जाति आधारित सुविधाएं बंद होनी चाहिए
अगर आने वाले समय में भारत को एक महान शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं। अगर चाहते हैं कि देश एक डोर में पिरोया जा सके तो आपको सालों से चली आ रही कुछ चीजों में बदलाव करने होंगे। हम हर स्तर पर बांटे हुए हैं। जब मैं एक राज्य से दूसरे राज्य में जाता हूं तो मेरी बोली से लोग कहते हैं, तू पंजाबी है, तू मराठी है या गुजराती है। मगर जब कोई व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पहुंचता है तो कोई पूछता है तो आप अचानक कहते हैं इंडियन। जगह बदलने से आपका अस्तित्व बदल गया।
राज्य स्तरीय सोच को छोड़ो। आगे बढ़ो। धर्म व जाति की राजनीति से उपर आओ। स्वयं आवाज उठाओ। मेरे माता पिता ने शिक्षक की फीस रियायत देने वाली पेशकश को ठुकरा दिया था, यह कहते हुए कि इसकी जगह किसी दूसरे बच्चे की कर दो। हम अपने बच्चों को पढ़ा सकते हैं। उन दिनों सरकारी स्कूलों की फीस कुछ नहीं हुआ करती थी, लेकिन रियायत लेना मेरे पिता को पसंद न था। गांव में पीले कार्ड बनते थे। हमारे पास भी मौका था बनवाने का। पिता ने इंकार कर दिया। वो अनपढ़ थे, लेकिन समझदार थे।
रियायत केवल उनको दी जाएं, तो सच में उनके हकदार हैं, न केवल जान पहचाने वालों, सिफारिश वालों को। धर्म के नाम पर तो बिल्कुल नहीं। न अल्पसंख्यक के नाम पर न बहु संख्यक के नाम पर। असली पैमानों पर आदमी को रियायत दी जाए, जब उनका स्तर सुधरे, तो उनको आउट किया जाए, दूसरों को चुना जाए, जो इनके पहले वाले स्तर पर हैं। जब आप धर्म, जाति के नाम पर खैरात बंटती है तो बुरे प्रभाव पड़ते हैं, जनरल सोचता है आने वाले समय में निम्न वर्ग हावी हो जाएगा, दोनों में तकरार चलती है, घृणा की दृष्टि से देखता है, अच्छे नंबर लेकर आने वाले को भी, कुछ को तो अपनी जात छुपानी पड़ती है, कहीं उसकी काबलयित पर शक न कर लिया जाए।
यह कार्य राजनीतिक पार्टियां तब तक नहीं करेंगी, जब तक आम लहर नहीं बहेगी, क्यूंकि राजनीतिक पार्टियां हवा या लहर के गधे पर सवार होती हैं, क्यूंकि उनको कुर्सी चाहिए।
राज्य स्तरीय सोच को छोड़ो। आगे बढ़ो। धर्म व जाति की राजनीति से उपर आओ। स्वयं आवाज उठाओ। मेरे माता पिता ने शिक्षक की फीस रियायत देने वाली पेशकश को ठुकरा दिया था, यह कहते हुए कि इसकी जगह किसी दूसरे बच्चे की कर दो। हम अपने बच्चों को पढ़ा सकते हैं। उन दिनों सरकारी स्कूलों की फीस कुछ नहीं हुआ करती थी, लेकिन रियायत लेना मेरे पिता को पसंद न था। गांव में पीले कार्ड बनते थे। हमारे पास भी मौका था बनवाने का। पिता ने इंकार कर दिया। वो अनपढ़ थे, लेकिन समझदार थे।
रियायत केवल उनको दी जाएं, तो सच में उनके हकदार हैं, न केवल जान पहचाने वालों, सिफारिश वालों को। धर्म के नाम पर तो बिल्कुल नहीं। न अल्पसंख्यक के नाम पर न बहु संख्यक के नाम पर। असली पैमानों पर आदमी को रियायत दी जाए, जब उनका स्तर सुधरे, तो उनको आउट किया जाए, दूसरों को चुना जाए, जो इनके पहले वाले स्तर पर हैं। जब आप धर्म, जाति के नाम पर खैरात बंटती है तो बुरे प्रभाव पड़ते हैं, जनरल सोचता है आने वाले समय में निम्न वर्ग हावी हो जाएगा, दोनों में तकरार चलती है, घृणा की दृष्टि से देखता है, अच्छे नंबर लेकर आने वाले को भी, कुछ को तो अपनी जात छुपानी पड़ती है, कहीं उसकी काबलयित पर शक न कर लिया जाए।
यह कार्य राजनीतिक पार्टियां तब तक नहीं करेंगी, जब तक आम लहर नहीं बहेगी, क्यूंकि राजनीतिक पार्टियां हवा या लहर के गधे पर सवार होती हैं, क्यूंकि उनको कुर्सी चाहिए।
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बसन्त पंचमी, विश्व कैंसर दिवस, फेसबुक के 10 साल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसार्थक विचार !
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