लफ्जों की धूल-4

(1)
जिन्दगी का जब, कर हिसाब किताब देखा
लड़ाई झगड़े के बिन, ना कुछ जनाब देखा

वो नहीं करते बात दंगे फसाद की,
झुलसता जिन्होंने दिल्ली पंजाब देखा।
कभी हिन्दु-मुस्लिम तो कभी
बिछड़ता सतलुज जेहलम चेनाब देखा।
अमन की गूँज हो हर तरफ
हैप्पी ने तो बस इतना सा ख्वाब देखा।

(2)
हाँ सचमुच, नहीं जमती उस रब्ब से मेरी
जिसके नाम से चलती हैं दुकानदारी तेरी

(3)
एक बड़ा सा फोटो करवा हट्टी में लगाया लिया,
सुना है, तूने रब्ब को ब्रांड एम्बेसडर बना लिया,

1.हट्टी-दुकान  

आभार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. हैप्पी ने तो बस इतना सा ख्वाब देखा।
    jaroor pura hooga mere dost

    जवाब देंहटाएं
  2. are yaar badda pyara blog hai aapkaa aur kavitaa bhi....balle-balle.... mazaa aa gayaa sach yaar.....

    जवाब देंहटाएं
  3. ધન્યવાદ દોસ્તનાથ જી.. धन्यवाद दोस्तनाथ जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  5. जिन्दगी का जब, कर हिसाब किताब देखा
    लड़ाई झगड़े के बिन, ना कुछ जनाब देखा
    सटीक लिखे हो सरकार

    जवाब देंहटाएं
  6. कुलवंत जी बहुत सुंदर रचना पोस्ट की है।

    जवाब देंहटाएं
  7. अमन की गूँज हो हर तरफ
    कामना तो यही है पर --
    बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं
  8. bahut sahi kahaa happy bhai aapne..


    lekin mera khvab thoda sansodhit hai

    ख्वाब अगर उँचा है फिर तो,
    कदम बढ़ा चलना होगा |
    और विश्व के मानचित्र को ,
    भारत मय करना होगा |

    सत्य अहिंसा के प्रतीक को,
    अब संशोधित करना होगा |
    गर आँख उठे हम पर कोई,
    उसे भाव शुन्य करना होगा |

    जवाब देंहटाएं
  9. स्वागत है आपके ख्वाब का भी। ख्वाब अच्छा है, ख्याल अच्छा है। दोनों को मिला दिया। मजा आ गया।

    जवाब देंहटाएं

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