ओशो सेक्स का पक्षधर नहीं

लेखक कुलवंत हैप्पी
खेतों को पानी दे रहा था, और खेतों के बीचोबीच एक डेरा है, वैसे पंजाब के हर गाँव में एकाध डेरा तो आम ही मिल जाएगा। मेरे गाँव में तो फिर भी चार चार डेरे हैं, रोडू पीर, बाबा टिल्ले वाला, डेरा बाबा गंगाराम, जिनको मैंने पौष के महीने में बर्फ जैसे पानी से जलधारा करवाया था, रोज कई घड़े डाले जाते थे उनके सिर पर, और जो डेरा मेरे खेतों के बीचोबीच था, उसका नाम था डेरा बाबा भगवान दास। गाँव वाले बताते हैं कि काफी समय पहले की बात है, गाँव में बारिश नहीं हो रही थी, लोग इंद्र देव को खुश करने के लिए हर तरह से प्रयास कर रहे थे, लेकिन इंद्रदेव बरसने को तैयार ही नहीं था। दुखी हुए लोग गाँव में आए एक रमते साधु भगवान दास के पास चले गए। उन्होंने उनसे बेनती बगैरह किया।

कहते हैं कि लोगों की दुख तकलीफ सुनने के बाद श्री दिवंगत बाबा भगवान दास जी ने कहा, घर कैसे जाओगे। देखते ही देखते आसमान बादलों से भर गया, और जोरों की बारिश होने लगी। कहते हैं कि उस साल मेरे गाँव में तब तक की सबसे तेज और भारी बारिश हुई थी। भगवान जी के इस चमत्कार के बाद तो गाँव वाले भगवान दास के दीवाने हो गए, उन्होंने उनका गाँव में डेरा बनवा दिया, लेकिन रमता साधु कहाँ रुकता है। नगर बसते भले, साधु चलते भले। हाँ, जब उस दिन मैं खेतों में पानी लगा रहा था, तो मैं घूमता घूमता डेरे के पीछे की तरफ चला गया, वहाँ एक हिन्दी किताब पड़ी हुई थी, फटी पुरानी सी, जिसका न सर था, न पैर। बस एक बीच का हिस्सा था। मैंने उठाया, और उससे पढ़ने लगा। उसमें सेक्स के बारे में कुछ लिखा था, मैंने इतना पढ़ते ही किताब नीचे फेंक दी, और दाएं बाएं देखा कि किसी ने देखा तो नहीं। जबकि उसमें कोई अश्लील फोटो भी नहीं था, बस एक शब्द था सेक्स। सेक्स शब्द के आते ही पिता का अक्स सामने आया खड़ा हो गया, जबकि मेरे पिता तो अनपढ़ थे, और वो किताब तो फिर भी हिन्दी में थी, गाँव में बहुत कम लोग थे, जो हिन्दी पढ़ पाते, फिर भी मेरे पैरों तले से जमीन हट गई।

वैसे जल्दबाजी में मैंने किताब का नाम पेज के टॉप के एक कोने से पढ़ लिया था, संभोग से समाधि की ओर। उसके बाद मैंने कभी नहीं उसको किताब को देखा। सेक्स को हिन्दुस्तान में बुरी चीज कहा गया है, जबकि हर व्यक्ति सेक्स से लबालब है। दसवीं कक्षा के बाद मैं गाँव छोड़कर शहर आ गया। एक दोस्त ओशो का दीवाना था, वो आज भी है। वो ओशो पढ़ता था, उनकी जान पहचान के लोग उसकी खिल्ली उड़ाते थे। तब मुझे पता चला था कि संभोग से समाधि की ओर ओशो की किताब है, और वो खेत वाला सीन आँखों के सामने आया गया। लगा सच में ओशो सेक्स पर ही किताब लिखता है। मैंने बठिंडा रहते हुए कभी ओशो नहीं पढ़ा, और उसकी किसी किताब को देखा तक भी नहीं, लेकिन इंदौर आने के बाद जब ओशो को पढ़ा तो लगा कि ओशो सेक्स का पक्षपाती नहीं, बल्कि सेक्स को सही तरह से प्रभाषित कर वो समाज को सेक्स मुक्त बनाने का इच्छुक था, ऐसा नहीं कि वो सेक्स करने से रोकना चाहता है।

वो कहता है, सेक्स को ऐसे मत लो, जैसे कई दिनों का भूखा व्यक्ति खाने को लेता है। उसका कहना है कि सेक्स को समझने की जरूरत है, सेक्स है क्या आखिर। उस किताब का सिरलेख ही पूरी बात कह जाता है ‘संभोग से समाधि की ओर’, और कुछ कहने की तो जरूरत ही नहीं रह जाती। ऐसा बिल्कुल नहीं कि ओशो ने केवल सेक्स पर लिखा है, ओशो ने जिन अन्य विषयों पर कहा है, अगर वो कोई सुन ले या पढ़ ले, उसको और कुछ पढ़ने की जरूर न रह जाएगी। उतना कुछ तो वीकीपीडिया में नहीं, जितना कुछ ओशोपीडिया में मौजूद है। कौन सा दार्शिनिक है, जो ओशो की नजर से परे है, उसने किस को नहीं पढ़ा, उसने जो कह दिया, वो बिल्कुल सत्य और खरा है, लेकिन कुछ लोगों ने उस पर सेक्स का ठप्पा लगाकर उसे खत्म करने की ठान ली, लेकिन ओशो का कथन, जितना तुम किसी वस्तु पर प्रतिबंध लगाओगे, वो उतनी तेजी से और ज्यादा फैलगी, बिल्कुल सत्य साबित हो रहा है। आज ओशो की विचारधारा को मानने वाले लाखों में हैं, लेकिन ओशो को पढ़ने की बुद्धि को उस ऊंचाई तक लेकर जाना होगा, जहाँ पर ओशो को पचाया जा सकता हो। हिन्दुस्तान में सेक्स को पाप कहा गया, लेकिन क्या सेक्स रूका, नहीं रूका, उसने रेप जैसे रास्ते तैयार कर लिए, उसने की मासूमों की जिन्दगियाँ तबाह कर दी। अगर सेक्स की अच्छी शिक्षा दी जाए तो शायद रूकता है रेप का चक्कर, नशे पर रोक है, क्या नशा खत्म हो गया, नहीं हुआ, बल्कि कई परिवार खत्म हो गए।

टिप्पणियाँ

  1. लोग हर चीज़ के कई मतलब निकाल लेते है....बाकी तो समझने वालों पर निर्भर करता है...बढ़िया प्रसंग

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  2. हम बिना किसी को पढ़े,सुने,जाने,देखे बिना कैसे किसी के बारे में कुछ भी सोच बना सकते है!ओशो को मै तो एक बहुत बढ़िया मनोविश्लेषक मानता हूँ जी!उनके द्वारा रचित "श्रीमद भगवद गीता का मनोविज्ञान" आज-कल मै पढ़ रहा हूँ!किसी बात को कैसे बड़ी आसानी से,सरलता से बता सकते है,वो पता लग रहा है!मुझे अब तक तो कहीं नहीं लगा कि वो भारतीय संस्कृति के विरुद्ध बोल रहे है!"सम्भोग से समाधि तक" मैंने नहीं पढ़ी अभी तक!

    कुंवर जी,

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  3. आपने सही कहाँ हेप्पीजी... एक प्रेरणासभर आलेख पोस्ट करने के लिए आपका धन्यवाद...

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  4. ओशो के दर्शन को समझने के लिए उनके प्रवचनों में उतरना होता है, गहराई समझनी होती है और आत्मसात करना होता है.

    बहुत उम्दा आलेख!

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  5. aise kahna tha bhaai ki 'Osho sex ke pakshpaati nahin'

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  6. हिन्दुस्तान में सेक्स को पाप कहा गया, लेकिन क्या सेक्स रूका, नहीं

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  7. ओशो ने कभी काम की निंदा नहीं की, काम को द्वार कहा है समाधि का । लेकिन द्वार को ही समाधि समझने की भूल मत कीजिए । अंदर मंदिर में प्रवेश कीजिए ताकि समाधि घटित हो सके । और ओशो ने कभी काम की निंदा नहीं की, काम को द्वार कहा है समाधि का । यह मत भूलिए कि जहाँ आप हैं, वहीं से यात्रा की शुरुआत हो सकती है। यदि आप नागपुर में हैं और आप दिल्ली जाना चाहते हैं, तो नागपुर तो छूट ही जाएगा । यदि आप संबोधि पाना चाहते हैं, तो काम तो छूट ही जाएगा ।

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  8. दोस्त बहुत ही सही बात कही है तुमने,ओशो को लोग सेक्स का समर्थक कहते है,जबकि वो न तो समर्थक थे नहीं विरोधी,वो सिर्फ समाज को ये बताना चाहते थे की सेक्स सिर्फ एक उर्जा है और इस उर्जा को इन्सान कैसे काबू करे ये उन्होंने सिखाया.....

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  9. लोग 'सम्भोग से समाधि की ओर' को इस तरह लेते हैं जैसे कार से शहर की ओर... अर्थात सम्भोग को साधन की तरह समझने की भूल करते हैं... जबकि सम्भोग से समाधि की ओर का मंतव्य "तम से ज्योति की ओर" जैसा है... बिना ओशो को पढ़े केवल सुन कर कोई विचारधारा बना लेना अज्ञानता ही लगती है .

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