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जनवरी, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कांग्रेस को लेकर मीडिया की नीयत में खोट, निष्‍पक्ष पत्रकारिता नहीं

मीडिया की अपनी सोच कर चुकी है। वो अब सोशल मीडिया को केंद्र में रखकर ख़बरें बनाने लगा है। हालांकि इसका असर प्रिंट मीडिया पर नहीं, बल्‍कि वेब मीडिया एवं इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया पर अधिक दिखता है। कांग्रेस का विज्ञापन शुरू हुआ तो नमो के चेलों ने लड़की हसीबा अमीन को लेकर दुष्‍प्रचार करना शुरू कर दिया।  वेब मीडिया भी उसी धुन में निकल पड़ा। हालांकि विज्ञापन में स्‍पष्‍ट शब्‍दों में लिखा है, युवा कांग्रेस कार्यकर्ता। जो लोगों को गला फाड़कर बताने की जरूरत कहां रह जाती है, हां अगर कोई अभिनेत्री होती, स्‍वयं को कांग्रेस कार्यकर्ता कहती तो समझ में आता गला फाड़ना। अगर अमेरिकन होती तो समझ में आता गला फाड़ना।  नंबर दो बात, राहुल गांधी की इंटरव्‍यू के बाद जो मीडिया ने समझ बनाई, वो भी हैरानीजनक है। उसका इंटरव्‍यू इतना बुरा नहीं था, सच तो यह है कि अर्नब गोस्‍वामी राहुल गांधी को सुनना नहीं चाहता था, वे तो केवल उसके गले में उंगली डालकर उलटी करवाना चाहता था, ताकि नरेंद्र मोदी के गले से भी आवाज निकल आए। राहुल गांधी की इंटरव्‍यूह पर सवाल उठाने वाले नरेंद्र मोदी का इंटरव्‍यू क्‍यूं याद नहीं कर रहे , जब

पत्‍नि गई थरूर की।

पत्‍नि गई थरूर की। चर्चा छिड़ी फजूल की। शशि थरूर तो अंतिम ठौहर थे, सुन्‍नदा के पहले भी दो शौहर थे, शशि का भी तीसरा करार था हमें क्‍या पता सौदा था कि प्‍यार था जाने वाले को जाना होगा दो दिन रोना धोना, फिर नया तराना होगा हर जीवन एक नसीहत एक कहानी है रूह सदा अमर, शरीर तो फानी है कब तक रखेगा अहं अपना हैप्‍पी जीवन बुलबुला पानी है मरघट बस्‍ती, जगत मुसाफिरखाना, यहां तो आनी जानी है

भगवान ने हमें क्‍यूं बनाया ?

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एक मां अपने बेटे से कह रही थी, बेटा हमेशा दूसरों की सेवा करनी चाहिए। उसने पूछा क्‍यूं ? मां कहती है कि भगवान ने हमें बनाया इसलिए है कि दूसरों की सेवा करें। और बेटे ने कहा, तो भगवान ने दूसरों को किस लिए बनाया है ? इतना बड़ा जाल क्‍यूं ? इससे अच्‍छा है सब अपनी अपनी सेवा कर लें। स्‍वभाव को पहचानो। जीओ आनंद से। अगर स्‍वभाव में सेवा करना है तो हो जाएगा। नहीं तो नहीं। मजबूरी,फर्ज या झूठ की चादर ओढ़कर मत कीजिए।  क्‍या बिच्‍छु अपना स्‍वभाव छोड़ सकता है ? स्‍वभाव से बड़ा धर्म कुछ नहीं है। बाकी धर्म तो केवल रास्‍ते हैं। एक साधु सरोवर की सीढ़ियां उतर रहा था। उसने देखा एक बिच्‍छु सीढ़ियों पर बैठा था। लोगों के पैरों के तले आकर मर सकता है। साधु उसको उठाकर सरोवर की तरफ बढ़ता है। तो बिच्‍छु साधु के हाथ पर डंक मारता है। साधु का चेला तपाक से बोलता है, बिच्‍छु आपको डंक मार रहा है, और आप उसको सरोवर में छोड़ने जा रहे हो, तो साधु कहता है, अगर वह अपना धर्म निभाना नहीं छोड़ सकता तो मुझे भी अपना धर्म निभाना चाहिए।  स्‍वभाव से बड़ा धर्म कोई नहीं, लोगों ने अहं की। झूठ की चादरें ओढ़ रखी हैं। उनको वह ध

भारतीय राजनीति 99 के फेर में

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पिछले एक साल में भाजपा के प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने हर स्तर पर विज्ञापनों से बहुत खूबसूरत जाल बुना। असर ऐसा हुआ कि देश में एक संप्रदाय का जन्म होता नजर आया। मोदी के अनुयायी उग्र रूप में नजर आए। मानो विज्ञापनों से जंग जीत ली। सत्ता उनके हाथ में है। जो शांत समुद्र थे, एकदम तूफानी रूख धारण करने लगे। अब उनको दूसरे समाज सेवी भी अपराधी नजर आने लगे, खासकर दिल्ली में, क्यूंकि ​दिल्ली फतेह होते होते चुंगल से छूट गई। ख़बर है कि कांग्रेस प्रधान मंत्री पद की दौड़ में राहुल गांधी को उतारने का मन बना चुकी है। कांग्रेस राहुल गांधी को ऐसे तो उतार नहीं सकती, क्यूंकि सवाल साख़ का है, मौका ऐसा है कि बचा भी नहीं जा सका। अब राहुल को उतारने के लिए कांग्रेस पीआर एजें​सियों पर खूब पैसा लुटाने जा रही है। यकीनन अगला चुनाव मूंछ का सवाल है। इस बार चुनाव को युद्ध से कम आंकना मूर्खता होगी। युद्ध का जन्म अहं से होता है। यहां पर अहं टकरा रहा है। वरना देश में चुनाव साधारण तरीके से हो सकता था। भाजपा किसी भी कीमत पर सत्ता चाहती है। अगर उसकी चाहत सत्ता न होती तो शायद वह अपने पुराने बर

परिवर्तन किसे चाहिए.... सत्ता की भूख

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देश को बदलने की बात करने वाले। देश को सोने की चि​ड़िया बनाने का दावा करने वाले बड़ी हैरत में डाल देते हैं, जब वह सामा​जिक मुद्दों को लेकर सत्ता में आई पार्टी पर सवाल​ उठाते हैं। उसका स्वागत करने की बजाय, उसको गिराने की साजिश रचते हैं, गिराने की हथकंडे अपनाते हैं। देश को बदलने की बात करने वाली भाजपा के नेता अरविंद केजरीवाल की टोपी को लेकर सवाल उठा रहे हैं। अगर भाजपा देश का भला चाहती है तो उसको हर समाज सुधारक में मोदी नजर आना चाहिए न कोई दूसरा। मगर सत्ता पाने की चेष्ठा। आगे आने की अभिलाषा ऐसा होने नहीं देती। यह हालत वैसी है जैसे मरुथल में कोई भटक जाए। उसको प्यास लगे व मृग मरीचिका को झील समझने लगे। ​जिसके पास पानी की बोतल होगी, जिसको प्यास न होगी, उसको मृग मरीचिका लुभा न सकेगी। मगर राजनेतायों को पद प्रतिष्ठा से प्रेम है। देश की जनता पहाड़ में जाए। नेता को ढोंग रचता है। जनता का मिजाज देखकर बाहर के कपड़े बदल लेता है। उसको समाज सुधार से थोड़ी न कुछ लेना है। एक दिन गधे पर सवार होकर मुल्ला नसीरुद्दीन बाजार से निकल रहा था, किसी ने पूछा किस तरफ जा रहे हो, मुल्ला ने कहा, गधे से