सेक्स एजुकेशन से आगे की बात

देश में सेक्स एजुकेशन को लेकर अनूठी बहस चल रही है, कुछ रूढ़िवादी का विरोध कर रहे हैं और कुछ इसके पक्ष में बोल रहे हैं। लेकिन कितनी हैरानी की बात है कि किसी शिक्षा की बात कर रहे हैं हम सब, जो इस देश में आम है। सचमुच सेक्स शिक्षा इस देश में आम है, वो बात अलहदा है कि वो चोरी छिपे ग्रहण की जा रही है। इस देश में सेक्स शिक्षा आम है, इसका सबूत तो नवविवाहित जोड़ों से लगाया जा सकता है। खुद से सवाल करें, जब उनकी शादी होती है कौन सिखाता है उनको सेक्स करना। हाँ, अगर जरूरत है तो सेक्स से ऊपर उठाने वाली शिक्षा की।

इस देश का दुर्भाग्य है कि सेक्स को पाप, पति को परमेश्वर और नारी को नरक का द्वार कहा जाता है। अब सोचो, जब तीनों बातें एक साथ एकत्र होंगी, तो क्या होगा? युद्ध ही होगा और कुछ नहीं। कितनी हैरानी की बात है कि हम उसको युद्ध नहीं बल्कि सात जन्मों का पवित्र बंधन भी कहते हैं। अगर सेक्स पाप है, तो जन्म लेने वाली हर संतान पाप की देन है, अगर वो पाप की देन है तो वो पापमुक्त कैसे हो सकती है? हमने सेक्स को पहले पाप कहा, फिर शादी का बंधन बनाकर उसका परमिट भी बना दिया। हमारी सोच में कितना विरोधाभास है।

हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि विवाह के बाद रिश्तों में खटास क्यों आ जाती है? विवाह के बाद रिश्ते कच्चे धागों की तरह टूटने को लगते हैं? हम ने सेक्स को पाप बना दिया, स्त्री को नरक का द्वार बता दिया और पति को परमेश्वर। बस इसमें उलझकर रह गया मनुष्य। पति को परमेश्वर बताकर हमने ईगो को जन्म दे दिया, मैं को जन्म दे दिया, तानाशाह को जन्म दे दिया। और मनुष्य इससे आगे नहीं निकल पाया। मनुष्य ने पुरुषवादी सोच रखते हुए औरत को सेक्स पूर्ति की मशीन समझा, और औरत ने सेक्स को दमन। सपनों का दमन, रीझों का दमन, उमंगों का दमन। उसको इस रिश्ते से घुटन होने लगी। जब पानी में कड़वाहट आने लगती है तो उसका मीठा स्वाद जाने लगता है। ऐसा ही होने लगता है विवाह के बाद। बस धीरे धीरे रिश्ते पतन की ओर जाने लगते हैं। सेक्स वो अवस्था है यहाँ पर मैं और तू का अर्थ खत्म हो जाता है, लेकिन हमने एक को बड़ा कहकर मैं को जन्म दे दिया। तू नारी है, मैं पुरुष हूँ, जब मैं तू का भेद खत्म हो जाए और जब सब शून्य हो जाए। वो ही सेक्स संपूर्ण है, वरना तो दोनों ही एक दूसरे के लिए सेक्स पूर्ति की मशीनें हैं। इस देश में सेक्स एजुकेशन की नहीं, बल्कि सेक्स के सही अर्थ समझाने की जरूरत है। सेक्स को पाप कहकर खुद को पाप की संतान घोषित करने से उभरना होगा। सेक्स को सही ढंग से परिभाषित करना होगा। सेक्स दो रूहों का वो मिलन है, जो समाधि पर जाकर खत्म होता है। समाधि ईश्वर की ओर लेकर जाती है।

सेक्स को पर्दे में डाल दिया, हर कोई उसको देखने के लिए उतावला हो उठा। आपको याद होगा आज से कई साल पहले की फिल्मों में हीरोईनों का ड्रेस सेंस। उनकी नंगी टांगें और बाँहें देखकर कुछ दर्शक तालियाँ बजा उठते थे, और कहते थे थोड़ा सा और दिखाओ, लेकिन आज करीना कपूर जैसे अभिनेत्रियाँ जिस्म की नुमाइश तक लगा देती हैं, कोई देखता नहीं बल्कि कहते हैं कि कुछ कहानी लाओ। कुछ ऐसा ही सेक्स के बारे में। जब सेक्स को हम अच्छी तरह से परिभाषित कर देंगे, तब सेक्स हम को एक शांति और सुकुन की तरफ लेकर जाएगा। जब हमारे जेहन से सेक्स का भूत निकल जाएगा, तब महिलाएं आराम से घूम पाएंगी, उनको कोई भय न होगा। हमने दिमागों में तो सेक्स भर रखा है, लेकिन विरोधी बने घूम रहें हैं सेक्स के। महिला को देखते ही सबसे पहले पुरुष की निगाह उसकी उभरी हुई छाती पर जाती है क्यों? हम तो सेक्स के विरोधी हैं न। मुझे याद है, पंजाब में पंजाब केसरी को सबसे ज्यादा सेक्सी फोटो प्रकाशित करने वाला अखबार कहा जाता है, लेकिन सच मानो जो उसको बुरा कहते थे, वो ही सबसे ज्यादा उस दिन अख़बार खरीदते हुए मिलते थे, जिस दिन सेक्सी फोटो से भरपूर गलैमरस का पेज आना होता था। हमारी वास्तविकता यही है, हमने सेक्स को बाहर से तो पाप कह दिया, लेकिन भीतर ही भीतर को ज्वालामुखी बना लिया। बलात्कार उसकी की देन हैं। एक महिला ब्लॉगर ने लिखा था कि रेप असभ्य समाज (आदि वासी) में सभ्य समाज की तुलना में कम होते हैं। मैं कहना चाहूंगा, वहाँ ऐसा इस लिए होता, क्योंकि वहाँ सेक्स पाप नहीं। वहाँ सेक्स सृष्टि को आगे बढ़ाने का जरिया है, रास्ता है। हम गंगोत्री खत्म कर गंगा की उम्मीद करते हैं, कोले की खानें बंद कर हीरे की उम्मीद करते हैं। आखिर कैसे संभव होगा।

आभार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. sex pr education ki behs kaa svaal hi nhin uthta aaj bhi hmaare desh men hadappa mohan joddo men yeh sb shiksha dekhne ko milti he hmaare dsh men shiv ling ki pooja isi kaa mehtvpoorn udhaahran he. akhtar khan akela kota rajasthan

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  2. हमारे यहाँ तो महारिशी वात्स्यान ने पूरा एक ग्रन्थ लिख दिया सेक्स ज्ञान पर। सारी सृष्टि का सृजन ही सम्भोग पर टिका है। धरा अनादी काल से दिनकर की परिकर्मा में तल्लीन नृत्य निमग्न है। पेड़, पक्षी,सूर्य ,चंदमा,पृथ्वी आकाश, पाताल सभी सम्भोग रत हैं। नदी अपने प्रियतम सागर में मिल कर सम्पूर्णता को पा जाती है। सम्भोग के बिना इस कायनात का कोई अस्तित्व नहीं।

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  3. बहुत सटीक बात कही आपने ....जिस चीज़ को जितना छुपाओ उसकी जागरूकता उतनी ही बढती है ......विचारणीय लेख

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  4. बहुत सटीक बात कही आपने .

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  5. बेनामी4/04/2010 7:07 am

    समयोचित लेख। बहुत बढ़िया ढंग से लिखा है।


    आरएस नेगी, नई दिल्ली

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  6. सटीक बात
    बहुत बढ़िया

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  7. यह हमारे देश के कुछ परम्परा और रूढ़िवादी लोगो की समझ में नही आ रहा और उसी का फल है जो समाज में कुछ अशोभनीय घटनाएँ घट रही है...बहुत बढ़िया चर्चा किया आपने अगर लोगों की समझ में आए तो अतिउत्तम...धन्यवाद भाई

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  8. ठीक है सेक्स पाप नहीँ है आपकी बात मान ली
    ठीक है हमने सेक्स को बाहर से तो पाप कह दिया, लेकिन भीतर ही भीतर को ज्वालामुखी बना लिया ये भी मान लिया,
    अब आप ये बताने की कृपा करे की हम क्या करना चाहिये ?
    रोड पर जो लडकी अच्छी लगे उसे नंगा करके रोड पर सुरू हो जाये ?
    aap hi bataiye ? ilaaj kya he ? yshovarman@ovi.com par mail karke muje plz bataiye.

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    उत्तर
    1. अच्छी क्या चीज नहीं लगती! बाजार में पड़े हुए खिलौने अच्छे नहीं लगते, बागों में लगे फूल अच्छे नहीं लगते, क्या लड़कियां सुंदर पुरुष देखकर उनके साथ रेप करना शुरू कर देती हैं। तुम्हारी मर्जी अगर तुम रोड़ कर शुरू करने का दम रखते हो तो कर लो। मगर जागते हुए करना, तो कुछ पता कर सको, मिला क्या। सुंदरता तो पल में क्षीन हो जाएगी। दस मिनट बाद उसने चलो, अब फिर से कहो, प्राणों में जान न होगी।

      स्वयं को संभालो। सोने के गहने सुंदर लगते हैं। तुम उतारकर तो भाग नहीं जाते।

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    2. तुमने कभी सोचा है। औरत इतनी कामुक को नहीं, तुम्हें पाने को आतुर क्यूं नहीं, क्यूंकि वह सारा दिन कामों में उलझती रहती है, सजने संवरने में उलझी रहती है, जिस दिन तुम्हारी तरह चौखटों पर बैठने लग गई, जिस दिन सेक्स के अनूठे जाल में फंस गई तो तुम यह कहने लायक न रहो, सड़क पर जा रही है पकड़ कर शुरू हो जाउं

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