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धन काला है या नहीं पहले इसकी जांच हो - बूटा सिंह

बठिंडा। पंजाब की बिहार से तुलना किसी भी स्तर पर हो ही नहीं सकती, वहां और यहां के हालातों में जमीं आसमान का फर्क है, यह शब्‍द बिहार के पूर्व राज्यपाल व एनसीएससी के चेयरमैन बूटा सिंह ने स्थानीय सर्किट हाउस में समाचार पत्र टरूथ वे के प्रतिनिधि कुलवंत हैप्‍पी से हुई विशेष बातचीत के दौरान कहे, जोकि बलराम जाखड़ के बेटे सुरेंद्र जाखड़ के भोग में शामिल होने के लिए आए थे। शिरोमणि अकाली दल के तेज तर्रार नेता व पंजाब उप मुख्‍यमंत्री सुखबीर सिंह बादल द्वारा पंजाब में बिहार की तर्ज पर दोहराव की बात कहे जाने के संबंध में जब बूटा सिंह से सवाल पूछा गया तो उन्होंने अपने पुराने दिनों की तरफ लौटते हुए कहा कि बिहार और पंजाब में तुलना करना गलत है। बिहार की तुलना तो अन्य राज्यों से भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि बिहार पर सबसे लम्‍बे समय तक राज लालू व उसके रिश्तेदारों ने किया, वहां की सरकारी संपत्‍त‍ि पर उनका एकाधिकार था एवं वहां नीतिश कुमार के आने से पूर्व कानून नाम की कोई चीज नहीं थी, जबकि पंजाब व अन्य राज्यों में किसी भी पार्टी की सरकार के दौरान ऐसे हालात पैदा नहीं हुए, जो लालू व उसके रिश्तेदारों के

संक्रांति है संस्कार-क्रांति

उ त्सव और त्योहार किसी भी देश और जाति के रहन-सहन, चरित्र, मूल्य, मान्यता, धर्म, दर्शन आदि का परिचय कराते हैं। कुछ त्योहार परमात्मा से, कुछ धर्मस्थापकों से, कुछ देवी-देवताओं से, कुछ विजय के अवसरों से और कुछ लोगों की मानवीय भावनाओं और कुछ प्रकृति के परोपकारों के प्रति कृतज्ञता भाव से जुड़े होते हैं। इन त्योहारों पर की जाने वाली सब प्रकार की पूजा, ध्यान, अनुष्ठान, पकवान, साज-सज्जा, सज-धज, राग-रंग के पीछे मूल उद्देश्य आत्मा का परमात्मा से मंगल मिलन कराना और आत्मा को ईश्‍वरीय विरासत से भरपूर करना ही होता है। त्योहार न हों तो जन-जीवन सूखा, बासी, रसहीन, सारहीन और उबाऊ हो जाए। लेकिन यह भी एक साथ तथ्य है कि विदेशी आक्रमणों, आपसी फूट, नैतिकता की उत्‍तरोत्‍तर गिरावट और धर्मग्रन्थों में क्षेपक और मिलावट हो जाने के कारण आज त्योहार विशुद्ध भौतिक आधार पर मनाए जाने लगे हैं। इसी कारण से समाज को वो लाभ नहीं दे पाते हैं जो कि ये दे सकते थे। अतः इनके विरुद्ध आध्यात्मिक अर्थ को समझकर उसमें टिकना हमारे लौकिक और पारलौकिक जीवन की उन्नति के लिए अति अनिवार्य, लाभकारी और मंगलकारी है। त्योहारों की कड़ी में, कड़

सुंदर मुंदरीए को मिले गए दुल्ला भट्टी

सुंदर मुंदरीए हो, तेरा कौन बेचारा, ओ दुल्ला भट्टी वाला। यह लोहड़ी का लोकप्रिय गीत तो लोहड़ी के त्योहार के आस पास आम सुनाई पड़ता है, लेकिन पिछले कई दशकों से यह गीत केवल एक औपचारिकता मात्र बना हुआ था, क्‍योंकि सुंदर मुंदरियां तो हर वर्ष पैदा होती रहीं, लेकिन उनकी कदर करने वाला दुल्ला भट्‌टी किसी मां की कोख से नहीं जन्मा। किसी ने सच ही कहा कि आखिर बारह वर्ष बाद तो रूढ़ी की भी सुन ली जाती है, यह तो फिर भी कन्याएं हैं, इनकी तो सुनी जानी जायज थी। दुल्ले भट्टी की मृत्यु के दशकों बाद ही सही, लेकिन इन सुंदर मुंदरियों को दुल्ले भट्टी जैसे महान लोग मिलने शुरू हो गए। लड़कों की लोहड़ी, नव विवाहित जोड़ों की लोहड़ी तो पंजाब में हर लोहड़ी के दिन मनाई जाती है, लेकिन दुल्ले भट्टी के बाद लड़कियों की लोहड़ी मनाने का रुझान मर गया, क्‍योंकि लड़कियों को लड़कों से कम आंका जाने लगा, जबकि गुरूओं पीरों ने इनकी कोख से जन्म लिया एवं उन गुरूओं पीरों ने भी औरत को पूजनीय तक बताया, मगर समाज ने समाज को चलाने वाली कन्या को ही भुला दिया। समय ने करवट बदली, आज से करीब चार पांच साल पहले बठिंडा की समाज सेवी संस्था सुरक्षा हेल्पर रजि. बठि

लोहड़ी उत्सव 'लोहड़ी धीयां दी' छोड़ गया अमिट छाप

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कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का प्रयास था 'लोहड़ी धीयां दी' : शर्मा बठिंडा । सुरक्षा हैल्पर 'रजि.', बठिंडा विकास मंच, गुडविल सोसायटी बठिंडा ने शहर की अन्य समाज सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर लोगों को कन्या भ्रूण के नुक्‍सान प्रति जागरूक करने के लिए गत रविवार को यहां गुडविल पलिक हाई स्कूल परस राम बठिंडा में लोहड़ी धीयां दी नामक लोहड़ी उत्सव का आयोजन किया। यह आयोजन रविवार सुबह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक चला। कार्यक्रम में सुरक्षा हैल्पर के चेयरमैन व टरूथ वे टाइम्स के संपादक शाम कुमार शर्मा व बठिंडा विकास मंच के अध्यक्ष राकेश नरूला ने बताया कि कार्यक्रम में एक वर्ष से कम आयु की सौ के लगभग परिवारों की बच्चियों को तोहफे दिए गए। इस अवसर पर मुख्यातिथि नेशनल अवार्डी अनिल सर्राफ ने कहा कि हम लोग भ्रूण हत्या रोकने की बात तो करते हैं परन्तु उस पर खुद अमल करने से कतराते हैं। अगर सही तरीके से हमें भ्रूण हत्या रोकनी है तो महिलाओं को आगे आना होगा। इसके लिए त्याग की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अगर आज किसी बहन के भाई नहीं तो उसकी शादी में कई रूकावटें पैदा होती हैं ऐसा यों? रूकावटें खड़ी करने वा