इंदौर आएंगे तो क्या खाएंगे ? सोचिए मत

इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया, लेकिन मैंने शहर को क्या दिया अक्सर सोचता हूं? कल जब मैं राजवाड़ा से निकल रहा था तो मैंने सोचा क्यों न, इस शहर की अच्छी चीजों को इतर की तरह हवा में फैलाया जाए ? क्यों न किसी को बातों ही बातों में कुछ बताया जाए? मुझे इस शहर में आए तीन वर्ष होने वाले हैं, लेकिन अब भी सीने में धड़कते दिल में पंजाब ही धड़कता है, उस मिट्टी की खुशबू को मैं आज भी महसूस कर सकता हूं पहले की भांति, लेकिन बुजुर्गों ने कहा है कि जहां का खाईए, वहां का गाईए।

इस लिए मैं इस शहर का भी थोड़ा सा कर्ज उतार रहा हूं। इंदौर मध्यप्रदेश की कारोबारिक राजधानी कहलाता शहर है, इसके दिल में बसता है राजवाड़ा, जहां पर आपको सूई से लेकर जहाज तक मिल जाएगा। जहां पर आप वो बड़े जहाज को भूलकर बच्चों वाला जहाज समझिए बेहतर होगा। जब भी मैं इस बाजार में आता हूं तो सबसे पहले या सबसे बाद में सराफा बाजार जाना नहीं भूलता, सराफा बाजार में जहां दिन के वक्त सोना चांदी बिकता है तो शाम को आपको तरह तरह के व्यंजनों का स्वाद चखने को मिलता है, एक इंदौर में यही स्थान है जो देर रात तक आपको खुला मिलेगा। यहां स्थित एक दुकान पर जाना नहीं भूलता, इस दुकान का मालिक खुद को गुलाम कहता है और ग्राहक को मालिक, लेकिन अपने स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों से आपको अपना गुलाम बना लेता है।

इस गुलाम कर देने वाले गुलाम का नाम है जोशी दही बड़े वाला। जितना स्वादिष्ट इसका दही बड़ा है, उससे कई गुना ज्यादा स्वादिष्ट इसकी जुबां है। जुबां की तरह इसकी दही एकदम मीठी और स्वादिष्ट, मैंने पंजाब में भी ऐसी तो नहीं खाई, जबकि मेरे घर पांच भैंस हुआ करती थी, जब मां थी, अब तो एक है वो भी घरवालों से संभाली नहीं जाती। मां तो मां थी, उसकी तो बात ही कुछ अलग थी।

सच में ऐसी दही तो कहीं नहीं खाई, जहां तक कि मैं गुजारात भी गया हूं, गुजरात में मेरा सुसराल है, मैं पंजाबी, मेरी मां पंजाबी, मेरा पिता पंजाबी, लेकिन मेरी पत्नी बिल्कुल गुजराती। गुजराती से ज्यादा आया, गुजराती खाना भी स्वादिष्ट होता है। वैसे भी जब भूख लगी हो तो कोई भी खाना स्वादिष्ट लगता है, लेकिन अगर आपका इंदौर आना हो, और खाना खाने का मन करे तो गुरूकृपा जाना मत भूलिए, एकदम मस्त खाना, सर्विस भी एकदम फास्टक्लास, जेबखर्ची भी ठीक ठाक, अगर आप संडे और किसी अन्य छुट्टी वाले दिन शाम को खाना खाने यहां पहुंचे तो शायद आपको लाइन में लगकर कई घंटों तक इंतजार करना पड़ सकता है।

गुरूकृपा का खाना और सर्विस दोनों ही बहुत उम्दा हैं, लेकिन मैंने माया रेंजीडेंसी के बारे में भी बहुत सुना है, लेकिन वहां खाना चखने का मौका नहीं मिला, वैसे कहा जाता है कि वहां का मालिक भी पिछले दो दशकों से खाना अपने इस टिकाने पर ही खाता है। इंदौर बहुत बड़ा है, और खाने पीने के और भी हैं टिकाने, मैं अभी गया नहीं, इस लिए अच्छे नहीं बताने, फोकट में पैसे आपके लगवाने, फिर भी चोटी वाले के रेसटोरेंट में भी जा सकते है, खाना अच्छा है, उसका आप खा सकते है। आज के लिए इतना ही।

टिप्पणियाँ

  1. जब इंदोर गए कभी तो यह जगह याद रखेंगे शुक्रिया

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  2. बहुत सुन्दर!

    भाई अब की इंदौर आयेंगे तो अवश्य ही जोशी जी के दही बड़े खायेंगे। अभी तो आपके बताए स्वाद से ही खुश होकर ब्लोगवाणी पसंद में आपके ब्लोग को एक चटका लगा दे रहे हैं

    पर कुलवंत भाई, रबड़ी और बासुंदी से आपका कुछ झगड़ा है क्या? :)

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  3. वाह्! आपके द्वारा दी गई ये जानकारी हमारे बहुत काम आने वाली है...क्यों कि दिसम्बर/जनवरी में हमारा इन्दौर जाने का कार्यक्रम बन रहा है।
    धन्यवाद्!

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  4. इंदौर की छप्पन दुकानों पर मिलनेवाले आलू पेटिस का ज़िक्र आपने नहीं किया। साथ ही साथ व्रत के दिनों में मिलनेवाली फलाहारी खिचड़ी का भी...

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  5. kकुलवंत जी खाने पीने की बात बता कर आपने अपने लिये मुश्किल खडी कर ली है हम पंजाबी तो पहले ही खाने पीने के शौकीन होते हैं आब आपकी पोस्ट पढ कर इन्दौर आने का मन हो गया है तो महमान तो आपके ही बनेगे ना बस फिर तैयार रहें । बहुत बहुत अधन्यवाद्

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  6. अरे भाई जी आपने मुड़ ही बदल दिया पकवानो के नाम सुनाकर हमें भी मन हो रहा है खाने को। और हाँ गुजराती भी खाना चाहुगाँ आपके यहां।

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  7. deeptiji sahi kah rahi hain...bhutte ka kees,sarafe ki kulfi, subah ki poha jalebi bahut kuch pakta aur mahakta hai indore ki galiyon mein.itne par karz nahin utarnewala.

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  8. आहा...इंदौर में बिताये हुए दिन याद आ गए! जब जेब अक्सर खाली ही हुआ करती थी! टैम्पो और सिटी बस में ही सफ़र होते थे! सराफा प्रिय अड्डा हुआ करता था! छप्पन भी खूब जाते थे! वहाँ भी सस्ता और लजीज खाना मिलता है! श्री माया में तभी खाया जब किसी और ने ट्रीट दी....अपनी औकात नहीं थी तब श्री माया की! इंदौर का पोहा...साबूदाने की खिचडी और पेटिस मुझे सबसे प्रिय हैं!
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  9. आपने इंदौर में बिताये दिनों की याद दिला दी, जब कुछ अरसे तक होलकर कालेज में पढता था. छप्पन जाकर खाता था, करियर की शुरुआत भी दैनिक भास्कर,इंदौर से की है. शहर की जिन्दादिली आज भी अक्सर याद आती है.

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  10. कभी इंदौर आना हुआ तो .. यह जगह जरूर याद रखेंगे !!

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  11. इंदौर के नमकीन का स्वाद तो …………।सच खाने के मामले मे खज़ाना है इंदौर्।

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