"स्वप्न दिवस" और "सपनों की बात"

दुनिया में इंसान दो तरह के होते हैं। इस वाक्य को माय नेम इज खान में सुना होगा या उससे पहले भी कई दफा सुना होगा। वैसे देखा जाए तो सिक्के के भी दो पहलू होते हैं, लेकिन मैं बात करने जा रहा हूँ सपनों की, क्योंकि 11 मार्च को ड्रीम डे है मतलब स्वप्न दिवस। इंसान की तरह सपनों की भी दो किस्में होती हैं, एक जो रात को आते हैं, और दूसरे जो हम सब दिन में संजोते हैं। रात को मतलब नींद में आने वाले सपने बिन बुलाए अतिथि जैसे होते हैं। सुखद भी, दुखद भी। लेकिन जो खुली आँख से सपने हम सब देखते हैं, वो किसी मंजिल की तरफ चलने के लिए, कुछ बनने के लिए, कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करते हैं।

कुछ लोगों कहते हैं कि स्वप्न सच नहीं होते, लेकिन अगर गौर से देखा जाए तो हर सफल इंसान कहता है कि मैंने बचपन में ऐसा ही सपना संजोया था। मुझे दोनों ही सही लगते हैं, क्योंकि जो सफल हुए वो खुली आँख से देखे हुए सपनों की बात कर रहे हैं, जो कुछ लोग कह रहे हैं कि स्वप्न सत्य नहीं होते वो नींद में अचानक आने वाले सपनों की बात कर रहे हैं।


रात को आने वाले स्वप्न फिल्म जैसे होते हैं, उनमें कुछ भी घटित हो सकता है। आप अकेले किसी फिल्मी हीरो की तरह सात आठ लोगों को एकसाथ पीट रहे हैं। आप बिना किसी कठिनाई के सफलता की शिखर पर पहुंच गए। हर तरफ आपकी चर्चा हो रही है। ऐसे स्वप्न आपको स्कून देते हैं, लेकिन कुछ कुछ स्वप्न आपकी नींद में विघ्न भी डालते हैं, आप काँपकर बिस्तर से उठ खड़े होते हैं। जब कि खुली आँख के स्वप्नों को पूरा करने के लिए सख्त मेहनत की जरूरत होती है, विश्वास की जरूरत होती है। वो रात में आए ख्वाब जैसे नहीं होते। नींद में आए स्वप्न को सिर्फ तुम महसूस कर सकते हो, लेकिन खुली आँख का स्वप्न जब पूरा होता है तो उसमें न जाने कितने लोग शरीक होते हैं, कितने ही चेहरों पर खुशी का जलाल होता है। कितनी ही आँखों में अजब चमक आ जाती है।

इसलिए स्वप्न देखना मुझे तो बुरी बात नहीं लगती, लेकिन रात के स्वप्न से बेहतर है कि आप दिन में खुली आँख से अपने सपने देखें, और उनको पूरा करने के लिए रणनीति बनाएं और परिश्रम करें। आज स्वप्न दिवस है, क्यों न इस बहाने अपने सपनों की समीक्षा की जाए? क्यों न देखा जाए कि हम कहाँ तक पहुंचे हैं? मेरी नजर में स्वप्न के बिन जीवन अधूरा है, जैसे खुशबू के बिन फूल की सुंदरता भी अधूरी सी लगती है। अगर मुम्बई की रफ्तार किसी भी मौसम में मंद नहीं पड़ती तो इसके पीछे मुम्बईवासियों की रोजमर्रा की जरूरतों से ज्यादा उनके स्वप्न हैं, जो वो खुली आँख से देखते हैं। वो स्वप्न ही उनको रुकने नहीं देते, वो स्वप्न ही उनकी रफ्तार को बनाए रखते हैं।

भार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. मैं तो बहुत कुछ देखता हूँ भाई सपनों में ।

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  2. स्‍वपन तो हम प्रतिपल देखते हैं, अपनी उन्‍नति के या फिर सब कुछ अच्‍छा होने के। लेकिन कभी लगता है कि नियति ही सभी को नियन्त्रित कर रही है। आप किसी कार्य के लिए प्रयास करते हैं और पता लगता है कि आप का सारा प्रयास बेकार गया और आप कहीं ओर पहुंच गए। मुझे लगता है कि यह भी एक सत्‍य है कि सब कुछ हमारे चाहने से ही नहीं होता। मेरे साथ तो यही हुआ है कि मैंने जिसके लिए प्रयास किया वो नहीं मिला अपितु भगवान ने और ही कुछ अच्‍छा दे दिया। इसलिए कभी लगता है कि केवल कर्म करो, आपके लिए क्‍या अच्‍छा है वह फल भगवान ही तय करता है।

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  3. bahut hi vrihad vishay hai .........achcha likha hai har kisi ke liye swapn ka alag ala gmahattva hota hai.

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  4. बहुत सही कहा आपने एकदम प्रेरणा स्त्रोत रहा आपका ये आलेख. सन्देश पूर्ण भी .

    विकास पाण्डेय

    www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

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  5. @ आदरणीय कुलवंत हैप्पी जी,
    सपनों के बारे में बहुतों ने बहुत रिसर्च की है और बहुत कुछ लिख मारा है - परन्तु यकीन मानिये - सब बकवास है l
    असल बात यह है कि जब मूत्राशय में मूत्र भर जाता है - तब मूत्राशय मस्तिष्क को सन्देश भेजता है कि मुझे खाली करो l
    ऐसा प्रायः सवेरे के ४ से ५ बजे के समय पर ज्यादा होता है और उसी समय नींद भी जोरों की आ रही होती है l
    एक तरफ नींद का जोर और दूसरी तरफ मूत्राशय के बढ़ते सिग्नल - दिमाग बेचारा किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर इधर उधर पुरानी फाइलें खोलने लग जाता है l
    पुरानी फाइलें अर्थात अवचेतन मन में संचित यादें l
    बेतरतीब ढंग से खुली हुई यादों की पुरानी फाइलें सपनों के रूप में दिमाग की स्क्रीन पर दिखाई देती हैं l
    जिनका दिमाग सही काम कर रहा होता है - वे उठ कर पेशाब करने जाते हैं l
    जिनका दिमाग सही काम नहीं कर रहा होता है - वे उलजलूल सपनों में तरह तरह के अहसास करतें हैं l
    ऊपर वाले (असल में ऊपर वाला माने - दिमाग) से गुज़ारिश है - सबको सही समय पर पेशाब करने उठा दे और बेकार के सपनों से बचाए l
    जनकल्याण हेतु आनंद शर्मा द्वारा निःशुल्क सलाह - प्रत्येक पाठक कृपया १०० को प्रसारित करें वर्ना बिस्तर गीला करेंगे l
    पुनश्च :
    रात में बिस्तर पर पड़े हुए सपने देखना अपेक्षाकृत सेफ है - मुंबई में दिन में रस्ते पर चलते हुए सपने देखने वाले निश्चित एवं त्वरित रूप से अस्पताल पहुचते हैं l

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  6. yes this is true i am agree with Anand G. Sharma........

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  7. @ श्री आनंद जी...आपके यत्न भी एक सुनहरे सपने का हिस्सा हैं

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  8. I say Kulwant is 100 % right. I agree with him... If you would watch dreams, you would try to achieve it... You must have a vision...
    Makkhi aur Chinti ko khulla chhod denge to Makkhi jaa kar gandh par aur Chinti ja kar Chini par hi bethegi

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  9. स्वप्न दिवस .. हम तो सिर्फ रात मे ही सपने देखते हैं ...।दिन के सपने तो खैर...

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  10. Sharad bhaia ne ekdam durust farmaya..
    'swapn jhare phool se.. meet chubhe shool se...'

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