'भारत मां की जय' पर बहस बवाल क्यों ?
'भारत मां की जय' बोलने और न बोलने को लेकर बड़ा युद्ध छिड़ चुका है। हालांकि, इस तरह के मामले व्यक्तिगत सोच पर छोड़ने चाहिए। किसको क्या बोलना चाहिए या नहीं, यह व्यक्तिगत मामला होना चाहिए। मगर, भारत में हर चीज को व्यक्तिगत स्वार्थों से जोड़कर बड़ा मामला बना दिया जाता है।
एक तरफ शिवसेना ओवैसी के बयान पर गंभीरता दिखाते हुए भारत मां की जय नहीं बोलने वालों की सदस्यता रद्द करने का आह्वान कर रही है। वहीं, दूसरी तरफ हैदराबाद में इस्लामिक संगठन जामिया निजामिया ने भारत माता की जय बोलने के खिलाफ फतवा जारी किया है। हैदराबाद के इस संगठन के मुताबिक, इस्लाम मुस्लिमों को इस नारे की इजाजत नहीं देता।
यदि एक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अपने देश की जय बुलाने में किसी तरह की शर्म नहीं आनी चाहिए। यदि आप अपने देश को सम्मान नहीं दे सकते, तो दूसरे देश को कभी भी सम्मान नहीं दे पाएंगे। दूसरा दृष्टिकोण यह कहता है कि किसी भी व्यक्तिगत पर विचारों को थोपा नहीं जाना चाहिए।
ओवैसी ने पिछले दिनों संसद में अपना भाषण जय हिन्द के साथ खत्म किया। मगर, भारत मां की जय बोलने में एतराज जता दिया। बात समझ से परे है कि जय हिन्द क्या है ? और भारत मां की जय क्या है ? दोनों शब्द देश के सम्मान को ऊंचा उठाते हैं। बस शब्दों का फेरबदल है।
कुछ दिनों पहले दिल्ली में एक विशाल धार्मिक समारोह हुआ। इस समारोह में पाकिस्तान से भी धार्मिक नेता आए हुए थे। पाकिस्तानी धर्मगुरू ने अपना भाषण खत्म करते हुए श्रीश्री रविशंकर के पास जाकर घुसर फुसर करते हुए कुछ कहा, जो 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' था।
बड़ी अजीब बात है, विश्व को एक करने की सोच लेकर चलने वाले धर्म गुरू भी इस तरह की तुच्छ बातों से चूकते नहीं बड़ी हैरानीजनक बात है। वहीं, श्री श्री रविशंकर ने भी बात को संभालते हुए जय हिंद कहा। उनसे भी पाकिस्तान जिन्दाबाद नहीं कहा गया।
सवाल तो यह है कि सिर्फ शब्दों से देश प्रेम पनपना चाहिए। दिल से नहीं। केवल शब्दों से हम दुनिया जीत लेंगे। कदापि भी नहीं। जब तक मन छोटे हैं, तब तक एकता का नारा मारा या थोपना बेईमानी होगी। स्वयं को धोखा देना होगा। इसके लिए तो विराट हृदय की जरूरत होगी।
कुछ युवक खड़े होकर भारत को गालियां देने लगते हैं। भारत को बुरा भला कहने लगते हैं। हम तिलमिला उठते हैं। मगर, क्यों ? क्या उनकी आवाज हमारे हृदय में छुपे देश प्रेम से ज्यादा ताकतवर है ? नहीं, बिलकुल भी नहीं, बस सबको बेकार के मुद्दे चाहिए, ताकि देश प्रगति से जुड़े मुद्दों पर चर्चा ना कर सके।
ये मस्त हाथी की चाल वाले विकासशील देश की स्थिति तो नहीं है। हम तो हाथी से भी गए गुजरे हो चलें हैं, जो एक व्यक्ति के भौंकने पर पत्थर उठाकर खड़े हो जाते हैं। भारत अपनी गति से आगे बढ़ेगा। और हर भारतीय गर्व से कहेगा, मैं भारतीय हूं।
थोपने की जरूरत नहीं। बस, कुछ बेहतर करते हुए चलो।
एक तरफ शिवसेना ओवैसी के बयान पर गंभीरता दिखाते हुए भारत मां की जय नहीं बोलने वालों की सदस्यता रद्द करने का आह्वान कर रही है। वहीं, दूसरी तरफ हैदराबाद में इस्लामिक संगठन जामिया निजामिया ने भारत माता की जय बोलने के खिलाफ फतवा जारी किया है। हैदराबाद के इस संगठन के मुताबिक, इस्लाम मुस्लिमों को इस नारे की इजाजत नहीं देता।
यदि एक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अपने देश की जय बुलाने में किसी तरह की शर्म नहीं आनी चाहिए। यदि आप अपने देश को सम्मान नहीं दे सकते, तो दूसरे देश को कभी भी सम्मान नहीं दे पाएंगे। दूसरा दृष्टिकोण यह कहता है कि किसी भी व्यक्तिगत पर विचारों को थोपा नहीं जाना चाहिए।
ओवैसी ने पिछले दिनों संसद में अपना भाषण जय हिन्द के साथ खत्म किया। मगर, भारत मां की जय बोलने में एतराज जता दिया। बात समझ से परे है कि जय हिन्द क्या है ? और भारत मां की जय क्या है ? दोनों शब्द देश के सम्मान को ऊंचा उठाते हैं। बस शब्दों का फेरबदल है।
कुछ दिनों पहले दिल्ली में एक विशाल धार्मिक समारोह हुआ। इस समारोह में पाकिस्तान से भी धार्मिक नेता आए हुए थे। पाकिस्तानी धर्मगुरू ने अपना भाषण खत्म करते हुए श्रीश्री रविशंकर के पास जाकर घुसर फुसर करते हुए कुछ कहा, जो 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' था।
बड़ी अजीब बात है, विश्व को एक करने की सोच लेकर चलने वाले धर्म गुरू भी इस तरह की तुच्छ बातों से चूकते नहीं बड़ी हैरानीजनक बात है। वहीं, श्री श्री रविशंकर ने भी बात को संभालते हुए जय हिंद कहा। उनसे भी पाकिस्तान जिन्दाबाद नहीं कहा गया।
सवाल तो यह है कि सिर्फ शब्दों से देश प्रेम पनपना चाहिए। दिल से नहीं। केवल शब्दों से हम दुनिया जीत लेंगे। कदापि भी नहीं। जब तक मन छोटे हैं, तब तक एकता का नारा मारा या थोपना बेईमानी होगी। स्वयं को धोखा देना होगा। इसके लिए तो विराट हृदय की जरूरत होगी।
कुछ युवक खड़े होकर भारत को गालियां देने लगते हैं। भारत को बुरा भला कहने लगते हैं। हम तिलमिला उठते हैं। मगर, क्यों ? क्या उनकी आवाज हमारे हृदय में छुपे देश प्रेम से ज्यादा ताकतवर है ? नहीं, बिलकुल भी नहीं, बस सबको बेकार के मुद्दे चाहिए, ताकि देश प्रगति से जुड़े मुद्दों पर चर्चा ना कर सके।
ये मस्त हाथी की चाल वाले विकासशील देश की स्थिति तो नहीं है। हम तो हाथी से भी गए गुजरे हो चलें हैं, जो एक व्यक्ति के भौंकने पर पत्थर उठाकर खड़े हो जाते हैं। भारत अपनी गति से आगे बढ़ेगा। और हर भारतीय गर्व से कहेगा, मैं भारतीय हूं।
थोपने की जरूरत नहीं। बस, कुछ बेहतर करते हुए चलो।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " एक 'डरावनी' कहानी - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएं"कुछ बेहतर करते हुए चलो"
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