विचलित होना छोड़ दो


तुम विचलित होना छोड़ दो। सफलता तुम्हारे कदम चुम्मेगी। कुछ ऐसा ही मेरा मानना है। तुम्हारा विचलित होना, किसी और के लिए नहीं केवल स्वयं तुम्हारे के लिए नुक्सानदेह है, जैसे कि क्रोध। विचलित होना तो क्रोध से भी बुरा है। विचलित मन तुम्हारे मनोबल को खत्म करता है। जब मनोबल न बचेगा, तो तुम भी न बचोगे। खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए तुम को विचलित होना छोड़ना होगा, तभी तुम सफलता को अर्जित पर पाओगे।

आए दिन नए नए ब्लॉगर्स को बड़े जोश खरोश के साथ आते देखता हूं, लेकिन फिर वो ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे कि मौसमी मेंढ़क। इसके पीछे ठोस कारण उनके मन का अस्थिर अवस्था में चले जाना है। वो ब्लॉग ही इस धारणा से शुरू करते हैं कि हमसे अच्छा कोई नहीं। वो जैसे ही कोई पोस्ट डालेंगे तो टिप्पणियां ऐसे आएंगी, जैसे कि सावन मास में पानी की बूंदें। लेकिन ऐसा नहीं होता तो विचलित हो जाते हैं, और वहीं ब्लॉग अध्याय को बंद कर देते हैं। अगर उनका मन स्थिर हो जाए, और वो निरंतर ब्लॉगिंग करें तो शायद उनको सफलता मिल जाए, लेकिन पथ छोड़ने से कभी किसी को मंजिल मिली है, जो उनको मिलेगी। कई मित्र मेरे पास आते हैं, और कहते हैं कि ब्लॉग शुरू करना है और वो ऐसा करते भी हैं। लेकिन उक्त कारण से हताशा होकर वो ब्लॉगिंग को निरंतर नहीं रख पाते। ऐसे विचलित होते रहोगे कि तो किसी भी काम में सफलता हाथ न लगेगी।

एक किस्सा याद आता है। एक युवा गीतकार अपने हस्तलिखत गीतों की डायरी लेकर एक नामी गायक के पास गया। उसने गायक को अपने गीत दिखाए। गायक ने गीत देखे और कहा कि तुम्हारे विचार तो बहुत शानदार हैं, लेकिन इनको संवारना पड़ेगा। उस गायक ने उसके गीत न गाए। शायद वो गीत उस की गायन क्षमता के अनुकूल न थे। इस बात से युवा गीतकार हताश न हुआ, बल्कि उस युवा गीतकार ने गायक की एक बात अपने पल्ले बांध ली, जिसने उसका कभी मनोबल टूटने नहीं दिया। वो बात थी, तुम शौक से लिखते हो तो नतीजों की अपेक्षा मत करना। वरना तुम शौक से भी हाथ धो बैठोगे। कुछ दिनों बाद उस युवा गीतकर को रक्तदान पर एक गीत लिखने का ऑफर आया। उसने रक्तदान पर पांच मिनट में एक गीत लिखा, और वो रिकार्ड भी हो गया। इसके बाद उसने गीत मां शेरां वाली की भेंटें लिखी। कहते हैं कि सब का वक्त आता है, जब आता है तो तुम्हें उसकी उम्मीद भी नहीं होती। उसका लिखा गीत जब रिकार्ड हुआ तो उसको हर तरफ से वाह वाह मिलने लगी। इस गीत के बाद उसने उस सुखद पल का अहसास किया, जो उसने कभी सोचा न था। मंजिल कहती है कि तुम बढ़ो तो सही, मैं भी तेरी ओर चल दूंगी।

कैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'

शौचालय और बेसुध मैं

टिप्पणियाँ

  1. बहुत प्रेरणादायक पोस्ट है । मानना तो अपना भी यही है मगर फिर भी कई बार इस पर अमल नहीं कर पाते। कोशिश करते हैं धन्यवाद और आशीर्वाद्

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  2. गुरू!! ब्लॉगस्पॉट पर एक रचना है कि 'विचलित होना छोड़ दो' गुरूमंत्रा में, मुझे बहुत ही अच्छी लगी। आदमी छोटी छोटी बातों पर गौर करना शुरू कर दे तो असल में ही बहुत आगे जा सकता है। मेरी इस टिप्पणी को मेरे नाम से प्रकाशित करें।

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