लव सेक्स और धोखा बनाम नग्न एमएमएस क्लिप

फिल्म के निर्देशक और निर्माता ने फिल्म का शीर्षक समयोचित निकाला है, क्योंकि ज्यादातर दुनिया ऐसी होती जा रही है, प्रेम अभिनय की सीढ़ी जिस्म के बंगले तक पहुंचने के लिए लोग लगाते हैं, स्वार्थ पूरा होते ही उड़ जाते हैं जैसे फूलों का रस पीकर तितलियाँ। मुझे फिल्म के शीर्षक से कोई एतराज नहीं, लेकिन फिल्म समीक्षाएं पढ़ने के बाद फिल्म से जरूर एतराज हो गया है, ऐसा भी नहीं कि मैं कह रहा हूँ कि खोसला का घोंसला और ओए लक्की लक्की ओए जैसी फिल्म देने वाला निर्देशक एक घटिया फिल्म बनाएगा। 
 


मैं जो बात करने जा रहा हूँ, वो फिल्म में न्यूड सीन के बारे में है, कहते हैं कि निर्देशक ने बहुत साधारण वीडियो कैमरों से बहुत ही उम्दा ढंग से इन सीनों को फिल्माया है। अगर कोई साधारण कैमरे से अच्छी चीज का फिल्मांकन करता है तो इस बात के लिए उसकी प्रशंसा कर सकता हूँ, अगर कोई कहता है कि उसने नग्न एमएमएस क्लिप को भी बढ़िया ढंग से शूट किया तो मुझे समझ नहीं आता कि उसकी प्रशंसा कैसे और क्यों करूँ। हाँ, बात कर रहे थे, फिल्म में नग्न दृश्य डालने की, शायद पहली बार ऐसा हिन्दी फिल्म में हुआ, हमबिस्तर होते तो हर फिल्म में दिखाई ही देते हैं, मगर बिल्कुल नग्न दृश्य फिल्माने का साहस तो दिवाकर बनर्जी ने किया है, जबकि इससे पहले फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर एवं अन्य फिल्म निर्माता निर्देशकों की फिल्मों से सेंसर ने ऐसे दृश्य कई दफा हटाए हैं, मगर इस बार सेंसर ने इनको धुंधल करने का आदेश दिया। अगर फिल्म में नग्न दृश्य फिल्माए गए हैं, तो लाजमी में है कि दृश्य भी उस तरह फिल्माए गए होंगे, जैसे नग्न फिल्मों में फिल्माए जाते हैं, या जैसे डीपीएस स्कूल की छात्रा का अश्लील एमएमएस को फिल्मा कर बाजार में भेज दिया गया था, और देश में शोर मच गया था। मगर जब वो ही दृश्य दिवाकर बनर्जी ने साधारण कैमरे द्वारा फिल्माया तो कुछ लोगों ने उसकी तारीफ की, क्या खूब फिल्माया है, लेकिन तारीफ करने वाले भूल गए कि इन दोनों घटनाओं में सिर्फ फर्क इतना है कि इस दृश्य को व्यवसाय के तौर पर फिल्माया गया है, इस दृश्य में काम करने वाला हर व्यक्ति या कलाकार व्यवसाय से जुड़ा हुआ है, और वो एमएमएस में शामिल छात्रा केवल धोखे की शिकार थी। 

मगर दोनों दृश्य में नग्नता तो एक सी ही है, फिर शाबाशी किस बात की दूँ, निर्देशक को। हाँ, अगर नग्न दृश्य फिल्माने के लिए ही शाबाशी देनी है, तो नग्न फिल्में बनाने वाले हर निर्देशक को दे डालो। अगर आप इसको अभिनय कहते हैं तो मैं उसको भी अभिनय कहता हूँ, जो उस दौरान उस लड़की के साथ किया गया, शायद वो करने वाला फिल्म कलाकार न हो, लेकिन असली जिन्दगी का एक घटिया मानसिकता का शिकार कलाकार तो था ही, जो चेहरे पर मित्रता एवं विश्वास का मॉस्क लगाकर अभिनय कर रहा था। दिवाकर बनर्जी का फिल्माया हुआ फिल्म दृश्य और वो एमएमएस वीडियो क्लिप दोनों एक बराबर हैं, लेकिन लोगों की देखने की सोच क्या कहती है मुझे नहीं पता। हो सकता है कि इन दृश्यों को फिल्मा रही लड़कियाँ खुद को बड़ी अभिनेत्रियाँ मान रही हों, लेकिन जिस्म और संवेदनाएं तो इनके दिल में भी वैसी ही हैं, जैसी उस एमएमएस की शिकार लड़की की थी।

टिप्पणियाँ

  1. ज्यादा नहीं एक बीमार फिल्म कहें तो बिल्कुल सही होगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सटीक बात कही आपने ......ये नग्न दृश्य दिखा कर आखिर दर्शाना क्या चाहते है कि वो ज्यदा समझदार होगये है .....

    जवाब देंहटाएं
  3. मित्र जो समाज जितना अधिक नंगा हो सकता है, देख सकता है, वो उतना अधिक समझदार होता है, यही समझाया जा रहा है हमारे देश की प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष जनता को.

    जवाब देंहटाएं
  4. सही कह रहे हैं आप नग्नता तो फ़िर नग्नता है।

    जवाब देंहटाएं
  5. सही कह रहे हैं आप नग्नता तो फ़िर नग्नता है।

    जवाब देंहटाएं
  6. aap sirf ladkiyon ki nagnta par prashn kyon utha rahe hain.. ladke bhi usme utne hi nage hain..

    जवाब देंहटाएं
  7. आपका ब्लॉग पढ़कर ऐसा लगता है कि आपने बिना फिम देखे ही अपना निष्कर्ष निकल दिया है। निर्देशक ने आपसे कहीं नहीं कहाँ कि आइये ओर एक मस्त नग्न सीन देख कर जाइये। उसने कहीं पर भी इसका प्रचार नहीं किया, क्यूंकि फिल्म उस एक सीन के बारे में नहीं है। आप देखें एक बार इस फिल्म को ओर फिरम अपना नजरिया बताएं इसके बारे में। मुझे उम्मीद है कि फिल्म में बिना उठाये हुए भी उठाये गए सवाल आपको झाक्जोरेंगे जरूर। आग्रह है आपसे ओर सभी टिप्पणीकारों से, फिल्म देखियेगा जरूर!

    जवाब देंहटाएं
  8. आशु भाई, मैंने पूरी तरह लिखा है कि मुझे निर्देशक की काबलीयत पर शक नहीं, लेकिन एतराज इस बात पर है कि उसको वो सीन फिल्म माने की क्या जरूर थी, वो बीच में सिर्फ ऐसे दिखा देता कि ऐसा शहर में हुआ, और बाद में उन लोगों की मानसिकता को आंकता तो मुझे बेहद अच्छा लगता। तूफान से गिरते हुए घर तो सब क्रिएट कर सकते हैं, लेकिन उस दौरान लोगों के दिलों का भय क्रिएट करना की महानता होगी।

    जवाब देंहटाएं
  9. मैंने आशु जी के अनुरोध पर फ‍िल्‍म देखी, लेकिन निरी बकवास थी, और मैंने आलेख में अब लगता है कुछ भी गलत नहीं लिखा।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

हार्दिक निवेदन। अगर आपको लगता है कि इस पोस्‍ट को किसी और के साथ सांझा किया जा सकता है, तो आप यह कदम अवश्‍य उठाएं। मैं आपका सदैव ऋणि रहूंगा। बहुत बहुत आभार।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महात्मा गांधी के एक श्लोक ''अहिंसा परमो धर्म'' ने देश नपुंसक बना दिया!

सदन में जो हुआ, उसे रमेश बिधूड़ी के बिगड़े बोल तक सीमित न करें

हैप्पी अभिनंदन में महफूज अली

हैप्पी अभिनंदन में संजय भास्कर

..जब भागा दौड़ी में की शादी

कपड़ों से फर्क पड़ता है

भारत की सबसे बड़ी दुश्मन