उड़ीसा का एक राजा, जो आज जीता फकीर सी जिन्‍दगी

न उसके घर में जंग खाती तलवार है और न सिंहासन। न राजा महाराजाओं की तरह दीवारों पर लटकी ट्रॉफियां, जो याद दिलाएं बीते दिनों में किए शिकारों की। न पीली पड़ चुकी तस्‍वीरें, जो याद दिलाएं युवा अवस्‍था के सुंदर सुनहरे दिनों की। जिस महल में वे अपनी पत्‍िन और बच्‍चों के साथ 1960 तक रहा, आज वहां लड़कियों का हाई स्‍कूल है।

टिगिरिया का पूर्व राजा ब्राजराज क्षत्रीय बीरबर चामुपति सिंह महापात्रा एक कच्‍चे मकान में कुछ प्‍लास्‍टिक की कुर्सियों के साथ अपना जीवन बसर करता है, टिगिरिया जो कि कटक 'उड़ीसा' जिले में पड़ता एक क्षेत्र है। एस्बेस्टस छत में से बारिश का पानी लीक हो रहा है, और भूतपूर्व राजा की लकड़ से बनी खाट को एक फटेहाल तरपाल से ढ़का गया है, ताकि वे छत से लीक हो रहे पानी से भीगकर ख़राब न हो। इस कच्‍चे घर में कुछ किताबें, प्‍लास्‍टिक की बोतलें, एक बैटरी और कुछ कच्‍चे टमाटर पड़े हुए हैं।

अपने परिवार से अलग हुआ भूतपूर्व राजा अब अपनी साधनहीन और असहाय जिन्‍दगी की अगुवाई कर रहा है। जबकि दोनों आंखों को मोतियाबिंद ने अपनी चपेट में ले लिया है, और सुनने की शक्‍ति भी समय के साथ पहले से कम हो गई। 1987 से अकेला पुराना टिगरिया गांव में इस तरह का जीवन बसर कर रहा है। जानकार कहते हैं कि उड़ीसा की 26 देशी रियासतों में से केवल वे अकेला राजा है, जो इस तरह का जीवन बसर कर रहा है, जिनका 15 दिसम्‍बर 1947 को भारत में विलय हो गया था। टिगिरिया देशी रियासत उड़ीसा की 26 रियासतों में से सबसे छोटी थी, जिसका क्षेत्रफल 119 वर्ग किलोमीटर था।

स्‍थानीय वकील ललित कृष्‍णा दास बताते हैं कि महापात्रा ने अपना महल सरकार को 1960 में केवल 75000 रुपये में बेच दिया था, और धीरे धीरे एक राजा फकीर में बदल गया, आज गांव वालों की मदद पर जीवन बसर करता है। गांव वाले हर रोज अपने पूर्व राजा को खाना खिलाते हैं। यह एकांत जीवन सिर्फ उसके लिए है।

धर्नीधार राना, जो गांववासी है, बताता है कि महापात्रा बहुत किफायती खाऊ हैं। राणा की बेटी कहती हैं कि वे ब्रेक फास्‍ट के लिए एक कप चाय और दो बिस्‍कुट लेते हैं, वहीं कुछ चावल और दाल दोपहर के भोजन में, और रोटी दाल रात को। वे कभी कभार चिकन खाते हैं। लुंगी कुर्ता पहनते हैं, और चलने के लिए छड़ी का सहारा लेते हैं। इस हालत को देखकर बतौर राजा महापात्रा की कल्‍पना करना मुश्‍िकल है। 

जयंत मारदराज, पूर्व शासक निलगिरी ने बताया कि आज वे एक आम आदमी से भी बदतर जिन्‍दगी जी रहे हैं, जो 1947 के अंत तक एक रियासत का शासक थे। राजकुमार कॉलेज रायपुर से डिप्‍लोमा करने के बाद 1940 में महापात्रा की शादी रासमंजरी देवी से हुई, जो सोनेपुर की राजकुमारी थीं। इनकी पांच संतान हुई, जिनमें तीन बेटे और दो बेटियां शामिल हैं। 

अपने बीते दिनों को याद करते हुए महापात्रा कहते हैं, 'मैं अक्‍सर अपने दोस्‍त के साथ कोतकाला की यात्रा करता, जो कि पुरी का शासक था। हम मैजिस्‍टिक और ग्रेट ईस्‍टर्न होटल में रूकते। मैं शराब लेना चाहता, यह अच्‍छा समय था। मैं पीने के लिए ब्‍लैक लेबल, व्‍हाइट लेबल, और धूम्रपान के लिए 999 और स्‍टेट एक्‍सप्रेस 555 सिगरेट ब्रांड पसंद करता। अगर बाजार में कोई कार का नया मॉडल आता तो हम खरीदते, मेरे पास 25 कारें और जीपें थी, जिनमें रोड़मास्‍टर,सेवरोलेट, पैकार्ड शामिल है। हमारे पास तीस नौकर होते थे। वो शिकारी था, उसने 13 टाइगरों,28 तेंदुओं और हाथी का शिकार किया। मैं हाथी के शिकार के लिए नहीं जाता था। मुझे गांव वाले शिकार के लिए करने के लिए मजबूत करते यह कहते हुए कि वे फसल को बर्बाद कर देंगे। इतने में बीच से जयंत बोलते हैं, यह शॉर्ट स्‍टोरी राइटर और एक अच्‍छे पेंटर भी हैं।

रियासत का भारत में विलय होने के बाद भी इंदिरा गांधी के समय तक महापात्रा को हर साल 11200 रुपये सरकार की ओर से मिलते रहे, लेकिन 1975 में इस सिस्‍टम को खत्‍म कर दिया गया। तब तक महापात्रा अपना टिगिरिया वाला महल बेच चुके थे, अपनी पत्‍िन से अलग हो चुके थे। इसके बाद वे अपने पुरी वाले दोस्‍त के यहां अगले बारह साल तक रहा, और कुछ समय उसने अपने बड़े भाई के यहां गुजारा, जो कि मंडासा रियासत के शासक थे। 1987 में महापात्रा टिगरिया लौट आए, यहां पर एक कच्‍चे घर का निर्माण किया, और रहना शुरू कर दिया। यहां से दो किलोमीटर दूर उनकी पत्‍िन रहती हैं, जो कि टिगरिया की पूर्व विधायिका हैं, लेकिन पिछले कई दशकों से दोनों मिले नहीं।

महापात्रा उस दिन को याद करते हैं, जब वे विलय का इकरारनामा साइन करने के लिए कटक गए, तो वहां के टाउन हाल में मेरे दीवान उदयनाथ साहु मेरा इंतजार कर रहे थे। सरदार पटेल हमको पहले ही अल्‍टीमेटम दे चुके थे। जब रानपुर के राजा ने साइन करने से मना किया तो सरदार पटेल ने सेना भेजने की धमकी दी। उन्‍होंने बताया कि पूर्व मुख्‍यमंत्री बिजू पटनायक ने उनको राजनीति में आने के लिए आग्रह किया था, लेकिन उन्‍होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि उनको लोगों को किस तरह संभालना है, यह नहीं आता।

जब महापात्रा से पूछा गया, आपको शाही महल, अपनी अमीरी और आजादी खोने का दुख है, तो वे कहते हैं, तब में राजा था, अब मैं कंगाल हूं। मुझे किसी भी बात के लिए मलाल नहीं है। क्‍या आप सोचते हैं कि मैं इतना लम्‍बा जिया पाता, अगर मैं दुखी होता।
 
देबाबरता मोहंती की रिपोर्ट है, जो इंडियन एक्‍सप्रेस में 12 अगस्‍त 2013 को प्रकाशित हुई, जिसका हिन्‍दी अनुवाद कुलवंत हैप्‍पी, युवारॉक्‍स डॉट कॉम के संपादक कम संचालक द्वारा किया गया।

टिप्पणियाँ

  1. कभी इंडिया टुडे ने रायगढ़, छत्‍तीसगढ़ के राजा ललित सिंह की बदहाली के साथ कवर स्‍टोरी प्रकाशित की थी.

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    1. शुक्रिया राहुल सिंह जी। मेरे पास वो जानकारी नहीं, मुझे जो मिला, मैंने उसको साझा करने की एक छोटी सी कोशिश, शायद किसी अन्‍य लेखक को थोड़ा सा रिफ्रेंस मिल जाए, जब वे कभी ऐसे विषय पर लिखे, सिर्फ इंफो के लिए।

      शुक्रिया राहुल जी, आपने अपने विचार रखे, और मुझे एक अन्‍य जानकारी से रूबरू करवाया।

      हटाएं
  2. धन्यवाद अनुवाद और शेयर करने के लिए.

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  3. बहुत सुंदर अनुवाद साझा करने के लिए आभार ,,,

    RECENT POST : जिन्दगी.

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