शिर्डी यात्रा के कुछ पल-3

शिंगनापुर से लौटते लौटते तकरीबन बाद दोपहर हो चली थी। भूख जोरों से लग रही थी, भले ही सुबह एक परांठा खा लिया था। भूख मिटाने से पहले जरूरी था, शाम की बस का टिकट कटवाना। इसलिए सबसे पहले बस बुकिंग वाले के पास गया, और टिकट पहले से कटवा लिया। उसके बाद शिर्डी नगर पंचायत द्वारा संचालित अमानती सामान कक्ष में पहुंचा, वहाँ पर सामान करवाते हुए पूछा कि साईं बाबा संस्थान का भोजनालय कहाँ है, उन्होंने बताया कि यहाँ से कुछ दूरी पर स्थित है। लेकिन याद रहे कि उसको प्रसादालय कहा जाता है, भोजनालय तो मैंने बना लिया था। मैं प्रसादालय की ओर चल दिया। अब काफी दूर चलने के बाद जब प्रसादालय न आया तो सड़क किनारे बैठी सूखे अंगूर (दाख) बेच रही एक महिला से पूछा। उसने बड़ी निम्रता के साथ उत्तर दिया, लगा ही नहीं कि मैं उस महाराष्ट्र में घूम रहा हूँ, जो क्षेत्रीय भाषा संरक्षण को लेकर आए दिन सुर्खियों में होता है। थोड़ा सा आगे बढ़ा तो नजर पड़ गया, साईं बाबा का प्रसादालय।
पहले तो मुझे लगा कि यहाँ पर भी अन्य धार्मिक स्थलों की तरह लम्बी लम्बी कतारें लगेंगी भोजन प्राप्त करने के लिए। कुछ सेवादार अपना रौब झाड़ते हुए मिलेंगे, तो कुछ जल्दबाजी में सब्जी या पानी गिराते हुए दिखाई पड़ेंगे, लेकिन यहाँ ऐसा कुछ न था। यहाँ प्रसादालय की व्यवस्था, प्रसादालय के बाहर लगी एक तख्ती पर लिखे वाक्य विश्वस्तरीय व्यवस्था से बिल्कुल मेल खाती है। खाने को लेकर कोई धक्का मुक्की नहीं, बस कतार में जाकर एक दस रुपए की पर्ची कटवाएं और फिर बड़े आराम से भोजनालय के भीतर जाएं। मैं अभी कतार में लगने वाला ही था कि एक व्यक्ति आया, उसने कहा "भोजन खिलाओगे"। उसने पैसे नहीं माँगे। मैंने कहा "क्यों नहीं" वो बेचारा मेरे पीछे हो लिया। मैंने दो पर्चियाँ कटवा ली। मैंने उसको साथ ले लिया। जैसे ही प्रसादालय में प्रवेश किया तो एक नजारा देखते ही आँखें खुली रह गई, स्टील के टेबल सब तरतीब से लगे हुए है। सब लोग शांति के साथ भोजन कर रहे हैं, ऐसा लग रहा था कि मैं किसी क्लास में आ गया हूँ, जहाँ पर पढ़ाई नहीं एक साथ बैठकर खाना खाने का सलीका सिखाया जाता है। सच में बहुत अद्भुत नजारा था, जो व्यक्ति मुझे यहाँ मिला था, वो भी मेरे साथ ही बैठ गया। मुझे लगा कि वो कई दिनों के भूखे व्यक्तियों की तरह खाने को देखते ही टूट पड़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसने भी बड़ी शांति और प्रेम के साथ अन्य लोगों की तरह खाना खाया। उसके खाना खाने के तरीके ने दिल को सुकून दे दिया। खाना खा रहे थे कि उसने कहा "आप मुझे अपने साथ ले चलो। वहाँ मैं कोई काम करूँगा"। मैंने कहा "अगर काम ही करना है तो यहाँ रहकर क्यों नहीं करते। एक अनजान शहर में मेरे साथ जाकर क्या करोगे। जिन्दगी एक रेलगाड़ी है, न जाने कब छूट जाए। अगर मेरी जिन्दगी की रेल गाड़ी छूट गई तो तुम उस अनजान शहर में क्या करोगे। यहाँ तो तुमको मेरे जैसा एक अधा मिल ही जाता होगा"। उसने कहा "हाँ हाँ"। मैंने खाना समाप्त किया, और उसका चल रहा था। मैंने उससे जाने की आज्ञा ली, और उसने सर हिलाते हुए जाने की आज्ञा दे दी।
भोजन करने के बाद जब बाहर प्रवेश द्वार के समीप लगी साईं बाबा की प्रतिमा के पास आया, तो दिमाग में एक बात अचानक घुस आई। जब इंदौर से चला था तो जनक सिंह झाला ने कहा था "तुम पैसे दान कर देना"। तो मैंने कहा था कि "भूखे को खाना खिला सकता हूँ, जो दान से बेहतर लगता है मुझे"। यहाँ पर मैंने दान भी किया और भूखे को खाना भी खिला दिया। दिल कह रहा था कि अगर तुम उस भूखे व्यक्ति को इंकार कर देते, और वो अचानक आगे से बोलता "क्यों बेटा वायदा भूल गए जो इंदौर निकलने से पहले जनक सिंह झाला के साथ किया था"। पर मैं इंकार न कर सका, और उसके मुँह से वो शब्द न सुन सका। फिर भी एक अहसास रह गया कि शायद वो साईं ही थे, जो बच्चे की परीक्षा लेने के लिए वहाँ उस रूप में पधारे।

टिप्पणियाँ

  1. "क्यों बेटा वायदा भूल गए जो इंदौर निकलने से पहले जनक सिंह झाला के साथ किया था"। पर मैं इंकार न कर सका, और उसके मुँह से वो शब्द न सुन सका। फिर भी एक अहसास रह गया कि शायद वो साईं ही थे, जो बच्चे की परीक्षा लेने के लिए वहाँ उस रूप में पधारे।

    इन अनुभवों से कई लोग गुजरे हैं खुद मैं भी. बहुत सुंदर यात्रा वृतांत. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. बहुत सुन्दर संस्मरणात्मक पोस्ट...आपने भूखे को खाना खिला कर अच्छा किया लेकिन ये वहां भीक मांगने का एक तरीका है...निक्कमे आलसी लोग इसका फायदा उठाते हैं...फिर भी आपने जो दरिया दिली दिखाई उसके लिए बधाई...
    अपने दो शेर इसी विषय पर सुनाता हूँ आपको...पसंद आये तो दाद दीजियेगा वर्ना भूल जाइएगा .

    डाल दी भूखे को जिसमें रोटियां
    वो समझ पूजा की थाली हो गयी
    ***
    ज़र, ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
    जो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है

    नीरज

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  3. bahut badiya yatra vratant.aapane sachche darshan prapt kiye.badhai.

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  4. तुम्हारे संस्मरण पढ कर लगता है अब जाना ही पडेगा बाबा के घर । बहुर अच्छा लगा यात्रा वृतांम्त शुभकामनायें शिर्डी के साईँ बाबा जल्दी हे तुम्हें पुत्रधन देने वाले हैं बधाई

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  5. शायद बाबा ही रहे हों...वाकई, बहुत सुन्दर संस्मरण.

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  6. दिलचस्प संस्मरणात्मक विवरण|

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