एक पल में जिन्दगी बदल सकती है
कुछ लोग कहते हैं, यह सब किताबी बातें हैं, ऐसा नहीं हो सकता, किसी व्यक्ित की जिन्दगी एक पल में नहीं बदल सकती, तो मैं कहता हूं बदल सकती है, लेकिन उस पल के दौरान बात व्यक्ित के दिल पर लगनी चाहिए।
इस बारे में मेरी नजरों में सबसे बेहतरीन उदाहरण है, जैन महाऋषि तरुणसागर जी महाराज हैं, जो कहते हैं कि जब वह 12-13 साल के थे, तो स्कूल से आते वक्त वह एक जैन धर्मशाला में कुछ पल रुके, वहां प्रवचन हो रहे थे, वहां प्रवचन करने वाले महाराज जी ने एक बात कही, जो महाराज के दिल में घर कर गई, और आज जैन मुनि तरुण्ा सागर ऋषि को कौन नहीं जानता, वह बात थी, ईश्वर हर व्यक्ति के भीतर है, और हर व्यक्ित ईश्वर हो सकता है।
सच में जिन्दगी पल भर में बदलती है, मगर उसके लिए दिमाग के दरवाजे खुले होने चाहिए, क्योंकि बंद पैराशूट व्यक्ित को आसमान की सैर नहीं करवा सकता। पत्नी की बात तुलसीदास के मन को लगी थी, तभी जाकर वह श्रीराम चरित्र मानस लिख पाए। हम सबको सत्संग सुनने की, भाषण सुनने की आदत हो जाती है, इसलिए बात दिल पर नहीं लगती।
बदल सकती है पर वो पल कब आएगा ये पता नहीं चलता ...
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