बसंत पंचमी के बहाने कुछ बातें


चारों ओर कोहरा ही कोहरा...एक कदम दूर खड़े व्यक्ति का चेहरा न पहचाना जाए इतना कोहरा। ठंड बाप रे बाप, रजाई और बंद कमरों में भी शरीर काँपता जाए। फिर भी सुबह के चार बजे हर दिशा से आवाजें आनी शुरू हो जाती..मानो सूर्य निकल आया हो और ठंड व कोहरा डरे हुए कुत्ते की तरह पूंछ टाँगों में लिए हुए भाग गया हो। कुछ ऐसा ही जोश होता है..बसंत पंचमी के दिन पंजाब में। बसंत पंचमी के मौके लोग बिस्तरों से निकल घने कोहरे और धुंध की परवाह किए बगैर सुबह चार बजे छत्तों पर आ जाते हैं, और अपनी गर्म साँसों से वातावरण को गर्म करते हैं।

इस दृश्य को पिछले कई सालों से मिस कर रहा हूं, इस बार बसंत पर पंजाब जाने की तैयारी थी, लेकिन किस्मत में गुजरात की उतरायन लिखी थी, जो गत चौदह जनवरी को गुजरात में मनाकर आया। गुजरात में पहली बार कोई त्यौहार मनाया, जबकि गुजरात से रिश्ता जुड़े तो तीन साल हो गए दोस्तों और पत्नि के कारण। गुजरात में उतरायन पर खूब पतंगबाजी की, पतंगबाजी करते करते शाम तो ऐसा हाल हो गया था कि जैसे ही छत्त से उतर नीचे हाल में पड़े सोफे पर बैठा तो आँख लग गई, पता ही नहीं चला कब नींद आ गई। ऐसा आज से कुछ साल पहले होता था, जब खेतों में मिट्टी से मिट्टी हुआ करते थे। उतरायन के दिन तो फिर भी शानदार सोफा था, लेकिन उन दिनों तो हरे-चारे के ढेर पर ही नींद आ जाती थी, और माँ उठाकर कहती बेटा गर्म पानी बाल्टी में डाल दिया है, जल्दी से नहा ले। खाना बिल्कुल तैयार है और फिर सो जाना।

गुजरात में उतरायन के दिन सब लोगों छत्तों पर थे, लेकिन पंजाब की तरह सुबह चार बजे कोहरे और ठंड को चैलेंज देने छत्तों पर कोई नहीं चढ़ा। गुजरात में पतंगबाजी करने वाले करीबन सात आठ बजे छत्तों पर आए, जबकि महिलाएं स्पेशल खाना तैयार करने के बाद छत्तों पर आई, जबकि पंजाब में सुबह चार बजे तो पतंगबाज छत्तों पर आ जाते हैं, और महिलाएं करीब आठ नौ बजे के आस पास आती हैं, जब नीला आसमां पूरी तरह रंग बिरंगे पतंगों से भर जाता है। एक बार सुबह सुबह मेरी मौसी का बड़ा लड़का छत्त पर चला गया, और पतंगबाजी शुरू कर दी, कोहरा इतना के पतंग एक कदम दूर जाते ही लापता हो जाए। उसने कैसे न कैसे पतंग उड़ा लिया, लेकिन पतंग सामने एक पेड़ में फंस गया जाकर, वो सूर्य उदय होने तक इस लालच में ठुमके तुनके मारता रहा कि उसका पतंग कोहरे की परवाह किए बगैर ही आसमां में उड़ारी मार रहा है। जब सूर्य देव ने थोड़े से दर्शन दिए तो पता चला कि जनाब का पता तो सामने वाले पेड़ की एक डाल में फँस हुआ है। ऐसा कईयों के साथ होता है, लेकिन बताता कोई नहीं।

आप सबको बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।

जब मुश्किल आई, माँ की दुआ ने बचा लिया


टिप्पणियाँ

  1. हा हा!! कोहरे ने कम से कम आभसी ही सही, मजा तो दिया कि पतंग तना हुआ है. :)


    कितनी जिन्दगियों का पतंग इसी कुहासे में तना हुआ है और लोह ठुमके मार रहे हैं. सूरज है कि उग के ही नहीं दे रहा है उन बेमुर्रतों को!! :)

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  2. बसंत पंचमी की शुभकामनाएं

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  3. यहाँ लखनऊ में भी कडाके कि ठण्ड पड़ रही है..... मख्खन ऐसा जम गया है कि गरम छूरी भी नहीं चल रही है..... गलती से नल के नीचे हाथ डाल दिया तो चीख निकल पड़ी.... वो भी ऐसी कि अडोस-पड़ोस के लोग आ गए.... लखनऊ में पतंगबाजी पूरे साल होती रहती है....

    बहुत अच्छी यह पोस्ट हैप्पी....

    बसंत पंचमी कि शुभकामनाएं...

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  4. जान है तो जहान है , आपको भे बसंत पंचमी की हार्दिक कामनाये !

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  5. बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।

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  6. तुम्हारा आलेख पढ कर अमृतसर की पतंग बाजी याद आ गयी। हमारे शहर मे उस तरह की पतंग बाजी नहीं होती।बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।

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