खुद के लिए कबर खोदने से कम न होगा


ऑफिस शौचाल्य के भीतर मैं आईने के सामने खड़ा अपने हाथ पोंछ रहा था कि मेरे कानों में एक आवाज आई कि कैसी है पारूल "मेरी गर्भवती पत्नी", मैंने कहा सर जी बहुत बढ़िया है और अगले महीने मैं पिता बन जाऊंगा, जो भी हो बस एक ही काफी है लड़का या लड़की। इतना सुनते ही उन्होंने कहा कि हम "हिन्दु" एक एक पैदा करेंगे और वो "मुस्लिम" चार चार पैदा करेंगे तो अपने ही देश में हम अल्पसंख्यक होकर रह जाएंगे। अब तो चुप और शांत बैठे हैं, वो हम पर भारी पड़ जाएंगे। इस बात से मुझे एक सर्वे याद आ गया, जिसमें कहा गया था कि विश्व में हर चौथे आदमी मुस्लिम है। मैंने इस बात का जिक्र किया, और हम शौचालय से बाहर आ गए, जहां सब लोग मजदूरों की तरह काम कर रहे थे, उन मजदूरों में भी शामिल हूं। सर जी द्वारा कहे शब्द मेरे दिमाग के आसमान पर बादलों की तरह मंडराते रहे, शुक्रवार "25 दिसम्बर 2009" की रात मुझे जब नींद नहीं आ रही थी, तो मैंने रात के करीब पौने दो बजे अपने पीसी को ऑन किया और लिखने बैठ गया, शायद इस बोझ को दिमाग से हटाने के बाद नींद आ जाए। मैं उनकी बात से सहमत नहीं हूं, शायद अन्य हिन्दुवादी सोच के लोग कहेंगे कि वो सही थी, वो भी सिर्फ इस लिए उनके मन में भी भय है, जो कभी दो धर्मों को एक सूत्र में नहीं बंधने देता। बिल्कुल सत्य है कि मैं उनकी बात को आज की स्थिति में स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि जिस तरह महंगाई बढ़ रही है, जिस तरह रोजगार कम हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में बड़ा परिवार खुद के लिए कबर खोदने से ज्यादा और कुछ न होगा। बढ़ती हुई जनसंख्या किसी भी एक विशेष समुदाय के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरा है, मुझे नहीं लगता कि मेरे इस तर्क से कोई असहमत होगा। अगर मैं उक्त सीनियर पर्सन की बात को मान लूं तो मुझे बढ़ती ही मुस्लिम आबादी तो शायद न मारे, यकीनन मेरी गरीबी और बढ़ती मंहगाई ही मुझे मार डालेगी। आनी तो आखिर सबको मौत ही है, मारने वाला तो केवल साधन है। मुझे याद है, जब वो सर्वे रिपोर्ट रिलीज हुई थी तो मुस्लिम समुदाय के एक व्यक्ति ने उसको बड़े गर्व के साथ अपने ब्लॉग पर डाला था, लेकिन वो इसके दूसरे पहलू को समझ न सका। उसने एक पहलू देखा और खुशी के मारे मेंढक की तरह उछलने कूदने लगा। उसने एक बार भी न सोचा कि उसकी समुदाय के लोग महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन बनाए हुए हैं। उस समुदाय की महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा है। वो न समझ सका कि उसकी बहन, उसकी पत्नी एवं उसकी माँ भी उसकी समुदाय का हिस्सा हैं। समुदाय कोई भी हो, प्रसव पीड़ा का दर्द तो सब महिलाओं को एक सा ही होता है। उसने उस रिपोर्ट को देखकर एक बार भी न सोचा कि उन महिलाओं के कलियों से कोमल अरमानों को कैसे कुचल दिया जाता है। जनसंख्या का बढ़ना खुशी की नहीं अफसोस की बात है। उसने कभी उन रिर्पोटों को नहीं पढ़ा होगा, जिसमें आए दिन लिखा जाता है कि पाकिस्तान में आज इतने लोग मारे गए, अफगानिस्तान में इतने मारे गए, वो भी तो उनकी समुदाय के ही लोग हैं। जब वो दूसरा पहलू देखेगा तो सोचेगा कि शायद अब अपनी समुदाय को बचाने के लिए कुछ किया जाए, उनको बढ़ती संख्या के कु-फायदे समझाए जाएं। मुस्लिम समुदाय में भी बहुत से पढ़े लिखे लोग हैं, जो जानते हैं कि बढ़ती संख्या उनके के लिए भी खतरा है। कई पढ़े लिखे एवं समझदार मुस्लिम घरों में मैंने एक दो बच्चे देखें हैं। शायद वो भी मेरी तरह ही इस स्लोगन पर विश्वास करते हो "छोटा परिवार सुखी परिवार", असल में ही जिसने भी इस स्लोगन को तैयार किया होगा, कसम से वो व्यक्ति बहुत सकारात्मक सोच रखता होगा। उसने दुनिया के लिए एक बहुत शानदार और बढ़िया काम किया है। जिस तरह जनसंख्या बढ़ रही है, उसको देखते हुए मुझे ओशो की एक किताब में दर्ज एक बात याद आती है कि अलबर्ट आइंस्टीन से पूछा गया तीसरे विश्व युद्ध के बारे में आप क्या कुछ कहना चाहते हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि मुझे अफसोस है कि मैं तीसरे विश्व युद्ध के बारे में तो कुछ भी नहीं कह सकता, लेकिन यदि तुम चौथे के बारे में जानना चाहते हो तो मैं कुछ बता सकता हूं। प्रश्न पूछने वाले ने थोड़ी देर सोचने के बाद पूछा कि चलो आप चौथे विश्व युद्ध के बारे में ही कुछ बता दो...तो उन्होंने उत्तर दिया, उसके बारे में मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि चौथा विश्वयुद्ध कभी नहीं होगा।

टिप्पणियाँ

  1. विपरीत काले, विनाश बुद्धि...

    जय हिंद...

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  2. क्या कहें , दिमाग खराब है ।

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  3. आपने एक जोक्स मेरे ब्लॉग पे लिखा आपका शुक्रिया फिलहाल इतना वक़्त नहीं की आप की पोस्ट पढ़ सकूँ !! शो का समय हो रहा है आप अपनी जोक्स मुझे मेल करें तो ओं एयर कर सकता हूँ इस पते पट भेजें !!!sikkim@radiomisty.co.in थोड़ी जेहमत तो है पर आपके जोक्स आपका नाम सारे सिक्किम और वेस्ट बंगाल की अवाम सुनेगी!!!अपना पता भी लिखें sub: में लौघ्टर उन्लिमितेद
    dhanyawaad

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  4. सही बात है आपकी मगर ये बढी हुयी जनसंख्या ही अपराधी बनेगी वो ये भी नहीं सोचते। भूख से आदमी क्या नहीं करेगा। सही पोस्ट शुभकामनायें

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  5. ek bahut hi sarthak aur sochniya lekh...........ye kisi ek samuday ya kisi ek dharm ke liye nhi hai balki har samjhdar aur padhe likhe insaan ke liye hai .........aaj aisi pragtisheel soch har kisi ki ho to desh unnati ke path par sabse aage ho.

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