बुजुर्ग की खुशी का रहस्य

मैं कभी नहीं भूल सकता, एक बड़ा सा घर, और वो बुजुर्ग, जो सुबह सुबह मुझे गैलरी में खड़ा मिलता है। मैं उसको देखता हूँ, वो मुझे देखता है। हल्की सी मुस्कान का आदान प्रदान होता है दोनों में, और फिर मैं आगे बढ़ जाता हूँ, बिना कुछ बोले। इस तरह की वार्तालाप कई दिनों तक चलती है हम दोनों में, लेकिन एक दिन होठों की मुस्कान छोटे से बोलते संवाद में बदलती है, और मैं पूछ बैठता हूँ, आपकी खुशी का राज क्या है? मैं जानना चाहता हूँ, दुनिया में मुझे हर शख्स दुखी मिलता है, लेकिन आपका चेहरा देखते ही दुनिया भर के दुखी लोग मेरी आँख से ओझल हो जाते हैं, क्यों?। जवाब में वो बुजुर्ग उंगली का इशारा सामने की ओर करता है, यहाँ पर सरकारी जमीं पर एक झुग्गी बनी हुई है, जिसमें कम से कम पाँच लोग रहते हैं मुर्गे मुर्गियों (कॉक एंड हैनकॉक) के साथ।


मैंने उस झुग्गी को गौर से देखा, और बुजुर्ग की तरफ पलटते हुए पूछा, इसमें क्या खास बात है? तो उन्होंने कहा कि इस घर से मैंने कभी भी लड़ाई झगड़े की आवाजें नहीं सुनी, जबकि मेरे घर में सुबह शाम मानवीय बर्तनों की एक दूसरे में टकराने से उत्पन्न होने आवाजें आती रहती हैं। इस झुग्गी में रहने वाले लोग असुविधा में रहकर भी जीवन को अच्छे से जी रहे हैं। जैसे तुम मुझे देखकर अचंभित होते हो, वैसे ही मैं इस झुग्गी की शांत माहौल देखकर अचंभित होता हूँ।

मेरे घर के सामने बनी झुग्गी मेरा हर रोज मार्गदर्शन करती है, मुझे बताती है, शांति पैसे से नहीं संतुष्टि से आती है। भले ही, इस झुग्गी का स्टेट्स मेरे आलीशान घर से कम है, लेकिन इस झुग्गी में जो सुकून है, वो मेरे आलीशान घर में नहीं, वो दो वक्त की रोटी बमुश्किल कमाते हैं, लेकिन फिर भी उनके चेहरों पर कभी थकावट की कोई लकीर मैंने आज तक नहीं देखी बेटा, जबकि मेरे घर में हर काम के लिए काम वाले रखे हुए हैं, फिर भी सब के सब परिजन थके हुए ही मिलते हैं। मेरे घर के सामने वाली झुग्गी मेरी खुशी का राज है। उनकी बात अभी खत्म ही होने वाली थी कि उनके घर से भीतर से मानवीय बर्तनों के आपस में टकराकर शोर करने की आवाजें मेरे कानों की शांति को ध्वस्त करने लगी, वो बुजुर्ग भीतर की तरफ दौड़े और मैं अपने रास्ते चल दिया।

टिप्पणियाँ

  1. जहाँ खुशी मिले वह जगह स्वर्ग से कम नही चाहे वो झुग्गी ही क्यों ना हो..एक बढ़िया संस्मरण..धन्यवाद

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  2. अनुभव की बात है जी....सुख सुविधाओं में नहीं....संतुष्टि में है.....

    कुंवर जी,

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  3. जहाँ मन को सुकून मिले ..उस से बेहतर कुछ नहीं .....अच्छा संस्मरण

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  4. बहुत बढ़िया तरीके से पेश की है आपने अपनी बात !!
    एक बेहद उम्दा और विचारणीय पोस्ट !

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  5. शांति पैसे से नहीं संतुष्टि से आती है। सही कहा है।

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  6. Haan! Buzurgwarko unki umr ne khushee ka gur sikha diya tha..

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  7. गहरी बात.. अगर हम साधनविहीन लोगों के दुःख-सुख से अपनी तुलना करें तो हमेशा खुश ही रहेंगे.. पर साथ ही यथासंभव उनके लिए कुछ करें भी..

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  8. बहुत सुंदर पोस्ट, शुभकामनाएं.

    रामराम

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