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सावधान! गैस गीजर बन सकता है मौत का कारण

गैस गीजर ले चुका है कई लोगों की जिन्दगी : पठानियां एनडब्‍ल्यूएस ने की लोगों को सतर्क रहने की अपील बठिंडा। सर्दीयों के मौसम में ठंड से बचने के लिए लोगों द्वारा गर्म पानी के इस्तेमाल हेतु बाथरूम में लगे गैस गीजरों व कोयले वाली अंगीठियों का प्रयोग घरों में आम ही किया जाता है। इन दिनों में हमारी छोटी सी लापरवाही किसी बड़ी घरेलू घटना को अंजाम दे सकती है। घरों में बाथरूम में लगे गैस गीजर या सर्दियों दौरान प्रयोग की जाने वाली कोयले की अंगीठियाँ लोगों की लापरवाही तथा अज्ञानता के कारण मौत का सामान बन सकती है। इनकी इस्तेमाल संबंधी विशेष् तौर पर सावधान रहने की जरूरत है। पिछले सालों के दौरान कई लोग बाथरूम में नहाते समय बाथरूम में लगे गैस गीजरों की जहरीली गैस चढ़ने के कारण मौत के मुँह में चले गये या चलती फिरती जिन्दा लाश में तदील हो गए। यह खलासा सेंट जॉन के ट्रेनिंग सुपरवाईजर नरेश पठानिया ने समाजसेवी संस्था नौजवान वेलफेयर सोसाईटी के वालंटिरयों को जानकारी देते हुए किया। उन्होंने आगे बताया कि बंद बाथरूमों में नहाने के लिये गर्म पानी इस्तेमाल हेतु जब इन गैस गीजरों का प्रयोग कर रहें होतें हैं तो इन ग

कैसे कमाएं नेट यूजर्स पैसा

पिछले दिनों एक ब्‍लॉगर दोस्त ने पैसालाइव डॉट कॉम का लिंक भेजा, और लिखा हुआ था प्रत्येक माह कमाएं नौ हजार से ज्यादा रुपए, पहले पहल तो यकीन नहीं आया, लेकिन पूरी पॉलिसी पढ़ने के बाद समझा में आया कि असली बात क्‍या है। पैसा लाइव डॉट कॉम पर जैसे ही आप खाता बनाते हैं तो आपके खाते में 99 रुपए उसकी वक्‍त आ जाते हैं, उसके बाद जैसे ही आपके द्वारा भेजा इन्वीटेंशन पहले दो व्यक्ति अस्‍पेट करते हैं तो आपको मिलते हैं सौ रुपए। उसके बाद हर प्रत्येक इन्वीटेशन अस्पेट होने पर आपको मिलेंगे दो रुपए। इस खाते में आपके पास आएं की कुछ पेड ईमेल्स, जिनको क्‍लिक करने पर 25 पैसे मिलेंगे। आपका ड्राफट 500 रुपए होने के बाद तैयार हो जाएगा। खाता बनाने के लिए यहां क्‍लिक करें ।

बहुत बहुत शुक्रिया...

गत दिवस मेरा जन्मदिवस था, मुझे बेहद खुशी हुई कि मेरे जन्मदिवस पर इस बार भी मुझे ब्‍लॉग जगत से जन्मदिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं मिली। मुझे नहीं लगता था कि ऐसा होगा, क्‍योंकि पिछले लम्‍बे समय से मैंने ब्‍लॉग जगत से दूरी जो बना ली थी। मेरे जन्मदिवस की खुशी को दुगुना करने के लिए मैं ब्‍लॉग जगत का सदैव ऋणि रहूंगा, खास जन्मदिन डॉट ब्‍लॉगस्पॉट डॉट कॉम का व बीएस पाबला जी का। मैंने ब्‍लॉग से दूरी क्‍यों की.... ऐसा नहीं कि ब्‍लॉग जगत से मन ऊब गया था, ऐसा भी नहीं कि मैं लिखना नहीं चाहता, बस जिन्दगी केञ् कुञ्छ ड्डेञ्रबदल ऐसे होते हैं, जो कुञ्छ चीजों से अचानक दूरी बनाने पर बाध्य कर देते हैं, लेकिन दूरी से कोई रिश्ता खत्म नहीं होता, विछोह तो मिलन की ललक को ज्यादा बढ़ाता है। ब्‍लॉग जगत से एक बार फिर पहले जैसे जुडऩे की कोशिश में हूं, और उम्‍मीद है कि ब्‍लॉग में एक बार फिर से अपना योगदान अदा करूंगा। चलते चलते.... लेखिका अरुंधित रॉय, जिनके नाम के आगे अब विवादित शब्‍द जुड़ चुका है, से निवेदन है कि जो आप कहती हैं, उससे देश का कितना भला होने वाला है, और कितना नुकसान, इस बात को ध्यान में रखकर कहें तो

..खिड़की, बंद मत करना!

आध्यत्मिक लोग दुनिया को सराय कहते हैं, और विचारक इसको रंगमंच। दोनों ही अपने जगह बिल्कुल सही हैं, क्योंकि दोनों का अपना अपना नजरिया है। कारोबारी लोग इसको रिले ट्रेक भी कहते हैं, और कुछ बाजार भी। अगर खुले दिमाग से सोचा जाए, तो सब के सब सही नजर आएं, और वो हैं भी। एक बगीचे में तीन लोग सैर के लिए गए। जब वो बाहर आ रहे थे तो बगीचे के प्रवेश द्वार पर खड़े कर्मचारी ने एक एक से पूछा, आप ने बगीचे में क्या क्या देखा? सब ने उसको बताया, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि उन तीनों ने जो देखा, वो अलग अलग था, जबकि वो गए तो एक साथ ही थे। साहित्यकार की निगाह वहां खिले रहे पड़े पौधों पर गई, उद्यमी की निगाह इसको और बेहतर कैसे बनाए जाए पर गई और जबकि तीसरे व्यक्ति की निगाह वहां की निकम्मे प्रबंधन पर गई। जैसे हाथ की उंगली एक जैसी नहीं हो सकती, वैसे ही व्यक्तियों की सोच का एक होना मुश्किल है। एक आम बात जो हम सबके साथ घटित होती है। आप कुछ नया करने की सोच रहे हैं, उदाहरण के तौर पर कारोबार ही। जैसे आप इस बात को किसी के सामने रखोगे, वो पहले ही कह देगा मत करना, बहुत मुश्किल है। सामने वाले की पहली प्रतिक्रिया कुछ ऐसी ही

शहीदे आजम व उसकी छवि

जब दिल्ली में बैठे हुक्मरान कहते हैं कि शहीदे आजम भगत सिंह हिंसक सोच के व्यक्ति थे, तो भगत सिंह को चाहने वाले, उनको आदर्श मानने वाले लोग दिल्ली के शासकों कोसने लगते हैं, लेकिन क्या यह सत्य नहीं कि शहीदेआजम की छवि को उनके चाहने वाले ही बिगाड़ रहे हैं। अभी कल की ही बात है, एक स्कूटर की स्पिटनी वाली जगह पर लगे एक टूल बॉक्स पर भगत सिंह की तस्वीर देखी, जो भगत सिंह के हिंसक होने का सबूत दे रही थी। यह तस्वीर हिन्दी फिल्म अभिनेता सन्नी दिओल के माफिक हाथ में पिस्टल थामे भगत सिंह को प्रदर्शित कर रही थी। इस तस्वीर में भगत सिंह को निशाना साधते हुए दिखाया गया, जबकि इससे पहले शहर में ऐसी तमाम तस्वीरें आपने देखी होंगी, जिसमें भगत सिंह एक अधखुले दरवाजे में पिस्टल लिए खड़ा है, जो शहीदे आजम की उदारवादी सोच पर सवालिया निशान लगती है। जब महात्मा गांधी जैसी शख्सियत भगत सिंह जैसे देश भगत पर उंगली उठाती है तो कुछ सामाजिक तत्व हिंसक हो उठते हैं, तलवारें खींच लेते हैं, लेकिन उनकी निगाह में यह तस्वीर क्यों नहीं आती, जो भगत सिंह की छवि को उग्र साबित करने के लिए शहर में आम वाहनों पर लगी देखी जा सकती हैं। यहां तक

बेशकीमती गाड़ियां व प्रेस लेबल

शहर में बहुसंख्या में घूम रही हैं बेशकीमती गाड़ियां, जिन पर लिखा है प्रेस। हैरत की बात तो यह है कि संवाददाता वर्ग खुद भी असमंजस में है कि आखिर इतनी बेशकीमती गाड़ियां आखिर किस मीडिया ग्रुप की हैं। शीशों पर आल इंडिया परमिट की तरह प्रेस का लेबल चस्पाकर घूमने वाली गाड़ियां, मीडिया में काम करने वालों के लिए कई सालों से अनसुलझी पहेली की तरह हैं। जी हां, शहर में घूम रही हैं ऐसी दर्जनों बेशकीमती गाड़ियां, जिन पर लिखा है प्रेस, और कोई नहीं जानता प्रेस का लेबल लगा घूम रही इन बेशकीमती गाड़ियों के काले शीशों के उस पार आखिर है कौन। यह कौन पिछले कई सालों से मीडिया कर्मियों के लिए गणित का सवाल बन चुका है। सूत्र बताते हैं कि मीडिया जगत तो इस लिए स्तम्ब है, क्योंकि मीडिया कर्मी अच्छी तरह जानते हैं, बठिंडा के इक्का दुक्का मीडियाकर्मियों को छोड़कर बठिंडा के किसी भी मीडिया कर्मी के पास ऐसे वाहन नहीं, जिनकी कीमत सात आठ लाख के आंकड़ों को पार करती हो। इस तरह कुछ अज्ञात लोगों का प्रेस लेवल लगाकर घूमना, शहर वासियों के लिए भी किसी मुसीबत का कारण बन सकता है, क्योंकि ट्रैफिक पुलिस कर्मी गाड़ी पर प्रेस लिखा देकर

आज सफल है, मंथली गुरूमंत्र

सुबह सुबह आम आदमी एनपी अपने दूध वाले पर रौब झाड़ते हुए कहता है कि आजकल दूध काफी पतला आ रहा है और कुछ मिले होने का भी शक है। एनपी की बात को ठेंगा दिखाते हुए दूध वाला कहता है, आपको दूध लेना है तो लो, वरना किसी ओर से लगवा लो, दूध तो ऐसा ही मिलेगा। एनपी सिंह कहां कम था उसने दूध वाले के पैर निकाले के लिए कहा, तुमको पता नहीं, मैं सेहत विभाग में हूँ, तेरे दूध का सैंपल भरवा दूंगा। सेर को सवा सेर मिल गया, दूध वाला बोला...तेरे सेहत विभाग को हर महीने पैसे भेजता हूँ, मंथली देते हूँ, किसकी हिम्मत है, जो मेरे दूध का सैंपल भरे। दूध वाले के पैरों तले से तो जमीं नहीं सरकी, लेकिन एनपी के होश छू मंत्र हो गए। आज मंथली का जमाना है, आज के युग में सही काम करने वाले को भी मंथली भेजनी पड़ती है। मंथली लेने में सेहत विभाग ही नहीं, अन्य विभाग भी कम नहीं। जैसे मोबाइल के बिन आज व्यक्ति खुद को अधूरा समझता है, वैसे ही ज्यादातर सरकारी उच्च पदों पर बैठे अधिकारी खुद को मंथली बिना अधूरा सा महूसस करते हैं। बुरा काम करने वाले तो मंथली देते ही हैं, लेकिन यहां तो अच्छा उत्पाद बनाने वालों को भी मंथली देनी पड़ती है। शहर के एक

शायद उलझन में इंद्रदेव

जब वो मल्हार राग में शिव स्तुति गाती है तो इंद्रदेव इतने खुश होते हैं कि पूरे क्षेत्र को जलमग्न कर देते हैं। उसका जन्म गजियाबाद के एक अमीर परिवार में हुआ था और उसका ब्याह भी एक अमीर घर में, लेकिन वो सादगी भरा जीवन जीने में विश्वास करती थी, वो आज जिन्दा है या नहीं पता नहीं, लेकिन जब इंद्रदेव को खुश करना होता तो लोग उसके द्वार जाते थे। कुछ ऐसा ही किस्सा बता रहा था संकट मोचन मंदिर के निकट एक बिजली की दुकान पर एक भद्र पुरुष। आज से पहले तानसेन के बारे में तो सुना था कि वो दीपक राग गाकर दीए जला देते थे, लेकिन उक्त किस्सा पहली दफा सुनने में आया, हो सकता है सच भी हो और काल्पनिक भी। मगर हम इंद्रदेव को मनाने के लिए तरह तरह के ढंग तो अपनाते ही हैं। मुझे याद है जब हम गांव में रहते थे, सावन का महीना बीतते वाला होता, और गांव में एक बूंद पानी तक न टपकता, तब लोग इंद्र देव को खुश करने के लिए डेरा बाबा भगवान दास में पहुंचकर चावलों का यज्ञ करते, और इंद्रदेव खुश हो भी जाता था। इस डेरे का इतिहास भी तो बारिश से जुड़ा हुआ है। एक बार की बात है कि गांव में बारिश नहीं हो रही थी, और लोग इंद्र देव को मनाने के लिए

हल स्थाई हो, अस्थाई नहीं

कुछ महीने पहले देश की एक अदालत ने केंद्र से राय मांगी थी कि क्या वेश्यावृत्ति को मान्यता दे दी जाए, यानि इसको अपराध के दायरे से बाहर कर दिया जाए, क्योंकि देश में वेश्यावृत्ति बढ़ती जा रही है। इस मुद्दे पर अदालत द्वारा केंद्र से राय मांगने का सीधा अर्थ है, अगर किसी चीज को कानून रोकने में असफल हो रहा है तो उसको मान्य दे दी जाए, ताकि अदालत का भी कीमत समय बच जाए। किसी मुश्किल का कितना साधारण हल है, कि उसको वैध करार दे दिया जाए, जिसको रोकने में कानून असफल है। कोर्ट ने एक बार भी केंद्र से नहीं कहा कि वेश्यावृत्ति की पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए एक टीम का गठन किया जाए। कोर्ट ने सवाल नहीं उठाया कि क्यों कभी पुलिस प्रशासन ने कोर्ट में वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं के दूसरे पक्ष को उजागर नहीं किया। आखिर वेश्यावृत्ति हो क्यों रही है? आखिर क्यों देश की महिलाएं अपने जिस्म की नुमाईश लगा रही हैं?। अगर कोर्ट इन सवालों में से एक भी सवाल को केंद्र से पूछती तो केंद्र अदालती कटघरे में आ खड़ा नजर आता, क्योंकि वेश्यावृत्ति के बढ़ते रुझान के लिए हमारी सरकारें भी जिम्मेदार हैं, जो निम्न वर्ग को केवल वो

रक्षक से भक्षक तक

सर जी, वो कहता है कि उसको एसी चाहिए घर के लिए। वो का मतलब था डॉक्टर, क्योंकि मोबाइल पर किसी से संवाद करने वाला व्यक्ति एक उच्च दवा कंपनी का प्रतिनिधि था, जो शहर में उस कंपनी का कारोबार देखता था। इस बात को आज कई साल हो गए, शायद आज उसके संवाद में एसी की जगह एक नैनो कार आ गई होगी या फिर से भी ज्यादा महंगी कोई वस्तु आ गई होगी, क्योंकि शहर में लगातार खुल रहे अस्पताल बता रहे हैं कि शहर में मरीजों की संख्या बढ़ चुकी है, जिसके चलते दवा कारोबार में इजाफा तो लाजमी हुआ होगा। आप सोच रहें होंगे कि मैं क्या पहेली बुझा रहा हूँ, लेकिन यह किस्सा आम आदमी की जिन्दगी को बेहद प्रभावित करता है, क्योंकि इस किस्सा में भगवान को खरीदा जा रहा है। चौंकिए मत! आम आदमी की भाषा में डॉक्टर भी तो भगवान का रूप है, और उक्त किस्सा एक डॉक्टर को लालच देकर खरीदने का ही तो है। कितनी हैरानी की बात है कि पैसे मोह से बीमार डॉक्टर शारीरिक तौर पर बीमार व्यक्तियों का इलाज कर रहे हैं। इस में कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि दवा कंपनियों के पैसे से एशोआराम की जिन्दगी गुजारने वाले ज्यादातर डॉक्टर अपनी पसंदीदा कंपनियों की दवाईयाँ ही ल

पंजाबी भाषा और कुछ बातें

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अपने ही राज्य में बेगानी सी होती जा रही है पंजाबी भाषा, केवल बोलचाल की भाषा बनकर रह गई पंजाबी, कुछ ऐसा ही महसूस होता है, जब सरकारी स्कूलों के बाहर लिखे 'पंजाबी पढ़ो, पंजाबी लिखो, पंजाबी बोलो' संदेश को देखता हूँ। आजकल पंजाब के ज्यादातर सरकारी स्कूलों के बाहर दीवार पर उक्त संदेश लिखा आम मिल जाएगा, जो अपने ही राज्य में कम होती पंजाबी की लोकप्रियता को उजागर कर रहा है, वरना किसी को प्रेरित करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। पंजाबी भाषा केवल बोलचाल की भाषा बनती जा रही है, हो सकता है कि कुछ लोगों को मेरे तर्क पर विश्वास न हो, लेकिन सत्य तो आखिर सत्य है, जिस से मुँह फेर कर खड़े हो जाना मूर्खता होगी, या फिर निरी मूढ़ता होगी। पिछले दिनों पटिआला के बस स्टॉप पर बस का इंतजार करते हुए मेरी निगाह वहाँ लगे कुछ बोर्डों पर पड़ी, जो पंजाबी भाषा की धज्जियाँ उड़ा रहे थे, उनको पढ़ने के बाद लग रहा था कि पंजाबी को धक्के से लागू करने से बेहतर है कि न किया जाए, जो चल रहा है उसको चलने दिया जाए। अभी पिछले दिनों की ही तो बात है, जब एक समारोह में संबोधित कर रहे राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को अचा

शहीदों की अर्थी पर शब्दों की वर्षा शुरू हुई

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युवा कवि नितिन फलटणकर हम भूल गए सारे जख्म और फिर से चर्चा शुरू हुई। शहीदों की अर्थी पर शब्दों की वर्षा शुरू हुई। हम भूल गए माँ के आँसू हम भूल गए बहनों की किलकारी। बस समझौते के नाम पर फिर से चर्चा शुरू हुई। शहीदों की अर्थी पर शब्दों की वर्षा शुरू हुई। वो आग उगलते रहते हैं हम आँसू बहाते रहते हैं। बहते आँसू की स्याही से इतिहास रचने की चर्चा शुरू हुई शहीदों की अर्थी पर शब्दों की वर्षा शुरू हुई। वो घात लगाए बैठे हैं। हम आघात सहते रहते हैं। आघातों की लिस्ट बनाने नेताओं की चर्चा शुरू हुई। शहीदों की अर्थी पर शब्दों की वर्षा शुरू हुई। पूछो इन नेताओं को, कोई अपना इन्होंने खोया है? बेटे के खून से माताओं ने यहाँ बहुओं का सिंदूर धोया है। इस सिंदूर के लाली की चर्चा फिर से शुरू हुई। शहीदों की अर्थी पर शब्दों की वर्षा शुरू हुई। शब्द बाण कब बनेंगे। जख्म हमारे कब भरेंगे? नए जख्म सहने की चर्चा यहाँ शुरू हुई, शहीदों की अर्थी पर शब्दों की वर्षा शुरू हुई।

विशाल रक्तदान शिविर...आंकड़ों की दौड़

"आप रक्तदान न करें, तो बेहतर होगा" एक चौबी पच्चीस साल का युवक एक दम्पति को निवेदन कर रहा था, जिसके चेहरे पर चिंता स्पष्ट नजर आ रही थी, क्योंकि वो जिस रक्तदाता के साथ आया था, वो एक कुर्सी पर बैठा निरंतर उल्टियाँ कर रहा था, जिसको बार बार एक व्यक्ति जमीन पर लेट के लिए निवेदन कर रहा था। युवक की बात सुनते ही महिला के साथ आया उसका पति छपाक से बोला, यह तो बड़े उत्साह के साथ खून दान करने के लिए आई है। महिला के चेहरे पर उत्साह देखने लायक था, उस उत्साह को बरकरार रखने के लिए मैंने तुरंत कहा, अगर आप निश्चय कर घर से निकले हो तो रक्तदान जरूर करो, लेकिन यहाँ का कु-प्रबंधन देखने के बाद मैं आप से एक बात कहना चाहता हूँ, अगर पहली बार रक्तदान करने पहुंचे हैं तो कृप्या रक्तदान की पूरी प्रक्रिया समझकर ही खूनदान के लिए बाजू आगे बढ़ाना, वरना किसी छोटे कैंप से शुरूआत करें। वो रजिस्ट्रेशन फॉर्म के बारे में पूछते हुए आगे निकल गए, लेकिन मेरे कानों में अभी भी एक आवाज निरंतर घुस रही थी, वो आवाज थी एक सरदार जी की, जो निरंतर उल्टी कर रहे व्यक्ति को लेट के लिए निवेदन किए जा रहा था, लेकिन कुर्सी पर बैठा आदमी

अपनों के खून से सनते हाथ

अपनों के खून से सनते हाथ, आदम से इंसान तक का सफर अभी अधूरा है को दर्शाते हैं। झूठे सम्मान की खातिर अपनों को ही मौत के घाट उतार देता है आज का आदमी। पैसे एवं झूठे सम्मान की दौड़ में उलझे व्यक्तियों ने दिल में पनपने वाले भावनाओं एवं जज्बातों के अमृत को जहर बनाकर रख दिया है, और वो जहर कई जिन्दगियों को एक साथ खत्म कर देता है। पाकिस्तान की तरह हिन्दुस्तान में भी ऑनर किलिंग के मामले निरंतर सामने आ रहे हैं, ऐसा नहीं कि भारत में ऑनर किलिंग का रुझान आज के दौर का है, ऑनर किलिंग हो तो सालों से रही है, लेकिन सुर्खियों में अब आने लगी है, शायद अब पाकिस्तान की तरह हिन्दुस्तानी हुक्मरानों को भी चाहिए कि वो भी मर्दों के लिए ऐसे कानून बनाए, जो उनको ऐसे शर्मनाक कृत्य करने की आजादी मुहैया करवाए। पाकिस्तानी मर्दों की तरह हिन्दुस्तानी मर्द भी औरतों को बड़ी आसानी से मौत की नींद सुला सके, वो अपना पुरुष एकाधिकार कायम कर सकें। वोट का चारा खाने में मशगूल सरकारें मूक हैं और खाप पंचायतें अपनी दादागिरी कर रही हैं। इन्हीं पंचायतों के दबाव में आकर माँ बाप अपने बच्चों को मौत की नींद सुला देते हैं, जिनको जन्म देने ए

क्या देखते हैं वो फिल्में...

मंगलवार को एक काम से चंडीगढ़ जाना हुआ, बठिंडा से चंडीगढ़ तक का सफर बेहद सुखद रहा, क्योंकि बठिंडा से चंडीगढ़ तक एसी कोच बसों की शुरूआत जो हो चुकी है, बसें भी ऐसी जो रेलवे विभाग के चेयर कार अपार्टमेंट को मात देती हैं। इन बसों में सुखद सीटों के अलावा फिल्म देखने की भी अद्भुत व्यवस्था है। इसी व्यवस्था के चलते सफर के दौरान कुछ समय पहले रिलीज हुई पंजाबी फिल्म मिट्टी देखने का मौका मिल गया, जिसके कारण तीन चार घंटे का लम्बा सफर बिल्कुल पकाऊ नहीं लगा। पिछले कुछ सालों से पुन:जीवित हुए पंजाबी फिल्म जगत प्रतिभाओं की कमी नहीं, इस फिल्म को देखकर लगा। फिल्म सरकार द्वारा किसानों की जमीनों को अपने हितों के लिए सस्ते दामों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने जैसी करतूतों से रूबरू करवाते हुए किसानों की टूटती चुप्पी के बाद होने वाले साईड अफेक्टों से अवगत करवाती है। फिल्म की कहानी चार बिगड़े हुए दोस्तों से शुरू होती है, जो नेताओं के लिए गुंदागर्दी करते हैं, और एक दिन उनको अहसास होता है कि वो सही अर्थों में गुंडे नहीं, बल्कि सरदार के कुत्ते हैं, जो उसके इशारे पर दुम हिलाते हैं। वो इस जिन्दगी से निजा

किसान एवं टुकड़े दो रचनाएं

किसान फटे पुराने मटमैले से कपड़े टूटे जूते मटमैले से जख्मी पैर कंधे पर रखा परना ढही सी पगड़ी अकेले ही खुद से बातें करता जा रहा है शायद मेरे देश का कोई किसान होगा। परना- डेढ़ मीटर लम्बा कपड़ा टुकड़े बचपन में जब एक रोटी थी, तो माँ ने दो टुकड़े कर दिए, एक मेरा, और एक भाई का लेकिन जब हम जवान हुए, तो हमने घर के दो टुकड़े कर दिए एक पिता का, और एक माई का। नोट :- उत्सव परिकल्पना 2010 में पूर्व प्रकाशित रचनाएं।

कितने और हैं पैसे और शहीदी ताज?

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कुलवंत हैप्पी कितने शहीदी ताज और मुआवजा देने के लिए पैसे हैं, शायद सरकार के लेखाकार और नीतिकार सोच रहे होंगे? साथ में यह भी सोच रहे होंगे कि बड़ी मुश्किल से हवाई हादसे की ख़बर के कारण जनता का ध्यान बस्तर से हटा था, नक्सलवाद से हटा था। चलो अफजल गुरू को फाँसी भले ही अब तक नहीं दे सके, लेकिन कसाब को फाँसी की सजा सुनाकर जनता की आँख में धूल तो झोंक ही दी, जो आँखें बंद कर जीवन जीने में व्यस्त है। आजकल तो हमारे पास कोई नेता भी नहीं बचा, जो मीडिया में गलत सलत बयानबाजी कर निरंतर हो रहे नक्सली हमलों से मीडिया का और जनता का ध्यान दूर खींच सके। देखो न कितना कुछ है सोचने के लिए सरकार के सलाहकारों के पास। आप सोच रहे होंगे क्या सलाहकार सलाहकार लगा रखी है, बार बार क्यों लिख रहा हूँ सलाहकार। लेकिन क्या करूं, देश के उच्च पदों पर बैठे हुए नेतागण भी फैसला लेने से पहले अपने सलाहकारों से बात करते हैं, सलाहकार भी नेताओं से चालू हैं, वो भी वहाँ बैठे बैठे ही टेबल स्टोरी जर्नलिस्ट की तरह बैठे बैठे लम्बी चौड़ी स्टोरियों सी सलाहें नेताओं के दे डालते हैं, जो वास्तविकता से कोसों दूर होती हैं। जनता की आँख में धूल

बुजुर्ग की खुशी का रहस्य

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मैं कभी नहीं भूल सकता, एक बड़ा सा घर, और वो बुजुर्ग, जो सुबह सुबह मुझे गैलरी में खड़ा मिलता है। मैं उसको देखता हूँ, वो मुझे देखता है। हल्की सी मुस्कान का आदान प्रदान होता है दोनों में, और फिर मैं आगे बढ़ जाता हूँ, बिना कुछ बोले। इस तरह की वार्तालाप कई दिनों तक चलती है हम दोनों में, लेकिन एक दिन होठों की मुस्कान छोटे से बोलते संवाद में बदलती है, और मैं पूछ बैठता हूँ, आपकी खुशी का राज क्या है? मैं जानना चाहता हूँ, दुनिया में मुझे हर शख्स दुखी मिलता है, लेकिन आपका चेहरा देखते ही दुनिया भर के दुखी लोग मेरी आँख से ओझल हो जाते हैं, क्यों?। जवाब में वो बुजुर्ग उंगली का इशारा सामने की ओर करता है, यहाँ पर सरकारी जमीं पर एक झुग्गी बनी हुई है, जिसमें कम से कम पाँच लोग रहते हैं मुर्गे मुर्गियों (कॉक एंड हैनकॉक) के साथ।

हैप्पी अभिनंदन में दीपक "मशाल"

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हैप्पी अभिनंदन में आज आप जिस ब्लॉगर हस्ती से मिलने जा रहे हैं, वो शख्सियत अपनी माटी से शारीरिक तौर पर तो दूर है, लेकिन रूह से जुड़ी हुई है। यही जुड़ाव तो है, जो कोंच छोड़ने और बेलफास्ट, उत्तरी आयरलैंड पहुंचने के बाद भी हिन्दी ब्लॉग जगत के दीपक "दीपक मशाल' को अपने देश एवं अपनी बोली से जोड़े हुए है। इस दीपक के प्रकाश से हम सब हर रोज मसि कागद पर रूबरू होते हैं। आओ जानते हैं कि दीपक से मशाल का रूप ले रहे युवा कवि एवं ब्लॉगर दीपक मशाल से वो क्या कहते हैं, खुद के एवं ब्लॉग जगत के बारे में।

एक खत कुमार जलजला व ब्लॉगरों को

कुमार जलजला को वापिस आना चाहिए, जो विवादों में घिरने के बाद लापता हो गए, सुना है वो दिल्ली भी गए थे, ब्लॉग सम्मेलन में शिरकत करने, लेकिन किसी ढाबे पर दाल रोटी खाकर अपनी काली कार में लेपटॉप समेत वापिस चले गए, वो ब्लॉगर सम्मेलन में भले ही वापिस न जाए, लेकिन ब्लॉगवुड में वापसी करें।

हैप्पी अभिनंदन में इंदुपुरी गोस्वामी

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हैप्पी अभिनंदन में आज, आप जिस ब्लॉगर शख्सियत से रूबरू होने जा रहे हैं, वो पेशे से टीचर, लेकिन शौक से समाज सेविका एवं ब्लॉगर हैं। वो चितौड़गढ़ की रहने वाली हैं, ब्लॉगिंग जगत में आए उनको भले ही थोड़े दिन हुए हैं, लेकिन सार्थक ब्लॉगिंग के चलते बहुत जल्द एक अच्छा नाम बन गई हैं। जी हाँ, आज आप हैप्पी अभिनंदन में कान्हा की दीवानी यानी आज की मीरा एवं मेरी निगाह में दूसरी मदर टरेसा इंदुपुरी गोस्वामी से मिलने जा रहे हैं। आओ जाने, वो क्या कहती हैं ब्लॉग जगत एवं अपने बारे में :- कुलवंत हैप्पी : ब्लॉगिंग के अलावा आप असल जिन्दगी में क्या करती हैं, और कुछ अपने बारे में बताएं? इंदुपुरी गोस्वामी : सरकारी स्कूल में टीचर हूँ। हिंदी और इंग्लिश लिटरेचर में एम.ए. हूँ। बचपन से लिखने का शौक था और पढ़ने का तो इतना कि बहुत जल्दी उसमें डूबना सीख गई थी। दसवी ग्यारहवी कक्षा तक आते आते मैंने साहित्य की प्रसिद्ध रचनाओं के अलावा रूसी, अंग्रेजी, उर्दू, और संस्कृत साहित्य के अलावा खलील जिब्रान को खूब पढ़ चुकी थी। कुलवंत हैप्पी : ब्लॉग जगत में आपने कदम कब और कैसे रखा? इंदुपुरी गोस्वामी : ब्लॉग की दुनिया में आए बहु

नो एंट्री, वेलकम और थैंक यू

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कुलवंत हैप्पी आप ने अक्सर देखा होगा कि आप "थैंक्स" कहते हैं तो सामने से जवाब में "वेलकम" सुनाई पड़ता है, मेंशन नॉट तो गायब ही हो गया। ये ऐसे ही हुआ, जैसे अमिताभ के स्टार बनते ही शत्रूघन सिन्हा एवं राजेश खन्ना की स्टार वेल्यू। कभी कभी थैंक्स एवं वेलकम का क्रम बदल भी जाता है, वेलकम पहले और थैंक्स बाद में आता है। शायद फिल्म निर्देशक अनीस बज्मी दूसरे क्रम पर चल रहे हैं, तभी तो उन्होंने पहले कहा, "नो एंट्री", फिर कहा, "वेलकम" और अब कह रहे हैं "थैंक यू"। अनीस के नो एंट्री कहने पर भी हाऊसफुल हो गए थे, और वेलकम कहने पर भी, लेकिन सवाल उठता है कि क्या दर्शक उनके थैंक यू कहने पर वेलकम कहेंगे? सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि इस बार अक्षय कुमार के साथ उनकी लक्की गर्ल कैटरीना नहीं, और उनका वक्त वैसे भी ख़राब चल रहा है, फिल्म आती है और बिन हाऊसफुल किए चली जाती है, वो बात जुदा है कि अक्षय कुमार ने इससे भी ज्यादा बुरा वक्त देखा है, और वो इस स्थिति को संभाल लेंगे, मगर लगातार दो फिल्म फ्लॉप देने वाली अनिल कपूर की बेटी का कैरियर धर्मेंद्र की बेटी ईशा देओल

दिलों में नहीं आई दरारें

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लेखक : कुलवंत हैप्पी पिछले कई दिनों से मेरी निगाह में पाकिस्तान से जुड़ी कुछ खबरें आ रही हैं, वैसे भी मुझे अपने पड़ोसी मुल्कों की खबरों से विशेष लगाव है, केवल बम्ब धमाके वाली ख़बरों को छोड़कर। सच कहूँ तो मुझे पड़ोसी देशों से आने वाली खुशखबरें बेहद प्रभावित करती हैं। जब पड़ोसी देशों से जुड़ी किसी खुशख़बर को पढ़ता हूँ तो ऐसा लगता है कि अलग हुए भाई के बच्चों की पाती किसी ने अखबार के मार्फत मुझ तक पहुंचा दी। इन खुशख़बरों ने ऐसा प्रभावित किया कि शुक्रवार की सुबह अचानक लबों पर कुछ पंक्तियाँ आ गई। दिल्ली से इस्लामाबाद के बीच जो है फासला मिटा दे, मेरे मौला, नफरत की वादियों में फिर से, मोहब्बत गुल खिला दे, मेरे मौला, सच कहूँ, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच अगर कोई फासला है तो वो है दिल्ली से इस्लामाबाद के बीच, मतलब राजनीतिक स्तर का फासला, दिलों में तो दूरियाँ आई ही नहीं। रिश्ते वो ही कमजोर पड़ते हैं, यहाँ दिलों में दूरियाँ आ जाएं, लेकिन यहाँ दूरियाँ राजनीतिज्ञों ने बनाई है। साहित्यकारों ने तो दोनों मुल्कों को एक करने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी है। अगर दिलों में भी मोहब्बत मर गई होती तो शायद श्री

वरना, रहने दे लिखने को

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रचनाकार : कुलवंत हैप्पी तुम्हें बिकना है, यहाँ टिकना है, तो दर्द से दिल लगा ले दर्द की ज्योत जगा ले लिख डाल दुनिया का दर्द, बढ़ा चढ़ाकर रख दे हर हँसती आँख रुलाकर हर तमाशबीन, दर्द देखने को उतावला है बात खुशी की करता तू, तू तो बावला है मुकेश, शिव, राजकपूर हैं देन दर्द की दर्द है दवा असफलता जैसे मर्ज की साहित्य भरा दर्द से, यहाँ मकबूल है बाकी सब तो बस धूल ही धूल है, संवेदना के समुद्र में डूबना होगा, गम का माथा तुम्हें चूमना होगा, बिकेगा तू भी गली बाजार दर्द है सफलता का हथियार सच कह रहा हूँ हैप्पी यार माँ की आँख से आँसू टपका, शब्दों में बेबस का दर्द दिखा रक्तरंजित कोई मंजर दिखा खून से सना खंजर दिखा दफन है तो उखाड़, आज कोई पंजर दिखा प्रेयसी का बिरह दिखा, होती घरों में पति पत्नि की जिरह दिखा हँसी का मोल सिर्फ दो आने, दर्द के लिए मिलेंगे बारह आने फिर क्यूं करे बहाने, लिखना है तो लिख दर्द जमाने का वरना, रहने दे लिखने को

20 साल का संताप, सजा सिर्फ दो साल!

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देश का कानून तो कानून, सजा की माँग करने वाले भी अद्भुत हैं। बीस साल का संताप भोगने पर सजा माँगी तो बस सिर्फ दो साल। जी हाँ, हरियाणा के बहु चर्चित रूचिका गिरहोत्रा छेड़छाड़ मामले जिरह खत्म हो चुकी है, और फैसला 20 मई को आना मुकर्रर किया गया है, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि सीबीआई एवं गिरहोत्रा परिवार ने मामले के मुख्य आरोपी को दोषी पाए जाने पर सजा अधिकतम दो साल माँगी। बीस साल का संताप भोगने के बाद जब इंसाफ मिलने की आशा दिखाई दी तो दोषी के लिए सजा दो साल माँगना, ऊंट के मुँह में जीरे जैसा लगता है। - कुलवंत हैप्पी उल्लेखनीय है कि रूचिका के साथ 12 अगस्त, 1990 को तत्कालीन आईजी व लोन टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष एसपीएस राठौर ने छेड़छाड़ की थी। आज उस बात को दो दशक होने जा रहे हैं। इन दो दशकों में गिरहोत्रा परिवार ने अपनी लॉन टेनिस खिलाड़ी बेटी खोई, अपना सुख चैन गँवाया, गिरहोत्रा परिवार के बेटे ने चोरी के कथित मामलों में अवैध कैद काटी, पुलिस का जुल्म ओ सितम झेला, लेकिन जिसके कारण गिरहोत्रा परिवार को इतना कुछ झेलना पड़ा वो आजाद घूमता रहा बीस साल, अब जब उसके सलाखों के पीछे जाने का वक्त आया तो सज

ब्लॉगी पत्रकारिता पीत पत्रकारिता?

नेट पर पीत पत्रकारिता ब्लॉग जगत को आए दिन प्रिंट मीडिया के धुरंधर निशाना बनाते हैं। कागजों को काला करते हैं। क्या सच में ब्लॉग जगत के भीतर पीत पत्रकारिता होती है? जहाँ लिखने की आजादी हो, यहाँ लिखने वाला खुद संपादक हो? वहाँ ऐसी बात लागू होती है क्या? हो सकता है कि कुछ व्यक्ति विशेष ऐसा कर रहे हैं, लेकिन क्या पूरे ब्लॉग जगत पर पीत पत्रकारिता का ठप्पा लगाना सही है? आखिर क्यों बार बार ब्लॉग जगत को निशाना बनाया जा रहा है? ब्लॉग जगत को बार बार निशाना बनाया जाना, प्रिंट मीडिया के धुरंधरों की हड़बड़ाहट को झलकता है। ब्लॉगर साथियों में इस विषय पर कुछ भी लिखना नहीं चाहता था, लेकिन रहा न गया। आखिर आप ही बताएं क्या? ब्लॉग जगत में केवल पेज थ्री का मेटर आता है? क्या यहाँ अच्छी कहानियाँ, कविताएं, अद्भुत लेख प्रकाशित नहीं होते? क्या यहाँ छापने वाले व्यंग अखबारों में जगह नहीं बनाते? अगर हाँ तो फिर ब्लॉग को क्यों बार बार ऐसे मजाक बनाकर पेश किया जा रहा है। या तो फोकी शोहरत के लिए चाँद पर थूका जा रहा है। आपका सोचते हैं, अपनी प्रतिक्रियाएं दर्ज करवाएं।

हैप्पी अभिनंदन में शिवम मिश्रा

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ब्लॉग ने पूरे हिन्दुस्तान को एक मंच पर ला खड़ा किया है, ब्लॉगिंग के बहाने हमको देश के कोने कोने का हाल जानने को मिल जाता है। देश का कितना बड़ा भी न्यूज पेपर हो, लेकिन आज वो ब्लॉग जगत के मुकाबले बहुत छोटा है। अखबार गली कूचों में बांट कर रह गया है, कारोबार ने उसकी सीमाएं बहुत छोटी कर दी। अखबार का दायरा जितना छोटा हुआ है, ब्लॉग जगत का दायरा उतना ही बड़ा हुआ है। जम्मू कश्मीर से मदरास तक और असम से गुजरात तक ही नहीं बल्कि हिन्दी ब्लॉगिंग का नेटवर्क तो सरहद पार विदेशों तक फैला हुआ है। इस नेटवर्क को एक एक ब्लॉगर ने बनाया है, ब्लॉग नेटवर्क एक माला की तरह है, जो एक एक मोती से बनती है। इस ब्लॉग रूपी माला में बहुत से मोती हैं, उन्हीं मोतियों में से एक मोती शिवम मिश्रा के साथ आज हैप्पी अभिनंदन में आप सबको रूबरू करवाने जा रहा हूँ, जो उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले से बुरा भला एवं जागो सोने वालों ब्लॉग को संचालित करते हैं। आओ आगे पढ़ें, कुलवंत हैप्पी   के सवाल और शिवम मिश्रा के जवाब। कुलवंत हैप्पी : सबसे पहले जानना चाहेंगे कि आपकी जन्मस्थली कौन सी है और आपका जन्म कब हुआ? शिवम मिश्रा : मेरा जन्म 15

आज भी हीर कहाँ खड़ी है?

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कुलवंत हैप्पी समय कितना आगे निकल आया, जहाँ साइंस मंगल ग्रह पर पानी मिलने का दावा कर रही, जहाँ फिल्म का बज़ट करोड़ों की सीमाओं का पार कर रहा है, जहाँ लोहा (विमान) आसमाँ को छूकर गुजर रहा है, लेकिन फिर भी हीर कहाँ खड़ी है? रांझे की हीर। समाज आज भी हीर की मुहब्बत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं। भले ही हीर के पैदा होने पर मातम अब जश्नों में तब्दील होने लगा है, लेकिन उसके ख़ाब देखने पर आज भी समाज को एतराज है। जी हाँ, बात कर रहा हूँ निरुपमा पाठक। जिसको अपनी जान से केवल इसलिए हाथ धोना पड़ा, क्योंकि उसने आज के आधुनिक जमाने में भी हीर वाली गलती कर डाली थी, एक लड़के से प्यार करने की, खुद के लिए खुद जीवन साथी चुनने की, शायद उसको लगा था कि डीडीएल की सिमरन की तरह उसके माँ बाप भी अंत में कह ही डालेंगे जाओ जाओ खुश रहो..लेकिन ऐसा न हुआ निरुपमा के साथ। वारिस शाह की हीर ने अपने घर में भैंसों गायों को संभालने वाले रांझे से मुहब्बत कर ली थी, जो तख्त हजारा छोड़कर उसके गाँव सयाल आ गया था। दोनों की मुहब्बत चौदह साल तक जमाने की निगाह से दूर रही, लेकिन जैसे ही मुहब्बत बेपर्दा हुई कि हीर के माँ बाप ने उसकी शा

माँ दिवस पर "युवा सोच युवा खयालात" का विशेषांक

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अगर आसमाँ कागद बन जाए, और समुद्र का पानी स्याही, तो भी माँ की ममता का वर्णन पूरा न लिख होगा, लेकिन फिर शायरों एवं कवियों ने समय समय पर माँ की शान में जितना हो सका, उतना लिखा। शायरों और कवियों ने ही नहीं महात्माओं, ऋषियों व अवतारों ने भी माँ को भगवान से ऊंचा दर्जा दिया है। आज माँ दिवस है, ऐसे शुभ अवसर पर विश्व की हर माँ को तहेदिल से इस दिवस की शुभकामनाएं देते एवं उनके चरण स्पर्श करते हुए उनकी शान में कवियों शायरों द्वारा लिखी रचनाओं से भरा एक पन्ना उनको समर्पित करता हूँ, एक छोटे से तोहफे के तौर पर। खट्टी चटनी जैसी माँ।-निदा फाज़ली बेसन की सौंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ। याद आती है चौका बासन, चिमटा फूँकनी जैसी माँ। बाँस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे। आगे पढ़ें चार दीवार-इक देहरी माँ - सुधीर आज़ाद चार दीवार-इक देहरी माँ इक उलझी हुई पहेली माँ। सारे रिश्ते उस पर रक्खे, क्या क्या ढोए अकेली माँ। सर्द रातों का ठंडा पानी, जून की दोपहरी माँ। आगे पढ़ें  आलोक श्रीवास्तव की रचना-अम्मा धूप हुई तो आंचल बन कर कोने-कोने छाई अम्मा, सारे घर का शोर-शराबा, सूनापन तनहाई अम्मा। सारे रिश्ते- ज