लिखता हूं

न गजल लिखता हूं, न गीत लिखता हूं।
बस शब्दों से आज औ' अतीत लिखता हूं॥

होती है पल पल, वो ही हलचल लिखता हूं।
गमगीन कभी, कभी खुशनुमा पल लिखता हूं।।

मैं तो शब्दों में बस हाल-ए-दिल लिखता हूं।
आए जिन्दगी में पल जो मुश्किल लिखता हूं॥

बिखरे शब्दों को जोड़, न जाने मैं क्या लिखता हूं।
लगता है कि खुद के लिए दर्द-ए-दवा लिखता हूं ॥

कभी सोचता हूं, क्यों मैं किस लिए लिखता हूं।
मिला नहीं जवाब, लगे शायद इसलिए लिखता हूं॥

शब्दों का कारवां

टिप्पणियाँ

  1. आप जो कुछ भी लिखते है,बहुत बढ़िया लिखते है,बस लिखते रहिए हम पढ़ रहे है,
    सुंदर भाव,सुंदर रचना
    बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह क्या लिखते हैं बहुत सुन्दर भाव हैं
    बिखरे शब्दों को जोड़, न जाने मैं क्या लिखता हूं।
    लगता है कि खुद के लिए दर्द-ए-दवा लिखता हूं ॥
    लाजवाब बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. happy ji vashtav har kavi khud ke liye likhta hai.Par uska likha kab samaj ka ho jata hai yah batana muskil hai. Atah apna dharam nibhayiye aur khub likhte jayiye

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढिया, शब्दो का प्रयोग लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
  5. न गजल लिखता हूं, न गीत लिखता हूं।
    बस शब्दों से आज औ' अतीत लिखता हूं॥

    -छा गये यही लिखकर..वाह!

    जवाब देंहटाएं
  6. Waah ! Waah ! Waah !

    Bahut hi sundar !!



    न गजल लिखता हूं, न गीत लिखता हूं।
    बस शब्दों से आज औ' अतीत लिखता हूं॥

    Is sher ne to bas baandh hi liya..waah !

    जवाब देंहटाएं
  7. शायद इसलिए लिखता हूं...
    अच्छी पेशकश, सराहनीय।

    जवाब देंहटाएं

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