औरत

दुख-सुख, उतार-चढाव देखे सीता बन
हर तरह की जिन्दगी जी है औरत ने।

कभी सुनीता तो कभी कल्पना बन
जमीं से आसमां की सैर की है औरत ने।।

बन झांसी की रानी
लड़ी जांबाजों की तरह जंग औरत ने।

कभी मदर टैरेसा बन
भरे औरों के जीवन में रंग औरत ने॥

बेटी, बहू और मां बन
ना-जाने कितने रिश्ते निभाए औरत ने।

परिवार की खुशी के लिए
आपने अरमानों के गले दबाए औरत ने॥

जिन्दगी के कई फलसफे
ए दुनिया वालों पढ़ी है औरत।

फिर भी न जाने क्यों
चुप, उदास, लाचार खड़ी है औरत॥

मीरा, राधा और इन्हें जब जनी है औरत।
फिर क्यों औरत की दुश्मन बनी है औरत॥



टिप्पणियाँ

  1. KULWANT JI JHALLEVICHAARAANUSAAR
    AURAT JADON KEWAL AURAT BAN KE SAAMNE AAYEGI US WAQT AURAT DI SAAREE UDAASEE+LACHAAREE+DUSHMANEEAPNE AAP GHAYAB HO JAAYEGI.
    JHALLI-KALAM-SE

    जवाब देंहटाएं
  2. एक अच्छी सोच की अच्छी कविता.....

    जवाब देंहटाएं
  3. एक अच्छी सोच की अच्छी कविता.....

    जवाब देंहटाएं
  4. बेनामी9/06/2009 10:53 am

    फिर क्यों औरत की दुश्मन बनी है औरत

    यही यक्ष प्रश्न है।

    जवाब देंहटाएं
  5. कविता आपने सही लिखी है .. और आपका यक्ष प्रश्‍न भी जायज है .. पर इन्‍हीं दबाबों से निकल पाने के कारण तो उन्‍हें महान माना गया है !!

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छी सोच की अच्छी कविता

    जवाब देंहटाएं
  7. "मीरा, राधा और इन्हें जब जनी है औरत।
    फिर क्यों औरत की दुश्मन बनी है औरत॥"

    उम्दा कविता , उम्दा सोच |
    बधाई आपको |
    शुभकामनायो के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

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