movie review : संतोषी का अंदाज फटा पोस्‍टर निखरा शाहिद

भले ही फिल्‍म 'फटा पोस्‍टर निकला हीरो' के पोस्‍टर पर गलती से निकला 'निखला' हो गया हो, लेकिन फिल्‍म बनाते वक्‍त फिल्‍म निर्देशक राजकुमार संतोषी ने कोई चूक नहीं की, इसलिये 'फटा पोस्‍टर निकला हीरो' में सब कुछ निखरा निखरा नजर आया।

निर्देशक राजकुमार संतोषी, जिनकी 'अंदाज अपना अपना' के दूसरे भाग के लिए दर्शक आंखें बिछाये बैठे हैं, ने एक बार फिर साबित कर दिया कि आज के समय में भी दो अर्थ वाली शब्‍दावली के इस्‍तेमाल के बगैरह एक अच्‍छी कॉमेडी फिल्‍म का निर्माण हो सकता है। आज भी किरण खेर जैसी मॉर्डन ओवर एक्‍टिंग वाली मां के बिना मां बेटे के रिश्‍ते पर एक फिल्‍म बन सकती है।

राजकुमार संतोषी ने पुराने समय की कहानी को चुना, लेकिन स्‍थितियां आज की रखी, और पूरा फोक्‍स महिला शक्‍तिकरण की तरफ था। एक नौजवान को किस तरह दो महिलायें एक योग्‍य पुलिस अधिकारी बनने में मदद करती हैं। फिल्‍म में एक नायक विश्‍वास राव (शाहिद कपूर) की मां पद्मिनी कोल्हापुरे, तो दूसरी प्रेमिका काजल ( इलियाना डीक्रूज )। नायक की मां नायक को इमानदार पुलिस अधिकारी बनते हुये देखना चाहती है, लेकिन बेटा हीरो बनना चाहता है। अंत में प्रेमिका के सहयोग से नायक की मां का सपना पूरा होता है। सुखद अंत के साथ फिल्‍म खत्‍म होती है। मगर फिल्‍म के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने के दौरान का जो रोमांच है, वे बेहद दिलकश है। उस में एक्‍शन भी है, रोमांस भी है, उसमें हंसी के ठहाके भी हैं।

फिल्‍म की शुरूआत एक इमानदार महिला ऑटो चालक से होती है, जो ट्रैफिक पुलिस वाले को सिग्‍नल तोड़ने का जुर्म स्‍वयं स्‍वीकार करते हुए सौ का नोट देती है, और रसीद भी गर्व से मांगती है। यह महिला एक बेईमानी पुलिस कर्मचारी की पत्‍िन है, जो एक हादसे में मारा जा चुका है। अब इस सपना है कि उसका बेटा अपने नाना की तरह इमानदार पुलिस ऑफिसर बने। बेटा हीरो बनना चाहता है, पुलिस मेडिकल चेकअप के दौरान उलटी पुलटी हकरत करता है, ताकि किस तरह रिजेक्‍ट हो जाये। अंत तक आते आते फिल्‍मी हीरो असली हीरो बनकर उभरता है। इसको कहते हैं 'फटा पोस्‍टर निकला हीरो'।

शाहिद कपूर ने कॉमेडी और एक्‍शन दोनों रंगों को खुद को खूब रंगा है। शाहिद ने साबित कर दिया कि अच्‍छी कहानी व अच्‍छा निर्देशक अगर उनको मिलता रहे, तो वे खुद को बॉलीवुड में बतौर सुपर स्‍टार स्‍थापित कर सकते हैं। नायिका इलियाना डी क्रूज ने एक बिंदास बाला का रोल अदा किया, जो समाज सेवा के लिये मुम्‍बई की सड़कों पर दौड़ती रहती है, और अन्‍य कलाकारों संजय मिश्रा, दर्शन जरीवाला, पद्मिनी कोल्‍हापुरे, सौरभ शुक्‍ला, मुकेश तिवारी ने भी अपने अपने किरदारों को बेहतरीन तरीके से निभाया। इनके सहयोग के बिना शाहिद कपूर भी कुछ नहीं कर सकते थे, क्‍यूंकि कॉमेडी सीन हमेशा ट्यूनिंग मांगते हैं। सलमान खान छोटी भूमिका में हैं, लेकिन राजकुमार संतोषी ने अपने पुराने कलाकार सलमान खान से इस छोटी सी भूमिका को भी शानदार बनवा लिया।

स्‍क्रीन प्‍ले, संवाद, स्‍टोरी और निर्देशन सब कुछ राजकुमार संतोषी के हाथों में था। शायद फिल्‍म के लिए यह सबसे अच्‍छी बात थी। राजकुमार संतोषी ने 'अजब प्रेम की गजब कहानी' के चार साल बाद रुपहले पर्दे पर दस्‍तक दी। घायल, दामिनी, बरसात, द लीजेंड शहीद भगत सिंह जैसी फिल्‍मों का निर्माण करने वाले राजकुमार संतोषी ने इस फिल्‍म से साबित कर दिया कि वे आज भी 'अंदाज अपना अपना' के निर्माण का मादा रखते हैं। फिल्‍म में हंसी पैदा करने के लिए उन्‍होंने दो अर्थी शब्‍दों का इस्‍तेमाल नहीं, बल्‍कि घटनाओं और हावभावों का अधिक इस्‍तेमाल किया। अंत में दर्शक तो कंफ्यूज्‍ड हो सकते हैं, यह सोचकर कि संतोषी ने अंत बनाते वक्‍त अपना ध्‍यान एकाग्र कैसे किया हो गया। 'अगल बगल' गीत बेहतरीन है, लेकिन अन्‍य गीतों की जरूरत नहीं थी, और यह फिल्‍म का मूड तोड़ते हैं।

चलते चलते इतना ही कहूंगा, परिवार के साथ जाइये, हंसी ठिठोली का खूब मजा उठाइए क्‍यूंकि फटा पोस्‍टर निकला हंसी का फुव्‍वारा।



कुलवंत हैप्‍पी, संचालक Yuvarocks Dot Com, संपादक Prabhat Abha हिन्‍दी साप्‍ताहिक समाचार पत्र, उप संपादक JanoDuniya Dot Tv। पिछले दस साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय, प्रिंट से वेब मीडिया तक, और वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छाया में।

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