मीडिया, किक्रेट और पब्‍लिक


पंजाब के पूर्व वित्‍त मंत्री व मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे ने नई पार्टी की घोषणा करते हुए कहा कि आने वाले एक साल में वह पंजाब का नक्‍शा बदलकर रख देंगे, अगर लोग उनका साथ दें तो। आखिर बात फिर तो पर आकर अटक गई। जब तक बीच से तो व पर नहीं हटेंगे तब तक देश का सुधार होना मुश्किल। पब्‍लिक के साथ की तो उम्‍मीद ही मत करो, क्‍योंकि पब्‍लिक की याददाश्‍त कमजोर है। मनप्रीत सिंह बादल ने अपनी नई पार्टी की घोषणा तब की, जब पूरा मीडिया देश को क्रिकेट के रंग में पूरी तरह भिगोने में मस्त है। मीडिया की रिपोर्टों में भी मुझे विरोधाभास के सिवाए कुछ नजर नहीं आ रहा, चैनल वाले टीआरपी के चक्कर में बस जुटे हुए हैं। मुद्दा क्‍या है, क्‍या होना चाहिए कुछ पता नहीं। वो ही मीडिया कह रहा है कि भारत के प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को न्यौता भेजकर दोनों देशों के संबंधों में आई खटास दूर करने के लिए कदम उठाया है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ मीडिया भारत पाकिस्तान के मैच को युद्ध की तरह पेश कर रहा है। कहीं कहता है कि दोनों देशों में दोस्ताना बढ़ेगा, वहीं किक्रेट की बात करते हुए युद्ध सी स्थिति पैदा कर देता है। मीडिया ने भारत पाकिस्तान मैच को इतना प्रमोशन दिया कि राष्ट्रीय छुट्‌टी तक रखने की बात सामने आ गई। हद है, किस के लिए छुट्टी, ताकि हम भारत को पाकिस्तान पर विजय पाते हुए दिखाना चाहते हैं, या फिर किक्रेट को खेल के नजरिए से। मीडिया की बदौलत सबसे ज्यादा सट्टा इस मेज पर लग रहा है, जिसको मीडिया भी बड़े उत्साह के साथ पेश कर रहा है, जैसे सट्टा लगाना को शुभ कार्य हो। इतना ही नहीं, कुछ दिन पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाला भारत हजारों रुपए देकर ब्‍लैक में टिकट खरीदने के लिए तैयार हो गया। क्‍या भारत व मीडिया भूल गया कि यह भी एक सामाजिक बुराई है, जिसको आज हम किक्रेट के नशे में अन्धे होकर जन्म दे रहे हैं। डेढ़ सौ रुपए की टिकट पंद्रह पंद्रह हजार में खरीदी जा रही है आखिर ऐसा क्‍या है भारत पाकिस्तान में मैच में। मैच आम मैचों सा होना चाहिए था, मीडिया को मैच का मेल युद्ध से नहीं करना चाहिए था। इस बात ने भारतीयों के दिलों में पाकिस्तान के लिए प्यार स्नेह का बीज नहीं बोया बल्कि नरफत बोई है, जो पाकिस्तान को हर हाल में हारते हुए देखना चाहेगी। मीडिया की इस तरह की न समझी भरी रिपोर्टों ने भारतीय टीम को कितने दबाव तले ला दिया होगा, इसका अंदाजा शायद ही मीडिया वाले लगा सके। जीत का जश्न तो हिन्दुस्तानी बड़े आराम से मना लेते हैं, लेकिन हार का दर्द सहना मुश्किल हो जाता है, खास कर तब जब टीम से सौ फीसदी उम्‍मीद कर बैठें। मैं किक्रेट देखता हूं बहुत कम, लेकिन खेल के नजरिए से, जो बढि़या प्रदर्शन करेगा वो जीतेगा, जो बुरा प्रदर्शन करेगा वो हारेगा, क्‍योंकि जीत के लिए दोनों ही खेलते हैं। मुझे याद है, एक मैच जब मैदान में भारत की हार पर भीड़ ने मैदान में ही हुड़दंग मचा दिया था। आज भी विनोद कांबली का वो रोता हुआ चेहरा आंखों से ओझल नहीं होता, अगर मैं कहीं गलत न हूं तो तब भारत श्रीलंका के हाथों सेमीफाइनल में हारा था। इस विश्‍वकप में क्‍वाटर फाइनल में हारकर वापिस लौटने वाली पाकिस्तानी टीम को पाकिस्तान में पब्‍लिक द्वारा उतरने नहीं दिया गया था। आखिर उनका क्‍या दोष अगर वो मैच नहीं जिता सके, मैच का जिम्‍मा किसी एक प्लेयर पर नहीं, बल्कि पूरे टीम वर्क पर निर्भर करता है। मीडिया को समझदारी से काम लेना चाहिए। खेल को खेल रहने देना चाहिए।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सटीक बातें हैं... बहुत बढ़िया...

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  2. एकदम ठां करके मारा है कुलवंत भाई .....इन सालों ने नाटक बना दिया है एक क्रिकेट के मैच को ...कल मैं भी इस मुद्दे पर हथौडा मारूंगा ...

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  3. मीडिया की हालत दिनों दिन खराब होती जा रही है। आपने अच्छा लिखा है। बधाई
    मेरे ब्लॉग पर-
    क्या यही है पत्रकारिता का स्टैंडर्ड

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  4. मीडिया की हालत खराब है...बहुत बढ़िया...

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