क्या गोलियों व बमों से खत्म जो जाएगा नक्सलवाद?

पिछले दिनों हुए नक्सली हमले के बाद भाजपा की सीनियर महिला नेता सुषमा स्वराज का बयान आया कि सेना की मदद से नक्सलवाद को खत्म कर दिया जाए। उनके कहने का भाव था कि नक्सलवादियों की लाशों के ढेर बिछा दिए जाएं। उस बयान को पढ़ने के बाद दिमाग में एकाएक एक सवाल आ टपका।
क्या लाशों के ढेर बिछाने से, नक्सलवाद खत्म हो जाएगा?। फिर थोड़ी देर बाद मेरे ही दिमाग ने उत्तर दिया, शरीर को मिटाने से कभी सोच नहीं मरती, जब तक सोच नहीं मरती, तब तक किसी का अस्तित्व मर जाए, कैसे हो सकता है?

अमेरिकी और पाकिस्तानी फौजों ने कितने ही ओसामा बिन लादेन मार गिराए, लेकिन नतीजा क्या हुआ? क्या तालिबान खत्म हो गया? कितने बार पाकिस्तानी फौज ने तालिबान के गढ़ में घुसकर वहाँ कब्जा करने का दावा किया। फिर भी हुआ क्या? तालिबान तो भी जिन्दा है। तालिबान हो चाहे नक्सलवाद। जब तक उसको जड़ से नहीं खत्म किया जाएगा, तब तक उसका खात्मा हो जाए, मुश्किल नहीं असंभव है। जड़ से मतलब सोच से। शरीर से खत्म किए हुए तो हमेशा ही जिन्दा रहते हैं, लेकिन सोच से खत्म किए हुए नहीं बचते। आत्मघाती हमलावर की मानववादी सोच मार दी जाती है, और वो मरने के लिए तैयार हो जाते हैं। आत्मघाती हमलावर बनना हो या वैसे जान गंवाई हो। बात तो एक ही है। मगर आतंकवादी व्यक्ति की मानववादी सोच मार डालते हैं, और उसमें ठूँस देते हैं बुराई का जहर। अगर नक्सलवाद को खत्म ही करना है तो उसके लिए उसकी सोच को मारना होगा। खोजनी होगी वो नस जो नक्सलवाद की जहरीली फसल को नफरत के रक्त से सींच रही है।

डॉक्टर किसी मरीज को तब तक ठीक नहीं कर सकता, जब तक वो बीमारी की जड़ तक नहीं पहुंच जाता, लेकिन वो मरीज का दुर्भाग्य है कि जिस डॉक्टर के पास उसका इलाज चल रहा है, वो बीमारी की जड़ तक इसलिए नहीं जाना चाहता क्योंकि उसकी दुकानदारी तो मरीज की बीमारी से चलती है। हमारी हिन्दुस्तानी सरकारें भी ऐसे डॉक्टरों जैसी ही हैं, जो किसी भी समस्या की जड़ तक जाना ही नहीं चाहती। सरकार अच्छी तरह जानती है कि नक्सलवाद क्यों दिन प्रति दिन बढ़ रहा है, लेकिन वो क्यों को हल ही नहीं करना चाहती। गोलियों की बौछार में दोनों तरफ मारने वाले इंसान हैं, दोनों एक ही देश की संतान हैं। इधर, मरने वालों को सरकारें शहीद का रुतबा और कुछ कागज के टुकड़े देकर अपना फर्ज अदा करने में माहिर हैं, लेकिन समस्या का हल करने के लिए तैयार नहीं हैं। देश में एक ऐसा कानून लाओ, जिसमें ऐसा बंदोबस्त हो कि नक्सलवादियों के खिलाफ चलने वाले अभियान में नेतागन अगवाई करेंगे। फिर देखना समस्याओं के हल खुद ब खुद चलकर बाहर आएंगे। नेता कुछ कागज के टुकड़े और शहीदी का झूठा रुतबा देकर अपने घरों में जश्न मनाने के सिवाय कुछ नहीं करते।

नक्सलवाद की जन्मदाता गरीबी और भूखमरी है, लेकिन हमारी सरकारें झूठे वायदों के लिए सिवाय देने को कुछ तैयार नहीं। जितना पैसा गोले बारूद के लिए खर्च किया जा रहा है, अगर उतना पैसा ही किसी नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र में खर्च कर दिया जाए, किसका सिर घूमा है कि वो घर की खुशी को त्यागकर जंगल में हथियार उठाए मारे मारे घूमे। एक बिजनसमैन व्यक्ति से पूछें, वो घर से कितने दिन दूर रह सकता है, घर किसको अच्छा नहीं लगता। लेकिन नक्सलवादियों के दिमाग में एक बात घर कर गई, या तो भूख से मरो या हकों की राखी करते हुए गोलियों से मरो। क्या भटके हुए लोगों को वापिस पटड़ी पर नहीं लाया जा सकता? हमारे धार्मिक ग्रंथों में हजारों किस्से ऐसे मिल जाएंगे, जहाँ पर बंदूकधारी व्यक्ति धार्मिक हो गया, उसने हिंसा का रास्ता सदैव के लिए त्याग दिया, क्योंकि उसको कोई सही रास्ता दिखाने वाला मिल गया।

गोली का जवाब गोली होता है, यहाँ से गोलियाँ दागी जाएंगी, वहाँ से गोलियाँ दागी जाएंगी। कई लाशें जहाँ बिछेंगी, कई लाशें वहाँ बिछेंगी। हो सकता है वहाँ सब कुछ मिट जाए, धरती रक्त से लथपथ हो जाए। लेकिन इस घटनाक्रम के दौरान एक काला इतिहास लिखा जाएगा, जो आने वाले कल के लिए फिर समस्याएं पैदा करेगा। शरीर मिटाने के लिए बम गोला बारूद काफी है, लेकिन सोच को मिटाने के लिए एक उम्दा सोच को पैदा करना बेहद लाजमी है, जहर को जहर मारता है, और एक बुरी सोच को एक अच्छी सोच मार सकती है।

आभार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. बेनामी4/10/2010 9:35 pm

    श्रीलंका नें दुनिया के सबसे बर्बर आतंकवादियों को समाप्त कर दिया तो हम नक्सलवाद को क्यों समाप्त नहीं कर सकते?

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  2. श्रीलंका की स्थिति अभी भी ठीक नहीं, और काला इतिहास लिख दिया गया है वहाँ पर, अंदर खाते चलते हैं अभियान। ज्वालामुखी जब फटती है तो गए हुए कल से भी भयंकर होती है।

    बेनामी से टिप्पणी करना सच में बेईमानी है। मैं आपके विचारों अपने विचार रखूँगा, सच में मुझे तर्क वितर्क में मजा आता है। मैं कभी सत्य से मुँह नहीं फेरता।

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  3. अब वे नक्सलवादी नहीं रहे, जो आदर्शों की लड़ाई लड़ते थे | अब उनके पास उच्च कोटी के मारक क्षमता के हथियार हैं, और वे नृशंस हैं | याद रखिए, क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो......

    कहीं आप भी लाल कुर्ता धारी तो नहीं हैं, जो माओवादी को नैतिक समर्थन देते देते चीन और पाकिस्तान से हथियार दिलवाने लगे हैं ?

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  4. सबसे पहले एक हिन्दुस्तानी हूँ, एक हिन्दुस्तानी की जिन्दगी को मैं 32 लाख रुपए में नहीं तोलता। उसकी जिन्दगी भी उतनी ही कीमती है, जितनी हम सब की। लाल कुर्ताधारी तो मैं हूँ नहीं, हाँ, लेकिन एक सही देशहित में सोचने वाला जरूर हूँ।

    मैं हमेशा ही कहता हूँ हे गांधी बापू तुम्हें गोडसे ने नहीं, तुम्हारे ही देश के तुम्हारे ही भगतों ने तुम्हें मार डाला।

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  5. bilkul sach kaha aapne bandook se agar kisi samasya ka hal hota to ab tak taliban bhi khatm ho chuka hota,kisi bhi sabhya loktantrik desh me apne hi nagrikon par goliyan nahi chalayi jati hai.maowaad agar khatm hoga to sirf aur sirf vikaas ke dwara khatm hoga.agar adiwasiyon ko unke haq mil jayen to wo bandoo nahi uthayenge aur na hi kisi ko uthane denge.

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  6. नक्सलवाद की जन्मदाता गरीबी और भूखमरी है, लेकिन हमारी सरकारें झूठे वायदों के लिए सिवाय देने को कुछ तैयार नहीं। जितना पैसा गोले बारूद के लिए खर्च किया जा रहा है, अगर उतना पैसा ही किसी नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र में खर्च कर दिया जाए, किसका सिर घूमा है कि वो घर की खुशी को त्यागकर जंगल में हथियार उठाए मारे मारे घूमे। nice

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  7. ऐसी समस्याएँ इतनी जल्द ख़तम नही होती..राजनेताओं के बयान तो बस ऐसे हो आते है...हर पहलू पे ध्यान देना बहुत ज़रूरी है..बढ़िया प्रसंग कुलवंत जी..बधाई

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  8. माओवादीयों की समझ जो है, उनका जिस तरह का एक्सपोजर है, जैसी शिक्षा है, और वृहत्तर दुनिया जहान से जो उनका विलगाव है, उसको समझते हुये, कोई भी समझदार इंसान, कोई वामपंथी भी उन्हें इस लायक नहीं समझता कि वों लोकतंत्र का विकल्प हो सकते है. माओवादियों के बस्तर और देश के विभिन्न इलाकों में बढ़ती ताकत की कुछ तो वजहे होंगी, अगर उनकी पड़ताल नहीं होगी, उसे ठीक से समझा नहीं जाएगा, तो समस्या का समाधान भी नहीं होगा। मुझे इस बात पर १००% यकीन है कि जनतंत्र एक सिस्टम के बतौर माओवादी विकल्प से हर हाल में अच्छा है। जनतंत्र पर भरोशा रखने वालों का काम उसे बेहद मजबूत बनाना होता है। जनतंत्र की मजबूती दमन की ताकत तय नहीं करती, वों उसे कमजोर करती है. जनतंत्र की मजबूती होती है, कई विपरीत विचारों के बीच संवाद की गुंजाईश, जनतांत्रिक प्रक्रिया के ज़रिये बहुसंख्यक लोक के लिए समाधानों की तरफ जाना उनको इमानदारी से लागू करना करना. लोकतंत्र को बार-बार हमें इसी कसौटी पर कसना होगा.


    इस पैमाने पर हमारा ६० साल का बच्चा लोकतंत्र बहुत कमजोर है, उसकी आजमाईश कभी पूरी तरह से हुयी नहीं है. जब जब भी हुयी है, उसे लोकतंत्र ने बेहद निरंकुश तरीके से कुचला है. चाहे आपातकाल हो, अलग राज्यों का आन्दोलन हो, नर्मदा घाटी का अहिंसक आन्दोलन हो, नोर्थ ईस्ट या फिर कुछ भी.
    अगर दमन इसका सीधा समाधान होता तो पिछले ६० साल से यही हो रहा है, ये सब देश के हर हिस्से में अमन और शांती को बहाल कर चुका होता. दमन इसका सही समाधान नहीं है. शायद दमन से पहले राजनैतिक , कूटनीतिक समाधानों और प्रक्रियाओं की इमानदार पहल करनी होगी

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  9. भारत को नक्सलवाद से ही नहीं तालिबानी आतंकवादियों से खतरा है, जो इस देश में पैर पसार रहे हैं. ब्लॉग जगत में भी ये तालिबानी घुस आये हैं और देशभक्त मुसलमानों को काफ़िर घोषित कर रहे हैं.

    फ़िरदौस जी, भी इंसानियत और भारतीय संस्कृति की बात कर रही हैं तो आज उन्हें काफ़िर ही घोषित कर दिया गया है. सलीम खान ने अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखकर फ़िरदौस जी पर गंभीर आरोप लगाये हैं. इस्लाम का प्रचार करने वाले सलीम खान कितने सभ्य (असभ्य या जंगली कहना उचित रहेगा) हैं, आपके बारे में लिखी इनकी पोस्ट देखकर ही पता चल जाता है.
    दिमाग़ से पैदल ये कुतर्की भारत को भी तालिबान बनाने पर तुले हुए हैं, जब इन्हें भरतीय संस्कृति से इतनी ही नफ़रत है तो क्यों न यह अरब जाकर ही बस जाए. इस देश को इन जैसे तालिबानियों की ज़रूरत नहीं.

    आज फ़िरदौस जी जैसे मुसलमानों की देश को बहुत ज़्यादा ज़रूरत है, साथ ही उनके अभियान को समर्थन देने की, ताकि और देशभक्त लोग आगे आ सकें !!!

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  10. शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद

    शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद रिपीट अधोक्षजानंद ने कहा कि नक्सलवाद एक ऐसी समस्या है जिसमें चाहे सुरक्षा बलों के जवान शहीद हों या नक्सली मारे जायें. नुकसान भारत की युवाशक्ति का ही हो रहा है। उन्होंने नक्सलियों से हिंसा छोडकर बातचीत का रास्ता अपनाने की अपील की। स्वामी अधोक्षजानंद के शिविर में .आतंकवाद एवं नक्सलवाद का निस्तारण. विषय पर आयोजित संगोष्ठी में असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महन्त तथा जम्मू कश्मीर के उपमुख्यमंत्री ताराचंद ने भी भाग लिया।

    वार्ता न्यूज एजेंसी से...

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  11. ऐसी समस्याएँ इतनी जल्द ख़तम नही होती

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