हल स्थाई हो, अस्थाई नहीं

कुछ महीने पहले देश की एक अदालत ने केंद्र से राय मांगी थी कि क्या वेश्यावृत्ति को मान्यता दे दी जाए, यानि इसको अपराध के दायरे से बाहर कर दिया जाए, क्योंकि देश में वेश्यावृत्ति बढ़ती जा रही है। इस मुद्दे पर अदालत द्वारा केंद्र से राय मांगने का सीधा अर्थ है, अगर किसी चीज को कानून रोकने में असफल हो रहा है तो उसको मान्य दे दी जाए, ताकि अदालत का भी कीमत समय बच जाए। किसी मुश्किल का कितना साधारण हल है, कि उसको वैध करार दे दिया जाए, जिसको रोकने में कानून असफल है। कोर्ट ने एक बार भी केंद्र से नहीं कहा कि वेश्यावृत्ति की पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए एक टीम का गठन किया जाए। कोर्ट ने सवाल नहीं उठाया कि क्यों कभी पुलिस प्रशासन ने कोर्ट में वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं के दूसरे पक्ष को उजागर नहीं किया। आखिर वेश्यावृत्ति हो क्यों रही है? आखिर क्यों देश की महिलाएं अपने जिस्म की नुमाईश लगा रही हैं?। अगर कोर्ट इन सवालों में से एक भी सवाल को केंद्र से पूछती तो केंद्र अदालती कटघरे में आ खड़ा नजर आता, क्योंकि वेश्यावृत्ति के बढ़ते रुझान के लिए हमारी सरकारें भी जिम्मेदार हैं, जो निम्न वर्ग को केवल वोटों के लिए इस्तेमाल करती हैं और उनके उत्थान के लिए कोई कार्य नहीं करती। ऐसे में पेट की आग बुझाने के लिए गरीब घरों की महिलाएं लोगों के बिस्तर गर्म करने के लिए निकल पड़ती हैं। अब तो वेश्यावृत्ति में कालेज की लड़कियां भी शुमार हो रही हैं, कारण है कि वो सुविधाओं भरी जिन्दगी जीना चाहती हैं। हम समस्याओं को जड़ से नहीं बल्कि बाहरी स्तर से हल करने के तरीके खोजते हैं। अभी कल की ही बात है, मेरा किसी काम को लेकर धोबियाना रोड़ पर जाना हुआ, श्री गुरूनानक देव स्कूल के पास सड़क पर दोनों तरफ आने जाने के लिए एक आधिकारिक रास्ता है, लेकिन उसको प्रशासन ने बंद कर दिया। बंद करने का कोई भी छोटा मोटा कारण हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि किसी नेता के आगमन पर उसको बंद किया हो, और फिर प्रशासन को खुलवाना भूल गया हो। प्रशासन ने वो रास्ता तो बेरियर लगाकर बंद कर दिया, क्योंकि ट्रैफिक पुलिस के पास कर्मचारियों की कमी तो हो सकती है, पर बेरियरों की नहीं। इसका अंदाजा पॉलिथीनों की तरह जगह जगह बिखरे पड़े मुसीबतों को जन्म दे रहे बेरियरों से लगाया जा सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि वो रास्ता हादसों का कारण बन रहा हो इसलिए बंद कर दिया गया, लेकिन क्या ऐसा करना जायज है, अगर जायज है तो बरनाला रोड़ को सबसे पहले बंद कर देना चाहिए, जिसको खूनी रास्ते के नाम से भी पुकारा जाता है। प्रशासन ने उक्त दस बारह फुट के रास्ते को बंद कर दिया, लेकिन लोगों ने एक फूट चौड़ा रास्ता उससे थोड़ा से आगे डिवाईडर तोड़कर बना लिया। शायद प्रशासन भूल गया कि नदी के बहा को कभी दीवारें निकालकर नहीं रोका जा सकता, क्योंकि पानी अपने रास्ते खुद बनाना जानता है। जनता भी पानी के बहा जैसी है। गलियों में बने हम्प भी इसी बात की ताजा उदाहरण हैं। स्थानीय शहरी इलाकों की गलियों में बने हम्प लोगों के वाहनों की स्पीड को तो कम नहीं कर पा रहे, लेकिन लोगों का ध्यान जरूर खींच रहे हैं। जब मनचले वहां आकर जोर से ब्रेक मारते हैं, और ब्रेक लगने के वक्त निकालने वाली वाहन के पुर्जों की आवाज लोगों का ध्यान खींचती है। हम समस्या की जड़ को खत्म करने की बजाय बाहरी स्तर पर काम करते हैं, जिनके नतीजे हमेशा ही शून्य रहते हैं। मानो लो, देश भर के सरकारी स्कूलों की चारदीवारी को आलीशान बना दिया जाए, क्या वो देश की शिक्षा प्रणाली के दुरुस्त होने का प्रमाण होगा, नहीं क्योंकि वो सुधार केवल बाहरी रूप से हुआ है। अगर देश की शिक्षा प्रणाली का सुधार करना है तो उसकी जड़, मतलब टीचर को ऐसे प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि वो एक पढ़े लिखे इंसान के साथ एक समझदार व्यक्ति को स्कूल से बाहर रुखस्त करे। वरना देश की अदालत हर बार किसी न किसी अपराध को अपराध मुक्त करने पर सरकार से राय मांगेगी।

टिप्पणियाँ

  1. Iska koyi sthayi hal nahi ho sakta. Haan,jo ladkiyon pe zabardasti karte hain,unka bepaar karte hain,qaanoon sirf waheen kaam kar sakta hai...demand aur supply ka yah vishay hai...jaise sharab.Gujraat me nashabandi hai,aur wahan gair qanooni taurse sabse adhik sharab banti hai.

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  2. बिना पढे जा रही हूँ । आँखें दो लाईन पढ कर थक गयी। शायद पिछला कमेन्ट भी नही देखा। आशीर्वाद।

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  3. बिलकुल सही कहा आपने सरकार की सरासर गलती है, हमेशा की ही तरह हर मुद्दे पर चुप्पी लगा जाने की आदत जो है इन की ! इंतज़ार करते है....पानी के सर के ऊपर तक आ जाने का!

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  4. कई दिनो के बाद आया आपके ब्लाग पर सर्वोत्तम श्रेणी की पोस्ट देखकर अच्छा लगा

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