आखिर कहां सोते रहे मां बाप

मीडिया पर भी लगे सवालिया निशान
कुलवंत हैप्पी / गुड ईवनिंग / समाचार पत्र कॉलम
आज सुबह अखबार की एक खबर ने मुझे जोरदार झटका दिया, जिसमें लिखा था एक सातवीं की छात्रा ने दिया बच्चे को जन्म एवं छात्रा के अभिभावकों ने शिक्षक पर लगाया बलात्कार करने का आरोप। खबर अपने आप में बहुत बड़ी है, लेकिन उस खबर से भी बड़ी बात तो यह है कि आखिर इतने महीनों तक मां बाप इस बात से अभिज्ञ कैसे रहे। किसी भी समाचार पत्र ने इस बात पर जोर देने की जरूरत नहीं समझी कि आखिरी इतने लम्‍बे समय तक लडक़ी कहां रही? अगर घर में रही तो मां बाप का ध्यान कहां था ? खबर में लिख गया केवल इतना, सातवीं कक्षा की छात्रा ने दिया बच्चे को जन्म, जिसकी पैदा होते ही मौत हो गई। गर्भ धारण से लेकर डिलीवरी तक का समय कोई कम समय नहीं होता, यह एक बहुत लम्‍बा पीरियड होता है, जिसके दौरान एक गर्भवती महिला को कई मेडिकल टेस्टों से गुजरना पड़ता है। इतना ही नहीं, इस स्थिति में परिवार का पूर्ण सहयोग भी चाहिए होता है। अभिभावकों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए कहा, उनको शक है कि इसके पीछे छात्रा के शिक्षक का हाथ है, लेकिन सवाल उठता है कि शिक्षक तो इसके पास कुछ समय रूकता होगा, उससे ज्यादा समय तो बच्ची परिवार में ही गुजारती होगी। मगर मीडिया ने इस बात पर ध्‍यान देने की बजाय खबर को प्रकाशित करने में अधिक रुचि दिखाई। इस घटना से जहां शिक्षक व विद्यार्थी का रिश्ता तार तार हुआ है, वहीं यह बात भी उजागर होती है कि मां बाप बच्चों के लिए प्रति सचेत हैं। इसके अलावा समाचार ने मीडिया में बैठे बुद्धजीवियों पर भी सवालिया निशान लगा दिए, जिनको पत्रकारिता की शिक्षा में पहले दिन ही सिखाया जाता है कहां, कैसे, कब, क्‍यों क्‍या आदि, लेकिन खबर में ऐसा कुछ भी नहीं था।  समाचार यहां पढ़ें

टिप्पणियाँ

  1. आपका प्रश्न जायज है।

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  2. यह प्रश्न पत्रकारों और परिवारों दोनों की जिम्मेदारी की बात करता है..... विचारणीय है

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  3. कितने खेद की बात है कि दोश फिर लडकी वालों पर अगर उन्हें पहले पता चल भी जाता तो बडी हद वो बच्चा गिरा देते तो क्या इससे इस घिनौने अपराध की निवृति हो जाती? क्या इसमे स्कूल और आध्यापकों की जिम्मेदारी नही बनती? बहुत शर्मनाक स्थिती है समाज की। आभार।

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  4. बेनामी3/17/2011 7:18 pm

    मन बेहद खिन्न होता है ऎसी खबरों पर

    और रही बात पत्रकारिता के उसूलों की
    तो यह दुर्लभ है आज के बाजारवाद की प्रवृत्ति में

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