिल्म की शुरूआत में ही एक सूफी कहावत का जिक्र है, जिसमें फिल्म का पूरा निचोड़ है। ईश्वर आपके उस गुण की परीक्षा लेता है, जो आप में मौजूद है।</i></b></blockquote>
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'अकीरा' की परीक्षा तो दस साल की उम्र से शुरू हो जाती है, जब अकीरा बस स्टैंड पर बदतमीजियां कर रहे लड़कों को निपटा देती है। अकीरा की शक्ति उसके पिता है, जैसे नीरजा में नीरजा की शक्ति उसके पिता थे। अकीरा 3 साल बाल सुधार गृह में गुजारने के बाद खूबसूरत जीवन जीने लगती है।<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8McNiT2GosIZUGOWmo3brF4viE9KlDinAPtZ-lZdSl2Eui8gUv_EciWN2iuFydlZXjQ9EGA01hagOpDU9MZBk_jfiSq-TraSNYJtUZAFJE_hu1r1eAdOpvODZx5C5kFIif75JX4Xv8J0/s1600/akira+poster+001.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8McNiT2GosIZUGOWmo3brF4viE9KlDinAPtZ-lZdSl2Eui8gUv_EciWN2iuFydlZXjQ9EGA01hagOpDU9MZBk_jfiSq-TraSNYJtUZAFJE_hu1r1eAdOpvODZx5C5kFIif75JX4Xv8J0/s320/akira+poster+001.jpg" width="320" /></a></div>
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तभी किस्मत अकीरा के जीवन में मुम्बई जाना लिख देती है। कहते हैं ना जब पाप हद से ज्यादा बढ़ जाए तो पापियों का विनाश करने को एक परम-आत्मा जन्म लेती है। कुछ ऐसा ही अकीरा के बारे में कह सकते हैं, जब अकीरा मुम्बई को अचानक रवाना होती है।<br />
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मुम्बई पहुंचते ही अकीरा के जीवन में नए तूफान आने शुरू होते हैं। अकीरा की लड़ाई जाने अनजाने में पुलिस के कुछ लालची और घटिया अधिकारियों से हो जाती है, जो एक गलती को छुपाने के लिए पैर पैर नई गलती किए जाते हैं। कॉलेज में पढ़ने वाली अकीरा किस तरह पुलिस वालों के गले का फांस करती है और पुलिस वाले किस तरह अकीरा को खत्म करने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हैं - ये फिल्म का वो हिस्सा है, जिसको प्रकट करना मतलब फिल्म की रोचकता या कहानी की रोचकता को मारना है।<br />
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निर्देशक एआर मुरुगदास ने अकीरा के माध्यम से बहुत सारे मुद्दों को उठाया। पुलिस अधिकारी किस तरह अपनी ताकत का इस्तेमाल कर सकते हैं या करते हैं। खूबसूरत लड़कियों के चेहरे की रौनक तेजाब कुछ बदतमीज लड़कों की हरकत के कारण किस तरह छीन लेता है। देखते समझते हुए अभिभावकों का आंख मूंद लेना, बच्चों को किस गर्त में फेंकता है।<br />
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सोनाक्षी सिन्हा, अनुराग कश्यप और कोंकणा सेनशर्मा मुख्य भूमिका में हैं, जो पूरी फिल्म को आगे बढ़ाते हैं। मगर, अन्य छोटे छोटे किरदार भी आपको प्रभावित करेंगे, चाहे अकीरा के पिता का किरदार, चाहे अकीरा के दोस्त किन्नर का किरदार, चाहे अकीरा के भाई-भाभी और भाई के साले का किरदार। हर कलाकार महत्वपूर्ण है और हर कलाकार अपने किरदार के साथ ईमानदारी बरतते हुए नजर आता है।<br />
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हां, चलते चलते इतना जरूर कहूंगा कि नीरजा भावनात्मक दास्तां थी जबकि अकीरा एक्शन दस्तां है।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-83333257901734937472016-09-02T17:10:00.000+05:302016-09-02T17:10:01.562+05:30हलके गुलाबी कुर्ते वाले प्रधानमंत्री और जियो डिजीटल लाइफ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
'मन की बात' कहने वाले हमारे माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी आज सुबह सुबह आपका तस्वीर अखबारों के पहले पृष्ठ पर देखा। टचवुड नजर न लग जाए। हलके गुलाबी कुर्ते पर ब्लू रंग की मोदी जैकेट जंच रही है, खिला हुआ चेहरा तो मशाल्लाह है।<br />
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मगर, एक बात खटक गई। बड़ा रोका मैंने खुद को कि चल छोड़ो जाने दो। मगर, मन की बात कहां दबी रहती है जुबां पर आ ही जाती है। मुझे समझ नहीं आया कि जियो डिजीटल लाइफ क्या है, जिसका आप चेहरा बने हैं इस विज्ञापन में।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_XVdaQtQJM4KbeFaYRxVFbKwwpsmj4yXAp8MxoZAIygb5mslm6B9mVRVWKd5QRJ8OzpkjR-fYEzFzMZNBwUng3K8ZBHBUYz87uv11vkBg_xNOXqpHSZIIlbFqD4l82M_DLAJKoZhHb6c/s1600/Narendra+Modi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="227" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_XVdaQtQJM4KbeFaYRxVFbKwwpsmj4yXAp8MxoZAIygb5mslm6B9mVRVWKd5QRJ8OzpkjR-fYEzFzMZNBwUng3K8ZBHBUYz87uv11vkBg_xNOXqpHSZIIlbFqD4l82M_DLAJKoZhHb6c/s320/Narendra+Modi.jpg" width="320" /></a></div>
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क्या जियो डिजीटल आइडिया एयरटेल वोडाफोन टाटा डोकोमो श्रेणी में नहीं आती ? यदि आती है तो फिर क्यों आप ने बीएसएनएल का प्रचार करने की बजाय जियो डिजीटल पर फोटो लगाने की अनुमति दी।<br />
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हमारा बीएसएनएल मर रहा है। दम तोड़ रहा है। ऐसे हालात में आपका फोटो जियो डिजीटल लाइफ के साथ प्रकाशित होता है। मन दुखी होने लगता है। आप से कोई सवाल नहीं करेगा, क्योंकि आप देश के प्रधान मंत्री हैं।<br />
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टेलीकॉम कंपनियों में कोई अजय देवगन जैसा बिंदास आदमी नहीं है, वरना किसी सहयोगी से आपको फोन लगवाकर पूछ लेता कि साहेब हमने आपका का क्या बिगाड़ा है, जो हमको पछाड़ने के लिए जियो डिजीटल का आह्वान किए जा रहे हैं।<br />
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आपकी खूबसूरत फोटो की तारीफ जरूर करूंगा, जैसे कि ऊपर की है। मगर, जहां आपका फोटो लगा है, वहां मुझे हमेशा आपत्ति रहेगी क्योंकि जियो रियालंस कंपनी है, जो एक प्राइवेट कंपनी है, और प्राइवेट कंपनी के विज्ञापन को यदि देश का पीएम प्रचारित करेगा, तो देश को सोचना होगा। <br />
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Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-34640993252547868462016-09-02T16:41:00.001+05:302016-09-02T16:44:18.384+05:30राम की रामायण होती है, किंतु रावण की रामायण नहीं हो सकती<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज सुबह दिल्ली के एक समाचार पत्र को देखते हुए एक विज्ञापन पर नजर गई। विज्ञापन एक नाटक के संदर्भ में था, जिसमें पुनीत इस्सर रावण के रूप में अभिनय कर रहे हैं। इस नाटक को निर्देशित और कलमबद्ध अतुल सत्य कौशिक ने किया है।<br />
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इस नाटक का नाम रावण की रामायण। हालांकि, राम की रामायण होती है, किंतु रावण की रामायण नहीं हो सकती।<br />
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पूछो क्यों?<br />
<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="240" src="https://www.youtube.com/embed/TMpkkdGx9gM" width="480"></iframe>
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जब सूर्य उत्तर दिशा की तरफ सरकने लगता है तो उस समय स्थिति को उत्तरायण कहा जाता है क्योंकि उस समय सूरज का उत्तर दिशा की तरफ बढ़ता है।<br />
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डॉ. विद्यानिवास मिश्र का एक संदर्भ लेते हुए बात करूं तो अयन के दो अर्थ हैं - 'घर' भी है और 'चलना' भी है। बिलकुल सही और स्टीक हैं। रामायण देखा जाए तो पूर्ण रूप से राम का घर है और यात्रा भी है, चलना भी यात्रा से जोड़ा जा सकता है।<br />
<br />
राम कथा को रामायण इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसमें पूर्ण राम समाए हैं। रामायण का अर्थ कहानी या दास्तां नहीं होता। हालांकि, लोग आप बोल चाल की भाषा में कहते जरूर हैं कि तेरी रामायण बंद कर।<br />
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इसलिए रावण की रावणायण तो सकती है। मगर, रावण की रामायण होना मुश्किल है। इस शब्द को लेकर हो सकता है बहुत सारे लोगों को भ्रांतियां हों।<br />
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इस लेखक का प्रयास किसी को नीचा दिखाना या बुरा साबित करना नहीं बल्कि एक सही शब्द से अवगत करवाना है, जो रोजमर्रा के जीवन में शामिल है।</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-2332561255637313362016-08-21T10:20:00.001+05:302016-08-21T10:20:30.901+05:30...लो बूटी और बेस हमारे गीतों में शामिल हो गएआज कल ट्विटर पर बीट पे बूटी चैलेंज चल रहा है। बहुत सारे लोग बीट पे बूटी चैलेंज एक दूसरे को आगे बढ़ा रहे हैं। बड़ी अजीब बात है कि आजकल "बेस" और "बूटी" आम सी बात होगी, जैसे मेरी तो फट गई। यह हमारी भाषा तो नहीं, ये तो रोड़ किनारे खड़े, टी स्टॉल पर खड़े, टपोरी लोगों की भाषा है।<br />
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मगर, हमको आज कल 'बीट पे बूटी' और 'बेबी को बेस पसंद है' ही अच्छा लगने लगा है या यो यो हनी सिंह '* में दम है तो बंद कर लो'। बड़ा अजीब लगता है, कोई कहता है कि मेरी तो फटती है, चाहे लड़का हो चाहे लड़की। जब उनसे फटती का अर्थ पूछो तो जुबां पर लगाम लग जाती है। क्या यह नहीं कह सकते ? मुझे डर लगता है। मैं डर गया। मैं डर गई। मैं घबरा गई। मेरे तो हाथों के तोते उड़ गए। तेरे तो पसीने छूट रहे हैं।<br />
<br />
बूटी का हिन्दीकरण पिछवाड़ा हालांकि उर्दूकरण थोड़ा सा सलीके वाला है, तरशीफ। इस गीत में जैकलीन फर्नांडीज ने जमकर बूटी थिरकाई है। जैकलीन फर्नांडीज श्रीलंकाई हैं। आप जैकलीन फर्नांडीज के जितने गाने देखेंगे, आपको बूटी के सिवाय शायद ही कोई अन्य मूवमेंट नजर आए।<br />
<br />
ए फलाइंग जट्ट का गाना भी शायद जैकलीन फर्नांडीज की बूटी मूवमेंट को देखकर लिखा गया है। आज कल कुछ भी लिख सकते हो, कौन मना करने वाला है। हम मॉर्डन जो हो रहे हैं, जो एतराज जताएं, वो रूढ़िवादी पुराने जमाने के समझे जाएंगे। बेबी को बेस पसंद है, अगर गीत सुनेंगे तो अच्छा लगेगा। समझदार बंदा समझ लेगा कि अनुष्का शर्मा कौन से बेस की बात कर रही है। यदि आप गीत गीत का वीडियो देखने बैठेंगे तो सलमान ख़ान का नृत्य बताएगा, बेबी को कौन सा बेस पसंद है।<br />
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हिन्दी सिनेमा हिन्दी भाषा विस्तार का एक बड़ा साधन है। मगर, इसने भाषा को इतना बिगाड़ दिया है कि कहना पड़ रहा है कि ऐसा विस्तार न हो तो अच्छा है। दरअसल, बॉलीवुड में अब बाहर के या कान्वेंट स्कूलों के पढ़े लिखे लेखक आ चुके हैं, जिनका हिन्दी ज्ञान चाय की स्टॉल से शुरू होता है। हमने गंभीर हिन्दी को लेकर हिन्दी फिल्मों में ही हास्य दृश्य रचे हैं क्योंकि लोगों को कठिन शब्दों से परहेज होता है। आम बोल चाल को अधिक पसंद करते हैं। मगर, इसका मतलब यह तो नहीं कि आप कुछ भी करें।<br />
<br />
ए फलाइंग जट्ट एकता कपूर के प्रोडक्शन की फिल्म है, जिसको कुछ भी करना बुरा नहीं लगता। इसलिए एकता कपूर जो चाहे बना सकती है चाहे वे मस्तीजादे बनाए, चाहे ग्रेट ग्रांड मस्ती बनाए और चाहे क्या सुपर कूल हैं हम बनाए। उड़ता पंजाब के जरिये वो लोगों को गंदी गालियां देना भी सिखा सकती है, पंजाबियों की तरह।<br />
<br />
ग्लोबलाइजेशन हो रहा है, तो क्यों न भाषा का विस्तार गंदी बातों से किया जाए। जब बीट पे बूटी पहली बार देखा तो लगा कि डांस और जड़ी बूटी का संगम होगा, क्योंकि टाइगर श्रॉफ जंगलनुमा जगह पर खड़े डांस कर रहे हैं।<br />
<br />
मगर, ट्विटर पर चल रहे बीट पे बूटी चैलेंज को देखा तो समझ आया कि यह बाबा रामदेव की बूटी नहीं बल्कि यह तो ब्राजीलियन या विदेशी अदाकारों वाली बूटी है, जो बीट पर आम थिरकती नजर आती है।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-13299368536256901072016-08-20T08:47:00.000+05:302016-08-20T09:09:53.662+05:30सावधान! पीवी सिंधूप्रिय पीवी सिंधु,<br />
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बधाई हो तुम्हें, शानदार प्रदर्शन और रजत हासिल करने की।<br />
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19 अगस्त 2016 की रात भारतीयों ने तुमको खूब सारी बधाईयां दी क्योंकि तुमने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से चांदी जो जीती, हालांकि, हम सोने तक नहीं पहुंच सके। कोई बात नहीं, फिर भी तुम दिल जीतने में कामयाब रही।<br />
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तुम भाग्यशाली हो कि हार के बावजूद तुम्हारे साथ भारतीय क्रिकेटरों सा व्यवहार नहीं हुआ, बल्कि तुम्हारी हार को भी सकारात्मक रूप से लिया गया। इस बात से अधिक खुश मत होना। हम भारतीय हैं, भीड़ में चलते हैं। हमसे से कुछ ऐसे भी हैं, जो खाली हाथों से तालियां जरूर बजा रहे हैं, मगर जेबें पत्थरों से भरे हुए हैं।<br />
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तुमको याद होगा, युवराज सिंह, भारतीय युवा क्रिकेटर। उसके छह छक्के आज तक लोगों के जेहन में जिन्दा हैं। रातों रात हीरो बन गया। हर कोई युवराज सिंह बनने की होड़ में दिखने लगा। अचानक जिन्दगी ने दांव पलटा।<br />
<br />
वो ही युवराज सिंह आंख की किरकिरी बन गया। खेल प्रदर्शन में चूकने लगा तो लोगों ने उसके घरों पर पत्थर बरसा दिए। ये वो ही लोग थे, जो युवराज को सर आंखों पर बिठाए हुए थे।<br />
<br />
भारतीयों का सम्मान और प्यार बड़ा अनूठा है। तुम अख़बार तो पढ़ती होगी। ख़बरें भी पढ़ी होगी कि एक लड़की को प्रेमी ने तेजाब से जला दिया, क्योंकि अब वे किसी और से शादी करने वाली थी। जब मुहब्बत करते हैं तो यार को खुदा बना देते हैं, जैसी ही टूटी तो उसको कहीं का नहीं छोड़ते। हमने तो प्यार को भी रोमांस, जिस्मानी संबंध और प्रभुत्वता तक सीमित कर दिया है।<br />
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यकीनन, बहुत सारे दर्शक तुम्हारा प्रदर्शन लंबे समय से देखते आ रहे होंगे। मगर, बहुत सारे लोगों ने इस बार पहली बार तुम को खेलते हुए देखा। जैसे कि मैंने पहले ही कहा ना, भारत में भीड़ है। सोशल मीडिया पर लहर चली तो हर कोई तेरे रंग में रंग गया। भले ही उसको बैडमिंटन की एबीसीडी न आती हो, लेकिन, तुम्हें खेलते हुए जीतते हुए देखना चाहता था।<br />
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भारत में बैडमिंटन हर घर में मिल जाएंगे। लेकिन, वो हम शौक के लिए या बच्चों के लिए लेकर आते हैं। भले ही हम टीवी पर क्रिकेट के सिवाय कोई खेल देखें या न देखें। कबड्डी का प्रचार बड़े स्तर पर हुआ तो हम प्रो-कबड्डी के हो लिए। हम पर भूत सवार होता है। फिर वो मुहब्बत का हो या नरफत का।<br />
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दरअसल, चौराहों पर, चाय की स्टॉलों पर, बातें उसकी की होती हैं, जिसकी लहर हो, और हम लहर का हिस्सा न हो तो, बात कैसे बनेगी। हमको तो पुराने जमाने का समझ लिया जाएगा, हमारे तो अहंकार को चोट पहुंच जाएगी। उदासीनता बिलकुल पसंद नहीं।<br />
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हम तो टीवी के एंकर्स को नहीं छोड़ते। हम तो बॉलीवुड के सितारों को जमीं दिखा देते हैं। हां, बस एक भीड़ सामने आकर कुछ करने का साहस करे। हम भी शामिल हो जाते हैं, क्योंकि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। मगर, हमारे सामने दुश्मन का चेहरा होता है या सम्मानित व्यक्ति का चेहरा होता है।<br />
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अपनी प्रेमिका या जीवन साथी के साथ घूमने फिरने जाने का हर दूसरा व्यक्ति पहाड़ों पर खड़ा होकर, सड़क के किनारे खड़ा होकर, शाह रुख़ ख़ान का बांहें फैलाने वाला पोज देता है। मगर, वो ही व्यक्ति शाह रुख़ ख़ान के खिलाफ भी खड़ा हो जाता है, बस थोड़ी सी भीड़ की जरूरत होती है, उसको।<br />
<br />
इसलिए कहता हूं, चमक धमक से दूर, अपने खेल पर ध्यान देना। जैसे ही तुम भारत आओगी। तुमको कपिल शर्मा के शो में प्रवेश और कुछ विज्ञापन मिलने की संभावनाएं पक्की हैं। इसलिए नहीं कि तुमने चांदी जीत ली। बल्कि इसलिए कि तुम सोशल मीडिया पर इतना घूम चुकी हो कि अब तुम एक आइकन बन गई हो। तुम वो चेहरा बन गई जो किसी भी उत्पाद के साथ जुड़ेगा तो देर सवेर उस उत्पाद की बाजार में कीमत बढ़ जाएगी।<br />
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तुम्हें लग सकता है कि ऐसा थोड़ी होता है। मेरे उत्पाद के साथ जुड़ने से कुछ नहीं हो सकता। तुम को पता होगा कि नहीं, मैं नहीं जानता। लेकिन जब आमिर ख़ान ने अपनी पत्नी का हवाला देते हुए कुछ कहा था तो उसके बाद आमिर ख़ान को कितनी कंपनियों से नाता तोड़ना पड़ा, ये तो आमिर ख़ान ही जानते हैं। यह वे ही आमिर ख़ान हैं, जिनका सत्यमेव जयते देखने के बाद लोग आमिर ख़ान के फैन हो गए थे। स्क्रीन के सामने बैठकर आमिर के आंसूओं के साथ अपने आंसू तक बहा देते थे।<br />
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भवदीय<br />
एक भारतीयKulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-76755335181314278372016-08-18T11:31:00.000+05:302016-08-18T11:34:13.485+05:30मुसीबत! फिल्मों में बढ़ता चुम्बन चलनपिछले दिनों ड्राइव इन सिनेमा में मोहनजो दरो देखने गए। शादीशुदा आदमी बहुत कम अकेले जाता है, जब भी जाता है परिवार सहित जाता है। सवाल परिवार के साथ जाने या न जाने का तो बिलकुल नहीं। सवाल है कि आप अचानक फिल्म देखते देखते असहज हो जाते हो। हालांकि, चुम्बन करना बुरा नहीं। मगर, इस तरह चुम्बन को बढ़ावा देने उचित भी नहीं, जब सिनेमा घर में परिवार सहित बच्चे भी आए हों, जिनको कुछ भी पता नहीं होता।<br />
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मेरी छह साल की बच्ची है, सिनेमा घर हो या टेलीविजन की स्क्रीन, लड़का लड़की के बीच रोमांटिक सीन उसको बिलकुल नहीं अच्छे लगते। वो अपना ध्यान इधर उधर भटकाने पर लग जाती है। उसको अन्य बच्चों की तरह डॉरेमन जैसे कार्टून देखने अच्छे लगते हैं, जो शायद एक तरह से अच्छा भी है। कार्टून चैनलों पर अभी इतना फूहड़ता नहीं आई है।<br />
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मोहनजो दरो में एक चुम्बन दृश्य है, जो काफी बेहतरीन है। मगर, आपको असहज बना देता है क्योंकि जब फिल्म पूरी तरह सामाजिक सीमाओं में बंधकर चल रही हो और अचानक यूं दृश्य आ जाए। अब इसका चलन दिन प्रति दिन बढ़ता चला जाएगा। बड़े बैनर भी अब चुम्बन बाजी पर ध्यान दे रहे हैं।<br />
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आदित्य चोपड़ा अपनी अगली फिल्म बेफिक्रे में चुंबन दृश्यों की सेल लगाने वाले हैं। अब तक फिल्म के जितने भी पोस्टर आए, जब में रणवीर सिंह और वाणी कपूर खुलकर चुंबन करते नजर आए हैं। ख़बर है कि बार बार देखो में भी चुंबन सीनों पर विशेष ध्यान दिया गया है। फिल्म के ट्रेलर में ही 5 चुंबन सीन हैं, और ट्रेलर हर कुछ मिनटों पर टेलीविजन की स्क्रीनों पर नजर आता है। म्यूजिक चैनलों घर में खुले आम देखना, मतलब समय से पहले बच्चों को अर्ध ज्ञान के साथ अंधेर गुफा में धकेलने सा है। हालांकि, चुंबन, प्यार, रोमांस मानवीय जीवन का हिस्सा हैं। इन रंगों के बिना मानवीय जीवन बेरंग, बंजर सा है।<br />
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मगर, कच्ची उम्र की नादानियां, उम्र भर का दर्द लेकर आती हैं। आज समाज का दायरा विशाल हो चुका है और आज कल बच्चे पहले से नहीं रहे। हालांकि, हर मां बाप अपने बच्चे को दुनिया से हर बच्चे से अलग मानता है और हर मां बाप सोचता है कि उनके बच्चे कभी गलती नहीं कर सकते। आज के समय में बच्चों को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है और उनकी गतीविधियों को समझने की जरूरत है।<br />
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चलते चलते। आज कल बॉलीवुड गीतों के वीडियो देखने असंभव है। एमपी 3 में बजाते रहो तो ठीक है। हमारे जमाने में तो इतनी शर्म होती थी कि ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के आगे भी शटर होता है, जैसे महिलाओं के चेहरों पर घुंघट।<br />
<br />Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-55730961452022294922016-08-16T18:45:00.001+05:302016-08-16T19:14:34.043+05:30अगर नहीं देखी तो 'बोल' देखिएकुछ दिन पहले पाकिस्तानी फिल्म बोल देखने को मिली, जो वर्ष 2011 में रिलीज हूई थी, जिसका निर्देशन शोएब मंसूर ने किया था। एक शानदार फिल्म, जो कई विषयों को एक साथ उजागर करती है, और हर कड़ी एक दूसरे से बेहतरीन तरीके से जोड़ी है।<br />
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कहानी एक लड़की की है, जो अपने पिता के कत्ल केस में फांसी के तख्ते पर लटकने वाली है। एक लड़के के कहने पर लड़की फांसी का फंदा चूमने से पहले अपनी कहानी कहने के लिए राष्ट्रपति से निवेदन करती है। राष्ट्रपति उस लड़की के निवेदन को स्वीकार करते हैं और वे लड़की अपनी मीडिया से कहानी कहती है।<br />
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लड़की के पिता हकीम हैं, जिनका धंधा दिन प्रति दिन डूब रहा है, और हकीम साहेब बेटे की चाह में बेटियां ही बेटियां पैदा किए जा रहे हैं। अंत उनके घर एक बच्चे का जन्म होता है, जो लड़की है न लड़का। किन्नर संतान से हकीम नफरत करने लगते हैं।<br />
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लेकिन परिवार के अन्य सदस्य किन्नर को आम बच्चों की तरह पालने कोशिश में लग जाते हैं। सालों से घर की चारदीवारी में बंद किन्नर बाहरी दुनिया से अवगत हो, खुशी से जीवन जीए, यह सोचकर उसको बाहर भेजा जाता है, मगर, कुछ हवस के भूखे लोगों की निगाह में आ जाता है। एक रात हकीम अपनी ही किन्नर संतान को मार देते हैं।<br />
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मुसीबत कम होने की जगह बढ़ जाती है। पुलिस वाले हकीम को ब्लैकमेल कर उससे मोटी रकम उतरवा लेते हैं, जो मस्जिद के चंदे के लिए हकीम के पास आई हुई थी। अब दूसरी तरफ मस्जिद प्रबंधन हकीम से धन वापस चाहता है तो ऐसे में हकीम एक पुराने ग्राहक के यहां मदद के लिए जाते हैं, जो कोठा चलाता है।<br />
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कोठा चलाने वाला चौधरी हकीम को मदद देने के लिए राजी होता है। मगर, शर्त रखता है कि हकीम चौधरी की पत्नी मीना से संबंध बनाए और बेटी जने। अंत मजबूरी में हकीम करने को राजी हो जाते हैं। कुछ महीने बाद चौधरी के घर में लड़की की किलकारी सुनाई देती है।<br />
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कहानी के अंत से पहले हकीम के गुप्त विवाह का राज खुल जाता है, जब हकीम अपनी नई जन्मीं बच्ची को मारने का प्रयास करने लगता है तो उसकी बड़ी बेटी जैनब अपने पिता की ही हत्या कर देती है और खुद का गुनाह कबूल कर जेल चली जाती है।<br />
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कहानी दिखाती है कि एक समाज है जहां लड़कियां चाहिए, और दूसरा समाज जहां लड़कियां बोझ हैं। एक किन्नर को समाज किस तरह देखता है, और मानव मानव के साथ भी नीचता करने से नहीं टलता है। मजबूरी से बड़ा कभी आपका धर्म नहीं हो सकता। सबसे बड़ी बात तो लड़की अंत में कहती है कि अगर मारना अपराध है तो बच्चे पैदा करना भी गुनाह होना चाहिए, यदि आप खिलाने की क्षमता न हो।<br />
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बोल जैसी फिल्मों को बड़े स्तर पर रिलीज करना चाहिए। ऐसी फिल्मों का प्रचार प्रसार हद से ज्यादा करना चाहिए, शायद ऐसी फिल्मों के कारण फिल्म की शुरूआत में कहा जाने वाला संवाद सच साबित हो जाए, और आपके कारण किसी की जिन्दगी संवर जाए।<br />
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Cast<br />
Manzar Sehbai as Hakim Sahib (Father)<br />
Shafqat Cheema as Ishaq "Saqa" Kanjar (Panderer)<br />
Iman Ali as Sabina (Meena)<br />
Mahira Khan as Ayesha (Second sister)<br />
Humaima Malik as Zainub (eldest sister)<br />
Atif Aslam as Mustafa<br />
Zaib Rehman as Suraiya (Mother)<br />
Amr Kashmiri as Saifi (Brother/hijra)<br />
Irfan Khoosat as Mustafa's father<br />
Rashid Khawaja as the President of Pakistan<br />
Meher Sagar as Young Saifi<br />
Mahnoor Khan as Mahnoor (Third sister)<br />
Gulfam Ramay as GuL G (Ayesha's friend)Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-26161891409084295922016-08-13T12:17:00.003+05:302016-08-16T18:55:47.170+05:30मोहनजो दरो से मेलूहा वाया बाहुबलीमोहनजो दरो अमरी गांव के एक युवक और मगरमच्छ के बीच होने से टकराव से शुरू होती है। अमरी का युवा श्रमन गांव वालों के लिए नायक है, जैसे बाहुबली का शिवा, मुट्ठी भर लोगों के लिए। एक सपना श्रमन को एक अनजान शहर की तरफ खींचता है, जैसे पर्वत की ऊंचाई शिवा को।<br />
<br />
श्रमन का पालन पोषण श्रमन के चाचा चाची करते हैं, तो शिवा का पालन पोषण भी उनके माता पिता द्वारा नहीं होता। दोनों अभिभावकों की जिद्द के विपरीत अपने सपनों के शहर जाने के लिए उत्सुक होते हैं। दोनों का युद्ध एक करूर राजा या प्रधान से होता है।<br />
<a name='more'></a><br />
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एक के सामने मोहनजो दरो तो दूसरे के सामने महिषमति है। एक को वहां के लोग मिलती शकल सूरत से पहचानते हैं तो एक को उसके बताए हुए चिन्हों से। एक मोहनजो दरो का उत्तराधिकारी है तो एक महिषमति का उत्तराधिकारी।<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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श्रमन की मां जिन्दा नहीं है जबकि शिवा की मां बेटे का राह देख रही है। मोहनजो दरो में प्रधान और उसका बेटा है तो महिषमति में भल्लाला और उसका बेटा है। श्रमन के पास सेना वेना कुछ नहीं है, जैसे कि शिवा के पास सेना वेना कुछ नहीं था।<br />
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जब बाहुबली देख रहा था तो सोच रहा था कि प्रभास की जगह इस फिल्म में ऋतिक रोशन फिट बैठता है। मगर, मुझे नहीं पता था कि आशुतोष गोवरिकर उसी किरदार को किसी नई कहानी के साथ उतारेंगे।<br />
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मोहनजो दरो को आशुतोष गोवरिकर ने साधारण तरीके से रखा है। पंडित स्वीकार लेता है कि किस तरह श्रमन की पिता की मौत में उसका हाथ है, जो मोहनजो दरो में उतना ही ईमानदार है जितना कि महिषमति में कट्टपा। हालांकि, कट्टपा ने बाहुबली को क्यों मारा सवाल आज भी बरकरार है।<br />
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महिषमति का दीवाना भी एक लड़की को दिल दे बैठता है और मोहनजो दरो जाने का चाहक श्रमन भी। दोनों ही किरदार मेलूहा के मृत्युंजय के नायक शिव से प्रेरित हैं। हालांकि, दोनों के साथ तोड़ मरोड़ की गई है।<br />
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बाहुबलि में शिवा के साथ नंदी नहीं था जबकि मोहनजो दरो में नंदी के रूप में एक लड़के का किरदार रचा गया है, जो श्रमन के साथ इस तरह रहता है, जैसे मेलूहा पहुंचने पर शिव के साथ नंदी।<br />
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हालांकि, ऋतिक रोशन अपने किरदार में गजब के लगते हैं। ऋतिक रोशन के आगे प्रभास का अभिनय बहुत कमतर है। पूजा हेगड़े की जबरदस्त बॉलीवुड एंट्री है। विलेन के रूप में कबीर बेदी और अरुणोदय सिंह मन जीत लेते हैं। फिल्म के अन्य कलाकार भी बेहतरीन उम्दा अभिनय करने में सफल होते हैं।<br />
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मेरे हिसाब से आशुतोष गोवरिकर एक साल लेट हो गए, यदि यह फिल्म बाहुबलि से पहले आई होती तो रिकॉर्ड तोड़ बिजनेस करती। अब मोहनजो दरो देखते हुए सिर्फ ऐसा महसूस होता है कि केवल किरदार और चेहरे बदले हैं, बाकी तो वैसी ही है, जैसी बाहुबली और बस थोड़ा सा कहानी में फेरबदल है।<br />
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हालांकि, फिल्म के अंत में एक फकीर मिजाज के जखीरा का मरना और दूसरी तरफ एक लालची करूर महिम का मरना जीवन की वास्तविकता को प्रकट करते हैं।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-19754174417204221332016-05-26T23:34:00.001+05:302016-05-26T23:34:43.342+05:30सेंसर बोर्ड की गरिमा का ख्याल तो करें निर्देशक अभिषेक चौबे निर्देशित फिल्म 'उड़ता पंजाब' को सेंसर बोर्ड ने हरी झंडी दिखाने से मना कर दिया क्योंकि फिल्म में गाली गालौज बहुत था। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने इस फिल्म को हरी झंडी देना बेहतर नहीं समझा। भारतीय सेंसर बोर्ड पिछले कुछ महीनों से चर्चा का केंद्र बना हुआ।<br />
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कभी सेंसर बोर्ड में पदाधिकारियों की अदला बदली को लेकर तो कभी सेंसर बोर्ड की गैर एतराजजनक आपत्तियों के कारण। ऐसा नहीं कि सेंसर बोर्ड ने उड़ता पंजाब को बैन कर पहली बार दोहरे मापदंड अपनाने की बात जग जाहिर की। सेंसर बोर्ड इससे पहले भी ऐसा कर चुका है।<br />
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जाने माने फिल्मकार राजकुमार हिरानी की फिल्म 'साला खाडूस' को बिना एतराज के पास कर दिया गया जबकि विकास राव द्वारा निर्मित फिल्म ‘बेचारे बीवी के मारे’ से साला शब्द हटाने का आदेश दिया गया। इस फिल्म के निर्माता विकास राव ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड पर भेदभाव भरा सलूक करने का आरोप तक लगाया था।<br />
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एक तरफ 'ग्रांड मस्ती' और 'मस्तीजादे' जैसी फिल्मों को रिलीज करने की अनुमति है और वहीं दूसरी तरफ 'उड़ता पंजाब' को इसलिए रोक लिया जाता है कि फिल्म में गाली गालौच है। दिलचस्प बात तो यह है कि बुद्धा इन ए जाम को इस सेंसर बोर्ड ने पास किया है, जिसमें भी गाली गालौज की कोई कमी नहीं है। मगर, इस फिल्म के अभिनेताओं में अनुपम खेर का नाम शामिल था, जो बीजेपी सरकार के सबसे करीब हैं।<br />
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इतना ही नहीं, सेंसर बोर्ड ने हाल में मुजफ्फरनगर के दंगों की सच्चाई को कथित तौर पर बयान करती फिल्म शोरगुल को यू/ए प्रमाण पत्र दिया, जबकि हिंसाग्रस्त फिल्मों के लिए ए प्रमाण पत्र दिया जाता है, या उनको काफी हद तक साधारण बनाने के आदेश दिए जाते हैं। मगर, इस फिल्म के साथ ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि इस फिल्म में यूपी सरकार का चेहरा नंगा किया जाएगा। जैसे उड़ता पंजाब से पंजाब सरकार की खटिया खड़ी होने की संभावना है। पंजाब की मौजूदा सरकार में भाजपा की हिस्सेदारी है। दोनों संघी साथी हैं।<br />
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इतना ही नहीं, पंजाब में जल्द चुनाव होने वाले हैं। यदि उड़ता पंजाब बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई तो बीजेपी और शिअद को लेने के देने पड़ सकते हैं क्योंकि पंजाब मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों पर नशा तस्करी में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं।<br />
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पिछले कुछ सालों में पंजाब ने जो नशे का कहर झेला है, उसको नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। यह तो एक फिल्म है, मगर, पंजाब के लोगों ने तो युवा संतानों की अर्थियों को कंधे दिए हैं। सेंसर बोर्ड का कथित राजनीति से लबरेज एकपक्षीय नजरिया सेंसर बोर्ड की गरिमा को गिराएगा।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-27126213521702551562016-04-02T08:09:00.002+05:302016-04-02T08:09:58.461+05:30सैफ से शादी, अर्जुन से हनीमून ! कल रात आर.बाल्की निर्देशित फिल्म 'की एंड का' देखने के बाद पहला वन लाइन यह ही नहीं निकला। इसमें कोई दो राय नहीं है कि निर्देशक आर.बाल्की ने एक बेहतरीन विषय को नए तरीके से पेश किया। मगर, फिल्म का एक बड़ा हिस्सा करीना कपूर के हनीमून सा लगा।<br /><br />बात बात पर चूम्मा चाटी। अंतरंग सीन । ऐसा लग रहा था कि करीना कपूर ने आर.बाल्की की फिल्म को इस शर्त पर साइन किया होगा कि उनका हनीमून समय चल रहा है, इस बात का उनको ख्याल रखना होगा।<br /><br />फिल्म की शुरूआत एक शादी समारोह से होती है। इस शादी में करीना कपूर अकेली अकेली खड़ी होती है तो हर कोई उसको नाचने के लिए बुलाता है। पहली हंसी दर्शकों को तब आती है, जब वे अपने पीरियड में होने की बात चीख कर कहती है। दूसरी बार जब वो शादी के प्रति अपनी राय प्रकट करती है।<br /><br />शादी में सरदार जी करीना को शराब ऑफर करते हैं, जो शायद पंजाब का वास्तविक कल्चर नहीं लेकिन बॉलीवुड का कल्पित कल्चर। शादी में बड़बोली करीना शादी के प्रति अपनी राय प्रकट कर निकलती है तो उसकी मुलाकात होती है अर्जुन कपूर से।<br /><br />बस, यहां से शुरू हो जाती है दोनों की लव स्टोरी। अर्जुन कपूर (कबीर) अमीर बाप का बेटा और करीना कपूर (कीया) एक महत्वाकांशी कामकाजी महिला। जैसे कि अर्जुन कपूर पहले ही कहे चुके हैं कि फिल्म संदेश देने के लिए नहीं बनाई, बल्कि मनोरंजन के लिए बनाई है। अर्जुन कपूर सही कह रहे हैं।<br /><br />अर्जुन करीना कपूर की शादी के दौरान आपको चुटीले संवाद सुनने को मिलेंगे। सिने प्रेमी इस पर गुदगुदाते हुए नजर आएंगे। एक मां का अपनी बेटी से पूछना बेटी सेक्स तो कर लिया ना। एक पिता का अपने बेटे से कहना, अगर मर्द होने पर शक हो तो अपनी चड्ढी खोलकर देख ले।<br /><br />इंटरवल तक तो जीवन में मस्त चलता है। इंटरवल के बाद हाउस हस्बैंड और काममकाजी पत्नी के बीच संबंध वैसे ही हो जाते हैं, जैसे आम विवाहों में। अब शुरू होता है। आर. बाल्की का संदेश। दरअसल, आर. बाल्की कहना चाहते हैं कि वैवाहिक जीवन में उतार चढ़ाव केवल व्यक्ति की व्यक्तिगत सपनों, अहं और जीवन की भाग दौड़ के कारण आते हैं। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि घर को कौन चला रहा है, महिला या पुरुष।<br /><br />व्यावसायिक दृष्टि से तैयार फिल्मों को पूरी तरह संदेशवाहक बनाना मुश्किल होता है। इन फिल्मों में आटे में नमक सा संदेश और बाकी सारा लटरम पटरम होता है। फिल्म को देखते हुए दिमाग में ख्याल दौड़ रहे थे कि इस फिल्म को देखने के लिए बच्चे भी आए हैं, जो छह से दस के हैं, उनके दिमाग में संदेश कम, करीना कपूर और अर्जुन कपूर के रोमांस भरपूर सीन ज्यादा उतरेंगे।<br /><br />सिनेमा सी तेजी से बोल्ड सीनों और दोअर्थी संवादों के सहारे आगे बढ़ रहा है। उसको देखकर भारतीय सिनेमा में पॉर्न स्टारों का कैरियर बनने की संभावनाएं अधिक होती जा रही हैं।<br /><br />'की एंड का' एक मनोरंजक रोमांस भरपूर फिल्म है। अगर, यह निकाल दिया जाएं तो फिल्म दस बीस मिनट की भी नहीं बचेगी। अगर, उपरोक्त बातों के लिए आप तैयार हैं तो फिल्म देखने के लिए जाना चाहिए। मगर, फिल्म संदेशवाहक है, तो बिल्कुल नहीं सोचें।<br /><br />अर्जुन कपूर करीना कपूर का अभिनय शानदार है। अन्य कलाकारों ने भी अपने किरदार बेहतरीन तरीके से निभाएं हैं। अमिताभ बच्चन और जय बच्चन की आपसी नोंक झोंक मजेदार है।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-56845534936037018002016-03-19T15:32:00.000+05:302016-03-19T15:32:15.720+05:30'भारत मां की जय' पर बहस बवाल क्यों ?'भारत मां की जय' बोलने और न बोलने को लेकर बड़ा युद्ध छिड़ चुका है। हालांकि, इस तरह के मामले व्यक्तिगत सोच पर छोड़ने चाहिए। किसको क्या बोलना चाहिए या नहीं, यह व्यक्तिगत मामला होना चाहिए। मगर, भारत में हर चीज को व्यक्तिगत स्वार्थों से जोड़कर बड़ा मामला बना दिया जाता है।<br />
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एक तरफ शिवसेना ओवैसी के बयान पर गंभीरता दिखाते हुए भारत मां की जय नहीं बोलने वालों की सदस्यता रद्द करने का आह्वान कर रही है। वहीं, दूसरी तरफ हैदराबाद में इस्लामिक संगठन जामिया निजामिया ने भारत माता की जय बोलने के खिलाफ फतवा जारी किया है। हैदराबाद के इस संगठन के मुताबिक, इस्लाम मुस्लिमों को इस नारे की इजाजत नहीं देता।<br />
<br />
यदि एक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अपने देश की जय बुलाने में किसी तरह की शर्म नहीं आनी चाहिए। यदि आप अपने देश को सम्मान नहीं दे सकते, तो दूसरे देश को कभी भी सम्मान नहीं दे पाएंगे। दूसरा दृष्टिकोण यह कहता है कि किसी भी व्यक्तिगत पर विचारों को थोपा नहीं जाना चाहिए।<br />
<br />
ओवैसी ने पिछले दिनों संसद में अपना भाषण जय हिन्द के साथ खत्म किया। मगर, भारत मां की जय बोलने में एतराज जता दिया। बात समझ से परे है कि जय हिन्द क्या है ? और भारत मां की जय क्या है ? दोनों शब्द देश के सम्मान को ऊंचा उठाते हैं। बस शब्दों का फेरबदल है।<br />
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कुछ दिनों पहले दिल्ली में एक विशाल धार्मिक समारोह हुआ। इस समारोह में पाकिस्तान से भी धार्मिक नेता आए हुए थे। पाकिस्तानी धर्मगुरू ने अपना भाषण खत्म करते हुए श्रीश्री रविशंकर के पास जाकर घुसर फुसर करते हुए कुछ कहा, जो 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' था।<br />
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बड़ी अजीब बात है, विश्व को एक करने की सोच लेकर चलने वाले धर्म गुरू भी इस तरह की तुच्छ बातों से चूकते नहीं बड़ी हैरानीजनक बात है। वहीं, श्री श्री रविशंकर ने भी बात को संभालते हुए जय हिंद कहा। उनसे भी पाकिस्तान जिन्दाबाद नहीं कहा गया।<br />
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सवाल तो यह है कि सिर्फ शब्दों से देश प्रेम पनपना चाहिए। दिल से नहीं। केवल शब्दों से हम दुनिया जीत लेंगे। कदापि भी नहीं। जब तक मन छोटे हैं, तब तक एकता का नारा मारा या थोपना बेईमानी होगी। स्वयं को धोखा देना होगा। इसके लिए तो विराट हृदय की जरूरत होगी।<br />
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कुछ युवक खड़े होकर भारत को गालियां देने लगते हैं। भारत को बुरा भला कहने लगते हैं। हम तिलमिला उठते हैं। मगर, क्यों ? क्या उनकी आवाज हमारे हृदय में छुपे देश प्रेम से ज्यादा ताकतवर है ? नहीं, बिलकुल भी नहीं, बस सबको बेकार के मुद्दे चाहिए, ताकि देश प्रगति से जुड़े मुद्दों पर चर्चा ना कर सके।<br />
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ये मस्त हाथी की चाल वाले विकासशील देश की स्थिति तो नहीं है। हम तो हाथी से भी गए गुजरे हो चलें हैं, जो एक व्यक्ति के भौंकने पर पत्थर उठाकर खड़े हो जाते हैं। भारत अपनी गति से आगे बढ़ेगा। और हर भारतीय गर्व से कहेगा, मैं भारतीय हूं।<br />
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थोपने की जरूरत नहीं। बस, कुछ बेहतर करते हुए चलो।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-136558085647337345.post-24433250000248128532016-03-08T09:20:00.000+05:302016-03-08T09:20:23.088+05:30महिला दिवस - बराबरी की दौड़ में दोहरापन क्यों ?अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पहले तो देश विदेश की हर महिला को बधाई हो। और उनको भी जो महिला हितैषी का मॉस्क लगाकर व्यावसायिक लाभ ले रहे हैं। <br /><br />भारत में महिलाओं के हकों के लिए लड़ने वाले हमेशा चीख चीख कहते हैं, महिलाओं को बराबरी के अधिकार नहीं हैं। उनको बराबरी के अधिकार मिलने चाहिए। मैं ही नहीं, देश के बहुत सारे युवा सोचते होंगे, महिलाओं को ही नहीं, बल्कि देश के हर नागरिक को बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। <br /><br />मगर, सवाल तो यह है कि क्या दोहरी सोच समाज में इस तरह का हो पाना संभव है। वीआईपी संस्कृति से लेकर महिलाओं को विशेष अधिकार देने तक की प्रथा ही बराबरी के राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। पिछले दिनों मुझे किसी काम से इंदौर जाना था। मैंने अहमदबाद के बस स्टैंड तक जाने के लिए बीआरटीएस को चुना। बीआरटीएस के स्टैंड पर मैं बस का इंतजार कर रहा था। मेरी मंजिल तक जाने वाली बस आई, जो खाली थी, मगर जैसे ही उसके भीतर बैठने के लिए कदम आगे बढ़ाए तो अंदर से महिला चीखी, ये महिला बस है। ऐसा एक नहीं तीन बार हुआ, थोड़े थोड़े अंतराल पर।<br /><br />इतना ही नहीं, एक लड़की अपने पुरुष दोस्त के साथ खड़ी थी। जब वे भी बस में चढ़ने लगी तो उसको भी चढ़ने को नहीं मिला, क्योंकि उसका साथी पुरुष था। मैंने पुरुष विशेष बस नहीं देखी। महिला विशेष बस देखी। उन 20 मिनटों के दौरान 4 महिला बसें देखी, जो भीतर से खाली थी। इतना ही नहीं, सामान्य बस में भी महिलाओं के लिए कुछ सीटें रिजर्व कर दी जाती हैं। उन सीटों पर पुरुष जाकर बैठ जाए तो महिलाएं ऐसे देखती हैं, जैसे पुरुष ने कोई गुनाह कर दिया। जबकि बस की महिला अरक्षित सीटें भरी हों, वे ही महिलाएं पुरुषों की सीटों पर कब्जा जमाकर बैठ जाती हैं।<br /><br />रेलवे में भी महिलाओं के लिए विशेष कोटा। कहीं किसी कतार में लगें तो भी महिलाओं के लिए विशेष कोटा। बराबरी का रोना तो झूठा है, सच तो यह है कि हर कोई यहां अधिक की उम्मीद लिए घूमता है। हर कोई अपने लिए विशेष सुविधाएं चाहता है।<br /><br />दिल्ली सरकार सम विषम ट्रैफिक नियम लागू करती है तो महिलाओं को विशेष छूट दे दी जाती है। ट्रैफिक नियमों में भी महिलाओं को पुरुषों से अधिक छूट मिल जाती है, भावनात्मक रूप से या कानूनी रूप से। देश की अदालतों में करोड़ों ऐसे केस हैं, जहां केवल महिला होना फायदेमंद हुआ।<br /><br />बराबरी का अधिकार कानूनों से नहीं, बल्कि सोच में बड़े बदलाव से आएगा। जब तक सोच में बदलाव नहीं आएंगे, तब तक बराबरी का ख्वाब बेईमानी है। सोच में बदलाव केवल महिलाएं करें ऐसा नहीं पुरुषों को भी करना होगा।<br /><br />मुझे याद है कि एक दिन इसी तरह के मामले पर एक परिचित महिला से संवाद हो रहा था। उसने बोला, मैं बस सफर में खड़ी रहती हूं, महिला हुई तो क्या ? मैं नहीं चाहती कोई जगह ये सोच कर दे कि मैं महिला हूं ? मैं जानती हूं कि महिलाएं पुरुषों से अधिक मजबूत होती हैं, विशेषकर सहनशीलता के मामले में।<br /><br />मगर, वहां एक दूसरी दिक्कत खड़ी हुई, वे सोच की। यदि महिला पुरुषों की भीड़ में अकेली खड़ी हो जाए तो पुरुषों के दिमाग में पहले विचार चलने लगते हैं कि इसको पुरुषों में रहकर अधिक मजा आता है। इस तरह के ख्याली पुलाव बनाने वाले पुरुष महिलाओं को विशेष अधिकार की तरफ दौड़ा देते हैं।<br /><br />इसलिए यदि बराबरी के अधिकार लागू करने हैं तो सोच में परिवर्तन भी जरूरी होगा। महिलाएं भी विशेषाधिकारों को छोड़कर सही तरीके से बराबरी का मार्ग चुनें। यकीनन मुश्किल है क्योंकि महिलाओं और पुरुषों की लाइन एक हो जाएगी। महिला के लिए स्पेशल बस, स्पेशल लाइन, स्पेशल रूल नहीं होंगे।Kulwant Happyhttp://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.com0