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सत्‍याग्रह की फिल्‍म समीक्षा

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तमाम लटक- झटक दिखाने वाले ग्लैमरस सितारे, दाढी वाले अपने निर्देशक प्रकाश बाबू के साथ बुझे, घुटे और बोझिल से चेहरे लिए, कुल मिलाकर मन मारकर बुद्धु बक्से के कई कार्यक्रमों में "सत्याग्रह" का प्रमोशन करते दिखाई पड रहे थे, मुझे तो शक तभी हो गया था कि भैया इस फिल्मे में काम करके ये लोग फंस गए हैं, और अब इनसे हड्डी निगली नहीं जा रही. ..खैर सत्याग्रह नाम की इस फिल्म में बाद में तो यह समझ ही नहीं आता कि लोग आंदोलन क्यों कर रहे हैं , और आखिर क्यों अनशन पर बैठे हैं..? बताते हैं अपनी घोषणा के बाद से अब तक इसे बनाने में बहुत समय ले लिया बाऊजी जी ने.. और जो बनाया है तो उसमें इतना हडबडी के साथ दिखा है कि पूछो मत.. इतनी घाई, मानों प्रोजेक्ट खत्मू करने का दबाव था. फिल्म शुरू होते हुए हाथ में रहती है, लेकिन उसके बाद तो मानों सब कुछ निर्देशक के हाथों से, दर्शकों की आंखों से और महिला अभिनेत्रियों के चेहरे से मेकअप की तरह फिसलती हुई दिखती है... अब आगे आपकी मर्जी...!!! सारंग उपाध्‍याय की फेसबुक से 

म्‍यांमार मामले पर केंद्रीय रक्षा मंत्री ने कहा, आंख दिखाना बुरी बात

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भारतीय जमीन को निरंतर हथियाने के प्रयास हो रहे हैं। कभी चीन की ओर से, कभी पाकिस्‍तान की ओर से, अब फेहरिस्‍त में एक नया नाम जुड़ गया म्‍यांमार का, उधर श्रीलंका ने हमारे तीन सौ से अधिक मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया। ऐसे में देश के रक्षा मंत्री से विशेष बातचीत करना बनता है। एंकर - भारतीय सीमा पर म्‍यांमार ने चौंकी स्‍थपित करने का मन बना लिया है। कहें तो चीन और पाकिस्तान के बाद अब छोटा सा मुल्क म्यांमार भी भारत को आंखें दिखाने लगा है। इस बारे में सरकार की क्‍या प्रतिक्रिया है ? केंद्रीय रक्षा मंत्री - हमारा देश राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी, जिनको अहिंसा के पुजारी कहा जाता है, की विचारधारा का अनुसरण करता है। महात्‍मा ने कहा है कि बुरा देखना मना है, और आंख दिखाना बुरी बात है, ऐसे में भारत इसको नहीं देख सकता। जब देख नहीं सकते तो कोई प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं लगती। एंकर - ऐसे में तो म्‍यांमार के हौसले बढ़ जाएंगे ? केंद्रीय रक्षा मंत्री - चीन के सैनिक किस दिन काम आएंगे, यह हिस्‍सा उनको सुपुर्द कर दिया जाएगा, वे खाली करवाकर हम को सौंप देंगे, क्‍यूंकि चीन गांधी के नियमों का अनु

भारत सरकार और डॉलर में होगी सीधी वार्ता

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डॉलर द्वारा भारतीय रुपये पर हो रहे निरंतर हमलों से सरकार पूरी तरह चिंतित है, लेकिन सरकार सोच रही है कि केवल चिंतन मंथन करने से काम नहीं चलेगा, अब पानी सिर से ऊपर निकल चुका है, ऐसे में डॉलर के साथ बैठकर आमने सामने बात करनी ही होगी।  सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार बहुत जल्‍द डॉलर के साथ बैठकर इस विषय पर बात करेगी। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि सरकार इस मामले में तीन दौर की बैठक का आयोजन कर सकती है। उम्‍मीद है कि डॉलर रुपये को इज्‍जत देने के लिए तैयार हो जाएगा, और इस समझौते से रुपये की गिरती हालत में सुधार होगा। डॉलर का रुपये के प्रति कड़ा रुख वैसे तो सरकार से बर्दाशत नहीं होता, लेकिन वार्ता के दौरान सरकार शांति व गांधीगिरी से काम लेगी। उधर, जब इस बारे में वित्‍त मंत्री से संपर्क साधा गया, और रुपये की दिन प्रति दिन बिगड़ रही तबीयत के बारे में पूछा गया तो उन्‍होंने कहा, लोगों को डॉलर की खरीददारी पर अंकुश लगाने की अपील की जा रही है, लेकिन लोग डॉलर खरीदने में अधिक दिलचस्‍प ले रहे हैं, उनको लग रहा है कि डॉलर भी सोने की तरह अच्‍छा रिटर्न देगा। साले पागल लोग। सरका

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, और एक शोध का दावा

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हर साल की तरह इस बार भी, श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आज आधी रात करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य, सोलह कलाओं तथा 64 विद्याओं के पारंगत, चक्र सुदर्शनधारी भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्मोत्सव परंपरागत और उल्लासपूर्वक मनाया जायेगा। संयोग देखिए, जब विश्‍व का एक समुदाय भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव बनाने की तैयारियों में जुटा हुआ था, तब जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय का एक अध्‍ययन सामने आया, जिसमें कहा गया कि नवजात बच्चे को मां के गर्भ में रहते हुए अपनी जननी की और अन्य लोगों की आवाज़ें याद रहती हैं। शोधकर्ताओं ने शोध के दौरान 74 महिलाओं का परीक्षण किया जो 36 हफ्तों की गर्भवती थीं। उन्हें दो मिनट तक कहानियां सुनाने को कहा गया और इस दौरान गर्भ में पल रहे शिशु की धड़कनों और हरकतों का परीक्षण किया गया। इस शोधकार्य के दौरान पता चला कि औसतन एक बच्चा एक ही शब्द 25 हज़ार बार सुन सकता है। जीवन के पहले महीने में बच्चा उस संगीत के प्रति प्रतिक्रिया दिखाता है जो उसने गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में सुना था। आप सोच रहे होंगे, इस का कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी से क्‍या संबंध है ? कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का संबंध श्रीकृष्‍ण भ

दस साल की 'बच्‍ची' पर 'रेप' का केस

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ब्राउन टी शर्ट में खड़ा मुस्‍कराते हुए जैक बात दस साल की अशले से शुरू करते हैं, जो मेलबर्न में रहती है। उसका अब बच्‍चों के समूह के साथ खेलना प्रतिबंधित है। अप्रैल की एक घटना ने अशले को बच्‍चों के समूह से दूर कर दिया। दरअसल, दस वर्षीय अशले एक डॉक्‍टर गेम के दौरान चार साल के लड़के को असंगत ढंग से छूते हुए पाई गई। शिकायत के बाद पुलिस ने अशले को गिरफ्तार कर लिया, उससे पूछताछ की, और चार दिन के लिए उसको हैरिस काउंटी बाल सुधार गृह में छोड़ा गया।  इस मामले में जब बच्‍ची से पूछताछ की जा रही थी, तो उसकी मां को भी वहां पर उपस्‍थित होने की आज्ञा नहीं दी गई। अब दस वर्षीय बच्‍ची को अक्‍टूबर में बलात्‍कार के आरोप के तहत कोर्ट में पेश किया जाएगा। यह घटना अप्रैल महीने में घटित हुई थी। बच्‍ची को बच्‍चे के साथ असंगत तरीके से छेड़छाड़ करते पाया गया, और मामला चला। भारत में गैंगरेप होने के बाद भी विचार किया जाता है कि रेप करने वाला नाबालिग है या बालिग। मानवता का परिचय देता एक मामला मियामी में सामने आया है। जहां एक माता पिता ने अपने बीमार बेटे के सारे अंगदान करने का फैसला किया है। दस साल का

कपड़ों से फर्क पड़ता है

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मुम्‍बई में महिला पत्रकार के साथ हुए गैंग रेप हादसे के बाद कुछ नेताओं ने कहा, महिलाओं को कपड़े पहनने के मामले में थोड़ा सा विचार करना चाहिए। यकीनन यह बयान महिलाओं की आजादी छीनने सा है। अगर दूसरे पहलू  से सोचें तो इसमें बुरा भी कुछ नहीं, अगर थोड़ी सी सावधानी, किसी बुरी आफत से बचा सकती है तो बुराई कुछ भी नहीं। हमारे पास आज दो सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाले वाहन हैं, लेकिन अगर हर कोई इस सपीड पर कार चलाएगा तो हादसे होने संभव है। ऐसे में अगर कोई गाड़ी संभलकर चलाने की बात कहे तो बुरा नहीं मानना चाहिए। देश का ट्रैफिक, सड़कें भी देखनी होगी, केवल स्‍पीड देखने भर से काम तो नहीं हो सकता। ऐसी सलाह देश के कुछ नागरिकों को बेहद नागवार गुजरती है, लेकिन आग के शहर में मोम के कपड़े पहनना भी बेवकूफी से कम न होगा। हमें कहीं न कहीं समाज को देखना होगा, उसके नजरिये को समझना होगा। जब हर कदम पर सलीब हो, और हर तरफ अंधेरा फैला हो, तो यकीनन हर कदम टिकाते समय बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी, पहले टोह लगानी पड़ेगी है, नीचे सलीब तो नहीं, एक दम दौड़कर निकलने वाले अक्‍सर लहू लहान होते हैं। देश की सरकार को

फ़ैरो आइलैंड्स की चुनौतियां

आइलैंड्स घूमने का बहुत शौक होता है पर्यटकों को। वहां की हरियाली, वहां के वातावरण में सांस लेने का अपना ही एक मजा होता है, लेकिन फ़ैरो आइलैंड्स की युवा पीढ़ी अपने आइलैंड्स से दूर भाग रही है। अटलांटिक महासागर के उत्तरी भाग फ़ैरो आइलैंड्स की सरकार के सामने आज दो चुनौतियां हैं, तो युवा पीढ़ी के पलायन को रोकना, दूसरा अपने भोजन और आय स्रोत को जिंदा रखना। चालीस हजार की आबादी वाला यह खूबसूरत आइलैंड्स युवा पीढ़ी के पलायन के कारण धीरे धीरे खाली होता जा रहा है। यहां के नागरिकों का मानना है कि यहां पर जीवन अधिक मुश्‍िकल है, अन्‍य जगहों के मुकाबले में महंगा भी। युवा पीढ़ी अपने सपनों को साकार करने के लिए आइलैंड्स से बाहर निकलकर संघर्ष करना चाहती है, नाम कमाना चाहती है। भारतीय समाज भी गांवों से निकलकर मंडियों और शहरों में तबदील हो रहा है।   आइलैंड्स की सरकार जहां कम होती जनसंख्‍या से परेशान है। वहीं यूरोपियन संघ का मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगाना भी इस आइलैंड्स वासियों को नागवार गुजर रहा है। यहां के प्रधानमंत्री ने यूरोपियन संघ को चैंलेज करते हुए कहा, वे 150 वर्षों से इस आइलैंड्स पर रह रहे हैं।

'गे' वेंटवर्थ मिलर ने की 'मर्दों' वाली बात

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बहुत मुश्‍किल होता है कभी कभी उस बात को स्‍वीकार करना, जिसको समाज में असम्‍मानजनक नजर से देखा जा रहा हो, लेकिन अमेरिकी धारावाहिक प्रिज्‍यॅन ब्रेक के स्‍टार वेंटवर्थ मिलर ने रूस में आयोजित होने वाले इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्‍टीवल में बतौर मुख्‍यातिथि के लिए आए न्‍यौते को ठुकराते हुए स्‍वयं के गे होने की बात को सार्वजनिक कर दिया। रूस के प्रस्‍ताव को ठुकराने और स्‍वयं को गे घोषित करने के बाद टि्वटर पर उनके लोकप्रिय धारावाहिक प्रिज्‍यॅन ब्रेक के ट्रेंड ने जोर पकड़ लिया। दरअसल, रूस ने एक नया प्रस्‍ताव पारित किया है, जो असल में है तो एंटी गे लॉ, लेकिन सरकार इस बिल का बचाव बच्‍चों की सुरक्षा का हवाला देते हुए करती है। सेंट पीटर्सबर्ग ऐसी जगह है, जहां पर गे बहुसंख्‍या में रहते हैं, लेकिन हिंसक गतिविधियों के कारण सामने आने का सांस नहीं करते। पिछले दिनों न्‍यू यॉर्क टाइम्‍स में एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसकी शुरूआत करते हुए लेखक ने लिखा था, अगर यह लेख रूस में प्रकाशित हुआ होता तो इसके लिए एक्‍स रेटिंग होती, और 18 साल से कम उम्र के बच्‍चों को पढ़ने की मनाही होती। इस लेख के अंदर कई ऐसी घटनाओं का

पैट्रोल है, रुपया नहीं, ओनियन है, रुपया नहीं

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डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये को लेकर भारत सरकार का पता नहीं क्‍या रवैया है या भविष्‍य में होगा, लेकिन चीन पब्‍लिक पेशाबघरों में गिरते पेशाब से पूरी तरह दुखी है। अब इसके हल के लिए चीन के एक शहरी प्रबंधन विभाग ने एक नया नियम बनाया है।  पेशाब करने के लिए लगाए स्‍टैंडिंग बाउल से अगर आपका पेशाब बाहर गिरा तो चीन के हांगकांग से सटे सेनजेन शहर में आपको 16 डॉलर तक का दंड किया जाएगा। भले ही इस आदेश के बाद चीनी लोगों ने अपने नेटवर्किंग साइट पर इस नियम को लेकर खूब मजाक उठाया, यहां तक लिख दिया गया, अब नये इंस्‍पेक्‍टर भर्ती किए जाएंगे, जो हर पेशाब करने वाले के पीछे खड़े होकर लाइनमेंट चेक करेंगे। मजाक और असल जिन्‍दगी में फर्क होता है, यकीनन पेशाबघरों की हालत सुधरेगी, भले भारतीय रुपये की हालत सुधरने में वक्‍त लगे। गिरने से याद आया, कल बापू आसाराम का नाम भी उस गोलक में गिर गया, जिसमें पहले से कई बाबाओं के नाम गिर चुके हैं। इस गोलक को रेप आरोप बॉक्‍स कहते हैं। बाबागिरी का जीवन स्‍तर ऐशो  आराम वाला हो रहा है तो अध्‍यात्‍मिक स्‍तर गिर रहा है। अब ए सी कमरे हैं, नीचे मखमल के गद्दे हैं, ऊपरी रेश्‍म की ओढ़

अंधविश्‍वास के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा नरेंद्र दाभोलकर नहीं रहे

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महाराष्ट्र में 'अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून' लाने की कोशिशों में जुटे नरेंद्र दाभोलकर को दक्षिणपंथी संगठनों की तरफ से जो आखिरी धमकी दी गई थी उसमें कहा गया था 'गांधी को याद करो: याद करो हमने उसके साथ क्या किया था'। दाभोलकर की अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति पिछले 14 सालों से इस बिल के लिए कैंपेनिंग कर रही है। मंगलवार को अज्ञात हमलावरों ने सोशल ऐक्टिविस्ट नरेंद्र दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। समाचार एजेंसी पीटीआई ने पुलिस सूत्रों के हवाले से बताया कि दाभोलकर सुबह की सैर के लिए निकले थे कि तभी मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावरों ने उनके सिर पर करीब से गोलियां दाग दीं। उन्हें शहर के ओंकारेश्वर पुल पर घायल अवस्था में पाया गया। बाद में उन्होंने ससून अस्पताल में दम तोड़ दिया। दाभोलकर पिछले 40 सालों से अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून बनवाने के लिए प्रयासरत थे। 2005 में उनका यह विधेयक महाराष्ट्र विधान परिषद में पेश भी हुआ लेकिन इसे पुनर्विचार समिति के पास भेज दिया गया। बीते 8 सालों से यह वहीं अटका हुआ है। जुलाई में हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए दाभोलकर ने कहा था, &

रक्षा बंधन : वक्‍त मिले तो सोचिएगा

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रक्षा बंधन। रक्षा का वचन। हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर एक धागा बांधती है। रक्षा का वचन लेते हुए बहन भाई की तरक्‍की की कामना भी करती है। यकीनन, उसके भावी पति के लिए भी कोई बहन इस दिन दुआ कर रही होगी। रक्षा बंधन से कई कहानी जुड़ी हैं, रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूं, सिकंदर की पत्‍िन व राजा पौरस की, श्रीकृष्‍ण भगवान और द्रोपदी की। दिलचस्‍प बात तो यह है कि इन सब में खून का रिश्‍ता नहीं, बल्‍कि एक धागे का रिश्‍ता, भरोसे, भावनाओं का रिश्‍ता था। कहानियों के मुताबिक शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चीरहरण के समय श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया। यहां तक ही नहीं, भगवान ने तो महाभारत में भी पांडवों का पूरा साथ दिया। सिकंदर को अगर दुनिया में कोई

आधे पौने घंटे की फिल्‍म वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई दोबारा

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वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई दोबारा। यह 2010 में आई सुपरहिट फिल्‍म वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई का स्‍किवल है। इसका नाम पहले वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई अगेन था, लेकिन कहीं हिन्‍दी बुरा न मान जाए, इसलिए एक हिन्‍दी शब्‍द दोबारा का इस्‍तेमाल किया गया। एकता कपूर टूने टोटकों में विश्‍वास करती है, कहीं न कहीं यह बात उनके फिल्‍म टाइटल में नजर आई है, हर बार एक अलग अक्षर, जैसे इसमें ए के साथ छोटी सी वाय का इस्‍तेमाल किया गया है। रजत अरोड़ा की पटकथा और मिलन लथुरिया का निर्देशन, एकता कपूर का पैसा वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई दोबारा। फिल्‍म की कहानी दाऊद इब्राहिम पर आधारित है, लेकिन बॉलीवुड स्‍वीकार करने से डरता रहता है। फिल्‍म में फेरबदल हुए थे, शायद उस दौरान क्रिकेट वाला सीन रिशूट कर डाला गया होगा, जो फिल्‍म की शुरूआत को कमजोर बनाता है। दाऊद इब्राहिम मुम्‍बई का बेताज बादशाह बने रहना चाहता है, जो शोएब  नाम से रुपहले पर्दे पर उतारा गया है। शोएब दाऊद की तरह एक पुलिस कर्मचारी का पुत्र, हाजी मस्‍तान के बाद मुम्‍बई का अगला डॉन, डोंगरी से संबंध रखता है। शोएब मुम्‍बई में सिर उठा रहे अपने एक दुश

रेप मुआवजे से नरेंद्र मोदी पर चुटकियां लेती शिव सेना तक

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जम्‍मू कश्‍मीर की कमान एक युवा नेता उमर अब्‍दुला के हाथ में है, लेकिन शनिवार को उनकी सरकार की ओर से लिए एक फैसले ने उनको सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया। जम्‍मू कश्‍मीर सरकार ने रेप पीड़ित को मुआवजे वाली लिस्‍ट में शामिल किया है। अगर युवा नेता उमर अब्‍दुला इस मुआवजे वाली सूची को जारी करने की बजाय बलात्‍कारी को सजा देने वाली सूची जारी करते तो शायद भारतीय युवा पीढ़ी को ही नहीं, बल्‍कि देश की अन्‍य राज्‍यों की सरकारों को भी सीख मिलती। उमर अब्‍दुला, इज्‍जत औरत का सबसे महंगा गहना होती है, उसकी कीमत आप ने ज्‍वैलरी से भी कम आंक दी। उसको मुआवजे की नहीं, उसको सुरक्षा गारंटी देने की जरूरत है। उसको जरूरत है आत्‍मराक्षण के तरीके सिखाने की, उसको जरूरत है आत्‍मविश्‍वास पैदा करने वाली आवाज की। अगर इज्‍जत गंवाकर पैसे लेने हैं तो वे कहीं भी कमा सकती है। आपके मुआवजे से कई गुना ज्‍यादा, जीबी रोड दिल्‍ली में अपना सब कुछ दांव पर लगाकर पैसा कमाती बेबस लाचार लड़कियां महिलाएं इसकी  साक्षात उदाहरण हैं। जख्‍मों पर नमक छिड़ने का काम अगर आज के युवा नेता करने लग गए तो शायद देश की सत्‍ता युवा हाथों में सौंप

मिस्र को किस तोड़ पर ले आई 'क्रांति'

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फरवरी 2011, जब देश की जनता ने तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति मुबारक हुस्‍नी को पद से उतारते हुए तहरीर चौंक पर आजादी का जश्‍न मनाया था, तब शायद उसको इस बात का अहसास तक न हुआ होगा कि आने वाले साल उसके लिए किस तरह का भविष्‍य लेकर आएंगे। आज मिस्र गृह युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। वहां पर सेना और मुर्सी समर्थक आमने सामने हैं, क्‍यूंकि गणतांत्रिक तरीक़े से चुने हुए मिस्र के पहले राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को सेना ने निरंतर हो रहे विरोध प्रदर्शनों के कारण तीन जुलाई को सत्ता से बेदख़ल कर दिया था। काहिरा की एक मस्‍जिद के चारों तरफ सेना का पहरा है तो अंदर एक रात से कैद हैं मुर्सी समर्थक। सरकारी आंकड़ों की माने तो वहां पर अब तक केवल 700 के आस पास लोग मरे हैं, हालांकि मुस्‍लिम ब्रदर्सहुड पार्टी का दावा है कि वहां पर मरने वालों की संख्‍या 2000 से अधिक हो चुकी है, और घायलों की संख्‍या 5000 के आंकड़े को पार कर चुकी है। मिस्र में फैली अशांति से न केवल लोगों की जान के लिए बल्कि सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए भी ख़तरा पैदा हो गया है। देश भर में फैली अशांति का अनुचित्त लाभ उठाते हुए कुछ दंगाइयों ने ईसाई

वाह रे ममता बेनर्जी वाह

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तृणमूल कांग्रेस के पश्‍िचमी बंगाल में लाल के लिए कोई जगह नहीं। लाल को सत्‍ता से बर्खास्‍त कर चुकी ममता बेनर्जी की अगुवाई वाली सरकार ने गत 5 अगस्‍त को आये सर्वोच्‍च अदालत के फैसले लाल बत्‍ती का दुरुप्रयोग रोकना चाहिए के बाद फैसला लिया कि लाल रंग की बत्‍ती को हरे में बदल दिया जाएगा। ममता बेनर्जी सरकार के इस फैसले से हैरान सीपीएम कहती है कि सरकार करने क्‍या जा रही है यह समझ से परे है।  मदन मित्रा, खेल और परिवहन मंत्री ने कहा कि एक राज्‍यपाल की कार को छोड़कर बाकी सब पर वीआईपी लोगों की कारों पर लाल की जगह अब हरी बत्‍ती लगेगी। उनका कहना है कि पश्‍चिमी बंगाल में लाल के लिए कोई जगह नहीं है। इस संदर्भ में उनको ममता बेनर्जी से मंजूरी मिल चुकी है। इससे पहले सरकार सरकारी दीवारों और अन्‍य कार्यालयों को हरे रंग में रंग चुकी है।   अगर अदालती आदेश की बात करें तो अदालत ने कहा था कि लाल बत्‍ती सायरन के कारण लोग प्रभावित होते हैं, मगर पश्‍िचमी बंगाल सरकार ने लाल को हरा कर अदालती आदेश के आधे हिस्‍से पर रंग चढ़ा दिया है, पूरे पर नहीं, क्‍यूंकि लाल बत्‍ती हो या हरी। इससे फर्क नहीं पड़ता, फर्क पड़

एबीपी न्‍यूज ने शुरू किया आपका ब्‍लॉग

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लिखने वाले को चाहिए प्‍लेटफॉर्म, थोड़ी सी प्रसिद्धि, और कंपनी को माल। इंटरनेट की दुनिया में अब ब्‍लॉगरों का दम बोलने लगा है। कल तक पानी पी पी कर कोसने वाले आज ब्‍लॉग जगत के धुरंधरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए जुट चुके हैं। ब्‍लॉगर डॉट कॉम का शुक्रिया जिसने अपना मंच आजाद लिखने वालों को दिया। किसी ने यहां कविताएं लिखी, किसी ने अपनी हर रोज की दिनचर्या। ब्‍लॉगिंग धीरे धीरे अपने चर्म की तरफ बढ़ने लगी। हिन्‍दी ब्‍लॉगरों की भीड़ इंटरनेट पर एकत्र होने लगी। ब्‍लॉगवाणी ने ब्‍लॉगरों को दम भरने का मौका दिया। छोटी छोटी नुक्‍कड़ बैठकों की तरह ब्‍लॉगरों मीटों का आयोजन होने लगा। भारत में ब्‍लॉगर, यानि स्‍वतंत्र कलम का मालिक उभरकर सामने आने लगा। अख़बारों में लेखन को जगह मिलने लगी। अब संपादक के नाम पत्र लिखने की जरूरत न महसूस होने लगी। ब्‍लॉगर और वर्डप्रेस का साथ मिलने से ब्‍लॉगर खुश हुआ। उसकी कलम दिन प्रति दिन नये नये शब्‍दों को जन्‍म देती चली गई। आज ब्‍लॉगर के लिए देश के बड़े बड़े मीडिया दिग्‍गजों ने अपनी वेबसाइटों पर ब्‍लॉग व्‍यवस्‍था कर दी, जोकि केवल शुरूआती दौर में उनके अपने कर

82 साल पहले मनाया गया था 'स्‍वतंत्रता दिवस'

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आज पूरे देश में स्‍वतंत्रता दिवस मनाया गया। एक तरफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले से राष्‍ट्र को संबोधित किया, तो दूसरी तरफ मीडिया के जरिये संभावित पीएम पद के उम्‍मीदवार गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालन कॉलेज से संबोधन किया। मनमोहन सिंह का भाषण खत्‍म हुआ तो नरेंद्र मोदी का भाषण नौ बजे शुरू हुआ, पूर्व अनुमान मुताबिक नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के भाषण पर हल्‍ला बोला। नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्‍होंने देश की आजादी में अहम रोल अदा करने वाले सरदार पटेल और महात्‍मा गांधी का जिक्र करने की बजाय एक परिवार की महिमा गाई। लेकिन मुझे दोनों नेताओं ने पूरी तरह निराश किया। माना मनमोहन सिंह गांधी परिवार से आगे नहीं बढ़े, लेकिन कल की उम्‍मीद बन चुके नरेंद्र मोदी भी तो गुजरात से आगे नहीं बढ़ सके। वे भी केवल महात्‍मा गांधी और सरदार पटेल तक सीमित रह गए। उनको भी याद नहीं आई शहीद ए आजम भगत सिंह की, सुभाष चंद्र बोस की। सुभाष चंद्र बोस, जो एक कुलीन परिवार में पैदा हुए, लेकिन अंत तक भारत की आजादी के लिए लड़ते रहे। देश को आजाद करवाने के लिए बाहरी देशों का सहयो

धूम 3 पोस्‍टर से शाहिद अफरीदी की अपील तक

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यशराज फिल्‍म्‍स ने अपनी आगामी फिल्‍म का पोस्‍टर बाजार में उतार दिया। यशराज फिल्‍म्‍स की धूम 3 का पोस्‍टर उस समय बाजार में उतारा गया, जब अक्षय कुमार बड़े पर्दे पर अपनी वन्‍स अपॉन ए टाइम इन मुम्‍बई दुबारा के साथ उतरने वाले थे, शाहरुख खान की दीपिका पादुकोण के साथ दूसरी फिल्‍म चेनई एक्‍सप्रेस सौ करोड़ के स्‍टेशन को तीन दिन में पार कर चुकी थी, और मेगा बजट फिल्‍म क्रिश 3 का ट्रेलर बड़े स्‍तर पर लॉन्‍च कर दिया गया था। यशराज बैनर इस साल का अंत अपनी मेगा बजट मूवी के साथ करने का ऐलान कर चुका है।    वहीं, इस साल विंबलडन महिला मुकाबलों में गजब का प्रदर्शन करने वाली मारियन बारतोली ने महज खिताब जीतने के 40 दिन बाद खेल को अलविदा कहने की घोषणा कर दी। दुनिया की सातवें नंबर की इस फ्रेंच खिलाड़ी सिनसिनाटी ओपन में सिमोना हैलेप के हाथों मिली हार के बाद प्रेस के सामने बेहद भावुक होकर कहा, ''यही वक्त है जब मुझे संन्यास लेना होगा और इसे अपना करियर मानना होगा। मुझे लगता है मेरी विदाई का समय आ चुका है।''    टेनिस दूर कोलकाता की सड़कों पर निकल चलते हैं। जहां दशकों से पीले रंग की एंबेसड

स्‍वतंत्रता दिवस पर लालन कॉलेज वर्सेस लाल किला

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आजाद भारत का शायद पहला स्‍वतंत्रता दिवस होगा। जब राष्‍ट्र के लोग इस दिन मौके होने वाले आयोजित समारोह में अधिक दिलचस्‍प लेंगे। इसका मुख्‍य कारण मौजूदा प्रधानमंत्री और संभावित प्रधानमंत्री पद के दावेदार के बीच सीधी टक्‍कर। एक हर बार की तरह लाल किले तो तिरंगा फरहाएंगे तो दूसरे भुज के लालन कॉलेज से। ऐसे में इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया के कैमरे दोनों तरफ तोपों की तरह तने रहेंगे। देश के प्रधानमंत्री होने के नाते मीडिया मनमोहन सिंह की उपस्‍थिति वाले समारोह को नजरअंदाज नहीं कर सकता, वहीं दूसरी तरफ संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के रूप में उभरकर सामने आ रहे नरेंद्र मोदी को भी जनता सुनना चाहेगी, जो वैसे भी आजकल टेलीविजन टीआरपी के लिए एनर्जी टॉनिक हैं। गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्‍वयं गुजरात के भुज में आयोजित युवाओं की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘जब हम तिरंगा फहराएंगे तो संदेश लाल किला तक भी पहुंचेगा। राष्ट्र जानना चाहेगा कि वहां क्या कहा गया और भुज में क्या कहा गया।’ इस नरेंद्र मोदी की बात में कोई दो राय नहीं। देश की जनता बिल्‍कुल जानना चाहेगी, ले

उड़ीसा का एक राजा, जो आज जीता फकीर सी जिन्‍दगी

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न उसके घर में जंग खाती तलवार है और न सिंहासन। न राजा महाराजाओं की तरह दीवारों पर लटकी ट्रॉफियां, जो याद दिलाएं बीते दिनों में किए शिकारों की। न पीली पड़ चुकी तस्‍वीरें, जो याद दिलाएं युवा अवस्‍था के सुंदर सुनहरे दिनों की। जिस महल में वे अपनी पत्‍िन और बच्‍चों के साथ 1960 तक रहा, आज वहां लड़कियों का हाई स्‍कूल है। टिगिरिया का पूर्व राजा ब्राजराज क्षत्रीय बीरबर चामुपति सिंह महापात्रा एक कच्‍चे मकान में कुछ प्‍लास्‍टिक की कुर्सियों के साथ अपना जीवन बसर करता है, टिगिरिया जो कि कटक 'उड़ीसा' जिले में पड़ता एक क्षेत्र है। एस्बेस्टस छत में से बारिश का पानी लीक हो रहा है, और भूतपूर्व राजा की लकड़ से बनी खाट को एक फटेहाल तरपाल से ढ़का गया है, ताकि वे छत से लीक हो रहे पानी से भीगकर ख़राब न हो। इस कच्‍चे घर में कुछ किताबें, प्‍लास्‍टिक की बोतलें, एक बैटरी और कुछ कच्‍चे टमाटर पड़े हुए हैं। अपने परिवार से अलग हुआ भूतपूर्व राजा अब अपनी साधनहीन और असहाय जिन्‍दगी की अगुवाई कर रहा है। जबकि दोनों आंखों को मोतियाबिंद ने अपनी चपेट में ले लिया है, और सुनने की शक्‍ति भी समय के साथ पहले से

रैली समीक्षा - नरेंद्र मोदी एट हैदराबाद विद यस वी कैन

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भाजपा के संभावित नहीं, बल्‍कि पक्‍के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी ने आज हैदराबाद में एक रैली को संबोधन किया, कहा जा रहा था कि यह रैली आगामी लोक सभा चुनावों के लिए शुरू होने वाले अभियान का शंखनाद है।  राजनेता के लिए रैलियां करना कोई बड़ी बात नहीं। रैलियां तो पहले से होती आ रही हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी की रैली को मीडिया काफी तरजीह दे रहा है, कारण कोई भी हो। संभावित अगले प्रधानमंत्री या पैसा। नरेंद्र मोदी की रैली का शुभारम्‍भ स्‍थानीय भाषा से हुआ, जो बड़ी बात नहीं, क्‍यूंकि इटली की मैडम हर बात हिन्‍दी में बोलती हैं, भले शब्‍द उनके अपने लिखे हुए न हों। नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा का नारा इस्‍तेमाल किया, यैस वी कैन। इस बात से ज्‍यादा हैरान होने वाली बात नहीं, क्‍यूंकि नरेंद्र मोदी की ब्रांडिंग का जिम्‍मा उसी कंपनी के हाथों में है, जो बराक ओबामा को विश्‍वस्‍तरीय ब्रांड बना चुकी है, और जो आज भी अपनी गुणवत्‍ता साबित करने के लिए संघर्षरत है। ज्‍यादातर अमेरिकन का उस पर से भरोसा उठा चुका है। अफगानिस्‍तान से सेना वापसी, वॉल स्‍ट्रीट की दशा सुधारने, आतंकवा

मोना लीसा की तस्‍वीर का सच आएगा सामने या नहीं

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लिओनार्दो दा विंची के द्वारा कृत एक विश्व प्रसिद्ध चित्र है। यह एक विचारमग्न स्त्री का चित्रण है जो अत्यन्त हल्की मुस्कान लिये हुए है। यह संसार की सम्भवत: सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग है जो पेंटिंग और दृष्य कला की पर्याय मानी जाती है। सदियों से मोनालीसा की रहस्यमय मुस्कुराहट जहाँ रहस्य बनी हुई है। एक तस्‍वीर हजारों बातें, लेकिन अब अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम इटली के फ्लोरेंस में पहुंच चुकी है। इस टीम के लिए उस कब्रगाह को खोल दिया गया है, जिसमें व्यापारी 'फ़्रांसेस्को देल जियोकॉन्डो' की पत्नी 'लिसा गेरार्दिनि' के अन्‍य परिजनों को दफनाया गया था। अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि डीएनए से मोनालीसा की पहचान हो सकती है। लेखक और अनुसंधानकर्ता सिल्‍वानो विन्‍सेटी ने योजना बनाई है कि हड्डियों के जरिये डीएनए टेस्‍ट लेकर पिछले साल सेंट ओर्सोला कान्‍वेंट से मिली तीन खोपड़ियों के साथ टेस्‍ट करके देखा जाएगा, क्‍यूंकि उनके हिसाब से इतिहासिकारों का मानना है कि लीसा गेरार्दिनी अपने अंतिम कुछ साल सेंट ओर्सोला कन्‍वेट में थी, और इस खंडहर इमारत में पिछले साल हड्डियों को ढूंढने

वॉट्सएप, फेसबुक और समाज

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12 साल का रोहन फेसबुक पर खाता बनाता है। अपनी उंगलियों को मोबाइल पर तेज रफतार दौड़ाता है। एंड्रॉयड, विन्‍डोज, स्‍मार्ट फोन और ब्‍लैकबेरी के बिना जिन्‍दगी चलती नहीं। भारतीय रेलवे विभाग भले साधारण फोन से रेलवे टिकट कटवाने की व्‍यवस्‍था की तरफ बढ़ रहा हो, लेकिन भारतीय एक पीढ़ी हाईटेक फोनों की तरफ बढ़ रही है। गेम्‍स, चैट और नेटसर्फिंग आज की युवा पीढ़ी की दिनचर्या का हिस्‍सा बन चुकी है। यह दिनचर्या उनको अजनबियों से जोड़ रही है और अपनों से तोड़ रही है। अंधेर कमरे में भी हल्‍की लाइटिंग रहती है, यह लाइटिंग किसी कम रोशनी वाले बल्‍ब की नहीं, बल्‍िक मोबाइल फोन की स्‍क्रीन से निकली रोशनी है। आज युवा पीढ़ी कहीं पर भी हो, लेकिन उसकी नजर मोबाइल फोन की स्‍क्रीन पर रहती है। रतन टाटा, बिरला और अम्‍बानी से ज्‍यादा व्‍यस्‍त है, हमारी युवा पीढ़ी। सेक्‍सी, होट कैमेंट आज आम बात हो चली है। फेसबुक, वॉट्सएप्‍स के मालिक दिन प्रति दिन धनी हो रहे हैं। सीबीआई और आईबी के दस्‍तावेजों से भी ज्‍यादा आज की युवा पीढ़ी के मोबाइल कॅन्‍फीडेंशियल होते हैं। एक शादी समारोह में एक लड़की मेरा ध्‍यान अपनी ओर खींच रही थी, इस

बिहार को किस की नजर लग गई

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आधुनिकता के इस युग में नजर कोई मायने नहीं रखती। नजर से तात्पर्य, दृष्टि नहीं, अंधविश्‍वास है। कहते सुना होगा कि नजर लग गई। नजर लगना, बुरी बला का साया पड़ना। अच्‍छा होते होते एकदम बुरा होने लगना। जब सब रास्‍ते बंद हो जाते हैं तो भारतीय लोग अपने पुराने रीति रिवाजों के ढर्रे पर आ जाते हैं, और सोचने लगते हैं कि इसके पीछे कुछ न कुछ है, जो अंधविश्‍वास से जुड़ा हुआ है। सड़कों पर चलने वाले ट्रकों के पीछे बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, यह पंक्‍ति आम मिल जाएगी, हालांकि बुरी नजर वाले का मुंह कभी काला नहीं होता, जो लोग पैदाइशी काले होते हैं, उनके दिल और उनकी नजर भी अन्‍य लोगों की तरह पाक साफ होती है। काला रंग, तो ग्रंथों की शान है। काले रंग की  फकीर कंबली ओढ़ते हैं। कोर्ट में वकील काले रंग का कोर्ट पहनता है। आंखों में डालने वाला काजल काला होता है। कुछ लोग तो बुरी नजर से बचाने के लिए घर की छत या मुख्‍यद्वार पर काला घड़ा रखते हैं। शायद बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार अपने सुशासन को बचाए रखने के लिए बिहार के मुख्‍यद्वार पर काले घड़े को रखने भूल गए। मुझे लगता है कि बिहार को किसी की नजर लग ग

Aseem Trivedi का पत्र संतोष कोली की मृत्‍यु के बाद

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साथियों, बहुत दुखद खबर है कि आज संतोष कोली जी हमेशा के लिए हम सब से दूर चली गयीं. अब उनकी वो निर्भीक और निश्चिंत मुस्कराहट हमें कभी देखने को नहीं मिलेगी. अन्ना आंदोलन के सभी मित्रों में संतोष जी मेरी फेवरिट थीं. उनसे मिलकर आपके भीतर भी साहस और सकारात्मकता बढ़ जाती थी. मैं दावे से कह सकता हूँ कि समाज के लिए उनके जैसे निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग आपको बहुत मुश्किल से देखने को मिलेंगे. दामिन ी आन्दोलन के दौरान एक दिन वो बता रही थीं कि अब वो एक गैंग बनाएंगी और ऐसी हरकतें करने वालों से अच्छी तरह निपटेंगी. बाद में उनके फेसबुक पेज पर नाम के साथ दामिनी गैंग लिखा देखा. खास बात ये है कि उनके साहस और आक्रोश में बहुत सहजता थी. ये वीर रस कवियों की तरह आपको परेशान करने वाला नहीं बल्कि आपको बुरे से बुरे क्षणों में भी उम्मीद और सुकून भरी शान्ति देने वाला था. समय समय पर उनके परिवार के सदस्यों से भी मिलने को मिला जो संतोष जी के साथ उनके संघर्ष में कंधे से कंधे मिलाकर साथ दे रहे थे. आज के फाइव स्टार एक्टिविज्म के दौर में एक बेहद साधारण परिवार से आयी संतोष जी का जीवन अपने आप में एक