विशाल रक्तदान शिविर...आंकड़ों की दौड़

"आप रक्तदान न करें, तो बेहतर होगा" एक चौबी पच्चीस साल का युवक एक दम्पति को निवेदन कर रहा था, जिसके चेहरे पर चिंता स्पष्ट नजर आ रही थी, क्योंकि वो जिस रक्तदाता के साथ आया था, वो एक कुर्सी पर बैठा निरंतर उल्टियाँ कर रहा था, जिसको बार बार एक व्यक्ति जमीन पर लेट के लिए निवेदन कर रहा था। युवक की बात सुनते ही महिला के साथ आया उसका पति छपाक से बोला, यह तो बड़े उत्साह के साथ खून दान करने के लिए आई है। महिला के चेहरे पर उत्साह देखने लायक था, उस उत्साह को बरकरार रखने के लिए मैंने तुरंत कहा, अगर आप निश्चय कर घर से निकले हो तो रक्तदान जरूर करो, लेकिन यहाँ का कु-प्रबंधन देखने के बाद मैं आप से एक बात कहना चाहता हूँ, अगर पहली बार रक्तदान करने पहुंचे हैं तो कृप्या रक्तदान की पूरी प्रक्रिया समझकर ही खूनदान के लिए बाजू आगे बढ़ाना, वरना किसी छोटे कैंप से शुरूआत करें। वो रजिस्ट्रेशन फॉर्म के बारे में पूछते हुए आगे निकल गए, लेकिन मेरे कानों में अभी भी एक आवाज निरंतर घुस रही थी, वो आवाज थी एक सरदार जी की, जो निरंतर उल्टी कर रहे व्यक्ति को लेट के लिए निवेदन किए जा रहा था, लेकिन कुर्सी पर बैठा आदमी आर्मी पर्सन था, वो अपनी जिद्द से पिछे हटने को तैयार नहीं था। यह दृश्य पटियाला के माल रोड स्थित सेंट्रल लाइब्रेरी के भीतर आयोजित पंजाब युवक चेतना मंच के विशाल रक्तदान शिविर का था। इस विशाल रक्तदान शिविर में जाने का मौका बठिंडा की एक प्रसिद्ध रक्तदानी संस्था के कारण नसीब हुआ, लेकिन विशाल रक्तदान शिविर के कु-प्रबंधन को देखने के बाद, मेरी आँखों के सामने उन अभिभावकों की छवि उभरकर आ गई, जो अंकों की दौड़ में बच्चों को लगाकर उनको मानसिक तौर से बीमार कर देते हैं, और उनको पढ़ाई बोझ सी लगने लगती है। इस शिविर में अंकों की नहीं, शायद आंकड़ों की दौड़ थी, दौड़ कोई भी हो, दौड़ तो आखिर दौड़ है। दौड़ में आँख लक्ष्य पर होती है, शरीर के कष्ट को रौंद दिया जाता है जीत के जश्न तले। इस शिविर में रक्तदाताओं के लिए उचित प्रबंध नहीं था, शिविर को जल्द खत्म करने के चक्कर में रक्तदातों को पूरी प्रक्रिया से वंचित रखा जा रहा था, जिसका नतीजा वहाँ उल्टियाँ कर रहे रक्तदाताओं की स्थिति देखकर लगाया जा सकता था। बाहरी गर्मी को देखते हुए भले ही रक्तदान शिविर का आयोजन एसी हाल में किया गया था, जो देखने में किसी सिनेमा हाल जैसा ही था, पुराने समय में जो स्थिति टिकट खुलते वक्त बाहर देखने को नसीब होती थी, कल वो मुझे इस एसी हाल के भीतर रिफ्रेशमेंट वितरण के मौके देखने को मिली, रक्तदाता रिफ्रेशमेंट के लिए एक दूसरे को धक्के मार रहे थे, यह विशाल शिविर के कु-प्रबंधन का एक हिस्सा था। विशाल शिविरों का आयोजन रक्तदान लहर को आगे बढ़ाने के मकसद से किया जाता है, लेकिन कल वाला रक्तदान शिविर तो रक्तदान की लहर को झट्का देने वाला ज्यादा लग रहा था, एक सौ फीसदी विकलांग रक्तदाता वहाँ की स्थिति देखकर रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरने के बाद जमा करवाने का हौसला नहीं कर सका, जो इससे पहले दर्जनों बार खूनदान कर चुका है। ऐसे विशाल शिविर रक्तदान की लहर को प्रोत्साहन देने की बजाय ठेस पहुंचाते हैं। छोटा परिवार सुखी परिवार की तर्ज पर चलते हुए ऐसे विशाल शिविरों से तो बेहतर है कि छोटे शिविर लगाओ, ताकि रक्तदान की लहर को कभी वैसाखियों के सहारे न चलना पड़े, जो आज अपने कदमों पर निरंतर दौड़ लगा रही है। चलते चलते एक और बात जो रक्तदाताओं के लिए अहम है, "रक्तदान शिविरों में रक्तदान करने वाले व्यक्तियों को रक्तदान करने की पूरी प्रक्रिया से अवगत होना चाहिए, ताकि उक्त विशाल शिविर में हुई अस्त व्यस्तता से बचा जा सके।"

टिप्पणियाँ

  1. Bahut chaunkanewali ghatna hai..aisi sthiti mai swayam anubhav kar chuki hun.

    जवाब देंहटाएं
  2. एक चौकाने वाली पोस्ट है यह ........पर क्या करें यही सत्य है !

    जवाब देंहटाएं
  3. is tarah kaa anubhav ham to kaI baar dekh aur bhugat cuke haiM acchee posT hai aabhaar

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

हार्दिक निवेदन। अगर आपको लगता है कि इस पोस्‍ट को किसी और के साथ सांझा किया जा सकता है, तो आप यह कदम अवश्‍य उठाएं। मैं आपका सदैव ऋणि रहूंगा। बहुत बहुत आभार।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महात्मा गांधी के एक श्लोक ''अहिंसा परमो धर्म'' ने देश नपुंसक बना दिया!

सदन में जो हुआ, उसे रमेश बिधूड़ी के बिगड़े बोल तक सीमित न करें

हैप्पी अभिनंदन में महफूज अली

..जब भागा दौड़ी में की शादी

सवारी अपने सामान की खुद जिम्मेदार

भारत की सबसे बड़ी दुश्मन

हैप्पी अभिनंदन में संजय भास्कर