आओ चलें आनंद की ओर

हिन्दुस्तान में एक परंपरा सदियों से चली आ रही है, बचपन खेल कूद में निकल जाता, और जवानी मस्त मौला माहौल के साथ। कुछ साल परिवार के लिए पैसा कमाने में, अंतिम में दिनों में पूजा पाठ करना शुरू हो जाता है, आत्मशांति के लिए। हम सारी उम्र निकाल देते हैं, आत्म को रौंदने में और अंत सालों में हम उस आत्म में शांति का वास करवाना चाहते हैं, कभी टूटे हुए, कूचले हुए फूल खुशबू देते हैं, कभी नहीं। टूटे हुए फूल को फेवीक्विक लगाकर एक पौधे के साथ जोड़ने की कोशिश मुझे तो व्यर्थ लगती है, शायद किसी को लगता हो कि वो फूल जीवित हो जाएगा। और दूसरी बात। हमने बुढ़ापे को अंतिम समय को मान लिया, जबकि मौत आने का तो कोई समय ही नहीं, मौत कभी उम्र नहीं देखती। जब हम बुढ़ापे तक पहुंच जाते हैं, तब हमें क्यों लगने लगता है हम मरने वाले हैं, इस भय से हम क्यों ग्रस्त हो जाते हैं। क्या हमने किसी को जवानी में मरते हुए नहीं देखा? क्या कभी हमने नवजात को दम तोड़ते हुए नहीं देखा? क्या कभी हमने किशोरावस्था में किसी को शमशान जाते हुए नहीं देखा? फिर ऐसा क्यों सोचते हैं  कि बुढ़ापा अंतिम समय है, मैंने तो लोगों को 150 वर्ष से भी ज्यादा जीते हुए देखा है, और वो भी तंदरुस्ती के साथ। मेरी माँ की बुआ करीबन 109 साल की होकर इस दुनिया से गई थी। हमने साठ सतर साल की उम्र को ही क्यों अंतिम सीमा मान लिया, हमने क्यों निर्धारित कर लिया कि हमारा अंतिम समय है। अगर सोचना ही है तो ऐसा सोचो कि आज का दिन अगर हमारा अंतिम दिन होता तो हम समाज को क्या देकर जाते, हम क्या क्या करते, हम किससे मिलते। करना ही है तो ऐसा अवलोकन करो।

चलते चलते मुझे श्री शरद कोकास के ब्लॉग पर जीवन की ओर लेकर जाने वाली एक बहुत बढ़िया कविता मिली है, जिसको मैं आप सबके सामने रखना चाहूंगा। यह कविता आपको आनंद की ओर लेकर जाएगी, आनंद आपको ताउम्र भीतर से युवा रखेगा, आपको युवा रहने के लिए बाहरी मेकअप की जरूरत न पड़ेगी। कविता को पढ़ने के साथ साथ महसूस भी करना। उसके भीतर रहस्य को जानना बेहद जरूरी है।
अपना हाथ दो मुझे

दो अपना हाथ और अपना प्रेम दो मुझे
अपना हाथ दो मुझे और मेरे साथ नाचो
बस एक इकलौता फूल
इस से ज़्यादा कुछ नहीं
हम बने रहेंगे
बस एक इकलौता फूल.
साथ नाचते हुए मेरे साथ एक लय में
तुम गीत गाओगे मेरे साथ
हवा में फ़क़त घास
इस से ज़्यादा कुछ नहीं
हम बने रहेंगे
हवा में फ़क़त घास.
उम्मीद है मेरा नाम और गु़लाब तुम्हारा
लेकिन अपने अपने नामों को खो कर हम दोनों मुक्त हो जाएंगे
पहाड़ियों पर बस एक नृत्य
इस से ज़्यादा कुछ नहीं
हम बने रहेंगे
पहाड़ियों पर बस एक नृत्य

गाब्रीएला मिस्त्राल

भार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. सहमत हूं कुलवंत भाई!बी हैप्पी!

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  2. आपने पोस्ट कि शुरुआत हिन्दुस्तान की एक परम्परा से की है. इसे पढकर एक गीत याद आ गया. 'तीसरी कसम' फिल्म का गाना है मुकेश की आवाज में, 'सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है.' इस गाने में एक लाइन है, 'लड़कपन खेल में खोया, जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देख कर रोया, वही किस्सा पुराना है.'
    आपने बिलकुल सही कहा है कि बुढापा जिंदगी का अंत नहीं. इसके बाद भी जिंदगी बचती है जिसे हम शान से जी सकते हैं.
    सुन्दर पोस्ट!

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  3. आपके ब्‍लाग पर लिखा है युवा सोच युवा खयालात। लेकिन आप बुजुर्गवा बात कर रहे हैं जीवन-मृत्‍यु की। युवा जीवन के बारे में क्‍या सोचते हैं ऐसा कुछ लिखिए जिससे हम लोग भी वापस जी सके।

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  4. accha saccha sandesh deta hai aapka ye lekh..........
    aabhar..................

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  5. @ Dr. Smt.ajit gupta जी मैंने बात तो युवा होने की ही की है, शायद आप अंत आने से पहले ही पढ़ना छोड़ गए। मैं कहा है कि युवा होने की कोई उम्र नहीं, मृत्यु की कोई उम्र नहीं, तुम डरो मत जिओ। मौत आने से पहले ही मत मर जाओ। बुजुर्गपन में भी जवानी का जोश रखो। उसके लिए आपको सही मार्ग तलाशना होगा। वो कविता के भीतर है।

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  6. अच्छी प्रस्तुति ......जीवन दर्शन का सन्देश देता हुआ .............बहुत बहुत आभार

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  7. जीवन दर्शन की सुखद व्याख्या।

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  8. अच्छा दर्शन और बहुत बढ़िया कविता छांट कर लाये हैं.

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