....जब स्लमडॉग ने लपका ऑस्कर

आखिर भारतीय एक स्लमडॉग की पीठ पर सवार होकर ऑस्कर की शिखर पर पहुंच ही गए. चल ये तो खुशी की बात है कि हिन्दी जगत की कुछ हस्तियों की ऑस्कर पुरस्कार पाने की तमन्ना पूरी हुई, बेशक विदेश फिल्म निर्देशक के सहारे ही सही. सच बोलने को मन चाहता है कि जो काम हिन्दुस्तानी फिल्म निर्माता निर्देशक नहीं कर पाए वो काम डैनी बोएले के एक स्लमडॉग ने कर दिया. बेचारे एआर रहमान ने बॉलीवुड के कई फिल्मों को एक से बढ़कर एक संगीत दिया, लेकिन अफसोस की बात है कि करोड़ों भारतीयों के प्यार के सिवाय रहमान को कुछ नहीं मिला. हो सकता है कि ये करोड़ों प्रेमियों की दुआओं का असर हो, जो एक विदेशी निर्माता निर्देशक की फिल्म की बदौलत उनको ऑस्कर में सम्मान मिल गया. बेशक फिल्म विदेशी निर्देशक की उपज थी, लेकिन उसमें कलाकार तो भारतीय थे, उसकी पृष्ठभूमि तो मुम्बई की झुग्गियां झोपड़ियां थी, चलो कुछ भी हो, एक स्लमडॉग ने हिन्दुस्तान के कलाकारों को जगत के महान हस्तियों से रूबरू तो करवा दिया. इसके अलावा अनिल कपूर ने तो वहां पर जय जय के नारे भी बुलंद किए, अनिल कपूर की खुशी देखने लायक थी, अनिल कपूर के चेहरे वाली खुशी आज से पहले किसी भी फिल्म समारोह में देखने को नहीं मिली. कभी कभी लगता है कि करोड़ों भारतीयों के प्यार से ज्यादा हिंदुस्तानियों को विदेशी सम्मान की ज्यादा भूख है, एक तरफ हम कहते हैं कि मुझे हिंदुस्तानी होने पर गर्व है, फिर वहीं दूसरी तरफ विदेश सम्मान न पाने तक खुद को असहाय, असफल और छोटे कद का क्यों मानते हैं. आज न्यूज चैनलों पर एक ऑस्कर में छाए स्लमडॉग की धूम थी, हर तरफ बस स्लमडॉग की जय हो जय हो के नारे थे. आज सुबह जैसे ही ऑफिस में आया तो देखा तीन टेलीविजन चल रहे थे, एक दूसरे की आवाज आपस में टकराकर कानों को परेशान कर रही थी. धीरे धीरे ऑफिस में कर्मचारियों का आगमन शुरू हुआ, सबकी नजर टीवी सक्रीन पर लगी हुई थी, जैसे ही स्लमडॉग मिलीयनेयर के लिए एआर रहमान को बेस्ट ओरिजन स्कोर का पुरस्कार घोषित किया गया, टेलीविजनों की आवाज के बीच तालियों और ठहाकों की आवाज मिल गई. ऑफिस में एक ऐसा तबका भी है, जो क्रिकट टीम के जीतने एवं ऐसे समारोहों में किसी भी प्राप्ति पर ऑफिस की मार्यादा को भूलकर उच्ची उच्ची ठहाके लगाता है जैसे वो घर में बैठा कोई लाफ्टर चैंलेज शो देख रहा हो. कभी कभी उनका शोर शराबा इस लिए बुरा लगता है कि कभी कभी आदमी किसे विषय पर एकमन होकर लिख रहा होता है और उनकी तालियां ठहाके उसका ध्यान भंग कर देते हैं. अगर ऑफिस में एकमन होकर काम करने वाले व्यक्ति के पास तपस्या कर रहे ऋषियों की तरह शाप देने की शक्ति होती तो ये तबका अब तक खत्म हो जाता है. एक महोदय ने शोर कर रहे दूसरे ऑफिस कर्मी को कहा कि आवाज कम कर लो..तो उसने आगे से गुस्से में जवाब दिया कि हम कोई झख नहीं मार रहे, काम कर रहे हैं. उन्होंने फिर से कहा कि तुम देखो..कोई बात नहीं, मगर आवाज कम करो..लेकिन वो बहस बहस करता था, ऐसा नहीं कि रिमोट उठाकर आवाज कम कर दूं. इससे शांति की जगह अशांति में और ज्यादा इजाफा हो गया. क्या ऑफिस में इस तरह के ठहाके लगाने अच्छी बात है ?

टिप्पणियाँ

  1. छोटी सी आशा

    जय हो

    एक बड़ी परिभाषा

    बनी

    आज है

    रहमानदिन

    और है

    शिवरात।

    जवाब देंहटाएं
  2. मुख्य मुद्दा भारत और भारतियों का ऑस्कर मंच पर सम्मान है, जो कि विदेशी नहीं बल्कि निर्विवाद विश्व स्तरीय सम्मान है. बहुत अच्छा लगा देख कर एवं गर्व की अनुभूति हुई.भविष्य के लिए भी शुभकामनाऐं.


    महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    जवाब देंहटाएं

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