Ad Review : क्‍या देखा गूगल का यह विज्ञापन ?

आज ऑफिस से लौटकर जैसे ही टेलीविजन का स्‍विच ऑन किया तो टाटा स्‍कायी की ओर से एक विज्ञापन चलाया जा रहा था। इस विज्ञापन से आगे मेरा टेलीविजन नहीं बढ़ा। विज्ञापन इतना प्‍यार था कि दिल को छू गया। मुझे लगा कि शायद जो बात ढ़ाई से साढ़े तीन घंटे की फिल्‍म नहीं कह सकती है, वे बात इस तीन मिनट कुछ सेकेंड के विज्ञापन ने कह दी।

यह विज्ञापन था विश्‍व प्रसिद्ध सर्च इंजन गूगल का। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह है कि इस विज्ञापन को गूगल की ओर से यूट्यूब पर भी आज ही प्रकाशित किया गया है। इस विज्ञापन से जो बात आपको जोड़ती है, वे है इसका भावनात्‍मक पहलु। भले ही देश का एक खेमा पाकिस्‍तान को पी पी कर कोसता था, लेकिन एक खेमा ऐसा भी है, जो आज भी पाकिस्‍तान की आबोहवा में सांस लेने के लिये तरसता था।
इस विज्ञापन के किरदारों भारत व पाकिस्‍तान में आज भी मौजूद होंगे। जो आज भी अपने पुराने घरों को याद करते होंगे। जो आज भी अपने दोस्‍तों से मिलने के लिये तरसते होंगे। आने वाले समय में जब हमारी पुरानी पीढ़ियां चली जायेंगी, तो हो सकता है पाकिस्‍तान के प्रति हमारा प्‍यार रखने वाला एक खेमा मर जाये। और बच जाये, वो खेमा, जो पाकिस्‍तान को सिर्फ एक दुश्‍मन के रूप में देखता है।

गूगल का यह विज्ञापन कई दिलों को छूकर गुजरेगा। आइडिया भी अक्‍सर एक अच्‍छा आइडिया लेकर आता है, लेकिन शायद इस बार गूगल वाट एन आइडिया सर जी से बाजी मार गया। इस बात को पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है। एक और बात। शायद एक निर्देशक साढ़े तीन घंटे की फिल्‍म में जो बात नहीं कह पाता, वो बात बड़े सलीके के साथ गूगल एड के निर्देशकों ने केवल कुछ मिनटों में कह दी। इसलिये हम तो कहें, आपका पता नहीं, गूगल बाबा की जय।



कुलवंत हैप्‍पी, संचालक Yuvarocks Dot Com, संपादक Prabhat Abha हिन्‍दी साप्‍ताहिक समाचार पत्र, सामग्री लेखक GaneshaSpeaks.com। पिछले दस साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय, प्रिंट से वेब मीडिया तक, और वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छाया में।

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टिप्पणियाँ

  1. उफ़्फ़ ! रोम रोम पोर पोर नम कर देने वाला विज्ञापन । हम भी यही कहेंगे ........गूगल बाबा की जय

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  2. काश : मानवता मात्र धार्मिक होती पर समुदायवादी न होती काश : वस्तुत: इंसान घानवान होते गीदढों जैसे समूहजीवी न होकर समूहजीवी की नई आदर्शता स्थापित करते काश घरों मे ंदीवाले न होती तो कुछ न विभाजित होता मुझे यह लेख बहुत पसन्द आया चूंकि सभ्यता की यही पुकार हैं जो गूगल ने सफलता पूर्वक हमारे कानों मे ंपहु़चाई कोटिश: धन्यवाद गूगल तुम अमर रहो

    Regards,
    सतनाम सिंह साहनी | pathicaanjana@gmail.com

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  3. वाह... उम्दा...सच में बहुत ही अच्छा लगा ये विज्ञापन...
    नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

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