मेंढ़क से मच्‍छलियों तक वाया कुछेक बुद्धजीवि

अमेरिका और भारत के बीच एक डील होती है। अमेरिका को कुछ भारतीय मेंढ़क चाहिए। भारत देने के लिए तैयार है, क्‍यूंकि यहां हर बरसाती मौसम में बहुत सारे मेंढ़क पैदा हो जाते हैं। भारत एक टब को पानी से भरता है, और उसमें उतने ही मेंढ़क डालता है, जितने अमेरिका ने ऑर्डर किए होते हैं। भारतीय अधिकारी टब को उपर से कवर नहीं करते। जब वो टब अमेरिका पहुंचता है तो अमेरिका के अधिकारियों को फोन आता है, आपके द्वारा भेजा गया टब अनकवरेड था, ऐसे में अगर कुछ मेंढ़क कम पाएगे तो जिम्‍मेदारी आपकी होगी। इधर, भारतीय अधिकारी पूरे विश्‍वास के साथ कहता है, आप निश्‍िचंत होकर गिने, पूरे मिलेंगे, क्‍यूंकि यह भारतीय मेंढ़क हैं। एक दूसरे की टांग खींचने में बेहद माहिर हैं, ऐसे में किस की हिम्‍मत कि वो टब से बाहर निकले। आप बेफ्रिक रहें, यह पूरे होंगे। एक भी कम हुआ तो हम देनदार।

जनाब यहां के मेंढ़क ही नहीं, कुछ बुद्धिजीवी प्राणी भी ऐसे हैं, जो किसी को आगे बढ़ते देखते ही उनकी टांग खींचना शुरू कर देते हैं। आज सुबह एक लेख पढ़ा, जो सत्‍यमेव जयते को ध्‍यान में रखकर लिखा गया। फेसबुक पर भी आमिर खान के एंटी मिशन चल रहा है। कभी उसकी पूर्व पत्‍नी को लेकर और कभी गे हरीश को लेकर, लोग निरंतर आमिर को निशाना बना रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि आमिर कुछ नया नहीं कर रहे, वो पुराने घसीटे पिटे मुद्दे उठाकर हीरो बनने की कोशिश कर रहे हैं। पैसे के लिए कर रहे हैं। राजस्‍थान पत्रिका में दवेंद्र शर्मा लिखते हैं कि टैलीविजन वाले असली हीरोज को आगे लाएं, क्‍यूंकि लोग असली हीरोज को देखना चाहते हैं।

चलो एक बार मान भी लेते हैं कि आमिर खान पैसे कमाने के लिए यह सब कर रहा है। वो लोगों की निगाह में हीरो बनना चाहता है। फिर मैं बुद्धिजीवियों से सवाल करता हूं कि आखिर आमिर खान कौन है। तो लाजमी है, जवाब आएगा अभिनेता। मेरा अगला सवाल होगा, अभिनेता क्‍या करता है। तो उनका जवाब होगा अभिनय। लोग भी तो यह कह रहे हैं कि आमिर अभिनय कर रहे हैं, अगर आमिर अभिनय नहीं करेगा तो कौन करेगा।

अगर इस अभिनय से किसी को फायदा होता है तो बुराई क्‍या है। पिछले दिनों एनडीटीवी न्‍यूज एंकर रविश कुमार ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर लिखा कि उसको अंग्रेजी पत्रिका आऊटलुक नहीं मिली, क्‍यूंकि उस पर आमिर का फोटो छपा था। जाने अनजाने में ही सही, लेकिन आऊटलुक को फायदा तो हुआ। अब लोगों को आमिर में रुचि कुछ ज्‍यादा होने लगी है, मतलब लोग आमिर को सुनना चाहते हैं, उसके बारे में पढ़ना चाहते हैं। हम को खुशी होनी चाहिए कि जो मुहिम कुछ आम लोगों ने शुरू की। आज उन मुद्दों को आमिर खान जैसी हस्‍ती का समर्थन मिल रहा है, चाहे वह अभिनय के तौर पर ही सही।

न आना इस देस लाडो हो, अगले जन्‍म मोहे बिटिया कीजिये हो या चाहे बालिका बधु हो टेलीविजनों की एक अच्‍छी पहल थी बुराईयों के खिलाफ। बुराई के खिलाफ आवाज न सही, तो एक हूक ही काफी है, क्‍यूंकि डूबते को तिनके का सहारा होता है। बुराई के खिलाफ उठी आवाज को हम दबाने में जुट जाते हैं, और फिर कहते हैं कि बुराई तेजी से बढ़ रही है। बुराई के खिलाफ उठ रही आवाज को सुनो। आमिर है या अन्‍ना है, गली का कोई आम आदमी है। यह मत देखो। अगर कुछ कर नहीं सकते, तो करने वालों को मत रोको।

मैं एक छोटी सी कहानी कहते हुए अपनी बात को विराम देने जा रहा हूं। एक बच्‍चा दौड़ दौड़ कर समुद्र के किनारे गिरी हुई मछलियों को वापिस समुद्र में फेंक रहा था, तो उसके दादा ने कहा, बेटा किस किस को बचाओगे, तो बच्‍चे ने कहा, लो यह तो बच गई। लो यह भी बच गई। एक एक मच्‍छली को उठाकर वापिस समुद्र में फेंकते हुए बच्‍चा उक्‍त वाक्‍य बोलता हुआ आगे बढ़ रहा था। उम्‍मीद है कि बुराई के खिलाफ लड़ने वाले ऐसे ही आगे बढ़ते रहें। बोलने वाले बोलते रहेंगे।

टिप्पणियाँ

  1. भ्रूण हत्या जैसे अमानवीय सामाजिक कलंक पर जो "लोग "(थोपे हुवे बुद्धिजीवी ) आमिर खान के फायदे और इरादों की बात कर रहे है |
    ऐसे बुद्दिजीवियों के व्यक्तिगत जीवन की तलाशी लेनी चाहिए | कन्या भ्रूण हत्या का उन्मूलन किसी को फायदा पहुंचाकर भी किया जा सके तो
    समझना बहुत सस्ते में समाज की चेतना को निर्वस्त्र होने से बचा लिया\
    पुरे प्रकरण में इक बात चुभने वाली ये है की क्या अब सिर्फ "सामर्थवान का सच" सुना जाएगा -जैसे " समरथ को नहीं दोष गोसाई "|
    -मृत्युंजय पद्मनाभ

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  2. बाहुबली के सामने हरेक नत है।

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  3. बेनामी5/16/2012 2:48 pm

    boss to sahi hai aap ki ,aamir khan ne apni biwi ko isliye chhod kiya kyoki koi dusri ladki unki jindgi me aa gayi thi ..

    wo kud gandgi me duba hai usse gandgi kya saf hogi ...

    आखिर असली जरुरतमंद कौन है
    भगवन जो खा नही सकते या वो जिनके पास खाने को नही है
    एक नज़र हमारे ब्लॉग पर भी
    http://blondmedia.blogspot.in/2012/05/blog-post_16.html

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. श्री आलोक मोहन जी, एक अवगुन तो सब में होता है। वो आमिर में भी होगा। मगर उसके अच्‍छे काम को भी सराहना हमारा पहला कार्य है।

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  4. kuchh bhi karo Desh ka culture or views now towards wester philosophy ,because of no indigenous leader afforted for sustaining ancient Hindustan.

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