आरटीआई का उपयोग और आपकी छवि

सूचना का अधिकार कानून का यदि आप उपयोग नहीं करते हैं तो समझ लीजिये कि आप इस संसार के सबसे अच्छे लोगों में हैं और इसका उपयोग करते हैं तो आप उन लोगों के बीच खलनायक के तौर पर माने जाएंगे जिनका आपके हस्तक्षेप से कुछ नुकसान होने की आशंका है। पहले तो आपको समझाया जाएगा कि आप भले आदमी हैं। आपकी ऐसी छवि नहीं है और जब आप इन बातों में नहीं आएंगे तो वे कहेंगे आखिर आप भी वैसे ही निकले। लब्बोलुआब यह है सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने वाले किसी भी उस व्यक्ति की जो आमतौर पर किसी विवादों में नहीं पड़ता है। मुझे पता नहीं कि आपने आरटीआई अर्थात सूचना के अधिकार के तहत कोई जानकारी मांगने का कभी कोई प्रयास किया या नहीं और यदि इस कानून का उपयोग आप कर रहे हैं तो आपके अनुभव की भी मुझे कोई जानकारी नहीं। इस मामले में मैं अपना अनुभव जरूर आज आपसे बांटना चाहूंगा।

आरटीआई है क्या, यह तो अब लोगों, खासतौर पर इलिट क्लास को बताने की जरूरत नहीं है। इसका उपयोग कहां और कैसे करना, यह भी उन्हें मालूम है और यह भी कि इसके उपयोग से उनके हितों पर क्या असर पड़ सकता है। कभी इस कानून का सच जानना है तो आप सीधे न सही, उस व्यक्ति के कान में फुसफुसा दीजिये कि आप फलां जानकारी के लिये सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने जा रहे हैं। यकिन मानिये, ऐसा करने से वे आपको रोकेंगे तो बिलकुल भी नहीं लेकिन आपको नेक सलाह दी जाएगी...कहां आप झंझट में पड़ रहे हैं। आपकी छवि ऐसी नहीं है। देख लेते हैं कि रास्ता कहां से निकल सकता है। मुझे एकाधि बार ऐसे अनुभव से गुजरना पड़ा है।

मैं नहीं जानता कि ऐसे सलाह देने वाले मेरे दोस्त हैं या दुश्मन लेकिन उन्होंने मेरे अधिकार का हनन जरूर किया है अथवा कर रहे हैं, यह मेरा मानना है। जब वे कहते हैं कि आपकी छवि ऐसी नहीं है तो मुझे लगता है कि सूचना के अधिकार के तहत मैं जानकारी मांगने गया तो इलिट वर्ग में कुख्यात हो जाऊंगा। जो लोग आरटीआई का उपयोग कर रहे हैं, लगभग हर आदमी को इसी नजर से देखा जाता है। सवाल यह है कि इस कानून के उपयोग से इतना डर क्यों? क्यों कानून के उपयोग से रोका जाता है? क्या इस कानून के तहत मांगी गई जानकारी से पोल खुल जाती है? इन सभी सवालों का जवाब हां में होगा क्योंकि डर इस बात का है कि आपके द्वारा मांगी गयी जानकारी उन तमाम गलत फैसलों और उन निहित स्वार्थों को सामने ले आएगी जो वे छिपाना चाहते हैं। यह भी सच है कि आरटीआई ने जानकारी छिपाने वालों की नींद उड़ा दी है। शायद यही कारण है कि आरटीआई का उपयोग करने वालों को लगभग असामाजिक तत्व मान लिया गया है। मध्यप्रदेश में नहीं किन्तु किसी अन्य राज्य में इस कानून का उपयोग करने वाले किसी एक्टिविस्ट को मौत के घाट उतार दिया गया है। मध्यप्रदेश इस मामले में अभी भीरू है लेकिन ये भीरू कब वीरता का परिचय दे बैंठेंगे, कहा नहीं जा सकता।

सूचना के अधिकार का डर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि इस अधिकार का उपयोग करने पर रोक तो नहीं है किन्तु जानकारी देने का अर्थ छिपी बातों को उजागर करना है। यह उनकी स्वेच्छारिता से नहीं, बल्कि कानून के डंडे के डर से हो रहा है। शायद यही वजह है कि पहले पहल तो हरसंभव कोशिश की जाती है कि किसी भी तरह से इस कानून का उपयोग नहीं किया जाए और किया गया तो उपयोगकर्ता को खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यहां तक कि उसके साथ बैठने में भी परहेज किया जा रहा है जबकि कल तक उसी के साथ बैठने में यही लोग गर्व का अनुभव करते थे। सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने का नागरिक हक संविधान में है और इस बारे में हीला-हवाली करने वालों के खिलाफ दंड का प्रावधान भी है। व्यावहारिक रूप् में देखा जाए तो अधिकांश मामलों में टालने का रवैया अख्तियार किया जाता है। यह भी सच है कि कानून का उपयोग करने वालों को पूरी प्रक्रिया पता नहीं होती है और इसका फायदा संबंधित लोग उठाने से नहीं चूकते हैं।

ऐसा भी नहीं है कि सूचना के अधिकार देने में लगभग सभी लोग खुद को बचाना चाह रहे हैं अथवा जानकारी देने से बचने की कोशिश में है। इसका एक पक्ष और भी है जिस पर गौर करना, सोचना और रास्ता निकालने की कोशिश करना चाहिए। नब्बे बल्कि पिचनाबे फीसदी जानकारी छिपायी जा रही है या नहीं दी जा रही है अथवा लेटलतीफ की जा रही है तो यह तंत्र की कमजोरी है किन्तु सूचना के अधिकार के तहत जानकारी चाहने वालों के समक्ष एक बड़ी बाधा उन लोगों से भी है जो निजी हित के लिये इसका उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। यह कहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा है कि कौन सी जानकारी सर्वजनहित के लिये है और कौन सी जानकारी व्यक्तिगत हित अथवा परेशानी खड़ी करने के लिये। ऐसी स्थिति में कई बार आवश्यक होने के बावजूद सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मिल पाना दुष्कर कार्य हो जाता है। सूचना के अधिकार कानून से जुड़े लोगों से बात करने पर यह जानकारी मिलती है उनकी परेशानी का कारण ज्यादतर वे लोग होते हैं जो रंजिशवश जानकारी हासिल करना चाहते हैं। जानकारी उपलब्ध कराना कानूनी दायित्व है किन्तु इस सबमें समय और अर्थ दोनों का बड़ा नुकसान होता है। ये लोग इस बात को मानते हैं कि सही और जनहित से संबंधित जानकारी मांगी जानी चाहिए किन्तु सिर्फ जानकारी के लिये जानकारी मांगने से कई तरह की उलझने पैदा हो रही हैं। पहले से सूचना के तहत जानकारी मांगने वालों की लम्बी लाइन है। जो वास्तव में जनहित में अथवा न्याय पाने की गरज से जानकारी चाहते हैं, उन्हें परेशानी हो रही है। किसी भी विभाग का प्रशासकीय अमला सीमित है और एक जानकारी देने में उस प्रशासकीय अमले का सत्तर फीसद अमला जुट जाता है। मांगी गयी जानकारियों का कहां और किस तरह उपयोग किया जाएगा अथवा किया जा रहा है, इस बारेे में कुछ बातें अस्पष्ट हैं, इस बात का भी खुलासा किया जाना चाहिए।

सूचना के अधिकार के तहत जानकारी नहीं देने के प्रयास में संबंधित लोग नहीं रहते हैं तो कुछ परेशानियां अकारण इस कानून का उपयोग करने वालों से भी हो रही है। हालांकि दूसरा पक्ष शायद बड़ा नहीं है। यदि होता तो बार बार और हर बार सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने की बात से ही अड़चनें पैदा नहीं की जाती। ऊपर जिन पांच फीसदी लोगों का उल्लेख मैंने किया है, वह गैरवाजिब नहीं है किन्तु इन पांच फीसदी लोगों की आड़ लेकर पिचानबे फीसदी लोगों को जानकारी से वंचित किया जा रहा है, यह भी सच है। मुझे लगता है कि इस कानून का उपयोग करने से यदि कोई आपको खलनायक मान कर चलता है तो चले लेकिन आप अपने अधिकार का उपयोग करना नहीं भूलें। इसके लिये यह भी जरूरी है कि आप कानून का अध्ययन कर लें और उन बारीकियों को समझ लें जिससे आपको इस कानून के उपयोग में सुविधा होगी।


लेखक
मनोज कुमार
k.manojnews@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. पिछले दिनों आरटीआई से सम्बंधित एक बड़ी कम्पनी के प्रबंधक से चर्चा चल रही थी वे बताने लगे कि उनकी कम्पनी से हर रोज आरटीआई फाइल की जाती है|
    मैंने पुछा क्यों ? और कहाँ ?
    उन्होंने बताया कि उनकी कम्पनी के ग्राहक सरकारी विभाग होते है और वे समय पर न तो उनके द्वारा दी गई सेवाओं का भुगतान करते है न बताते है कि कब करेंगे? सो हम उनसे बकाया निकालने के लिए कितना समय लगेगा पूछने के लिए आरटीआई लगाते है| और आरटीआई लगाते ही वे या तो बताएँगे या जबाब देने से पहले भुगतान करेंगे|

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