मनप्रीत की जनसभाएं व आमजन

कुलवंत हैप्पी /  गुड ईवनिंग/ समाचार पत्र कॉलम
'ए खाकनशीनों उठ बैठो, वो वत करीब आ पहुंचा है, जब तख्त उछाले जाएंगे, तब ताज गिराए जाएंगे' विश्व प्रसिद्ध शायर फैज अहमद फैज की कलम से निकली यह पंतियां, गत दिनों स्थानीय टीचर्ज होम के हाल में तब सुनाई दी, जब जागो पंजाब यात्रा के दौरान राद्गय में इंकलाब लाने की बात कर रहे राज्‍य के पूर्व वित्‍त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल एक जन रैली को संबोधन कर रहे थे। फैज की कलम से निकली इस पंति को कहते वत मनप्रीत को जद्दोजहद करना पड़ रहा था अपने थक व पक चुके गले से, जो पिछले कई महीनों से राद्गय की जनता को इंकलाब लाने के लिए लामबंद करने हेतु आवाज बुलंद कर रहा है। गले के दर्द को भूल मनप्रीत इस रचना की एक अन्य पंति 'अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब जैदांनों की खैर नहीं, जो दरिया झूम के उठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे' को पढ़ते हुए पूरे इंकलाबी रंग में विलीन होने नजर आए। उनके संबोधन में उसकी अंर्तात्मा से निकलने वाली आवाज का अहसास मौजूद था, यही अहसास लोगों को इंकलाब लाने के लिए लामबंद करने में अहम रोल अदा करता है। इसमें भी कोई दो राय नहीं होनी चाहिए, जब जब किसी देश में जन अंदोलन हुआ, उसमें साहित्य ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। साहित्य के सहारे से ही लोगों की सोई हुई आत्मा को जगाया जा सकता है। पिछले दिनों मिस्त्र में जो हम सब ने देखा, वह भी सिर्फ एक विडियो लिप जरिए जारी किए एक भावनात्मक स्पीच के कारण ही हुआ। उस वीडियो में आसमा महफूज नामक लड़की ने भावनाओं से ओतपोत व अपनी अंर्तात्मा से एकजुटता बनाते हुए देश वासियों से एक अपील की, और उसी एक अपील ने पूरे मिस्त्र में जनाक्रोश पैदा कर दिया एवं उस जनाक्रोश के बाद, जो हुआ वह हम सब जानते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि विदेशियों के खिलाफ लड़ने वाले इस देश के नागरिक या अपने देश के हुकमरानों खिलाफ लड़ने के लिए लामबंद होंगे? योंकि इस देश में रूम डिस्कशन की बहुत गंदी बीमारी है। यहां के लोग कमरों में बैठकर सरकारें बदल देते हैं। एक दूसरे से जूतम जूती हो जाते हैं, लेकिन जब एकजुट होकर सरकार के खिलाफ अंदोलन चलाने की बात आती है तो सड़कों पर गिने चुने लोग नजर आते हैं, जिनको सरकार हलके से पुलिस लाठीचार्ज से दबा देती है। पिछले चार पांच महीनों से मनप्रीत सिंह बादल गली गली कूचे कूचे जाकर जन रैलियों को संबोधन कर रहे हैं एवं लोग उनके इंकलाब से लबालब भाष्णों को बड़ी गम्भीरता से सुन रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन वह लोग जब अपना प्रतिनिधि चुनने वोटिंग बूथ पर पहुंचेंगे, या तब मोहर मनप्रीत सिंह बादल के समर्थकों पर लगाएंगे। इस बात को लेकर मन में शंका है, योंकि भारत में रूम डिसशन में लोग चर्चा करते करते बहस पर उतर आते हैं, लेकिन जब रूम से बाहर आते हैं तो सब खत्म हो चुका है। विरोध की आग राख बन चुकी होती है।

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