विद्या बालन की 'द डर्टी पिक्‍चर'

रविवार के समाचार पत्र में एक बड़ा सा विज्ञापन था, जिसमें द डर्टी पिक्‍चर का पोस्‍टर और टीवी पर फिल्‍म प्रसारित होने का समय छपा हुआ था, यकीनन लोगों ने समय पर टीवी शुरू किया होगा, मगर हुआ बिल्‍कुल उनकी उम्‍मीद से परे का, क्‍यूंकि टीवी पर उस समय कुछ और चल रहा था, ऐसा ही कुछ हुआ था, पेज थ्री के वक्‍त हमारे साथ।

हम पांच लोग टिकट विंडो से टिकट लेकर तेज रफ्तार भागते हुए सिनेमाहाल में पहुंचे, जितनी तेजी से अंदर घुसे थे, उतनी तेजी से बाहर भी निकले, क्‍यूंकि सिनेमा हॉल के बाहर पोस्‍टर पेज थ्री का था, और अंदर फिल्‍म बी ग्रेड की चल रही थी। शायद द डर्टी पिक्‍चर देखने की उम्‍मीद लगाकर रविवार को 12 बजे टीवी ऑन करने वालों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ होगा। यकीनन लोग घर से बाहर तो नहीं भागे होंगे, मगर निराशा होकर चैनल तो जरूर बदल दिया होगा।

द डर्टी पिक्‍चर, इस लिए अपने निर्धारित समय पर प्रसारित नहीं हुई, क्‍यूंकि कोर्ट ने इसके प्रसारण रोक लगाते हुए इसको रात्रि ग्‍यारह बजे के बाद प्रसारित करने का आदेश दिया है। मगर मसला तो यह उठता है कि अगर 'द डर्टी पिक्‍चर' इतनी ही गंदी है, जितनी कि कोर्ट मान रही है तो इस फिल्‍म को राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से क्‍यूं नवाजा गया? बात तब समझ से परे हो जाती है, जब एक तरफ फिल्‍म को राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जाता है, और वहीं दूसरी तरफ कोर्ट द्वारा इसके प्रसारण पर रोक लगा दी जाती है।

अगर कोर्ट एक फिल्‍म के प्रसारण पर रोक लगाती है तो बुरी बात मानी जानी चाहिए, हां अगर कोर्ट ए सर्टिफिकेट हासिल सभी फिल्‍मों पर रोक लगाने का फैसला सुनाती है, तो हमको स्‍वागत करना चाहिए। मगर अफसोस की बात है कि पिछले कुछ सालों में बहुत कम ऐसी फिल्‍में बनी हैं, जिनको प्रसारण का हक मिलना चाहिए, लेकिन मिल रहा है। अभी पिछले दिनों आई रासक्‍ल, दिल तो बच्‍चा है, मॉर्डर, दम मारो दम, कितनी साफ सुधरी हैं, जो बार बार प्रसारित की जा रही हैं।

कुर्बान फिल्‍म में करीना कपूर का बेलिबास दृश्‍य, अभी रिलीज हुई हेट स्‍टोरी में नायिका नग्‍न पोस्‍टर और जिस्‍म 2 में सन्‍नी लियोन का नग्‍न शरीर पर पारदर्शी चुनरी ओढ़कर लेटना क्‍या रोक लगाने वाले मामले नहीं हैं। जब जंगल पूरी तरह आग के आगोश में चला जाता है, तब हमारी सांस्‍कृति को बचाने वालों की आंख खुलती है, और रोक लगाने की बातें शुरू होती हैं, जो एक प्रचार से ज्‍यादा कुछ नहीं होती।

चलते चलते  इतना ही कहूंगा कि यह फिल्‍म भी प्रसारित हो जाती चुपके से, मगर इसका नाम 'द डर्टी पिक्‍चर' ही सबसे बड़ी प्रॉब्‍लम खड़ी कर गया, 'द डर्टी पिक्‍चर' बोले तो 'गंदी छवि', और 'गंदी छवि' को कैसे प्रसारित किया जा सकता है। वैसे भी कहावत है, बद से बदनाम बुरा। और 'द डर्टी पिक्‍चर' बदनाम हो चुकी है। भले ही इसके डॉयलॉग छोटे पर्दे पर पुरस्‍कार समारोह की शान बने हों, मगर कोर्ट हमारी दलीलों व साबूतों पर अपना फैसला सुनाती है।

टिप्पणियाँ

  1. Wah yaar kulwante gajab ki lekhan shaili men kataksh kiya hai. bahut khoob.. Lekin yaar is par puraskar dene walon ko bhee sochana hoga ki kya wakai film is kabil thee. Dusare yadi galat hon (jinhone anya film ko prasaran ki ijajat di) to is court ke judge ko aap galat naheen thahra sakate.

    haal hee men britain men 1 bill pesh huva jismen PM ne bhee intrest lekar internet tak par parose jane walee ashalilata par puree tarah rok lagane kee bat kahee. unhone ashlilata men ruchi lena ek tarah ka mansik rog bataya hai.

    Britain jaisa paschim desh iski pahal kar raha hai aur hamare vidhayak vidhan sabha men porn film dekhate pakade gaye. isi ki chalate karnatak Assembly men mobile ban kiya gaya hai. Nashe ki bhanti is par bhee rok lagana chahiye.

    Rgds

    Vishal

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