मैन ऑफ द वीक नरेंद्र मोदी
खुदी को कर बुलंद इतना की खुदा बन्दे से ये पूछे की बता तेरी रजा क्या है, शायद कुछ इसी राह पर चल रहे हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। वक्त भी कदम दर कदम उनका साथ दे रहा है, उनकी तरफ विरोधियों द्वारा फेंका गया पासा भी उनके लिए वरदान साबित होता है।
इस महीने की शुरूआत से नमो या कहूं नरेंद्र मोदी सुर्खियों में हैं, क्यूंकि कर्नाटका में भाजपा की हार के बाद लोगों की निगाह टिकी थी कि गुजरात में नमो मंत्र का क्या हश्र होगा, 2 तारीख को चुनाव हुए, नमो बेफिक्र थे, मानो उनको पता हो कि नतीजे मेरे पक्ष में हैं।
नमो पर वक्त मेहरबान तो उस समय हुआ, जब भाजपा के सीनियर नेता व वेटिंग इन पीएम लालकृष्ण आडवानी मध्यप्रदेश के ग्वालियर पहुंचे, और उन्होंने गंगा गए गंगाराम, जमुना गए जमुना राम, की कहावत को चरितार्थ करते हुए कह दिया, गुजरात से अच्छे तो मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ हैं, क्यूंकि इनकी हालत बेहद खराब थी, जब भाजपा सत्ता में आई, हैरानी की बात तो यह है कि सीनियर नेता अपना लोक सभा का चुनाव निरंतर डेढ़ दशक से गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लड़ते आ रहे हैं।
वेटिंग इन पीएम की वाणी ने राजनीति में हलचल पैदा कर दी और भाजपा नेताओं को नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हुए पाया गया, नमो के लिए इससे अच्छा क्या था कि वे बिना कुछ कहे, चर्चा में आए, उनको पार्टी का भी समर्थन मिल गया।
इसके बाद 5 तारीख आई, जिसका नरेंद मोदी से ज्यादा विरोधियों को इंतजार था, क्यूंकि उन्हें उम्मीद थी कि इस बार नरेंद्र मोदी को जमीन पर पटकने का एक अच्छा मौका मिलेगा, अफसोस कि नमो मंत्र ने काम किया, गुजरात में दो लोकसभा सीटों समेत छह सीटों पर भाजपा कब्जा करने में सफल हुई, इतना ही नहीं, नीतीश कुमार को मिली हार के पीछे उनकी नमो के प्रति दिखाई बेरुखी को ठहराया गया।
इत्तेफाक देखिए, जिस दिन नतीजे आने थे, उसी दिन आंतरिक सुरक्षा मामले में मुख्यमंत्रियों की बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। इस बैठक में बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले से मौजूद थे, लेकिन नमो उनके बाद पहुंचे, नमो ने उनको देखना तक गवारा न समझा, नमो को नीतीश को खासकर उस समय नजरअंदाज करना खटकता है, जब वे नरेंद्र मोदी के प्रिय और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह से बातचीत कर रहे थे।
इस दौरान नमो टेलीविजन की स्क्रीन पर कब्जा जमाने में कामयाब हुए, क्यूंकि गुजरात में हुए उपचुनावों नतीजे आ चुके थे। बिहार में नीतीश बुरी तरह पिट चुके थे, और इतना ही नहीं, मीटिंग में भी नमो के भाषण पर सबकी निगाह थी, हर बार की तरह नमो यहां पर केंद्र को पटकनी देते हुए नजर आए।
ये कारवां यहां कहां रुकने वाला था, नरेंद्र मोदी ने गुजरात की जीत का जश्न दिल्ली में मनाना बेहतर समझा। वे पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मिले, जिनका नरेंद्र मोदी को पूरा पूरा समर्थन है, फिर मिले लालकृष्ण आडवानी से, सारे गिले शिकवे एक किनारे कर, मिलते भी क्यूं न अटल और आडवानी की छात्रछाया में तो नमो ने राजनीति के गुरमंत्र सीखे। वे बात जुदा है कि आडवानी का सर्गिद आज उससे कहीं ज्यादा लोकप्रिय है।
फिर समुद्री किनारे ठंडे मौसम में मंथन के लिए पार्टी ने प्रोग्राम बनाया, तो पब्लिक डिमांड आई कि नमो भी इसमें शिरकत करें, जनता की मांग को भाजपा कैसे ठुकरा सकती थी, मोदी के जाने की ख़बर सुनते समारोह में कांग्रसी, वामपंथी तो किनारा करते सुने थे, लेकिन पहला मौका था कि भाजपा के कई नेताओं ने इस अहम मीटिंग से किनारा कर लिया, राजनीति को और गर्मा दिया, नतीजा चर्चा में रहे नरेंद्र मोदी।
कहते हैं कि गोवा में आयोजित होने वाले एक अन्य प्रोग्राम के लिए भी नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया था, लेकिन नरेंद्र मोदी से पहले गोया में उनका संदेश पहुंच गया था। गोया के रोमानियत भरे मौसम में भाजपा किसी नतीजे पर पहुंचे या न, लेकिन नमो के लिए दिल्ली में मैराथन का आयोजन किया जा रहा है। इससे पहले उनके लिए रॉक कंसर्ट का आयोजन किया गया था।
आज शनिवार, आठ तारीख। 2 से 8 जून तक कई बड़ी ख़बरें आई, लेकिन नमो मंत्र, कांग्रेस की माने तो नमो वायरस को टेलीविजन स्क्रीन से हटा नहीं पाई, वैसे कहते हैं कि सिनेमा हाल से हर शुक्रवार, और टीवी स्क्रीन से हर घंटे एक ख़बर लापता हो जाती है, लेकिन नमो पूरा हफ्ता टीवी स्क्रीन पर बने रहे, चाहे इस दौरान जिया ख़ान आई, चाहे आईपीएल में सट्टेबाजी, चाहे कोई अन्य मामला, लेकिन शाम तक टेलीविजन स्क्रीन पर नमो लौट आते, सुबह का भूला शाम को लौट आए, तो उसको भूला नहीं कहते। आप कुछ भी कहें, लेकिन हम नरेंद्र मोदी को मैन ऑफ द वीक कहते हैं।
इस महीने की शुरूआत से नमो या कहूं नरेंद्र मोदी सुर्खियों में हैं, क्यूंकि कर्नाटका में भाजपा की हार के बाद लोगों की निगाह टिकी थी कि गुजरात में नमो मंत्र का क्या हश्र होगा, 2 तारीख को चुनाव हुए, नमो बेफिक्र थे, मानो उनको पता हो कि नतीजे मेरे पक्ष में हैं।
नमो पर वक्त मेहरबान तो उस समय हुआ, जब भाजपा के सीनियर नेता व वेटिंग इन पीएम लालकृष्ण आडवानी मध्यप्रदेश के ग्वालियर पहुंचे, और उन्होंने गंगा गए गंगाराम, जमुना गए जमुना राम, की कहावत को चरितार्थ करते हुए कह दिया, गुजरात से अच्छे तो मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ हैं, क्यूंकि इनकी हालत बेहद खराब थी, जब भाजपा सत्ता में आई, हैरानी की बात तो यह है कि सीनियर नेता अपना लोक सभा का चुनाव निरंतर डेढ़ दशक से गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लड़ते आ रहे हैं।
वेटिंग इन पीएम की वाणी ने राजनीति में हलचल पैदा कर दी और भाजपा नेताओं को नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हुए पाया गया, नमो के लिए इससे अच्छा क्या था कि वे बिना कुछ कहे, चर्चा में आए, उनको पार्टी का भी समर्थन मिल गया।
इसके बाद 5 तारीख आई, जिसका नरेंद मोदी से ज्यादा विरोधियों को इंतजार था, क्यूंकि उन्हें उम्मीद थी कि इस बार नरेंद्र मोदी को जमीन पर पटकने का एक अच्छा मौका मिलेगा, अफसोस कि नमो मंत्र ने काम किया, गुजरात में दो लोकसभा सीटों समेत छह सीटों पर भाजपा कब्जा करने में सफल हुई, इतना ही नहीं, नीतीश कुमार को मिली हार के पीछे उनकी नमो के प्रति दिखाई बेरुखी को ठहराया गया।
इत्तेफाक देखिए, जिस दिन नतीजे आने थे, उसी दिन आंतरिक सुरक्षा मामले में मुख्यमंत्रियों की बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। इस बैठक में बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले से मौजूद थे, लेकिन नमो उनके बाद पहुंचे, नमो ने उनको देखना तक गवारा न समझा, नमो को नीतीश को खासकर उस समय नजरअंदाज करना खटकता है, जब वे नरेंद्र मोदी के प्रिय और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह से बातचीत कर रहे थे।
इस दौरान नमो टेलीविजन की स्क्रीन पर कब्जा जमाने में कामयाब हुए, क्यूंकि गुजरात में हुए उपचुनावों नतीजे आ चुके थे। बिहार में नीतीश बुरी तरह पिट चुके थे, और इतना ही नहीं, मीटिंग में भी नमो के भाषण पर सबकी निगाह थी, हर बार की तरह नमो यहां पर केंद्र को पटकनी देते हुए नजर आए।
ये कारवां यहां कहां रुकने वाला था, नरेंद्र मोदी ने गुजरात की जीत का जश्न दिल्ली में मनाना बेहतर समझा। वे पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मिले, जिनका नरेंद्र मोदी को पूरा पूरा समर्थन है, फिर मिले लालकृष्ण आडवानी से, सारे गिले शिकवे एक किनारे कर, मिलते भी क्यूं न अटल और आडवानी की छात्रछाया में तो नमो ने राजनीति के गुरमंत्र सीखे। वे बात जुदा है कि आडवानी का सर्गिद आज उससे कहीं ज्यादा लोकप्रिय है।
फिर समुद्री किनारे ठंडे मौसम में मंथन के लिए पार्टी ने प्रोग्राम बनाया, तो पब्लिक डिमांड आई कि नमो भी इसमें शिरकत करें, जनता की मांग को भाजपा कैसे ठुकरा सकती थी, मोदी के जाने की ख़बर सुनते समारोह में कांग्रसी, वामपंथी तो किनारा करते सुने थे, लेकिन पहला मौका था कि भाजपा के कई नेताओं ने इस अहम मीटिंग से किनारा कर लिया, राजनीति को और गर्मा दिया, नतीजा चर्चा में रहे नरेंद्र मोदी।
कहते हैं कि गोवा में आयोजित होने वाले एक अन्य प्रोग्राम के लिए भी नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया था, लेकिन नरेंद्र मोदी से पहले गोया में उनका संदेश पहुंच गया था। गोया के रोमानियत भरे मौसम में भाजपा किसी नतीजे पर पहुंचे या न, लेकिन नमो के लिए दिल्ली में मैराथन का आयोजन किया जा रहा है। इससे पहले उनके लिए रॉक कंसर्ट का आयोजन किया गया था।
आज शनिवार, आठ तारीख। 2 से 8 जून तक कई बड़ी ख़बरें आई, लेकिन नमो मंत्र, कांग्रेस की माने तो नमो वायरस को टेलीविजन स्क्रीन से हटा नहीं पाई, वैसे कहते हैं कि सिनेमा हाल से हर शुक्रवार, और टीवी स्क्रीन से हर घंटे एक ख़बर लापता हो जाती है, लेकिन नमो पूरा हफ्ता टीवी स्क्रीन पर बने रहे, चाहे इस दौरान जिया ख़ान आई, चाहे आईपीएल में सट्टेबाजी, चाहे कोई अन्य मामला, लेकिन शाम तक टेलीविजन स्क्रीन पर नमो लौट आते, सुबह का भूला शाम को लौट आए, तो उसको भूला नहीं कहते। आप कुछ भी कहें, लेकिन हम नरेंद्र मोदी को मैन ऑफ द वीक कहते हैं।
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