ह्यूमन एंटी वायरस

हर बात को लेकर विरोधाभास तो रहता ही है, जैसे आपने किसी को कहते हुए सुना होगा "मुफ्त में कोई दे, तो ज़हर भी खा लें", वहीं किसी को कहते हुए सुना होगा "मुफ्त में कोई दवा भी न लें, सलाह तो दूर की बात"। हम मुफ्त में मिला ज़हर खा सकते हैं, लेकिन मुफ्त में मिली एक सही सलाह कभी निगलना नहीं चाहेंगे। फिर भी मुझ जैसे पागलों की देश में कमी नहीं, जो मुफ्त की सलाह देने में यकीन रखते हैं, जबकि वो जानते हैं कि मुफ्त की सलाह मानने वाले बहुत कम लोग हैं। इसकी स्थिति वैसी ही है जैसे किसी के प्रति सकारात्मक नजरिया, कोई आपसे कहे वो व्यक्ति बुरा है, आप नि:संदेह मान लेंगे, लेकिन अगर कोई कहे बहुत अच्छा है तो संदेह प्रकट हो जाएगा, स्वर्ग को लेकर संदेह हमेशा ही रहा है, लेकिन नरक को लेकर कोई संदेह नहीं।

मानो लो आप अपनी मस्त कार में जा रहे हैं, कार में बैठे हुए आप केवल कार के भीतर ही निगाहें रखें लाजमी तो नहीं, आप बाहर की ओर की देख रहें होते हैं, कार की जगह बस भी मान सकते हैं कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको बाहर रोड़ पर एक महिला के पास खड़ा एक रोता हुआ बच्चा दिखाई पड़ता है, और वो रो रहा है, वो बहुत गंदा दिखाई पड़ रहा है कई दिनों से मानो नहाया न हो, और उसकी माँ उसके रोने की ओर ध्यान न देकर सिर्फ पत्थर तोड़ने में लगी हुई है। आप उसकी स्थिति को देखकर उसके प्रति विचारक हमदर्दी प्रकट करने लगते हैं अपने ही भीतर, वो बच्चा वहीं रो रहा है, लेकिन आपकी कार या बस उससे आधा किलोमीटर दूर निकल आई, लेकिन मानसिक तौर पर वो बच्चा आपके साथ ही चल रहा है। आप भीतर ही भीतर क्रोध से भरे जा रहे हैं, आपके विचार आपको गुस्सैल बना रहे हैं, देश के सिस्टम के प्रति आप भीतर ही भीतर चिल्लाने लगते हैं, अचानक आपसे कोई पूछता है कहाँ जाना है ड्राईवर या कंडक्टर। आप क्रोधित हैं, लाजमी है कि आपकी बोली भी वैसी ही होगी, आपका जवाब सुनकर सामने वाला भी क्रोधित हो उठेगा। उसकी आवाज में आया रुखपन आपको चुभने लगेगा काँटे की तरह।

आपको पता है ऐसा क्यों हुआ? जब आपने उस बच्चे को देखा तो आपके भीतर नकारात्मकता घुस गई, वायरस घुस गया, अब जो भी वस्तु उससे लगेगी वो वायरस युक्त हो जाएगी। ऐसे में आपका व्यवहार बिगड़ेगा, आपका व्यवहार बिगड़ेगा, तो आप का आस पड़ोस ख़राब होवेगा, जब वो प्रभावित होवेगा तो आप कैसे नहीं प्रभावित होंगे। आपको माहौल से नफरत होने लगेगी, आपका दम घुटने लगेगा। ऐसे में आपको जीवन नरक लगेगा, जो उस घटना से पहले स्वर्ग लग रहा था। अगर कम्प्यूटर के लिए एंटी वायरस बना है तो मानव के लिए भी एंटी वायरस है। आपके पास दो विकल्प हैं, एक तो उसी समय विचार को त्याग दें या फिर आप बस या कार से उतरकर, जो कुछ आपके पास है, उसका कुछ हिस्सा उस मासूम को दें आएं। फिर उसके चेहरे पर एक मुस्कान आएगी, जिसको देखकर आपकी मुस्कान डबल हो जाएगी, अब आपके साथ लगने वाली हर वस्तु वायरस मुक्त हो जाएगी। आपका व्यवहार अच्छा होगा, तो आपका आस पास अच्छा होगा, और जीवन फिर से स्वर्ग की ओर बढ़ेगा। मेरे कहने का सिर्फ इतना अर्थ है विचारों को त्याग कर सिर्फ और सिर्फ करनी में यकीन रखो, कभी दुखी न होगे। भारत से अच्छा दुनिया में कोई स्वर्ग नहीं, लेकिन भारत को नरक बनाया है नकारात्मक विचारों ने, फालतू की चर्चाओं ने। जो अपने पास है उसकी कदर नहीं, लेकिन पड़ोसी की पत्नि अच्छी लगती है। दुखी होने के कारण तो हम खुद ईजाद करते हैं, फिर दोषी दूसरे को कहते हैं, जब दिमाग में तो हर समय पड़ोसन रहेगी, तो पत्नि से अच्छे से पेश कैसे आओगे, और तुम अच्छे न होगे तो सामने से अच्छा वो मिले कैसे संभव है।

प्रिय नोट : किताबी ज्ञान कहकर नकारे वालों को मेरा सलाम। बस उनसे इतना कहूँगा, कंठस्थ और आत्मसात में अंतर समझना सीख जाएं, उनका भी भला होगा, और आस पास वालों का भी भला होगा।

आभार
कुलवंत हैप्पी

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