एक अच्छे जज की भांति फैसला सुनाएं
सच में, मैं कभी कोर्ट नहीं गया, लेकिन टीवी सीरियलों व फिल्मों के मार्फत कोर्ट कारवाई बहुत देखी है, शायद आपने भी। कोर्ट के कटहरे में एक आरोपी व्यक्ित खड़ा होता है, लेकिन जज की निगाहों के सामने दो व्यक्ित दलीलें कर रहे होते हैं, इन दलीलों के आधार पर जज को फैसला सुनाना होता है। एक व्यक्ित, कटहरे में खड़े व्यक्ित को सजा दिलवाने की पूर्ण कोशिश करता है, और दूसरा उसको बचाने के लिए पूर्ण प्रयास, लेकिन अंतिम फैसला जज को सुनाना होता है। ऐसे ही दृश्य मानव अपनी जिन्दगी में हर बार महसूस करता है, जब वह कुछ न करने का साहस कर रहा होता है, उसके दो दिमाग (कॉन्शीयस माइंड एवं अनकॉन्शीयल माइंड) आपस में बहस करते हैं, एक रोकने की कोशिश करता है तो दूसरा दिमाग आगे बढ़ाने के लिए पूर्ण प्रयास करता है। इन दोनों के बीच जज की भूमिका व्यक्ित को स्वयं ही निभानी होती है। कौन सा गलत है और कौन सा सही। जब भी आप कुछ नया करेंगे तो आपको अंदर से आवाज आएगी, कहीं गलत हो गया तो, तभी दूसरी तरफ से आवाज आती है, क्या बात करते हो, ऐसा हो ही नहीं सकता, मानव दुविधा में आ जाता है, फैसला सुनाने वाले जज की तरह। ऐसी स्िथति में आपको एक सुलझे हुए जज की तरफ फैसला सुनाने की जरूरत होती है।
कॉन्शीयस माइंड एवं अनकॉन्शीयल माइंड
कॉन्शीयस माइंड एवं अनकॉन्शीयल माइंड
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