शेयर-ओ-शायरी

पिंजरों में बंद परिंदे क्या जाने कि पर क्या होते हैं,
कुएं के मेंढ़क क्या जाने यारों समंदर क्या होते हैं,
जंगलों में भटकने वाले क्या जाने घर क्या होते हैं,

भागती जिन्दगी में अपनों संग वक्त बिताना मुश्किल है,
जैसे मंदिर मस्जिद के झगड़े में इंसां बचाना मुश्किल है,

मैं मंदिर, मस्जिद और चर्च गया,
न जीसस, न अल्लाह और न राम मिला
जब निकल बाहर
तो इनके नाम पर दंगा फसाद आम मिला

टिप्पणियाँ

  1. भाई वाह क्या बात है, आप ने अपने एहसास को लाजवाब तरीके से पिरो कर प्रस्तुत किया है। बहुत-बहुत बधाई

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  2. बिल्कुल सही बात कही आपने सही चीज़ को समझने के लिए नज़रिए का सही होना ज़रूरी है..

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  3. बेहद खुबसूरती से आप आपने भावो को सजाकर प्रस्तुत करी है/लाज़वाब रचना!

    जवाब देंहटाएं

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