कार्टूनिस्‍ट असीम त्रिवेदी को सलाह

जनसत्ता के संपादक एवं लेखक ओम थानवी  कार्टूनिस्‍ट असीम त्रिवेदी के बारे में लिखते हैं "असीम त्रिवेदी को टीवी चैनलों पर बोलते और अपनी ही बिरादरी के लोगों यानी कार्टूनकारों से उलझते देखकर रसूल हमज़ातोव की एक सूक्ति याद आई: मनुष्य को बोलना सीखने में तीन साल लगते हैं, मगर क्या बोला जाए यह सीखने में उम्र लग जाती है!! बहादुर असीम, इस प्रसिद्धि और सहानुभूति को पहले पचाओ. कार्टून की कला अंततः विवेक और संयम से निखरती है. शब्द हों, चाहे रेखाएं. कलाकार अपने काम से पहचाना जाएगा, क्या बोलता है इससे नहीं. देशद्रोह का खेल सरकार हार गयी. पर अपनी कला की बाज़ी तुम्हें अभी जीतनी है. आकस्मिक ख्याति उसमें रोड़ा न बने. यही शुभाशंसा है।"

न्‍यूज 24 मैनेजिंग एडिटर,अजीत अंजुम
  कार्टूनिस्‍ट असीम के शब्‍दों का विश्‍लेषण करते हुए कुछ यूं लिखते हैं, "असीम त्रिवेदी देशद्रोह के आरोप में जेल क्या हो आए ....मीडिया में तीन दिनों तक छाए क्या रहे ....अपने को हीरो मानने लगे हैं ...अब उन्हें लगने लगा है कि दुनिया भर के कार्टूनिस्ट एक तरफ और वो एक तरफ ....आज शाम न्यूज 24 पर एक कार्यक्रम में असीम हमारे साथ थे...उन्होंने कहा - मैं ही अकेला ऐसा कार्टूनिस्ट हूं जो आंदोलन के लिए कार्टून बनाता हूं ...मैं ही अकेला कार्टूनिस्ट हूं जो पैसे के लिए कार्टून नहीं बनाता ....मैं ही अकेला ऐसा कार्टूनिस्ट हूं जो .......ब्लां ब्लां ब्लां.....शंकर से लेकर आर के लक्ष्मण तक और सुधीर धर से लेकर सुधीर तैलंग तक ....सब फेल हैं अब उनके आगे ....कुछ इसी अंदाज में असीन बोले जा रहे थे ....टाइम्स नाऊ पर भी असीम कुछ इसी अंदाज में थे .......असीम को देशद्रोह के मुकदमें में फंसाना सरकार और सिस्टम की फासीवादी सोच का नतीजा है ....उनकी देशभक्ति पर कतई संदेह नहीं किया जा सकता लेकिन अगर असीम अपने को दुनिया का महान कार्टूनिस्ट और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सबसे बड़े पक्षधर मानने लगे तो इसे आप क्या कहेंगे ......असीम जिंदगी भर कार्टून बनाते रहते , पता नहीं कितने लोग उन्हें जानते लेकिन तीन दिनों में उन्हें देश जानने लगा है ....अब डर है कि कहीं असीम का पांव जमीन से न उखड़ जाए ....."


इससे पहले उन्‍होंने लिखा था, "असीम त्रिवेदी ने कार्टून बनाकर ऐसा कोई जुर्म नहीं किया है कि उन पर देशद्रोह का मुकदमा चले और उन्हें जेल में भेज दिया जाए ...लेकिन जो लोग सोशल मीडिया पर कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को क्रांतिकारी कार्टूनिस्ट और उनके कार्टून को सही ठहराने में जुटे हैं , उनसे पूरी तरह असहमत हूं ....क्या आपने उनके सभी कार्टून देखे हैं ....अभिव्यक्ति की आजादी का ये मतलब नहीं कि संविधान पर मूतने लगें और .......प्लीज आप उ
नके हर कार्टून को देखिए ...उनका गुस्सा भ्रष्ट सिस्टम से हो सकता है ..सरकार से हो सकता है ...इनके खिलाफ जैसे चाहे कार्टून बनाएं लेकिन उनके इस तरह के कार्टून को सही तो बिल्कुल नहीं ठहराया जा सकता ....प्लीज मेरे स्टेटस पर राय देने से पहले और आंख मूंदकर असीम के कार्टून का समर्थन करने से पहले उनके सभी कार्टून जरुर देख लें ....फिर भी अगर लगता है कि वो क्रांतिकारी कार्टूनिस्ट हैं और उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इस हद तक हासिल होना चाहिए तो ......मैं फिर कह रहा हूं कि मैं उनके जेल भेजे जाने और देशद्रोह के मुकदमे के सख्त खिलाफ हूं लेकिन संविधान पर मूतने वाले कार्टून के भी खिलाफ हूं."

रविश कुमार, एनडीटीवी न्‍यूज एंकर। असीम को नसीहत देते हुए कुछ इस तरह लिखते हैं "असीम से यही गुज़ारिश कर रहा हूं कि समझ का निरंतर विकास करते रहें । कुछ स्वीकार भी करें कुछ का परित्याग भी । वरना महादेव बनने के चक्कर में माटी के माधो बनकर रह जायेंगे । टीवी अंधा कुआं है । ये सिर्फ़ चमकता है।"

टिप्पणियाँ

  1. इस मुद्दे पर मैंने भी लिखा और अपने शुभचिंतकों की नाराजी मोल ली -

    (1)
    सीमा से बाहर गए, कार्टूनिस्ट असीम |
    झंडा संसद सिंह बने, बेमतलब में थीम |
    बेमतलब में थीम, यहाँ आजम की डाइन |
    कितनी लगे निरीह, नहीं अच्छे ये साइन |
    अभिव्यक्ति की धार, भोथरी हो ना जाये |
    खींचो लक्ष्मण रेख, स्वयं अनुशासन लाये ||

    (2)
    बड़ा वाकया मार्मिक, संवेदना असीम |
    व्यंग विधा इक आग है, चढ़ा करेला नीम |
    चढ़ा करेला नीम, बहुत अफसोसनाक है |
    अगला कैसा चित्र, करो क्या देश ख़ाक है ?
    सुधरे न हालात, हाथ में फिर क्या लोगे ?
    गैंगरेप के बाद, चितेरे चढ़ बैठोगे ??

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  2. जब मित्र मण्डली अधिक नाराज हुई तो यह भी लिखा -

    चित्रण माँ से रेप का, जाए रविकर झेंप |
    जंग लंग गौरांग तक, गजनी दुश्मन खेंप |
    गजनी दुश्मन खेंप, बाल न बांका होवे |
    देख दुर्दशा किन्तु, वही भारत माँ रोवे |
    अगर गुलामी काल, मानते लाज लुटी है |
    नाजायज औलाद, वही तो आज जुटी है ||


    खेल आस्था से करे, हमको नही क़ुबूल |
    नादानियां असीम हैं, शैतानी मकबूल |
    शैतानी मकबूल, खींच नंगी तस्वीरें |
    झोंक आँख में धूल, करे लम्बी तकरीरें |
    माँ का पावन रूप, करे कूँची से मैला |
    सत्ता तो मक्कार, चीर के कर दे चैला ||

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  3. कल रात टाइम्स नाउ पर मैं भी बहुत गौर से असीम त्रिवेदी के व्यवहार का अवलोकन कर रहा था ! उसमे परिपक्वता की बहुत ज्यादा कमी है , इसमें कोई दो राय नहीं ! खैर, जहां तक मैं समझता हूँ केंद्र बिंदु असीम और उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करने वाले वकील रविन्द्र से बिलकुल भी नहीं है ! लड़ाई है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन की और एक नागरिक के अधिकारों और कर्तव्यों को ठीक से परिभाषित करने की !

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  4. आपका समर्थन करता हूँ..

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