पप्पूओं की शिकायत.....

शुक्रवार की सुबह मैं अपने सुसराल में था, मैंने आम दिनों की तरह दुनिया भर का हाल जानने के लिए टीवी शुरू किया, और खबरिया चैनल बदलते बदलते पहुंच गया एनडीटीवी पर, जहां पप्पूओं पर स्पेशल रिपोर्ट चल रही थी, लेकिन ये वो पप्पू नहीं थे, जिनको पप्पू श्रेणी में रखा जाता है, बल्कि ये स्टोरी उन पप्पू पर आधारित थी, जो वोट करने के बाद भी बदनाम हैं. जो डांस में नंबर एक हैं, लेकिन लोग कहते हैं कि 'पप्पू कांट डांस साला', इसको प्रस्तुत कर रहे थे मेरे पसंदीदा संवाददाता एवं न्यूज एंकर रवीश कुमार. गंभीर मुद्दों पर स्पेशल रिपोर्ट पेश करने वाले रवीश कुमार, इस खबर को पेश करते हुए खुद की हँसी को ब-मुश्किल रोके हुए थे. उनकी आंखों में हँसी सफल झलक रही थी, क्योंकि वो जानते थे कि पप्पू शब्द का इस्तेमाल उनके टीवी एवं उनके ब्लॉग पर कितने बार हुआ है, लेकिन कहते हैं ना कि जब जागो तब सुबह. फिर भी रवीश कुमार अपनी हँसी को रोके हुए अपने शब्दों के जरिए बदनाम हुए पप्पूओं को उनका खोया मान दिलाने के लिए बोलना शुरू रखा. वो बार बार कह रहे थे कि वोट बबलू नहीं देता, लेकिन बदनाम पप्पू होता है. दुनिया भर में पप्पू नामक व्यक्तियों की संख्या बहुत होगी, लेकिन आजकल ब्लॉग से लेकर टेलीविजन तक बुद्धू लोगों को पप्पू के नाम से संबोधित किया जा रहा है. स्पेशल रिपोर्ट के दौरान दिखाया गया कि आज से कुछ साल पहले एक चाकलेट की एड के दौरान शब्द उभरा था कि पप्पू पास हो गया. उस वक्त किसी को कोई एतराज न हुआ, क्योंकि उस एड में उस युवक का नाम पप्पू था, और उसने मेहनती की एवं वो पास हो गया. वहां कुदरती था कहा जाना कि पप्पू पास हो गया. लेकिन तब तो सबको ये शब्द खटकना ही था, जब वोट बंता संता नहीं करते, और बदनाम बेचारा पप्पू होता है. उल्लेखनीय है कि पंजाब, हरियाणा बिहार दिल्ली में बनिया एवं अरोड़ा बिरादरी में पप्पू नामक लोगों की भारी संख्या है. विज्ञापन में पप्पू पास क्या हुआ कि 2007 में एस सोनी ने एक फिल्म बना डाली 'और पप्पू पास हो गया'. जब जब कोई निकम्मा आदमी अच्छा काम करने लगा तो कहा जाने लगा पप्पू पास हो गया. पिछले तीन चार सालों से पप्पू का बैंड बज रहा है, लेकिन सबको समझ अब जाकर आई. ब्लॉग पर तो पप्पू शब्द को धड़्ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है, कोई वोट देने नहीं गया ब्लॉगर लिखता है यारों मैं तो पप्पू बन गया. इतना ही नहीं, स्पेशल रिपोर्ट पेश कर रहे हंसमुख मिजाज के रवीश कुमार के कस्बा नामक ब्लॉग पर भी इस चौदह मार्च 2009 को ये पप्पू पास हो गया, आपका क्या होगा जनाबेआली प्रकाशित हुआ था, उसके बाद तीन मई को ये पप्पू फेल हो गया नामक एक और ब्लॉग लिखा गया था. इस बार पंजाब में 65 प्रतिशत मतदान हुआ, और 35 प्रतिशत को लोगों ने पप्पू का नाम दिया होगा, जबकि वो भूल गए कि 65 प्रतिशत हुए मतदान में कितने नामक व्यक्ति थे, पंजाब के तकरीबन हर गांव में एक या दो पप्पू नामक व्यक्ति आपको आम ही मिल जाएंगे.

टिप्पणियाँ

  1. ये पप्‍पू जन जन का हो गया
    जन गण मण रण का हो गया

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  2. ये पप्‍पू जन जन का हो गया
    जन गण मण रण का हो गया

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  3. अजी, एक पप्पू तो हमारे घर में ही है. :)

    जवाब देंहटाएं
  4. फिर आना इसलिए हुआ क्‍योंकि

    वो पप्‍पू ही क्‍या
    जो शिकायत करे
    वो बबलू तो
    हो सकता है
    पर पप्‍पू कतई नहीं।

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  5. आपके पप्पू जी की चर्चा ब्लॉग समयचक्र में

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  6. जी हाँ कल जिस तरह से न्यूज चैनल पप्पुओं का दर्द दिखा रहे थे ऐसा लग रहा था कि उसके निजी पप्पू को बहुत बुरा लगा तो उसने भारत के पप्पुओं की व्यथा बताकर अपना उल्लू सीधा किया ।

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