दर्द-ए-आवाज मुकेश को मेरा नमन, और आपका


जी हां, पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है, उंगलियां कुछ और लिख रही हैं और दिमाग में कुछ और चल रहा है। मुझे नहीं पता मेरे ऐसा पिछले दिनों से ऐसा क्यों हो रहा है, वो बात मैं आपके साथ बांटना चाहता हूं, इस पोस्ट के मार्फत। पिछले दिनों अचानक मेरे दिमाग में एक नाम आया, वो था मुकेश का। ये मुकेश कोई और नहीं, हमारे होंठों पर आने वाले गीतों को अमर कर देने वाली आवाज के मालिक मुकेश का ही था।

मेरा हिंदी संगीत से कोई ज्यादा रिश्ता नहीं रहा, लेकिन दूरदर्शन की रंगोली और चित्रहार ने मुझे कहीं न कहीं हिन्दी संगीत के साथ जोड़े रखा। पहले पहल तो ऐसा ही लगा करता था कि अमिताभ खुद गाते हैं, और अक्षय कुमार खुद गाते हैं, जैसे जैसे समझ आई, पता चला कि गीतों में जान फूंकने वाला तो कोई और ही होता है, ये तो केवल आवाज पर उन पर गाने का अभिनय करते हैं। पता नहीं, मुझे पिछले कुछ दिनों से क्यों ऐसा लग रहा था कि ‘दर्द-ए-संगीत’ की रूह मुकेश को शायद मीडिया की ओर से उतना प्यार नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए, विशेषकर खंडवा के लाल किशोर दा के मुकाबले तो कम ही मिलता है, ये तो सच है। किशोर दा का जन्मदिवस या पुण्यतिथि, उनको प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया तक खूब दिखाया और याद किया जाता है। उनको याद करने में ब्लॉगर जगत भी पिछे नहीं रहता। ये एक बहुत अच्छी बात है, लेकिन वहीं ये बात बुरी भी है कि मुकेश को उतना याद नहीं किया जाता, जितने के वो हकदार हैं।

यही प्रश्न मुझे पिछले दो तीन दिनों से बेहद परेशान कर रहा था, मैंने इसके लिए वेबर पर सर्च मार कई दफा। मैंने मुकेश के नगमों को ढूंढा, लेकिन उन नगमों में वो नगमे भी शामिल थे, जिनको मैं सुनता रहा हूं और सुनता हूं आज भी, लेकिन इस बात से अनजान था कि वो मुकेश की आवाज में रमे हुए हैं। आज इनकी पुण्यतिथि है, इस बात का पता भी मुझे आज सुबह उस वक्त लगा, जब मैंने खबरें देखने के लिए टीवी ऑन किया, मैं चैनल बदलते बदलते आगे बढ़ रहा था, तो एनडीटीवी पर देखा कि आज मुकेश की पुण्यतिथि है । सुबह सुबह तो एनडीटीवी ने इस संगीत की विशाल हस्ती को पांच मिनट की स्टोरी में सिमट दिया, लेकिन दिन में इस स्टोरी को विस्तारपूर्वक प्रसारित कर एक अद्भुत श्रद्धांजलि दी। वो अपने गीतों के मार्फत आज हर दिल में बसता है, लेकिन उसके बारे में जिक्र बहुत कम होता है। उसके गाए गीत ‘दोस्त दोस्त न रहा’, ‘मैं शायर हूं पल दो पल का’, ‘मिट्टी के मोल’ जैसे तमाम गीत, जिनको सुनते ही कान, दिमाग और दिल सुकून महसूस करता है।

आज का दिन था, जब दर्द-ए-आवाज अमेरिका में हार्ट अटैक का शिकार होने से खामोश हो गई थी। केएल सहगल से प्रेरित मुकेश को मुम्बई तक लाने का शुभ काम अभिनेता मोतीलाल ने किया, उन्होंने ने ही उनको अपनी फिल्म पहली नजर में प्ले-बैक सिंगर के तौर पर चांस दिया, और मुकेश ने अपना हुनर साबित किया। इसके बाद उन्होंने राजकपूर के लिए काफी गीत भी गाया, लेकिन जब मुकेश के खामोश होने की खबर राजकपूर तक पहुंची तो राजकपूर के मुंह से निकला कि आज मैंने अपनी आवाज खो दी। आज सुबह जैसे ही मुझे पता चला कि मुकेश की पुण्यतिथि है, तो मुझे ऐसा अहसास हुआ कि शायद कोई तो रिश्ता होगा मेरा इस आवाज के साथ, वरना मेरे जेहन में मुकेश का नाम क्यों आया? शायद एक संगीत प्रेमी का रिश्ता होगा। चल जो भी हो। आज पुण्यतिथि पर दर्द-ए-आवाज को मेरा नमन।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत खूब याद किया मुकेश जी को!

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  2. बहुत उम्दा श्रद्धांजली दी आपने, प्यारे मुकेश दा को, साहब।

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  3. बहुत अच्‍छा लगा। कानों में स्‍वर लहरियां गूंजने लगी हैं।

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