मौन थी, माँ

आँख मलते हुए
उठा वो बिस्तर से
रोज की तरह

और उठाया
हठों तक लाया
चाय की प्याली को
हैरत में पड़ा,
देख उस अध-खाली को

मां के पास गया
और बोला
आज चाय इतनी कम क्यों है
तू चुप,
और तेरी आंख नम क्यों है

फिर भी चुप थी,
मौन थी, माँ
एक पत्थर की तरह
वो फिर दुहराया
मां चाय कम क्यों है
तेरी आंख नम क्यों है

फिर भी न टूटी
लबों की चुप
कैसे टूटती चुप
ताले अलीगढ़ के
गोरमिंट ने लगा जो दिए

मौन होंगी अब
कई माँएं
शक्कर दूध के भाव बढ़ा जो दिए

टिप्पणियाँ

  1. बहूत खूब कुलवन्त जी !!!

    जवाब देंहटाएं
  2. थोड़े से शब्दों में आपने बहुत कुछ कह दिया ----कहते हैं न गागर में सागर भर दिया।
    शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सहीलिखा है आपने ......मार्मिक पर आज का सच

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या बात है कुलवंत जी..कहाँ से लाकर बात को कहाँ पर छोड़ा है..शकर कितनी भी मँहगी क्यों न हो जाय..इस कविता का मीठापन कम नही होने वाला..

    जवाब देंहटाएं
  5. मौन होंगी अब
    कई माँएं
    शक्कर दूध के भाव बढ़ा जो दि
    बहुत सही कहा रचना पढते हुये कहीं से कहीं पहुँच गये मार्मिक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  6. khoobsurat andaj-e-bayan

    pata hi nahi chala ant tak ki kya kahna chahti hai rachna ..
    or fir achanak mahgaii par jordar kataksh

    yakinan kabil-e-tariif

    जवाब देंहटाएं

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