चीन का एक और काला अध्याय

बाघों की सुरक्षा को लेकर भारत में चिंतन किया जा है। मोबाइल संदेशों के मार्फत उनको बचाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं, कुछ दिनों बाद 7 अप्रैल टाईगर प्रोजेक्ट स्थापना दिवस है, बाघ बचाओ परियोजना की स्थापना 7 अप्रैल 1973 हुई। इस स्थापना भी कोई खास रंग नहीं ला सकती, यही कारण है कि भारत में बाघों की संख्या 1411 रह गई है। जहाँ भारत में बाघ बचाओ के लिए एसएमएस किए जा रहे हैं, वहीं भारत से आबादी और ताकत के मुकाबले में आगे निकल चुका चीन उन बाघों को अपने स्वार्थ के लिए खत्म किए जा रहा है।

ऐसा ही कुछ खुलासा डेली मेल नामक वेबसाईट में प्रकाशित एक खबर में किया गया है। डेली मेल में प्रकाशित ख़बर के अनुसार चीन के गुइलिन शहर में एक ऐसा फार्म है जहां अनुमानों के मुताबिक करीब 1500 बाघ बाजार में उपयोग के लिए पाले जा रहे हैं। इन बाघों की हड्डियों से शराब तैयार की जा रही है, पहले तो चीन केवल दवाईयाँ तैयार करता था इनकी हड्डियों से। गौरतलब है कि यह संख्या दुनिया में आज बचे कुल बाघों की संख्या की आधी है। एक ही पिंजरे में कई-कई बाघों को रखा जा रहा है और मौत ही इनकी नियति है।

जबकि इस काले अध्याय के सामने आने से पहले वन्य जीव संरक्षण संगठन की निदेशक इ यान ने बताया था कि दक्षिण पश्चिमी युन्नान प्रांत में करीब 10 बाघ, तिब्बत में 15 और पश्चिमोत्तर जिलिन और हिलोगजियान प्रांत में करीब 20 बाघ बचे हैं। यान ने कहा कि दक्षिणी चीन में बाघ तो संभवत: विलुप्त हो चुका है। उन्होंने कहा कि बाघों की संख्या कम होना दुखद है। तिब्बत और दक्षिण में इनकी संख्या में गिरावट आ रही है, उन्होंने बताया कि पूर्वात्तर में बाघ की संख्या फिलहाल स्थिर है और कुछ प्रयासों से इनकी संख्या बढाई गई है लेकिन यह बहुत कम है।

डेली मेल के खोजी पत्रकार Richard Jones In Guilin को दाद देता हूँ, जिसने साँप की बिल में हाथ डालकर सच को बाहर निकाला, चीन जैसा देश अभिव्यक्ति को दबाने के हर बड़ा कदम उठाता है। वहाँ अभिव्यक्ति को कुचल दिया जाता है, ऐसे में अगर कोई सच को बाहर निकाल लाए, उसको दाद देनी तो बनती है। हिन्दुस्तानी पत्रकारों से तो बेहतर ही हैं, विदेशी खोजी पत्रकार, वो किसी को आग में झुलसते हुए देख अपनी पत्रकारिता की शौर्य तो प्रकट नहीं करते। एक इंसान जिन्दा जल रहा है, हिन्दुस्तानी पत्रकार उसका वीडियो उतारकर गर्व महसूस करते हैं, वो किसी जीवंत सीन को कैप्चर जो कर रहे हैं, थू ऐसे घटिया सोच के पत्रकारों पर। शर्म आती है, भारतीय पत्रकारिता को देखते हुए। इसको पत्रकारिता नहीं, कायरता कहिएगा जनाब। एक दूसरे को संदेश भेजकर चुप मत बैठो, एक जनमत तैयार करो, अगर बाघों को बचाना है, नहीं तो टाईगर प्रोजक्ट केवल प्रोजेक्ट बनकर रह जाएगा। हर देशों को अपनी सरकारों पर दबाव बनाना होगा, और उन सरकारों को चीन जैसे घटिया सोच के देश पर दबाव बनाना होगा।

 भार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. "इंदिरा गांधी की पहल पर बाघ परियोजना की स्थापना हुई, कुछ समय तक तो ठीक चला पर बाद मे सब बरबाद हो गया । इसके बाद चला दौर कागज़ी बाघों को पैदा करने का । हक़ीक़त में बाघों की संख्या हमेशा से संदेहास्पद रही है वन अधिकारियों के घालमेल से हमेशा बाघों की संख्या बढ़ा-चढा के बताई गई जबकि
    वे तो हमेशा से कम ही थे,स्थानीय निवासियों-शिकारियों-वन अधिकारियों-राजनेता-लचर कानून और अब चीन इन सब ने बाघों का विनाश कर दिया, पर कोई बात नहीं फिर से बाघ बढ़ेगें चीता भी दौड़ेगा, सोन चिड़िया भी आकाश में उड़ेगी......शानदार लेख कुलवंत......"
    प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

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  2. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. Good initiative brother but I think we just write here and in fact we don't help them in saving their lives, do we? People would appreciate the initiative and they would encourage them to write more who do write to save tigers. But is it possible to save them by just writing blogs or making sites on SAVE TIGER kind of things? In fact we need to work physically on it. We can not win the fight until and unless we jump on the battle field. So just gather people and do protest against the killing of this beautiful creature.
    P.S. I have already started it.

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